शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव-वर्ष की शुभकामनाए

  आज संकल्प लेना ही होगा की हम चुप नहीं रहेंगे चाहे इसके लिए हमें कोई सी भी क़ुरबानी देनी पड़े क्योकि हमारी ख़ामोशी से गलत प्रोत्साहित होता है और सही हतोत्साहित होता है . हमारी चुप्पी तोड़ने का मतलब हमारी और हमरी आने वाली पीडी को सुख दिलाना है जरा सोचिये यदि हमारे सेनानी चुप होते तो?

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

बैकुंठ पुर के सी एम् ओ के ७ ठिकानो पर छापा

इ ओ डब्ल्यू ने आज बैकुंठपुर के सी ऍम ओ डॉ गंभीर सिंह ठाकुर के सात ठिकानो पर छापे की कारवाई में ४ करोड़ से अधिक की अनुपातहीन संम्पत्ति का खुलासा हुआ है.

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान

स्थापना दिवस पर कांग्रसियों ने स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान किया






स्वदेशी मेला

रायपुर के शंकर नगर स्थित बी टी आई मैदान में स्वदेशी मेला चल रहा है यह ३१ दिसम्बर तक चलेगा  

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

आजीवन कारावास

रायपुर   कोर्ट   नेनारायण  सान्याल  , विनायक  सेन  व्  पियूष  गुहा  को  नक्सालियों   के  साथ  सम्दंध  रखने  के  आरोप   में  देशद्रोह  करार  देते  हुए  आजीवन  कारावास  की  सजा  सुनाई  है   






बुधवार, 22 दिसंबर 2010

बाजारवाद से मंडी बनता मीडिया

क  2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जिस तरह से मीडिया जगत पर कालिख पुती है वह मालिकों के लिए नया सबक हो लेकिन पत्रकारों के लिए किसी शर्मिन्दगी से कम नहीं है। विज्ञापन के नाम पर खबरें बेचे जाने की सोच ने इस चौथे स्तंभ पर बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव को खतरनाक स्थिति पर लाने लगा है। खासकर अब तक अछूते रहे प्रिंट मीडिया पर जिस तरह से बाजारवाद हावी होने लगा है वह पत्रकारिता गरिमा को खंडित करने वाला है। कभी अखबार निकालना एक मिशन हुआ करता था लेकिन मालिकों के पैसे की भूख ने मीडिया को मंडी और रंडी तक कहने मजबूर कर दिया है। क्या मीडिया सिर्फ अपने ग्राहकों के लिए है जो मोटी रकम दी जाती है।
इस सवाल को यदि नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में उनकी गिनती भी नेता और अधिकारियों के साथ होने लगेगी। यह सच है कि इस अर्थ युग में हर संस्थानों का क्षरण हुआ है लेकिन आज भी लोगों का विश्वास अखबार जगत के प्रति बना हुआ है। आज भी लोग व्यवस्था बनाए रखने में अखबार की भूमिका पर विश्वास करते हैं लोग नेता अधिकारियों के निरंकुशता के खिलाफ अखबार को ही प्रमुख हथियार मान कर अपनी बात कहने में संकोच नहीं करते हैं। लेकिन जिस तरह से 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भास्कर ग्रुप का नाम सामने आया है वह दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं शर्मनाक भी है। इसे यहीं रोक देना चाहिए अन्यथा पत्रकारों के पास कुछ भी नहीं बचेगा। सिर्फ नौकरी और जीवन चलाने की मंशा रखने वालों के लिए किसी को कुछ नहीं कहना है लेकिन जो लोग सामाजिक जिम्मेदारी के तहत इस मिशन से जुड़े हैं वे जरुर सोचे कि वे किस तरह से किनके लिए काम कर रहे हैं।
भटनागर की माया
वैसे तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद आए दिन नए-नए अखबारों का प्रकाशन होने लगा है कभी अजीत जोगी के खास रहे अशोक भटनागर ने भी लोकमाया के नाम से दैनिक अखबार शुरु कर दिया है। कभी मीडियेटर के रुप में ख्याति प्राप्त अशोक भटनागर को पत्रकार नहीं मिल रहा है तो इसकी वजह उनकी अपनी ईमेज ही है।
रोजी रोटी जरूरी है...
इन दिनों राजधानी के ख्यातिनाम पत्रकार से लेकर फोटोग्राफर एक मंत्री की सेवा बजा रहे हैं। इस दौड़ में सबसे अच्छी बात यह है कि खबरों को लेकर मन मारना नहीं पड़ेगा और वेतन तो अच्छा खासा है ही साथ ही मंत्री जी के साथ रहने से खाने पीने की भी दिक्कत नहीं होगी।
रे की छुट्टी
अंग्रेजी पत्रिका सम-अप से पत्रकारिता करने की सोचने वाले आईएएस अधिकारी बी.के.एस. रे की छुट्टी हो गई है। कहा जाता है कि मंत्रालय में बैठे अफसरों के पंगे से त्रस्त कटारिया को यह फैसला करना पड़ा।
और अंत में...
आज की जनधारा के बिकने की खबर इतनी बार उड़ चुकी है कि अब इस खबर पर कोई ध्यान नहीं देता।

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

जिनसे उम्मीद खी बनाए मजार मेरा,वही मेरे कब्र के पत्थर चुराकर ले गए!

पता नहीं शायर ने यह किस परिपेक्ष्य में कही थी लेकिन छत्तीसगढ़ का वन अमला इन दिनों इसी तरह के दौर से गुजर रहा है। दर्जनों अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के मामले लंबित पड़े हैं और सरकार भी इन्हें प्रमुख पदों पर बिठा रखी है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। सरकार किसी की भी रहे इन अफसरों ने अपनी निजी संपत्तियों में ईजाफा कर भ्रष्टाचार का रिकार्ड बनाया है।
प्रदेश के जिन दर्जनों वन अफसरों पर लोग आयोग की जांच चल रही है उनमें से बालमुकुंद मायरिया, पीएम तिवारी, एससी रहतगांवकर, जेएससीएस राव, एनएस डुंगरियाल, जे.के. उपाध्याय, हेमंत कुमार पाण्डेय, एमडी बडग़ैय्या, अमरनाथ प्रसाद, श्रीनिवास राव, सुधीर अग्रवाल, वी.रामाराव, एस.पी. रजक, सीएस अग्रवाल, तपेश कुमार झा और गोविन्द राव ऐसे अफसर है जो लोक आयोग की जांच के घेरे में होने के बावजूद ऐसे पदों पर बैठे हैं जो प्रमुख पद माने जाते हैं। सरकार कह तो रही है कि वे ईमानदारी से काम कर रही है लेकिन भ्रष्ट अफसरों के भरोसे किस तरह से काम हो रहा होगा आसानी से समझा जा सकता है।
प्रदेश में अफसरशाही किस कदर हावी है यह वन अमलों के कारनामों से समझा जा सकता है। निरकुंश और भ्रष्टाचार में डुबे अफसरों के चलते वन विभाग में माफिया राज चल रहा है। इनकी पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन अफसरों ने मुख्यमंत्री और वन मंत्री के क्षेत्र में भी घपलेबाजी की है वे तक न केवल नौकरी में बने हुए हैं बल्कि प्रमुख पदों पर आसीन है। क्या हम यह मान लें कि इस मामले में मुख्यमंत्री की नहीं चलती और इससे भी कोई ऊपर है जो ऐसे भ्रष्ट अफसरों को बिठाकर रखे हैं इससे सरकार की छवि बने या बिगड़े इन्हें कोई मतलब नहीं है या फिर मुख्यमंत्री व वन सचिव की इस भ्रष्टाचार में सहमति है।
छत्तीसगढ़ राज्य को बने 10 साल हो चुके हैं और इन दस सालों में अफसरशाही इस कदर हावी है कि इन लोगों ने सरकार को अपनी मुट्ठी में कर रखा है क्या यह लोकतंत्र की अंधेरगर्दी नहीं है। वन विभाग छत्तीसगढ़ राज्य की रीड़ है आधा क्षेत्र इसी विभाग के पास है जहां वन माफिया सालों से वनों की बर्बादी में लगे हैं यहां रहने वाले लोगों का जीवन स्तर सुधारने अनेक सरकारी योजनाएं भी बनी लेकिन प्राय: सभी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए गए लेकिन इनमें से अधिकांश रुपए अफसरों के जेबों में चला गया। आम लोगों ने इस बीच कई सरकार बदली और विधायक भी बदले गए लेकिन जिसने भी कुर्सी पाई उन्हीं लोगों ने चंद सिक्कों के लालच में ऐसे भ्रष्ट अफसरों को पनाह देने का काम किया क्या यब सब किसी अंधेरगर्दी से कम है।

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

दस साल बाद भी भयावह स्थिति...

छत्तीसगढ़ राज्य को बने दस साल हो गए इनमें से अधिकांश समय भाजपा की सरकार रही है। दस साल में विकास के ढिंढोरे पीटे जा रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या वास्तव में छत्तीसगढ़ का समुचित विकास हुआ है। या फिर सिर्फ शहरी क्षेत्र में ही विकास को विकास मान ले। क्या रमन सरकार के पास इस बात का जवाब है कि उसने अपने सात साल के शासन में कितने गांवों को साफ पीने का पानी मुहैया कराया है या फिर ऐसे कितने गांव है जहां के हर खेत को सिंचाई का पानी मिल रहा है। कितने गांव है जहां स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई गई है। या फिर सर्वसुविधायुक्त बसाहट की गई है। छत्तीसगढ़ के गांवों की हालत बदतर है। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बदतर है लोग मलेरिया से मर रहे है। मृतकों की संख्या सैकड़ों-हजारों पहुंच रही है लेकिन सरकार का इस ओर जरा भी ध्यान नहीं है। शहर में रहने वालों को हर तरह की सुविधाएं मुहैया है लेकिन गांव के लोगों को पीने का साफ पानी तक सरकार मुहैया नहीं करा पा रही है। मुख्यमंत्री के जिले के गांवों तक की हालत बदतर है। छोटी-छोटी बीमारी के ईलाज के लिए लोगों को कई किलोमीटर चल कर आना पड़ता है। अभियान या शिविर के नाम पर सिर्फ भ्रष्टाचार और खानापूर्ति की जा रही है।
खेती जमीन का रकबा लगातार घट रहा है। ग्रामीण आबादी सुविधा के अभाव में शहर की ओर कूच कर रहे हैं जिनकी वजह से शहर भी अव्यवस्थित होने लगा है लेकिन सरकार के पास गांवों के सुनियोजित विकास की न तो कोई सोच है और न ही कोई फार्मूला ही है। ऐसे में कोई सरकार विकास का दंभ कैसे भर सकती है। राजधानी से लगे गांवों तक की हालत खराब है उल्टे सडक़ों से गांवों को जोडक़र शोषण के रास्ते खोले जा रहे हैं यही नहीं आम लोगों को सुविधा उपलब्ध कराने की बजाय मुफ्त के बंदरबांट कर ग्रामीणोंं का आक्रोश शांत करने की सरकारी योजनाएं अंग्रेजों के फूट डालो राज करों की नीति से भी भयावह है? क्या क्षेत्रीय विधायकों को यह नहीं लगता कि उनके गांव वाले भी नलो से साफ पानी पिए, घरों में लेट्रिंग-बाथरुम हो और हर खेत में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। यदि गांव वाले इस मांग पर अड़ जाए तो क्या होगा। आजादी के 6 दशक बीत चुके है लेकिन गांव वालों को सुविधा के नाम पर जिस तरह से लालीपॉप पकड़ाया जा रहा है। क्या अब ग्रामीण विकास के लिए नई आजादी की लड़ाई की जरूरत नहीं है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों से चुनकर आने वाले सांसद व विधायक भी गांवों के समुचित विकास की चिंता नहीं कर रहे हैं और दलगत राजनीति में उलझकर अपनी चिंता में ज्यादा लगे है। पैसा व पद आने के बाद शहरों में बस जाने की महत्वकांक्षा ने इन्हें निष्ठुर बना दिया है। बल्कि संवेदना शून्य कर दिया है ऐसे में गांवों को सुविधा उपलब्ध कराने क्या आंदोलन ही रास्ता बचा है।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

लोकायुक्त के चालान के बाद भी सुब्रतो राय की चांदी

मंडी बोर्ड का भगवान ही मालिक...
जिस व्यक्ति के खिलाफ लोकायुक्त ने न्यायालय में चालान पेश कर दिया है वह कार्यपालन अभियंता सुब्रतो राय न केवल मंडी बोर्ड में प्रभारी संयुक्त संचालक के पद पर बने हुए है बल्कि उन्हें निर्माण से संबंधित आहरण का अधिकार तक दे दिया गया। यह सब छत्तीसगढ़ को लुटने की साजिश का हिस्सा नहीं तो और क्या है? कहा जाता है कि प्रभारी बनते शअरी राय ने अपने उच्चाधिकारियों को न केवल जमकर पैसे बांटे है बल्कि मंत्री तक को अंधेरे में रखा गया।
करोड़ों रुपए के बजट वाले मंडी बोर्ड में जिस तरह से भ्रष्टाचार में यहां के अधिकारी लिप्त हैं उसकी आंच अब सचिव तक भी आने लगी है। कहा जाता है कि मिल बांटकर पैसे खाने की इस रणनीति में उच्चाधिकारी तक शामिल है और पूरा मामला सुनियोजित षडय़ंत्र का हिस्सा है और इसमें प्रबंध संचालक की विशेष रुचि चर्चा का विषय है। मंडी बोर्ड में पदस्थ कार्यपालन अभियंता सुब्रतो राय के कारनामों की चर्चा तो अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही रही है। उनके कारनामें की चर्चा जब काफी होने लगी तो उनके खिलाफ मध्यप्रदेश में लोकायुक्त ने न केवल छापे की कार्रवाई की बल्कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगाए गए।
सूत्रों का कहना है कि लोकायुक्त की कार्रवाई के चलते ही सुब्रतो राय ने राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ का रुख कर लिया और वे यहा अपने कारनामें दिखाना भी शुरु कर दिया चूंकि सुब्रतो राय के खिलाफ लोकायुक्त ने गंभीर आरोप लगाए हैं इसलिए प्रारंभ में तो उनसे दूरी बनी रही लेकिन अपने कार्यशैली से शीघ्र ही वे अधिकारियों के चहेते बन प्रमुख पदों पर जा बैठें। इधर मध्यप्रदेश लोकायुक्त ने सुब्रतो राय के खिलाफ जुलाई 2009 में न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया तो वे फिर चर्चा में आ गए। चूंकि मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ सिविल सेवा वर्गीकरण तथा नियंत्रण अपील नियम 1966 के नियम 9 (1) बी के प्रथम परंतुक के अनुसार शासकीय सेवक के विरुद्ध दंडित अपराध में चालान प्रस्तुत किए जाने पर संबंधित कर्मचारी को निलंबित किया जाना अनिवार्य है इसलिए सुब्रतो राय को निलंबित किया गया। बताया जाता है कि इधर निलंबित सुब्रतो राय पद पाने छटपटाने लगे और उन्होंने अपने निलंबन की कार्रवाई पर पुर्नविचार करने अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा कि चूंकि वे छत्तीसगढ़ में नौकरी कर रहे हैं चूंकि उनका प्रकरण छत्तीसगढ़ राज्य से संबंधित नहीं है।
इधर सुब्रतो राय के पत्र पाते ही जिस तेजी से उन्हें बहाल किया गया उससे अनेक संदेहों को जन्म देता है। बताया जाता है कि 6-7 माह के भीतर ही सुब्रतो राय को न केवल बहाल कर दिया गया बल्कि उन्हें प्रभआरी संयुक्त संचालक भी बना दिया गया। बताया जाता है कि प्रभारी संयुक्त संचालक बनाने के बाद प्रबध संचालक मंडी बोर्ड ने उन्हें निर्माण संबंधित आहरण वितरण तक का काम सौंप दिया गया जबकि सुब्रतो राय पर पहले ही आर्थिक अनियमितता का आरोप लग चुका है। हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक मंडी बोर्ड के अधिकारियों व सचिव स्तर पर यह सारी कार्रवाई बड़े ही गोपनीय तरीके से की गई ताकि मंत्री को इसकी हवा न लगे।
छत्तीसगढ़ में किस कदर अफसरशाही हावी है और भ्रष्ट लोगों को किस तरह से जिम्मेदारी भरे पदों पर बिठाया जा रहा है यह आश्चर्यजनक ही नहीं दुर्भाग्यपूर्ण है। सूत्रों के मुताबिक सुब्रतो राय के व्यवहार को लेकर भी कर्मचारियों व अधिकारियों में जबरदस्त रोष है और इसकी शिकायत भी उच्च स्तर पर की जा चुकी है। छत्तीसगढिय़ा कर्मचारी व अधिकारियों में भी सुब्रतो राय को लेकर बेहद रोष है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक कर्मचारी ने बताया कि सुब्रतो राय की सचिव स्तर तक जबरदस्त सेटिंग है इसलिए इतनी बड़ी कार्रवाई के बाद भी उन्हें मलाईदार काम दिया गया है। बहरहाल आर्थिक अनियमितता के आरोपी सुब्रतो राय को आहरण कार्य सौंपे जाने को लेकर विभाग में ही नहीं मंत्रालय में भी जबरदस्त चर्चा है और लोग तो राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट की चर्चा करने लगे हैं।

नीना सिंह की दबंगई या भाजपाई दादागिरी

 मामूली अपराध पर मान मालिकों को अपराधी बना देने वाली छत्तीसगढ़ पुलिस ने किस कदर भाजपा नेत्री नीना सिंह की कंपनी के द्वारा की गई डकैती के बाद अपनी दुम दबा ली यह इन दिनों चर्चा में है। बारुद जैसे संवेदनशील मामले में पुलिस ने जिस तरह से कार्यवाही की उससे भाजपा नेत्री नीना सिंह की दबंगई साफ झलक रही है यही नहीं इस मामले में शिकायतकर्ताओं के आगे जिस तरह से राजधानी की पुलिस गिड़गिड़ाते नजर आई वह भाजपाई सत्ता के लिए भी शर्मसार कर देने वाली है।
वैसे तो सत्ता के दबाव में पुलिस अनदेखी की कहानी नई नहीं है लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से यह मामला अति संवेदनशील होने के बाद भी जिस तरह से पुलिस ने कार्रवाई की वह आम लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने जैसा है। बारुद पैकेनिंग फैक्ट्री में डकैती करने वाले रंगे हाथ पकड़े जाते है लेकिन डकैती के सूत्रधारों के खिलाफ शिकायत के बाद भी जुर्म दर्ज नहीं किया जाता।
दरअसल घटना उरला स्थित एक बारुद पैकेजिंग बाक्स निर्माता फैक्ट्री में लूट व डकैती की है। एक्सप्लो पैक नामक इस कंपनी में 11 अक्टूबर को नवभारत एक्सप्लोजिव्ह फैक्ट्री के कर्मचारी पहुंचकर ताला तोड़ते
है और पैकेजिंग बाक्स लूट लेते हैं मौके पर इसका खुलासा होते ही पुलिस पहुंचती है और मौके पर ही पुलिस ने वाहन सहित लगभग आधा दर्जन लोगों को गिरफ्तार कर वाहन में लोड किए गए लगभग 3250 नग पैकेजिंग बाक्स जब्त करती है।
पुलिस ने इस मामले में इतनी तत्परता दिखाई कि सात दिन में ही जांच कर कोर्ट में चालान पेश कर दिया और बगैर पीसीआर के आरोपी कोर्ट से जमानत पर छूट गए। इतना ही नहीं पुलिस ने मौके से जब्त किए मेटाडोर क्रमांक सीजी 04 जे 9805 को भी सुपुर्दनामे में दे दिया और इतने महत्वपूर्ण पैकेनिंग बाक्स को खुले में उतार दिया। जबकि सामान्यत: जब तब सामान की सुपुर्दनामा नहीं होता वाहन नहीं छोड़े जाते। पुलिस की हड़बड़ी की एक मात्र वजह राजिम क्षेत्र से भाजपा की टिकिट पर चुनाव लड़ चुकी नीना सिंह को बताया जा रहा है क्योंकि नवभारत एक्सप्लोजिव का नीना सिंह पूर्णकालीक संचालक है।
इस संबंध में पैकेनिंग बाक्स फैक्ट्री मालिक सुनील सरावगी ने कहा कि छत्तीसगढ़ पुलिस के हरेक अधिकारियों से वे मिल चुके हैं लेकिन राजनैतिक दबाव के चलते कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने इस मामले में नवभारत एक्सप्लोजिव के संचालक विजय कुमार सिंह, विशाल सिंह, डॉ. नीना सिंह, गीता सिंह पर भी डकैती की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए जुर्म पंजीबद्ध करने की मांग की। सुनील सरावगी ने कहा कि भारी राजनैतिक दबाव में छत्तीसगढ़ पुलिस ने जिस तरह से इस संवेदनशील मामले की अनदेखी की है वह न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि पुलिस ने जानबूझकर आरोपियों को बचाने का कार्य किया। यही नहीं डकैती के इस मामले में पुलिस ने चोरी का अपराध पंजीबद्ध किया यह भी आश्चर्यजनक है।
नागपुर के इस शिकायकर्ता ने साफ कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य पहले से ही नक्सली समस्या से ग्रस्त है इसके बाद भी पुलिस ने विस्फोटक पैकेनिंग बाक्स में लूटमार की घटना को गंभीरता से नहीं लिया जबकि बारुद बगैर पैकेजिंग के नहीं भेजा जा सकता और एनएफसीएल और एनईसीएल क्यों यह सामान लूटना चाहता था और उनकी मंशा क्या थी। उन्होंने यह भी कहा की पुलिस को जांच करनी चाहिए कि लूटमार की इस घटना को राष्ट्रविरोध या अनैतिक कर्म के लिए प्रयोग तो नहीं किया जा रहा था। बहरहाल सुनील सरावगी ने फैक्ट्री में हुई लूटमार को लेकर पुलिस के रवैये से हैरान होकर कोर्ट में जाने की बात कही। वहीं हमने भी नवभारत एक्सप्लोनिव के संचालकों से संपर्क की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

बाबूलाल की बहादुरी पर बेबस सरकार...

इसे सरकार की बेबसी कहें या बेईमानों की ताकत। आम लोगों ने आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के कारनामों को अखबारों में खूब पढ़ा सुना है। वैसे भी सरकार पर आईएएस व आईपीएस भारी होते हैं।
राजस्व मंडल के सदस्य आईएएस बाबूलाल अग्रवाल तो सुर्खियों में तभी से थे जब वे स्वास्थ्य सचिव थे। स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर वे कटघरे में रहे हैं लेकिन उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत न तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने दिखाई और न ही स्वास्थ्य विभाग के कारनामों पर टिप्पणी करने वाले लोग ही सामने आए। आईएएस बाबूलाल अग्रवाल तब छपने लगे जब आयकर विभाग ने छापे की कार्रवाई की छापे में अनुपातहीन संपत्ति का खुलासा हुआ और कांग्रेस सहित आम लोगों ने जब हल्ला मचाना शुरु किया तब कहीं सरकार जागी और उन्हें निलंबित किया गया। छापे में क्या कुछ मिला कहने की जरूरत नहीं है। गांव के गांव का पेन कार्ड से लेकर बैंक खाता जैसे गंभीर मामले सामने आए। लोग चिखते रहे लेकिन इतने बड़े चार सौ बीसी कांड में सरकार ने अपनी तरफ से रिपोर्ट लिखाने की जरुरत नहीं समझी। पैसा और पहुंच किस तरह सर चढक़र बोलता है यह आईएएस बाबूलाल अग्रवाल प्रकरण से आसानी से समझा जा सकता है।
बात सिर्फ निलंबित कर देने की नहीं है सरकार ने चालान पुटप यानी 90 दिन का किस बेसब्री से इंतजार किया यह भी देखने में आया। 90 दिन होते ही सरकार की बेसब्री सामने आ गई और बिना एक पल गंवाये आईएएस बाबूलाल अग्रवाल को राजस्व मंडल का सदस्य बना दिया गया। राजस्व मंडल को एक तरह से न्यायालय ही माना जाता है और न्यायालय का मतलब न्याय मंदिर होता है और ऐसी जगह में आईएएस बाबूलाल अग्रवाल का बैठना कितना उचित है यह आम लोग भी समझते हैं। सरकार किसी की भी हो पैसा और पहुंच वालों के अपने मजे हैं। यह कुछ सजा बन सके इसी उम्मीद में...।
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गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

स्वामी भक्ति के मायने

कहते है स्वामी भक्ति में कुत्ते से कोई मुकाबला नहीं है, वैसे कई लोग घोड़े को भी उदाहरण के रुप में प्रस्तुत करते हैं लेकिन वर्तमान में राजनैतिक दलों के नेताओं में स्वामीभक्ति की होड़ मची है। स्वामी भक्ति में लोग इतने अंधे हो गए हैं कि उनके सामने देश-धर्म और समाज तक बौना हो गया है।
हाल ही में कांग्रेस के हाईकमान के जन्मदिवस पर छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों ने स्वामीभक्ति की होड़ में तिरंगे के अपमान से भी परहेज नहीं किया। कांग्रेस भवन में बाकायदा ऐसा केक बनवाकर चाकू चलाया गया जो तिरंगे का प्रतिरुप था। कभी देश प्रेम में कांग्रेस का कहीं कोई मुकाबला नहीं था। कांग्रेस का निर्माण ही भारत को अंग्रेजी दास्तां से मुक्ति दिलाने की गई थी लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस में व्यक्तिवाद इतना हावी हो गया कि देश समाज धर्म सभी गौण हो गए। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में देश प्रेमी मौजूद नहीं है। आज भी देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले लोग हैं लेकिन पैसा इस कदर हावी है कि सारी बातें गौण हो जाती है।
ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेसियों ने तिरंगे का अपमान पहली बार किया हो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मेहतर लाल साहू ने निधन पर भी इसी तरह का कृत्य किया गया था। तब पुलिस ने तत्परता दिखलाकर जुर्म दर्ज भी किया था। लेकिन इस बार प्रशासन ने कोई रूचि नहीं दिखाई उल्टे जब शहर के पुलिस कप्तान ही यह कहने लगे हो कि शिकायत मिलेगी तभी जुर्म दर्ज होगा। शर्मनाक और हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? पुलिस की दोगलाई पहली बार उजागर नहीं हुई है। इससे पहले शहर के नामी हीरा ग्रुप के दीपावली में बांटे कार्पोरेट गिफ्ट में तो देश का नक्शा ही त्रुटिपूर्ण था तब भी शासन की ओर से कोई पहल नहीं हुई। धन बल और कुर्सी बल के आगे किस तरह से छत्तीसगढ़ का शासन बेबस है यह इस दो उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। ताजा मामला तो स्वामी भक्ति की पराकाष्ठा है। ऐसा नहीं है कि स्वामी भक्ति का उदाहरण सिर्फ कांग्रेस में ही है। भाजपा में भी स्वामी भक्ति दिखाने वालों की कमी नहीं है। राजनीतिक सुचिता, सादगी की वकालत करने वाले भाजपाध्यक्ष नीतिन गडकरी के पुत्र की शादी का आयोजन लोकतंत्र में किस तरह से स्वीकार योग्य है यह तो भाजपा ही जाने लेकिन छत्तीसगढ़ की सरकार में बड़े-बड़े ओहदे में बैठे लोगों ने इस विवाह समारोह में जो स्वामी भक्ति दिखाई वह आम लोगों में शर्मनाक ढंग से चर्चा में है।
दरअसल सत्ता और धन ने राजनैति· दलों से जुड़े लोगों को इस हद तक पागल कर दिया है कि उनके लिए नैतिकता छूत हो गई है। विवादों में रहना उनके लिए शगल है और हर हाल में मीडिया में बने रहने की भूख ने अच्छे-बुरे का लिहाज ही छोड़ दिया है। प्रशासन भी इस हद तक अपनी जमीर बेचने में लगा है जैसे उसके लिए नौकरी ही सब कुछ है लेकिन जो लोग इसकी परवाह नहीं करते वे समझ लें कि इस देश के लोगों ने देर से ही सही लालू-पासवान या मुलायम-वीसी शुक्ल या अजीत जोगी तक को असहाय कर दिया है। नैतिकता अब भी है और इसकी परवाह नहीं करने वालों को धूल में मिलना ही होता है।

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

मिला मौका, मारा चौका

 छत्तीसगढ़ के अखबारों में इन दिनों जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है। एक दूसरे से आगे नि·लने की होड़ के बीच दैनिक भास्कर और पत्रिका में जंग छिड़ चुका है। कौन आगे है यह आम जनता समझ भी रही है लेकिन एक दूसरे के खिलाफ कोई मौका नहीं छोडऩे की हठ ने पाठकों को नई खुशी दी है। दैनिक भास्कर का नाम 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आते ही पत्रिका की बांहे खिल गई उसने भी मसालेदार खबर तैयार की और दैनिक भास्कर ग्रुप और रमेश अग्रवाल के इस तरह से कपड़े उतारे मानों वे दूध के धूले हो। पत्रिका किस तरह से दूध का धूला है यह तो वही जाने लेकिन भास्कर फिलहाल चुप है। तूफान के पूर्व की शांति।
विज्ञापन और आत्मा
पिछले दिनों कलकत्ता से आए कुछ लोगों ने प्रेस क्लब में संगोष्ठि रखी कि मीडिया ने विज्ञापन के लिए अपनी आत्मा बेच दी है। आयोजकों को उम्मीद थी कि इस बहस का असर होगा लेकिन यहां के संपादक कम खाटी नहीं है वे यह साबित करने में लगे रहे कि विज्ञापन का दबाव होता जरूर है पर इतना नहीं कि आत्मा बिक जाए।
रंगा-बिल्ला की करतूत
कहते हैं शहर का सर्वाधिक प्रसारित इस अखबर में जब से बिहारी बाबूओं ने डेरा जमाया है तब से ठेके में चले जाने की चर्चा आम हो गई है अब तो इस अखबार के रिपोर्टर तक हैरान है कि सरकार तो छोडि़ए पैसे वाले कांग्रेसियों के खिलाफ भी खबर नहीं छापी जा रही है सीधे सौदा किए जा रहे हैं।
असहायों से भी कमाई
कभी आयुर्वेद का प्रचार करते करते अखबार लाईन में आए इस मैनेजमेंट वाले का कोई जवाब नहीं है। सारा संसार अखबार में आते ही बड़े बड़ों से सेटिंग की और जब लगा कि मालिक निकालने वाले है तो अपनी दुनिया बसा ली। यहां भी वे अपनी हर·त से बाज नहीं आ रहे हैं कहते हैं अखबार का प्रभाव दिखा·र वह असहायों से कमाई की आकांक्षा पाले हुए है और इसके लिए अपनी पत्नी को हथियार बना रहे हैं।
पुसदकर का स्वदेश प्रेम
प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदvर ने स्वदेश ज्वाईन कर लिया है। संपादक बन गए है और समय भी देने की कोशिश में है पर कितना दिन। आखिर वहां भी तो एत से एत बरकर है।
और अंत में...
लोग जबरदस्ती जोसेफ जी का उदाहरण देते है अब पाण्डे जी भी आ गए हैं संदर्भ ग्रंथ लेकर।

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं...

इन दिनों पूरे देश में 2जी स्पेक्ट्रम कांड को लेकर चर्चा है। साथ ही भ्रष्टाचार को लेकर हर कोई चिंतित है कि आखिर इस देश के ईमानदार लोग कहां चले गए। क्या हमारी शिक्षा प्रणाली ने आम आदमी को निहायत स्वार्थी और डरपोक बना दिया है। जहां विरोध करने का माद्दा ही खत्म हो गया है।
पिछले दिनों काफी हाउस में चर्चा के दौरान मेरे मित्र उचित शर्मा ने कहा कि आम आदमी के पास टाईम नहीं है इसलिए तो वह जनप्रतिनिधि चुनता है ताकि आप लोग सुकून से जिन्दगी जी सके। लोकतंत्र की यह सबसे अच्छी बात भी यही है लेकिन जब पूरी सरकार और जनप्रतिनिधि ही भ्रष्ट होने लगे और उसे चलन या परम्परा का नाम दे दे तो फिर आम आदमी के पास रास्ता क्या रह जाता है। लेकिन रास्ता है और इसके लिए हमें अपनी मुंह देखी चरित्र को बदलना होगा। हमारी लड़ाई इसी की है कि आखिर सरकार शराब क्यों बेचे। और धर्म गुरु आम लोगों को समझाईश देने की बजाय उस सरकार का बहिष्कार करे तो ऐसे कृत्य कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में शराब की गंगा बह रही है यह बात सरकार में बैठे पक्ष-विपक्ष सभी लोग जानते हैं। आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में दुर्घटना से मरने वालों की संख्या या अपाहिज होने वाले प्रकरणों पर गौर करें तो 80 से 90 फीसदी मामलों में शराब सामने आ रही है इसी तरह घरेलू हिंसा से लेकर लूटपाट और हत्या जैसे मामले भी शराब की वजह से ही बढ़े हैं इसके बाद भी सरकार राजस्व की दुहाई देकर जगह-जगह शराब बेच रही है। सरकार का सबसे हास्यास्पद पक्ष यह है कि वह गुजरात के शराब बंदी को असफल कहती है और तस्करी की बात कहकर पूर्णत: शराबबंदी के खिलाफ खड़ा होती है लेकिन क्या यह पूरा सच है। नहीं। गुजरात में शराब तस्करी होती जरूर है लेकिन इस तरह की शराब 10 फीसदी से ज्यादा लोग नहीं पीते और वहां के आंकड़े बताते हैं कि शराब बंदी के बाद दुर्घटना से लेकर अपराध के आंकड़ों में जबरदस्त कमी आई है।
इसी तरह भ्रष्टाचार और घोटाले में भी सरकार की भूमिका से आम लोग खुश नहीं है। गलत लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने की इस परम्परा को बंद करनी चाहिए। आरोपितों को दंडित करने की बजाय पुरस्कृत करने की वजह से ही बाबूलाल अग्रवाल जैसे लोगों के हौसले बुलंद है। इसकी भारी कीमत सरकार को चुकानी पड़ेगी। विवादास्पद अधिकारियों को महत्वपूर्ण विभाग देने की बजाय उन्हें आफिस के काम में लगा देना चाहिए या ऐसे काम जहां न वित्तीय अधिकार हो और न ही वे आदेश देने के लायक रहे।
सुप्रीमकोर्ट की भूमिका को ले·र इन दिनों राजनेताओं से लेकर अधिकारियों में हड़·म्प मचा है लेकिन छत्तीसगढ़ में दूसरी ही परम्परा चल रही है। आईपीएस और आईएएस के मक्·डज़ाल में सरकार ऐसे उलझ गई है कि लोकतंत्र की बजाय राजशाही ज्यादा नजर आने लगा है। भ्रष्टाचार में लिप्त आईएएस लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया जा रहा है और ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया जा रहा है। यदि इस परम्परा को बंद नहीं किया गया तो फिर ए· गांधी या चंद्रशेखर आजाद या भगत सिंह को पैदा होने से कौन रोक सकेगा। तब...

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

दोषी कौन ? मोहन या मूणत!

भ्रष्ट अधिकारियों का रौब, लोगों में आक्रोश
आयकर विभाग से लेकर आर्थिक अपराध ब्यूरों हो या अन्य जांच एजेंसियों ने जिस तरह से भ्रष्ट अधिकारियों का खुलासा किया है इसके बाद भी ये लोग पदों पर जमें है तो इसके लिए दोषी कौन है। राजधानी के दो-दो मंत्रियों के रहते भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई नहीं होना, क्या साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि कहीं न कहीं इसके लिए दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत का संरक्षण है। निगम इंजीनियर राठौर का मामला हो या निगम के दूसरे अफसरों का। आरोपों के बाद भी ये लोग अपने पदों पर जमें हुए हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जिस तेजी से विकास होने का दावा किया जा रहा है उससे कहीं अधिक तेजी से अफसरों का व्यक्तिगत विकास अधिक हुआ है। ताजा मामला नगर निगम के इंजीनियर एम.सी. राठौर के यहां पड़े छापे से पता चलता है। आर्थिक अपराध ब्यूरों ने इस इंजीनियर के घर व ठीकानों से ढाई करोड़ से ऊपर की अनुपातहीन संपत्ति जब्त की और आश्चर्य का विषय तो यह है कि अभी तक इस इंजीनियर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि यहां दो-दो मंत्री है और वे निगम क्षेत्र से ही विधायक बनते हैं। आम लोगों में हो रही तीखी प्रतिक्रिया के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि राठौर को कौन बचा रहा है। बृजमोहन अग्रवाल या राजेश मूणत? तेज तर्रार माने जाने वाले कमिश्नर ओपी चौधरी की इस मामले में चुप्पी रहस्यमय है। आर्थिक अपराध ब्यूरों की कार्रवाई के बाद सस्पेंड की उम्मीद तो की ही जा रही थी लेकिन सस्पेंड नहीं किए जाने पर आम प्रतिक्रिया है कि फिर इस तरह की एजेंसी का औचित्य ही क्या है।
इस बीच निगम के अन्य भ्रष्ट अधिकारियों को भी संरक्षण देने का आरोप मंत्रीद्वय पर लगाया जा रहा है। बताया जाता है कि बेक होल लोडर सप्लाई मामले में भी निगम के एक अफसर की भूमिका संदिग्ध रही है और यही वजह है कि इस अफसर को बचाने मामले की लीपीपोती की जा रही है। बताया जाता है कि अवैध काम्प्लेक्सों से लेकर अवैध निर्माण में निगम के कई अफसरों की सीधे जिम्मेदारी की शिकायत पर भी कार्रवाई नहीं होगा। क्या संरक्षण के दावों को झुठलाया जा सकता है। बहरहाल भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने को लेकर जिस तरह से बृजमोहन और मूणत पर छींटे लग रहे है वे आने वाले दिनों में भाजपा के लिए नई मुसीबत ला सकता है।

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

सजा के jishm न बेचें तो और क्या बेंचे,गरीब लोग हैं घर में दुकान रखते हैं

छत्तीसगढ rajya  बनने के बाद अखबारों की बाढ़ सी आ गई है। कई पत्रकार नौकरी करने की बजाय अपना अखबार निकाल रहे हैं तो राय सरकार की विज्ञापन नीति से प्रभावित होकर बड़े ग्रुप भी कूद गए हैं। अखबार क्या अच्छा खासा मनोरंजन का साधन बन गया है। खबरों के नाम पर सूचना या फिर ओब्लाईजेशन का नजारा ही अधिक दिखाई देने लगा है। सारे बड़े अखबार पेज मेकर के हवाले हैं। खबरें कैसे बननी है इसकी बजाय अखबार कैसे सजाए जाएं इस पर यादा ध्यान हैं। विज्ञापन बटोरने के अलावा लोग बनाने की तमन्ना भी यादा दिखलाई पड़ रहा है। ऐसे में पत्रकार से अखबार मालिक बने लोगों की अपनी पीड़ा है अच्छी खबरों के बाद भी पढ़ने वालों की कमी से जूझ रहे अखबार भी अब साज-साा पर जोर देने लगे हैं।
पिछला सप्ताह यानी काला सप्ताह
पिछले सप्ताह पुलिस ने दो पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की। दामू आम्बेडारे तो दामू बदनाम हुआ डार्लिंग तेरे लिए का गाना गाते घूम रहा है। बमुश्किल से जमानत मिलने के बाद प्रेस क्लब से निलंबित भी किए गए। 15 दिन के भीतर जवाब सही मिला तो ठीक वरना। दूसरा मामला धोखाधड़ी का है। हैलो रायपुर निकाल रहा मधुर को जमीन का कारोबार रास नहीं आया लोग दूसरा काम छोड़ अखबार निकाल रहे है और ये अखबार से दूसरे काम की ओर जा रहा है तो फंसना तो है ही।
छत्तीसगढ़ अब सुबह की ओर...
एक कहावत है कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो इसे भूला नहीं कहते। सांध्य दैनिक छत्तीसगढ़ निकाल रहे सुनील कुमार अब सुबह का अखबार निकालने की कोशिश में है। इसे देर आए दुरुस्त आए भी कहा जा सकता है। अखबार भी अच्छा निकालों और दो घंटे में पढ़ाओं। यह अकल तो पहले आनी चाहिए थी। पर हाइवे का भूत अब जाकर उतरा है।
भास्कर की छटपटाहट
मीडिया जगत के इस नए छत्रप की दिक्कते बढ ग़ई है। अपनी जमीन में बनी बिल्डिंग को तोड़कर 14 मंडिला बनाने की कवायद में किराए के भवन में जाना पड़ा तो नेशनल लुक भी वहीं पहुंच गया और अब पत्रिका दुश्मन बन गया है। ऐसे में विज्ञापन दर कम करने की मजबूरी के बाद भी सर्कुलेशन कम होने लगे तो छटपटाहट स्वाभाविक है।
प्रेस क्लब का चुनाव जनवरी में
प्रेस क्लब का चुनाव जनवरी के प्रथम सप्ताह में कराए जाने की सुगबुगाहट शुरु हो गई है। इसके पहले मतदाता सूची और आडिट रिपोर्ट का काम चल रहा है। दावेदार भी अभी से गुणा-भाग करने लगे हैं।
और अंत में...
राजधानी की चिंता के साथ छत्तीसगढ़ में कदम रखने वाले पत्रिका का तेवर कहां है? यह सवाल करने वाले अब इसे उसके दुश्मन भास्कर से ही तुलना करने लगे है ''अरे यह तो दूसरा भास्कर है।''

सोमवार, 29 नवंबर 2010

जय बोलों बेईमान की...

सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार के वकील ने जिस बेहूदे ढंग से कहा कि किसी की नियुक्ति में ईमानदारी अंतिम योगय्ता है तो फिर नियुक्ति के लिए लोग नहीं मिलेंगे।
यह कथन उन लोगों के गाल पर तमाचा है जो लोग ईमानदारी को ही सर्वोपरि समझते हैं? और यदि सरकार को ही सर्वोपरि समझते हैं? और सरकार के वकील इस तरह की बात करें तो फिर यह अराजकता के सिवाय कुछ नहीं है। फिर काहे की सरकार, काहे की न्याय व्यवस्था और काहे का कानून?
केंद्र सरकार में जरा भी नैतिकता है तो उन्हें ऐसे वकीलों का लाइसेंस जब्त कर लेना चाहिए जो इस तरह की बात करता हो? सरकार और उसमें बैठे लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह दुनिया तभी कायम है जब ईमानदारी जिन्दा है।
ईमानदारी आम लोगों में अधिक है। नेता और अधिकारी भ्रष्ट हो चुके हैं और पदों में बेईमानों को बिठाया जा रहा है तो इसके लिए ईमानदारी को गाली देना कहां तक उचित है। बेईमान इसलिए बढ़े हैं क्योंकि हमारी व्यस्वथा ही ऐसी है।
एक जमाना था जब नैतिकता लोगों के रग-रग में बसी थी। छोटी सी भी खबर से नौकरी तक चली जाती थी। अब नौकरी का डर नहीं है, क्यों? इसलिए क्योंकि जनता ने जिस पर भरोसा किया व भी वेतनभोगी हो गए! उन्हें भी जनसेवा की आड़ में वेतनभत्ता और राजसी एय्याशी चाहिए?
छत्तीसगढ़ में ही डा. रमन सिंह ने क्या कभी मंत्रालय में घूम कर देखा है कि दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के कक्ष का द्वार को या भीतर के राजसी ढाढ को? ऐसे कैसे अनुमति दी जा सकती है?
क्या अखबारों में छप रहे भ्रष्टाचार की खबरों को सरकार ने संज्ञान में लेकर किसी तरह की कार्रवाई की। क्या किसी घोटाले में सचिव और मंत्रियों को जिम्मेदार ठहराया गया? बेशर्मी यहां है! और बेशर्मी तो तब बढ़ जाती है जब किसी मंत्री के गोंदिया में रहने वाले साले की संपत्ति 7 सालों में 70 गुणा बढ़ जाती है और इस पर भी कार्रवाई नहीं होती? बेशर्मा तब और बढ़ जाती है जब मंत्री बनते ही भाई संस्कृति विभाग में दलाली करने लगता है। अपने भाई को दलाल कहते सुनने के बाद भी शर्म नहीं आये तो इसे क्या कहा जा सकता है।
केंद्र सरकार के वकील को यह नहीं भूलना चाहिए कि उन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों ने ईमानदारी नहीं बरती होती तो आज वे वकील नहीं होते? ईमानदारी आज भी जिन्दा है तो सरकारें जिंदा हैं।
ये अलग बात है कि वेतन भोगी लोगोंमें बेईमानी यादा है इसकी वजह व्यवस्था का दोष है। पकड़े जाने के बाद भी नौकरी पर आंच नहीं आने की जटिलता से बेईमानों के हौसले बुलंद है।
छत्तीसगढ़ में ही आईएएस बाबूलाल अग्रवाल का क्या हुआ? मालिक मकबूजा कांड में वेतनवृध्दि प्रमोशन रुकने के बाद नारायण सिंह का क्या हुआ? ऐसे लोगों को प्रमोशन देने की कोशिश पर सरकार की चुप्पी क्या बेईमानों के हौसले नहीं बढ़ाती है। परिवहन इंस्पेक्टर विनय कुमार अनंत हो या डॉ. आदिले? सरकार प्रमाणित होने के बाद भी नौकरी से क्यों नहीं निकाल देती। यदि बेईमानों में खौफ नहीं होगा तो कैसे ईमानदार लोग सामने आयेंगे?
ऐसा नहीं है कि ईमानदार लोग आगे नहीं आते। ऐसे कई मामलों में वेतनभोगियों में भी हैं जिन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी ईमानदारी में गुजार दी। अब तो यह जुमला भी सुनने को मिल जाता है कि ईमानदार वही है जिन्हें मौका नहीं मिला। इन सबसे बावजूद अब भी ईमानदारी कायम है और दुनिया भी!

शनिवार, 27 नवंबर 2010

बिहार का चुनाव परिणाम भाजपाईयों को भी चेतावनी ....

बिहार के चुनाव परिणाम यदि लालू और कांग्रेस के गाल पर तमाचा है तो भाजपा के लिए भी स्पष्ट चेतावनी है कि लोग हर हाल में शांति से जीवन जीना चाहते हैं। दो जून की रोटी और सुकून की नींद ही हमारी नई आजादी की लड़ाई का उद्देश्य है। बिहार में नीतिश कुमार की जीत हमारी इसी नई आजादी की जीत है। जहां कानून व्यवस्था मजबूत हो, विकास के द्वार खुल रहे और आप लोगों को बेहतर जीवन मिले।
बिहार के चुनाव परिणाम आने वाली राजनीति की दिशा तय करेगी। अब जाति और धर्म को राजनीतिक रूप देने की किसी भी कोशिश को जनता समझने लगी है। क्योंकि ये झगड़े सिर्फ सत्ता पाने का माध्यम है और लोगों को इससे कोई मतलब नहीं है कि सरकार किसकी रहे वह तो बस अच्छी सरकार चाहती है। बिहार में न तो लालू का जाति वाला जादू चला और न ही कांग्रेस के राहुल का परिवारिक जादू ही काम आया। भाजपा के धर्म आधारित राजनीतिक को भी नीतिश कुमार ने पहले ही हाशिये में डाल रखा था। नरेन्द्र मोदी के कट्टर हिन्दुत्व के चेहरे को जिस बेबाकी से नीतिश कुमार ने नोचा था तभी से ही उनकी जीत का मार्ग प्रशस्त हो गया था।
वे दिन अब लदने लगे हैं जब पारिवारिक पृष्ठभूमि मायने रखती थी। अब वे युवा पढ़-लिखकर नई सोच के साथ जीना पसंद करते हैं। हर जाति और हर धर्म के युवा एक छत के नीचे न केवल काम कर रहे हैं बल्कि अपनी जिन्दगी का सुख-दुख और यहां तक की पारिवारिक रिश्ते भी कायम कर रहे हैं। ऐसे में जाति और धर्म के आधार पर राजनीति करने वालों की दुर्गत स्वाभाविक है।
नीतिश कुमार के पहले बिहारी शब्द से आम लोगों को चिढ़ होने लगी थी। बिहार में माफियाओं का राज था। दिन ढलते ही दहशत के साये में जीते लोगों ने जब हिम्मत करके नीतिश को गद्दी पर बिठाया तो उन्होंने जिम्मेदारी बखूबी निभाई। कानून-व्यवस्था की लचर स्थिति को तो मजबूत किया ही गया। विकास के नये आयाम स्थापित किया। आम लोगों में व्याप्त भय को दूर करने का विश्वास ही उन्हे पुन: सत्तासीन किया है।
लालू की हरकत नौटंकी बन गई और राहुल का क्रेज भी यहां खत्म हो गया तो इसके पीछे नीतिश की वह सोच है जिसमें भाजपा के नरेन्द्र मोदी जैसे चेहरे को भी वे बर्दाश्त नहीं करते। भाजपा भले ही इस जीत में अपना श्रेय ढूंढ़ रही हो लेकिन सच्चाई वह भी जानती है कि यदि नीतिश की राह पर वे नहीं चले होते तो वह भी आज लालू-पासवान और कांग्रेस के साथ खड़ी होती।
नई आजादी की लड़ाई ऐसे ही सरकार के लिए हैं जहां भय, भूख और भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं है। सरकार भी ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करे। विकास की सारी सुविधाएं शहरों में ही देने की बजाय गांवों में भी पहुंचे। बिसलरी पीने वाले नेता-अधिकारी गांव वालों को तो कम से कम सहज रूप से पीने का पानी पहुंचाये। उद्योगों को पानी और बिजली की वकालत करने वाले खेतों को पानी पहुंचाने का काम करें। स्वास्थ्य सुविधा गांव-गांव तक पहुंचे और माफियाओं के खिलाफ कड़ा कानून बने।
गृह निर्माण मंडल का राविप्रा जैसी संस्थानों में एक व्यक्ति एक मकान के सिध्दांत को लागू करें। इसमें न केवल अपना मकान का सपना पूरा होगा बल्कि सस्ते दर में मकान उपलब्ध हो जायेंगे।
छत्तीसगढ़ सरकार के लिए भी बिहार चुनाव के परिणाम चुनौती है। वहां माफिया भाये तो यहां डेरा डालने लगे है। बिहार में नीतिश ने अपहरण फिरौती करने वालों को जेल में डाल दिया तो यहां वारदात बढ़ रही है। कृषि जमीन और सरकार जमीनों को विकास के नाम पर बंदरबांट करना बंद करना होगा और दमदार मंत्री, भ्रष्ट मंत्री और ऐसे ही अधिकारियों पर नकेल कसनी होगी।

बुधवार, 24 नवंबर 2010

छत्तीसगढ़ में भी कई राजा

मंत्रियों-अधिकारियों व नेताओं की संपत्ति  कई गुणा हुई
 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के मामले में अंतत: केंद्रीय मंत्री राजा को इस्तीफा देना पड़ा लेकि छत्तीसगढ़ में भी कई मंत्री व अधिकारी हैं जिन्होंने रातों रात अपनी संपत्ति कई गुणा कर ली। पर्यटन में रोपवे घोटाले हो या पीडब्ल्यूडी में सड़क घोटाले, शिक्षा विभाग स्वास्थ्य, खनिज ऊर्जा में तो घोटाले की फेहरिस्त है लेकिन इस ओर न तो विपक्षी कांग्रेस का ही ध्यान है और न ही जांच एजेंसी की रूचि ही है।
छत्तीसगढ़ राय बनने के बाद यदि भाजपा द्वारा अजीत जोगी सरकार के घोटाले की फेहरिस्त उजागर की गई और सत्ता में आते ही इन घोटालों पर से पर्दा नहीं उठाया गया तो इसके पीछे भाजपा सरकार में मंत्रियों व अधिकारियों की करतूतें हैं जिन्होंने 5-7 सालों में ही अपनी संपत्ति कई गुणा बढ़ा ली। आश्चर्य का विषय तो यह है कि इन मामलों में कांग्रेस की भूमिका भी संदिग्ध होने लगी है। रमन सरकार के सर्वादिक चर्चित घोटाले में स्वास्थ्य विभाग का घोटाला है जिसके आरोपियों को सरकार संरक्षण दे रही है। करोड़ों रुपये के डाफ्टर खरीदी के अलावा पूर्व स्वास्थ्य सचिव बाबूलाल अग्रवाल के मामले में भी रमन सरकार कटघरे में है। आनन-फानन में बहाली की वजह सीए हाऊस पर लेन-देन का आरोप भी लग चुका है। यहां दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विभागों मेंहुए घोटाले की कहानी को भी बेशर्मी से दबाई गई। बृजमोहन अग्रवाल जब गृहमंत्री थे तब तो उनके भाईयों पर कई गंभीर आरोप ही न लगे बल्कि आम चर्चा यह रही कि उनके भाईयों ने इस दौरान गृहमंत्री की भूमिका निभाते रहे हैं और शहर ही नहीं कई क्षेत्रों में विवादास्पद जमीनों की खरीदी भी की। कबाड़ कांड के हीरो रहे कैलाश अग्रवाल भी बृजमोहन के रिश्तेदार हैं और उन पर चोरी का लोहा और ट्रक गायब करने तक के आरोप लगे हैं। संस्कृति विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में तो बृजमोहन अग्रवाल के लाड़ले भाई योगेश अग्रवाल पर न केवल कलाकारों को बुलाने एवज में दलाली लेने बल्कि मनमानी चलानेका भी आरोप लगता रहा है। बृजमोहन के एक अन्य विभाग पर्यटन में तो विवादास्पद अफसरों को खोज खोज के दूसरे विभाग से लाया गया। अजय श्रीवास्तव पर तो सिमगां कांड तक के आरोप रहे हैं और उसे बृजमोहन अग्रवाल ने दुग्ध संघ से पुलिस और फिर पर्यटन में लाया। पर्यटन में सिर्फ विवादास्पद अधिकारयिों की नियुक्ति का ही मामल नहीं है यहां अरपों रुपये के घोटाले की फाइलें जांच के अभाव में धूल खा रही हैं। स्टेशनरी घोटाला हो या मोटल निर्माण में घोटाले की बात हो। मोटलों के बाउण्ड्री से लेकर खास घोटाले यहां सुर्खियों में रहे हैं। तिरथगढ़ में रोप वे बनाने के लिए कानून बनाने के लिए बगैर नाम पते के किसी शुक्ला को 2 करोड़ दे दिया गया और इस मामले में अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई।
बृजमोहन अग्रवाल के एक अन्य विभाग शिक्षा विभाग में तो भर्ती से लेकर तबादले और पदोन्नति में भी जमकर कमीशन खोरी की चर्चा रही। यही चर्चा पीडब्ल्यूडी में भी यह भी बृजमोहन अग्रवाल का ही विभाग है। सड़क निर्माण की इस एजेंसी में घटिया सड़क के एवज में करोड़ों रुपये खाये गये यही नहीं डामर घोटाले के आरोपी को भी बचा लिया गया। बृजमोहन ही नहीं अजय चंद्राकर पर भी करोड़ों रुपये अर्जित करने के आरोप लगते रहे हैं। इसके अलावा प्रदेश सरकार के कई मंत्री व अधिकारी है जिन पर खुलेआम डंके की चोट पर भ्रष्टाचार करने के आरोप हैं।

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

कोयले की कमाई ग्लोब में लुटाई

हीरा ग्रुप ने भारत का गलत नक्शा वाला ग्लोब बांटा
महंगे गिफ्ट लेने वालों का नाम सार्वजित हो, सरकार चुप
छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित उद्योग समूह माने जाने वाले हीरा ग्रुप पर कोल ब्लाक का दाग अभी पूरी तरह से छूट भी नहीं पाया है कि वह एक बार फिर छत्तीसगढ़ के अधिकारियों व नेताओं-मंत्रियों को भारत का गलत नक्शा वाला ग्लोब बांटने को लेकर विवाद में आ गया है। इस मामले में हीरा ग्रुप की गलती कितनी है यह जांच का विषय तो हो सकता है लेकिन यह बात खुलकर सामने गई है कि बड़े उद्योग किस तरह से अधिकारियों व नेताओं को रिझाने महंगे गिफ्ट देती है। गिफ्ट लेने वाले अफसरों का नाम भी सावर्जनिक होना चाहिए।
छत्तीसगढ़ के इस उद्योग समूह ने दीपावली में छत्तीसगढ़ के नेताओं-मंत्रियों और अधिकारियों को कार्पोरेट गिफ्ट बांटा. इस गिफ्ट में जो ग्लोब बांटे गए उसमें भारत के नक्शे से जम्मू-कश्मीर और अरूणाचल प्रदेश ही गायब हैं। इस मामले को नागरिक संघर्ष समिति के डा. राकेश गुप्ता, अमिताभ दीक्षित, हरचरण जुनेजा और विश्वजीत मित्रा ने उठाते हुए मांग की कि हीरा ग्रुप इस गलती के लिए न केवल सार्वजनिक रूप से माफी मांगे बल्कि गिफ्ट वापस मंगवाकर जयस्तंभ में इसे जला दें। उन्होंने आश्चर्य जताया कि इतने बड़े मामले पर जांच एजेंसी की नजर नहीं पड़ी जबकि निर्माण कंपनी और हीराग्रुप पर भी उन्होंने देश विरोधी इस कार्रवाई के लिए जुर्म दर्ज की मांग सरकार से की। सरकार ने अभी तक इस पर जुर्म दर्ज नहीं किया है।
दूसरी तरफ कहा जा रहा है कि इस बेशकीमती गिफ्ट हजारों की संघ्या में छत्तीसगढ़ के उन विभागों के अफसरों को बांटी गई है जिनका उद्योग समूह को आये दिन वास्ता पड़ता है। जिनमें बिजली, कोयला, खनिज और उद्योग विभाग के अफसर प्रमुख है। इसके अलावा मंत्री, विधायक व नेताों को भी यह बेशकीमती गिफ्त दी गई है।
कोल ब्लाक मामले में दाग लग चुके इस उद्योग समूह के इस करतूत से यह बात भी स्पष्ट हो गई है कि किस तरह से अपने पक्ष में करने उद्योग समूहों द्वारा गिफ्ट बांटे जाते हैं। क्या इस पर आयकर विभाग भी नजर डालेगा। दूसरीतरफ ऐसे लोगों से गिफ्ट लेना किस तरह उचित है। आम लोगों में इसे लेकर काफी तीखी प्रतिक्रिया है। बहरहाल इस सम्पूर्ण मामले में हीरा ग्रुप को एक बार फिर विवाद में तो लिया ही है प्रदेश के मंत्री और अफसरों पर भी उंगली उठने लगी है।

सोमवार, 22 नवंबर 2010

मंत्री भाई की रूचि से चेम्बर चुनाव में विवाद!

आगामी माह होने वाले प्रतिष्ठित व्यापारी संगठन छत्तीसगढ़ चेम्बर आफ कामर्ल एंड इंडस्ट्रीज के चुनाव में प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के लाड़ले भाई योगेश अग्रवाल की रूचि से विवाद बढ़ गया है। कहा जाता है कि इस बार चुनाव में सत्ता की ताकत को बखूबी इस्तेमाल किया जा रहा है जिसकी वजह से चेम्पर के पूर्व अध्यक्ष पूरनलाल अग्रवाल नाराज हैं और कई व्यापारियों ने चिंता जताई है।
छत्तीसगढ़ चेम्पर का चुनाव को लेकर व्यापारियों में जबरदस्त चर्चा है। वर्तमान अध्यक्ष श्रीचंद सुंदरानी के द्वारा पुन: अध्यक्ष बनने में रूचि दिखाने को विरोधी गुट पचा नहीं पा रहे हैं जबकि पूर्व अध्यक्ष पूरनलाल अग्रवाल ने भी अध्यक्ष बनने की ईच्छा जता दीहै। इधर पिछली बार ही चुनाव भले ही शांतिपूर्ण निपट गया था लेकि कहा जाता है कि चेम्बर की राजनीति को लेकर योगेश अग्रवाल और पूरनलाल अग्रवाल में ठन गई थी। मामला चमकी धमकी और रायपुर में रहने देने तक पहुंच गया था और एक पक्ष ने माफी नामे के बाद ही मामला शांत हो पाया था।
इस बार भी चेमबर चुनाव में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई योगेश अग्रवाल ने न केवल रूचि दिखाई है बल्कि बैठकों में वे बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। कहा जाता है कि जरूरत पड़ने पर वे भी अध्यक्ष का चुनाव लड़ सकते हैं। योगेश की इस रूचि से व्यापारियों के एक बड़े वर्ग में नाराजगी बताई जा रही है। दरअसल योगेश पर जमीन मामले से लेकर पिटाई व धमकी-चमकी के आरोप भी लगे हैं ऐसे विवादित को अध्यक्ष बनाने को लेकर व्यापारियों का एक वर्ग नाराज है यही वजह है कि पूरनलाल अग्रवाल और श्रीचंद सुंदरानी पुन: अध्यक्ष बनने को इच्छुक है।
चेम्बर सूत्रों के मुताबिक व्यापारियों पर पूरनलाल अग्रवाल और श्रीचंद सुंदरानी का अच्छा खासा प्रभाव है जबकि योगेश को राईस मिल एसोसियेशन तक का ठीक ढंग से समर्थन नहीं मिलने की चर्चा है। इधर व्यापारियों की एकता को बनाये रखने पांच सदस्यीय समिति बनाई गई है। जिसमें रमेश रमोदी, भारामल, पोहूमल,हरचरण सिंह साहनी और सुशील अग्रवाल शामिल है जो व्यापारी एकता पैनल में सर्वसम्मत उम्मीदवार का चयन करेंगे।
इधर व्यापारी नेता आनंद चोपकर ने निगम द्वारा तोड़फोड़ के मामले में चेम्बर की भूमिका को लेकर सवाल उठा दिया है जिसकी वजह से भी चुनाव में इस बार गर्मी बढ़ गई है। जबकि जितेंद्र बरलोटा, राजेंद्र जग्गी, गुलवानी, संधु जैसे लोग भी चुनाव लड़ने इच्छुक हैं।
सर्वाधिक घमासान की स्थिति अध्यक्ष और महामंत्री के पद को लेकर है। और इन पदों के लिए जिस तरह से मंत्री भाई ने रूचि दिखाई है उससे इस बार हंगामा खड़ा होने की संभावना भी जताई जा रही है।

रविवार, 21 नवंबर 2010

अनुपातहीन संपत्ति, फर्जी रजिस्ट्री, पत्नी को मारने के प्रयास के बाद भी नौकरी कायम!

पैसा और पहुंच -1


अनुपातहीन संपत्ति, फर्जी रजिस्ट्री, पत्नी को मारने के प्रयास के बाद भी नौकरी कायम!

छत्तीसगढ़ राय को बने 10 साल पूरे हो गये हैं किसी भी राय के विकास और कानून व्यवस्था कायम रखने दस बरस कम नहीं होते है। छत्तीसगढ़ के आम लोगों ने इन दस वर्षों में क्या पाया यह मायने नहीं रखता है। मायने यह रखता है कि हमने जो कुछ पाया वह किन शर्तों में पाया। क्या सरकार में बैठे लोगों ने नैतिकता का पालन किया। भ्रष्ट व चरित्रहीन सरकारी नौकरशाहों व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई हो पाई। या सिर्फ वोट बैंक और नोट कमाने का जरिया ही सर्वोपरि है। एक रिपोर्ट......

आज यहां हम सरकारी नौकरी यानि परिवहन विभाग के निरीक्षक विजय कुमार अनंत की बात कर रहे हैं। वैसे तो परिवनह यानी आरटीओ की सबसे कमाऊ विभाग में गिनती होती है। यहां कार्यरत आरटीओ इंस्पेक्टर विजय कुमार अनंत छत्तीसगढ़िया है और बिलासपुर क्षेत्र के निवासी है।

इनके खिलाफ जनवरी 2006 में जब आर्थिक अपराध ब्यूरो ने कार्रवाई की तब पता चला कि अनंत के पास एक करोड़ से ऊपर की अनुपातहीन संपत्ति मिली। तब प्रकरण क्रमांक 1-103 में अपराध पंजीबध्द किया गया। मीडिया से लेकर आम लोगों ने खूब हल्ला मचाया। लेकिन आर्थिक अपराध ब्यूरो ने चार साल बीत जाने के बाद भी चालान पेश नहीं किया। जनवरी 2011 में 5 साल पूरे हो जाएंगे। जाहिर है पैसे की ताकत के आगे ही ऐसा हुआ होगा। इस दौरान अनंत जगदलपुर में पदस्थ थे।

अनंत का मामला यहीं खत्म नहीं होता। इसके पहले उन पर ग्राम मुजगहन की जमीन की फर्जी रजिस्ट्री कराने का भी आरोप लगा है। कहा जाता है कि 10-2-2004 को अशोक वर्मा ने अनंत को जो जमीन की रजिस्ट्री कराई। इस दौरान वह रजिस्ट्री आफिस में मौजूद ही नहीं था। इस दिन सरकारी रिकार्ड के मुताबिक वह लोदाम स्थित शंकर बेरियर में डयूटी पर न केवल तैनात था बल्कि इस दौरन उन्होंने चालानी कार्रवाई तक की। ऐसे में 10-2-2004 को उनके उपस्थिति की बात ही बेमानी थी। इसका सबूत तब मिला जब अनंत ने 5-5-2005 को इसी जमीन के बाजू स्थित जमीन की रजिस्ट्री के दौरान उपस्थित हुआ तब दोनों हस्ताक्षर भिन्न मिले।

मामली यही खत्म नहीं होता इस साल 2010 को उनकी पत्नी उर्मिला ने कोर्ट में शपथ पत्र दिया कि उसके पति विजय कुमार अनंत ने उन्हें जान से मारने की कोशिश की उन पर मिट्टी तेल डाला गया। इस दौरन अनिता नायक महिला ने भी द्वारा उन्हें मारने में सहयोग देने की बात कही गई। इस पर न्यायालय ने अनंत के खिलाफ धारा 307 के तहत कार्रवाई करने का निर्देश भी दिया। ये विजय कुमार अनंत पर लगे आरोप हैं। इन आरोपों के बाद भी उनकी नौकरी कायम है और सरकार में बैठे संबंधित विभाग के अधिकारी से लेकर मंत्री तक खामोश है।

इस संबंध में जब हमने संबंधित लोगों सेचर्चा करनाचाही तो सभी का रटा रटाया डायलाग था कि सिर्फ आरोप से कुछ नहीं होता जबकि अनंत से संपर्क नहीं हो पाया।

शनिवार, 20 नवंबर 2010

बात जब निकली है तो दूर तलक जायेगी!

पत्रिका का आना खबर प्रेमियों के लिए शुभ साबित हो रहा है तो नेताओं और अधिकारियों की बेचैनी बढ़ गई है। यह बात अलग है कि बेशर्मी इतनी ज्यादा  है कि कार्रवाी नहीं हो रही है लेकिन सिर्फ कार्रवाई नहीं होने के नाम पर खबर तो नहीं रोकी जा सकती।
लगातार भ्रष्ट आचरण की खबरों से सरकार और उसमें बैठे अधिकारी परेशान है। लेकिन बचने के रास्ते निकाल लिए जा रहे हैं और जिम्मेदारी से मुकरा जा रहा है।
छत्तीसगढ़ के मीडिया के इस तेवर से हैरानी भले ही न हो लेकिन अचानक चले इस बयार से राज्य  बनने के पहले की प्रतिष्ठा को लौटा दी है। उन लोगों के मुंह में भी तमाचा जड़ गया है जो लोग मीडिया को सेटर और बिक जाने का दावा करते थे। अब तो सिर्फ सरकारी बेशर्मी की चर्चा ही अधिक हो रही है।
मृत देश की चर्चा
छत्तीसगढ़ से एक बड़े कांग्रेसी नेता के भाई के अखबार ने अपने शिक्षण संस्थान में गबन पर खूब हल्ला मचाया। हालाकि गबन का आरोपी धरा गया और उसे जेल भिजवा कर ही दम लिया गया लेकिन आम लोगों की चर्चा का क्या वे तो बोल ही रहे कि दो-ढाई लाख के गबन पर इतना हाय तौबा मचाने वाले जब ग्रामोद्योग में करोड़ों का गबन करते हैं तब दूसरे लोगों को भी हल्ला मचाना चाहिए।
बेचारा दामू
प्रेस क्लब के इस स.सचिव दामू आम्बेडोर को कानूनी दांव पेंच की वजह से अंदर होना पड़ा। दरअसल प्रेम प्यार के फेर में फंसे इस पत्रकार को फंसा दिया गया और उसके सहयोगी पदाधिकारियों ने भी पल्ला झाड़ लिया। सब कुछ शांति से निपटने से पुलिस भी राहत में है क्योंकि मामला ही ऐसा था कि किसी की कुछ बोलने की हिम्मत  ही नहीं हुई।
बौना बंधु फुर्र हुए
प्रेस क्लब में पिछले दिनों बौना बंधुओं ने कांफ्रेंस रखी। उनकी अपनी पीड़ा है लेकिन संयोग से पत्रिका मे भी एक फोटोग्राफर बौना बंधु है। संगठन से जुड़ने इस बंधु को जब साथी फोटोग्राफरों ने दबाव डाला तो वह भाग लिया। ग्रुप फोटो के दौरान हीरा की खोज खबर होते रही।
और अंत में ...
राज्य  बनने के बाद छत्तीसगढ़ के प्रिंट मीडिया में हरियाली है। वेतन के लिए दिन नहीं गिनने पड़ते लेकिन डीडी न्यूज में काम करने वाले परेशान है। 12 लाख आने की खबर की खुशी भी इंतजार में खत्म होने लगी है।

खबर

  घुसेरा पंचायत का स्कूल जर्जर
रायपुर। अभनपुर विकासखंड के ग्राम घुसेरा के सरपंच कुमारी बाई ने बताया कि उनके यहां प्राथमिक शाला भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है वहीं स्कूल मार्ग की हालत भी दयनीय है जिसके चलते छात्र-छात्राओं को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने आंगन बाड़ी केंद्र के लिए भवन निर्माण की भी मांग की है।
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पंचायत भवन जर्जर
रायपुर। अभनपुर विकास खंड के ग्राम पंचायत सिंगारभाठा स्थित पंचायत भवन पूरी तरह जर्जर हो चुका है। यह जानकारी देते हुए सरपंच ने बताया कि उन्होंने इसकी सूचना जनपद पंचायत अभनपुर को कई बार दी है लेकिन कोई कार्रवाई नहींहो रही है। पंचायत भवन में बैठना तक मुश्किल हो गया है।

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं,इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं

कमल विहार योजना को लेकर राजधानी के दो मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत में भिड़ंत हो गई। हालांकि मुख्यमंत्री रमन सिंह ने इस जंग को यह कहकर टाल दिया कि योजना लागू की जाएगी और जनप्रतिनिधियों से राय लेकर विसंगतियां दूर कर दी जाएगी। कहते हैं इस योजना के पीछे मुख्य उद्देश्य भाजपा के चुनाव चिन्ह को प्रचारित करने के अलावा पैसा खाना भी है। पूरी योजना को जिस तरह से जबरिया लागू करने की कोशिश की गई वह आम लोगों के साथ चार सौ बीसी के अलावा कुछ नहीं है। धारा 50 का उल्लंघन तो किया ही गया क्षेत्रीय विधायकों-सांसदों तक से राय लेने की जरूरत नहीं समझी गई।
इसी योजना के सूत्रधार की नियत पर पहले से ही संदेह रहा है। अमित कटारिया का नाम राजधानी वालों के लिए नया नहीं है उसके अंधेरगर्दी मचाने के किस्से नगर निगम में भी खूब चर्चा में रही है और उन्हें अपनी करतूत की वजह से ही निगम से हटना पड़ा। लेकिन उसने अपनी ईमानदारी का ऐसा जाल अपने आसपास बुन रखा है कि आम जनता को भी लगने लगा कि उनके साथ गलत हुआ औार शायद सरकार को भी लगा कि ईमानदार अफसर हतोत्साहित न हो और अमित कटारिया को राविप्रा में बिठा दिया गया जहां से कमल विहार की बुनियाद रखी जानी थी।
योजना का विरोध बृजमोहन अग्रवाल द्वारा किया जाने के पीछे भले ही उनका निहित स्वार्थ हो लेकिन योजना का खुलेआम विरोध विधायक देवजीभाई पटेल से लेकर सांसद रमेश बैस कर चुके थे। पूरी योजना में जिस तरह से आम लोगों के साथ धोखाधड़ी व चार सौ बीसी की जा रही थी। सच छपाया जा रहा था और लोगों को लूटने की साजिश रची जा रही थी। उनका वहां के लोग विरोध तो कर रहे थे लेकिन अमित कटारिया अपनी मनमानी में अड़े हुए थे। यहां तक कि उसने इस कमल विहार योजना के खिलाफ खबर छापने वाले दैनिक अखबार पत्रिका तक को नोटिस ही नहीं भेजा बल्कि इसके प्रचार में विज्ञापन में करोड़ों खर्च कर दिया। राविप्रा के इस विज्ञापन में कमल विहार की विसंगतियों के खिलाफ छापने वाले को चेतावनी तक दी गई और लोकतंत्र के इस चौथे स्तंभ के अधिकार पर कुठाराघात की कोशिश हुई। लेकिन जिस दमदारी से पत्रिका को नोटिस दी गई। विज्ञापन में नाम छापने से राविप्रा डर गया। अब जब योजना का विरोध सरकार के विधायक-सांसद और मंत्री करने लगे हैं तब भी इस योजना को लागू करने की बात अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है।
अमित कटारिया को यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि वे सिर्फ जनता के नौकर हैं। उन्हें तो वेतन मिलता है वह जनता के द्वारा दिए गए टैक्स से दिया जाता है और लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। अपनी बात सही हो तब भी जनता की भावनाओं का ध्यान रखना होगा यही नहीं कानूनी नोटिस के पहले क्या सरकार से अनुमति ली गई है या यहां भी अंधेरगर्दी मचाई गई है? इस सवाल का जवाब अमित कटारिया ही नहीं सरकार को भी देना होगा। लोकतंत्र में न तो किसी की मनमानी चलनी है न ही अंधेरगर्दी। यदि आप ईमानदार हैं तो अपनी ईमानदारी अपने पास रखे। सिर्फ एक रुपए वेतन लेने का प्रोपोगेण्डा इस राजधानी ने बहुत देखा है और लोगों को मालूम है कि ऐसा सिर्फ अपनी छवि बनाने का तिकड़म मात्र है। इसलिए जिसमें दमदारी और ईमानदारी होती है उसे खुलकर अपनी बात कहनी चाहिए। चोरी छिपे काम चार सौ बीसी कहलाता है।

आज की खबर

आज की खबर

१-रायपुर,संतोषी नगर खदान में किसान साहू नामक इस बालक कि सर कटी लाश मिली , बालक तिन दिन से लापता था.

२-रायपुर, कांग्रेसियों ने आज पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा जी कि जयंती पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित की.

३-छत्तीसगढ़ में प्रधान पाठक भारती में अनियमितता को लेकर धरना दिया गया.

४-रायपुर,शंकराचार्य श्री निश्चलानंद जी आज रायपुर पहुंचे.

५-रायपुर, रानी दुर्गावती की प्रतिमा हटाये जाने के विरोध में युवक कांग्रेसियों ने धरना दिया
६-आय-कर विभाग ने आज बड़े उद्योग समूह मोनेट इस्पात में छपे की करवाई की इसके मालिक संदीप जिजोदिया कांग्रेस के सांसद नविन जिंदल के बहनोई है.
७-बार अभ्यारण्य पर्यटकों के लिए खुलते ही नक्सलियों ने पर्चे चिपकाए
८- छत्तीसगढ़ के बड़े बिजली बकायादारों की सूचि अब वेबसईट में
९-हाथी बीमार हो गई तो उसका इलाज सप्रे शाला मैदान रायपुर में किया जा रहा है

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

पत्रकारों के फायदे, फोटोग्राफरों का दुख

वैसे तो दीपावली अखबार वालों के लिए कमाई का एक बड़ा जरिया है। भरपूर विज्ञापन बटोरने और खबरों को किनारे करने की होड़ में सर्वाधिक फायदा पत्रकारों को ही मिलता है। खबरें भी कम लिखों और गिफ्ट लिफाफा जमकर बटोरो। इस मामले में रायपुर मीडिया वैसे तो दूर रहा है लेकिन इस बार इस लिफाफा से वह भी नहीं बचा है। ईमानदारी का लबादा ओढऩे वाले बड़े अखबारों के पत्रकार भी लिफाफा बटोरने की आपा-धापी में शामिल हो गए।
खनिज, आबकारी, फुड के अलावा मंत्रियों के बंगलों में भी पत्रकारों की आमद रही। औकात के हिसाब से लिफाफा दिया गया और दीपावली धूमधाम से मनाई गई। समाचार से जुड़़े फोटोग्राफरों को इस बार भी लालीपाप ही मिला। कुछ एक फोटोग्राफरों ने अपने बैनरों का उपयोग कर लिफाफा जरूर बटेारा पर अधिकांश फोटोग्राफरों को लिफाफा नहीं मिल पाने की पीड़ा उनके चेहरे पर पढ़ी जा सकती थी। एक फोटोग्राफर तो चर्चा के दौरान फट पड़ा। कहा- फोटो खिंचाने के चक्कर में आगे-आगे रहने वाले सब नेता गायब हो गए हैं। दीपावली गुजरने दो तब मजा चखाएंगे। अब फोटोग्राफरों को कौन समझाए कि अब भी रिपोर्टर ही तय करता है कि कौन सी फोटो जानी है और यह बात नेता लोग समझ गए हैं इसलिए लिफाफा बचाने गायब हो गए हैं। कई रिपोर्टर इस मामले में खुशनसीब रहे कि उन्हें दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़े। बल्कि लिफाफा देने वाले अखबार के दफ्तर ही पहुंच रहे थे।
मुकेश की पीड़ा
कहते है भले लोगों के साथ कई बार अच्छा नहीं होता और इलेक्ट्रानिक मीडिया के इस मुकेश वर्मा के साथ इन दिनों जो कुछ हो रहा है वह ठीक कतई नहीं है। आए दिन नौकरी से अंदर-बाहर के फेर में परेशानी तो बढ़ ही जाती है वह तो वीआईपी रोड के होटल वालों की भलमनसाहत है जो मुकेश के हुनर को समझकर अपने यहां आयोजित कार्यक्रमों के लिए मौका दे देते हैं वरना दिक्कत जो हो रही थी उसे मीडिया वाले समझने तैयार नहीं है।
अमृत संदेश का नया गणित...
कहते हैं कभी-कभी पैसा सर चढक़र बोलता है। राज्य निर्माण के बाद अमृत संदेश की स्थिति में भी सुधार हुआ है। कांग्रेस की राजनीति के बाद भी भाजपा सरकार से सेटिंग ने विज्ञापन खूब कमाए हैं। भले ही यहां पत्रकार नहीं ठहरते हो लेकिन तामझाम में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। इसी कड़ी में अब गिनती के लोग बच गए हैं और उन्हें भी कैमरे की नजर पर रखा गया है। अब बचे खुचों को बचाने की कवायद है या आक्रोश रोकने की कोशिश यह तो वे ही जाने।
और अंत में...
पूरे शहर की आवाज उठाने का ठेका लेने वाले नए नवेले अखबार के एक रिपोर्टर को वन मंत्री के यहां से जब खाली लौटना पड़ा तो वह साथी पर ही गुस्सा उतारने लगा। कहा मिला कुछ नहीं और तेरे चक्कर में बदनामी अलग हो गई।

आज की खबर

१-दुनिया की उम्रदराज बाघिन शंकरी की आज दोपहर मौत हो गई.वह काफी दिनों से बीमार थी.उसे मैनपुर के जंगल से लाया गया था.
२-छत्तीसगढ़ में नगरीय निकाय का चुनाव  की घोसना कर दी गई है. २१ दिसंबर को मतदान और २४ दिसंबर को मतगणना होगी
३-राजेंद्र जग्गी चेंबर रत्न से सम्मानित किये गए
४-सिकलसेल पर अंतररास्ट्रीय सम्मलेन २२-२७ नवम्बर को बेबिलान इन में होगा सम्मलेन का उदघाटन पूर्व राष्ट्रपति श्री कलम करेंगे. सम्मलेन में १५ देशो के विशेषज्ञ भाग लेंगे.
५-रायपुर के सिविल लाइन निवासी अजय पाल ने आत्महत्या कर ली . नह मेकाहारा में वें चलता था.
६-हिरा स्टील द्वारा अफसरों-नेताओं को बनते दीपावली गिफ्ट में भारत का नक्शा गलत . अब देखना है की सरकार रिपोर्ट दर्ज करती है या फिर पैसों की ताकत काम करेगी? नागरिक संघर्स समिति  ने आपति की. समिति के पदाधिकारी डॉ राकेश गुप्ता,विश्वजीत mitra , हरजीत जुनेजा, अमिताभ दीक्षित , ने एक पत्रकार-वार्ता में बताया की यदि करवाई नहीं हुई तो महामहिम राज्यपाल से भी मिला जायेगा .
७-मधुमेह को नियंत्रित करने सप्त-योग मधुनाश को बाजार में लाया काया है . बी टी सी फूड्स के नीरज गंभीर और अतुल दुबे ने बताया कि यह हार मेडिकल स्टोर्स में उपलब्ध है इसके नियमित सेवन से इसुलिन का इंजेक्शन नहीं लगाना पड़ेगा .
8-रायपुर के bairan  बाजार में karodo कि jamin पर kabje को lekar balava huaa dono hi parti vidya-bhushan sukla और rahul shukla congresi hain,

बुधवार, 17 नवंबर 2010

मोहन-मूणत में जंग

 राजधानी के दो मंत्रियों बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत में जंग छिड़ गई है। एक दूसरे को निपटाने के फेर में भले ही बृजमोहन अग्रवाल भारी पड़ रहे हो लेकिन आने वाले दिनों में इसका खामियाजा पार्टी को भोगना पड़़ेगा। कहा जा रहा है कि दोनों मंत्रियों की लड़ाई की असली वजह वर्चस्व स्थापित करना है। चूंकि कमल विहार योजना में वे भूमाफिया सीधे प्रभावित हो रहे थे जिन पर दमदार मंत्री का वरदहस्त है। मोहन-मूणत की इस जंग के चलते बूढ़ातालाब दलदल में तब्दिल होता जा रहा है।
वैसे तो मोहन और मूणत के बीच कभी नहीं पटी। बृजमोहन अग्रवाल की कार्यशैली से असंतुष्ट संगठन खेमे के राजेश मूणत ने भले ही पार्टी हित में बृजमोहन का खिलाफत नहीं किया हो लेकिन दोनों के बीच राजनैतिक शुत्रता जग जाहिर है। कहा जाता है कि खरीद फरोख्त और मैनेजमेंट में कांग्रेसियों तक को अपने पाले में करने वाले बृजमोहन अग्रवाल ने राजेश मूणत को पटकनी देने कई दांव खेले हैं। राजेश मूणत जब पीडब्ल्यूडी मंत्री थे तब भी सर्किट हाउस सहित अन्य मामले को लेकर बृजमोहन अग्रवाल की भूमिका पर संदेह किया जाता रहा है। यहां तक कि विधानसभा चुनाव के दौरान भी बागी भाजपा नेता वीरेन्द्र पाण्डे को मदद करने का अफवाह भी उड़ा।
सूत्रों की माने तो नई राजधानी के कार्यक्रम के अलावा दोनों के बीच कई बार झड़पे हो चुकी है। ताजा मामला बूढ़ातालाब के सौन्दर्यीकरण और कमल विहार योजना को लेकर है। बताया जाता है कि बूढ़ातालाब के सौंदर्यीकरण का काम बृजमोहन का विभाग पर्यटन के जिम्मे है लेकिन दोनों की राजनैतिक लड़ाई के चलते बूढ़ातालाब के रखरखाव व सौंदर्यीकरण का कार्य रुक गया है। तालाब की हालत किसी से छिपी नहीं है। पर्यटन मंडल में व्याप्त भ्रष्टाचार भी किसी से छिपा नहीं है। विवादास्पद अफसरों को प्रश्रय देने की वजह से बृजमोहन अग्रवाल हमेशा ही विवादों में रहे है। नेता प्रतिपक्ष के चयन के दौरान भी बृजमोहन अग्रवाल पर तोडफ़ोड़ करने का सीधा आरोप लगा था और बूढ़ातालाब के प्रति बेरुखी को लेकर भी बृजमोहन अग्रवाल सीधे कटघरे में है।
इधर कमल विहार योजना को लेकर मोहन-मूणत में सीधे जंग छिड़ गई है। बताया जाता है कि राजेश मूणत को नीचा दिखाने के फेर में कमल विहार योजना को हथियार बनाया गया है। महेन्द्र से लेकर बसंत सेठिया जैसे भूमाफिया को के नाम उछल रहे थे जिन्हें दमदार मंत्री का समर्थक माना जाता है। बताया जाता है कि हड़बड़ी में लागू की गई इस महत्वपूर्ण योजना में कई गलतियां हुई और इसी का फायदा उठाते हुए इस योजना को हथियार बनाया गया।
सूत्रों की माने तो मोहन-मूणत में अब खुलकर जंग छिड़़ गया है और आने वाले दिनों में यह सडक़ पर भी आ सकता है। इधर कमल विहार योजना पर ब्रेक लगने को लेकर भूमाफियाओं में जहां खुशी की लहर है वहीं आम लोगों ने भी राहत की सांस ली है।

मंगलवार, 16 नवंबर 2010

डा. रमन की स्वीकारोक्ति - उद्योगपतियों व व्यापारियों के बदौलत है हमारी सरकार...

आम लोगों में तीखी प्रतिक्रिया...
 वैसे तो भाजपा पर व्यापारियों की सरकार का आरोप हमेशा लगता रहा है और भाजपा के नेता हमेशा ही इसका खंडन करते रहे हैं लेकिन पिछले दिनों राजनांदगांव के दीपावली मिलन कार्यक्रम में प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने खुलकर पहली बार यह बात स्वीकार की कि उद्योगपतियों एवं व्यवसायियों ने जो माहौल तैयार किया। उसी की बदौलत उनकी सरकार बनी और ये बात वे कभी नहीं भूलेंगे।
वैसे तो बुलंद छत्तीसगढ़ ने भाजपा सरकार और सचिवों के उद्योगपतियों के इशारे पर नाचने का कई उदाहरण पेश किया है बाल्को से लेकर जिंदल तक और राज्योत्सव में वीडियोकॉन का मामला भी लोग भूले नहीं है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी इसे विरोधी दलों का दुष्प्रचार कहते रही है लेकिन प्रदेश के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने राजनांदगांव में 7 नवम्बर को आयोजित अग्रसेन भवन में दीपावली मिलन कार्यक्रम में यह बात स्वीकार की कि उनकी सरकार उद्योगपतियों एवं व्यवसायियों की बदौलत है यही नहीं उन्होंने यहां तक कहा कि वे पार्षद से विधायक और केन्द्रीय मंत्री से मुख्यमंत्री बन पाए तो सिर्फ इसलिए कि उद्योगपतियों व व्यवसायियों ने माहौल बनाया। उन्होंने उद्योगपतियों से आगे भी इसी तरह के सहयोग करने की गुजारिश की।
रायपुर से प्रकाशित नामी दैनिक अखबार ‘पत्रिका’ में 8 नवम्बर 2010 को छपी इस खबर से स्पष्ट है कि मुख्यमंत्री ने यह बात स्वीकार की है। इस खबर की सच्चाई जब जानने की कोशिश की गई तो पता चला कि डॉ. सिंह के इस स्वीकारोक्ति की आम जनों में तीखी प्रतिक्रिया है। वहीं पार्टी के कुछ विधायकों ने भी इस पर तीखी टिप्पणी नाम नहीं छापने की शर्त पर कही।
इधर चर्चा इस बात की है कि पत्रिका में छपी खबर की अब तक न तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने खंडन किया है और न ही मुख्यमंत्री के प्रेस कार्यालय से ही इस बात का खंडन हुआ है इससे ही स्पष्ट है कि डॉ. रमन ने यह बात खुलेआम से स्वीकार किया है। हालांकि आम लोगों में व्याप्त तीखी प्रतिक्रिया से भाजपा नेताओं में जबरदस्त बेचैनी है। बहरहाल मुख्यमंत्री की यह स्वीकारोक्ति आने वाले दिनों में क्या रंग लेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन आम लोगों में इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया है।

आज की खबर

 आज की खबर
१.डॉ dixit का कैम्प १८-२० नवम्बर को अरविंदो नेत्रालय पच्पेरी नाका में होगा . इस फ्री कैम्प में प्लास्टिक सर्जरी की जाएगी पिचले १२ सालों से यह कैंप आयोजित की जाती है .
२.सिंघानिया बिल्डकोन द्वारा फ़िल्मी सुपर स्टार शाहरुख खान को बुलाने की तैयारी है.




नियंत्रण महालेखा के १५० वी वर्षगांठ पर विश्वविद्यालय सभा भवन में कार्यक्रम का उदघाटन महामहिम राज्यपाल ने किया .

विश्वविद्यालय कर्मचारियों की हड़ताल आज चौथे दिन भी जरी रही

महापौर किरणमयी नायक ने रामसागर पारा का दौरा किया इस दौरान उन्होंने अवध निर्माण तोड़ने का निर्देश भी दिया


सिविल लाइन के एक हिस्से में गन्दगी का आलम

प्रदेश भर के बौने बंधू अपनी मांग को लेकर ५ दिसंबर को राजधानी रायपुर में जुटेंगे

बाल-दिवस पर बच्चों की खुशी

सोमवार, 15 नवंबर 2010

आजादी... सिर्फ बोलने की...!

इस देश में आजादी सिर्फ बोलने बस की रह गई है। अब तो लोग थोड़े से चर्चित होने के बाद कुछ भी बोलने लगे हैं। सच से दूर भागने की प्रवृत्ति बढ़ गई है और आम आदमी सिर्फ बोल ही पा रहा है। सरकारें सुन नहीं रही है।
पिछले दिनों मुंबई में एक भवन निर्माण सोसायटी के घपले सामने आए तो सब बोलने लग गए। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री ने अपना इस्तीफा अपने आका को सौंप दिया और मामला जांच में जा सिमटा। छत्तीसगढ़ में राज्य बनते ही चौतरफा लूट मची है। विकास के नाम पर जिस तरह से जल, जंगल और जमीन की बलि चढ़ाई जा रही है वह आने वाले दिनों के लिए खतरे का संकेत है। शहरी विकास ही सरकार की प्राथमिकता हो गई है। यही वजह है कि लोग थोड़ी सी सुविधा के लिए शहर की ओर पलायन करने लगे है। राजधानी रायपुर की आबादी राज्य बनने के बाद कई गुणा बढ़ गई। यातायात और प्रदूषण ने आम लोगों की तकलीफें बढ़ा दी है लेकिन एसी गाड़ी से लेकर बंगलों में रहने वाले मंत्री-विधायकों या शासकीय अफसरों को इसकी फ्रिक नहीं है।
वास्तव में देखा जाए तो सरकारी नीति ने असंतुलीत विकास को जन्म दिया है। लोग असंतोष में जी रहे हैं और यही स्थिति रही तो आने वाले दिनों में स्थिति भयावह होगी। सरकार के पास ग्रामीण विकास की कोई योजना नहीं है। आज भी छत्तीसगढ़ के अधिकांश गांवों में लोग उसी पानी में नहाने मजबूर हैं जहां जानवर नहाते हैं। नल का पानी तो छोड़ बिसलरी पीने वालों की जमात ने गांवों में पीने की साफ पानी की योजना भी नहीं बनाई है। कुछ बड़़े गांवों या कस्बों में नल हो गया है लेकिन आज भी दूषित पानी के सहारे जिन्दगी काटने को लोग मजबूर है। ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा व स्वास्थ्य का सर्वाधिक बुरा हाल है। आज भी हाईस्कूल और स्वास्थ्य केन्द्र के लिए 10 से 20 किलोमीटर तक जाना पड़ता है। डाक्टर शहर छोडऩा नहीं चाहते और सरकार में इतनी ताकत नहीं है कि डाक्टरों को कस्बों तक भेज सके।
स्कूलों का तो भगवान मालिक है। कमीशन के चक्कर में बिल्डिंग तो बना दी गई लेकिन शिक्षकों का पता ही नहीं है। शिक्षा मंत्री से लेकर शिक्षा सचिवों में इतनी अक्ल ही नहीं है कि वे ग्रामीण शिक्षा के लिए कोई योजना बना सके। कहते हैं भारत गांवों में बसता है लेकिन सरकार को यह बात कभी समझ में आएगी यह कहना मुश्किल है। बुनियादी सुविधाओं के लालच में गांव का गांव शहर की ओर कूच कर रहा है और शहर बदहाल होता जा रहा है। सरकार शहरी पलायन की इस बढ़ती समस्या को रोकने का उपाय करे अन्यथा विकास का यह असंतुलन एक ऐसे समाज को जन्म देगा जहां शालिनता पीछे छूट जाएगी।

रविवार, 14 नवंबर 2010

पता नहीं बेटा!

बेटा- प्रदेश के दमदार मंत्री ने दीपावली में खूब लिफाफे और एलईडी बांटी है?
पिताजी- हां बेटा! पत्रकारों को नहीं मिला है वे काफी नाराज है।
बेटा- तो क्या सिर्फ संपादकों को ही बांटा गया है।
पिताजी- पता नहीं बेटा!
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बेटा- कालिख कांड में अजीत जोगी का नाम सामने आया है।
पिताजी- हां बेटा! संगठन की रिपोर्ट तो ऐसा ही कुछ होना बताया जा रहा है?
बेटा- तो क्या यह सही रिपोर्ट नहीं है।
पिताजी- पता नहीं बेटा!

शनिवार, 13 नवंबर 2010

भाजपा नेताओं की करतूतों पर आरएसएस की चुप्पी...

कहा कार्रवाई उनका संगठन करेगा...
 व्यक्तित्व निर्माण और संस्कारवान बनाने का दावा करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ छत्तीसगढ़ प्रांत के संघचालक बिसराराम यादव की बोलती तब बंद हो गई जब पत्रकारों ने भाजपा नेताओं के करतूतों पर सवाल किया। जोर देने पर उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि भाजपा संगठन उन पर कार्रवाई करेगा।
संघचालक बिसराराम यादव यहां प्रेस क्लब में हिन्दू विरोधी दुष्प्रचार के खिलाफ आयोजित धरने की जानकारी दे रहे थे। संघ की कार्यशैली की तारीफ में कसीदा गढ़ रहे संघ चालक श्री यादव ने यह स्वीकार तो किया कि भाजपा भी उनका अनुवांशिक संगठन है लेकिन वे इस बारे में कोई जवाब नहीं दे पाए कि भाजपा नेताओं का संस्कार कैसे बिगड़ गया है।
पिछले दिनों मध्यप्रदेश के भाजपाध्यक्ष प्रभात झा के पुत्र का बार में लड़ाई झगड़े सहित छत्तीसगढ़ के कई मंत्रियों के भ्रष्टाचार व करतूतों पर जब सवाल होने लगे तो संघ के नेता बगले झांकने लगे थे। जब सवाल पर सवाल होने लगे तो नगर प्रभारी गोपाल अग्रवाल ने यह कहकर बात टाल दी कि उनका संगठन है वह कार्रवाई करेगा। वहीं शराब को लेकर पूछे सवाल पर वे जनजागरण की बात तो करते रहे लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं था कि उनकी पार्टी की सरकार ही शराब बेच रही है उस पर रोक क्यों नहीं लगवाते?

आज की खबर

आज राजधानी में श्री जलाराम उत्सव मनाया गया
 आज की खबर





आज राजधानी में श्री जलाराम उत्सव मनाया गया



आज राजधानी में श्री जलाराम उत्सव मनाया गया


टीवी सीरियल की कहानी लिखने वालों में जाना पहचाना नाम है शिल्पा सुशील का.इनमे से शिल्पा रायपुर माना की है और रायपुर में पली-बड़ी हुई इन दिनों दोनों रायपुर आये हुए है इनकी इक्छा है छत्तीसगढ़ का नाम हो.इन लोगो ने कई मशहुर सीरियलों की कहानी लिखी है जिनमे - सास भी कभी बहु थी,छोटी बहु, सी आई दी,आहट,जैसी सीरियल शामिल है. 


कल १४ नवम्बर को दैबितिस डे पर उषा फौन्डेसन के द्वारा फ्री कैंप लगाया जा रहा है


शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के लिए अंधे-बहरे की तलाश...

 पहले ही भाजपा के आगे अपनी गत पिटवा चुकी छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस को ऐसे अध्यक्ष की तलाश है जो यश बास की भूमिका बखूबी निभाता हो। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस बार भी अध्यक्ष चयन में मोतीलाल वोरा की चलेगी और उन्हें अंधे-बहरे अध्यक्ष ही चाहिए।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर है। कायदे से यहां वीसी शुक्ल और अजीत जोगी को ही दमदार नेता माना जाता है लेकिन इन दोनों से सर्वाधिक खतरा कांग्रेस के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा को है इसलिए वे ऐसे अध्यक्ष चाहते हैं जो न केवल उनकी बात सुने बल्कि उनके राजनैतिक महत्वाकांक्षा पर प्रहार न करें। यही वजह है कि कांग्रेस की हालत छत्तीसगढ़ में दयनीय हो गई है। नेता प्रतिपक्ष से लेकर प्रदेश अध्यक्ष के मनोनयन में अब तक जो मनमानी हुई है और वीसी-जोगी की उपेक्षा की गई है उसका परिणाम है कि कांग्रेस के भाजपा के हाथों बिक जाने की चर्चा है। संगठन में वे लोग अब तक हावी रहे हैं जिनका न तो कोई जनाधार है और न ही जिनमें भाजपा के खिलाफ आक्रमण करने की औकात ही रही है।
इधर छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर एक बार फिर कवायद शुरु हो गई है। कहा जा रहा है कि वोरा गुट जहां वर्तमान अध्यक्ष धनेन्द्र साहू को ही अध्यक्ष बनाने के फेर में है वहीं वीसी ने अपने को किनारा कर दिया है। इधर आम कांग्रेसियों का मानना है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को कोई दमदारी से चला सकता है तो उनमें वीसी शुक्ल और अजीत जोगी ही है यदि इन दोनों से परहेज हो तो अन्य नामों में पवन दीवान, सत्यनारायण शर्मा और मोहम्मद अकबर के नाम है जिनके आगे भाजपा के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती है। लेकिन इन सभी नामों के साथ सर्वाधिक दिक्कत मोतीलाल वोरा को है जो केन्द्र में मंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं।
इधर कांग्रेस में चल रहे अध्यक्ष चयन को लेकर यह चर्चा भी जोरों पर है कि प्रदेश के बड़े नेता नहीं चाहते कि उनके अलावा किसी दमदार को नेतृत्व सौंपा जाए इसलिए ऐसे नाम की खोज हो रही है जो अंधे-बहरे या लाचार की श्रेणी में गिने जाते हो या नाम का अध्यक्ष रहे। पिछले सालों से जिस तरह से कांग्रेस की राजनीति रही है वह शर्मनाक मानी जा रही है। भाजपा सरकार से सेटिंग और दलाली तक के आरोप लगे हैं ऐसे में नया अध्यक्ष का चयन ही कांग्रेस की दिशा तय करेगा अन्यथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की स्थिति सुधरने की उम्मीद कम ही है।

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