गुरुवार, 30 सितंबर 2010

डॉ. रमन साहब विकास कहां हुआ है...

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह यह कहते नहीं थकते कि उनके कार्यकाल में छत्तीसगढ़ का विकास हुआ है। दस साल छत्तीसगढ़ के निर्माण को हो गए इनमें से 7 साल से डॉ. रमन सिंह सत्ता में हैं। अजीत जोगी तो अपने तीन सालों के कार्यकाल को विकास की बुनियाद रखने की बात कहते हुए जिम्मेदारी से मुक्त होने की कोशिश करते हैं लेकिन डॉ. रमन का दावा कितना सार्थक है यह अब देखने की जरूरत है। वे कांग्रेस के 50 बनाम 5 से तुलना कर 'बेटर देन' की बात तो करते हैं लेकिन बेटर देन के चक्कर में 'गुड' कहीं नहीं है। सब तरफ भ्रष्टाचार की गंगोत्री बह रही है। अमीरों को अधिकाधिक सुविधा दिए जा रहे हैं। अपनी सुविधा बढ़ाने की कोशिश में पूरी सरकार और विपक्ष ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है लेकिन डॉ. रमन सिंह के इस सात सालों में आम आदमी को क्या मिला है?
बिसलरी से लेकर एक्वागार्ड का पानी पीने वाले इस सरकार के मंत्री से लेकर अधिकारियों ने क्या कभी सोचा है कि छत्तीसगढ़ के गांवों के लोगों को पीने का साफ पानी और सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करा दें। शायद नहीं। डॉ. रमन सिंह ने यदि सात सालों में विकास का दावा किया है तो वे क्या बता पाएंगे कि इन वर्षों में कितने गांव में पीने का साफ पानी उपलब्ध कराया गया है या कितने गांवों के खेतों में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गई है। हमारा दावा है कि इसका जवाब ही सरकार के पास नहीं है। इसी तरह इन 7 वर्षों में कितने गांवों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई गई है। शिक्षा का तो भगवान ही मालिक है। आज भी छत्तीसगढ़ के ऐसे कई गांव है जहां के मीडिल और हाई स्कूल के छात्रों को कई किलोमीटर चलकर स्कूल जाना पड़ता है? जब गांव में पीने और सिंचाई का पानी हैं, चिकित्सा सुविधा नहीं है शिक्षा तक नहीं दिया जा रहा है तब सरकार के विकास का दावा कितना उचित है। जिस दिन सरकार छत्तीसगढ में यह बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करा देगी तब विकास की बात की जानी चाहिए। ऐसे में किसी भी सरकार को विकास का दावा नहीं करना चाहिए।
दरअसल डॉ. रमन सिंह ने विकास के दूसरे मायने ही निकाल रखा है। भारी भ्रष्टाचार आज सरकार की प्राथमिकता हो गई है। भ्रष्ट अधिकारियों की फौज करना उसकी आदत हो गई है। तभी तो बाबूलाल अग्रवाल जैसे आईएएस की बहाली हो जाती है। नारायण सिंह जैसे सजायाफ्ता आईएएस को प्रमोशन देने पूरा मंत्रिमंडल जुट जाता है और बाल्को जैसे अवैध कब्जाधारियों को पट्टा देने पूरी सरकार लग जाती है।
उद्योगों को जमीन देने किसानों से जबरिया अधिग्रहण कराया जाता है और अपने ऐशो आराम के लिए नई राजधानी में सारे संसाधन जुटाये जाते हैं और कोई सरकार यह नहीं कहती कि नई राजधानी इसलिए बनाए जा रहे हैं ताकि अपने लिए ऐशोआराम के साधन जुटाए जाए बल्कि सरकार यह कहती है कि वह दुनिया में छत्तीसगढ क़ा नाम रोशन करने नई राजधानी में अरबों खरबों खर्च कर रहे हैं। जिस प्रदेश के आम लोगों को पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा उपलब्ध नहीं हो रहा हो वहां अरबों-खरबों की राजधानी बने और भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहे वहां बजट का रोना घड़ियाली आंसू के सिवाय कुछ नहीं है।

बुधवार, 29 सितंबर 2010

अब कैसे बचेगा बाबूलाल स्वास्थ्य घोटाले में भी जिम्मेदार!

6 दिन में ही सब व्यारा-न्यारा
 आयकर विभाग के छापे के बाद जिस आईएएस अधिकारी बाबूलाल अग्रवाल को भाजपा सरकार ने आनन-फानन में बहाल कर दिया इस बाबूलाल को स्वास्थ्य विभाग में हुए बहुचर्चित घोटाले के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है। संचालक से लेकर कई लोगों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने वाले अब बाबूलाल अग्रवाल के खिलाफ क्या रुख अख्तियार करता है यह चर्चा का विषय है।
स्वास्थ्य विभाग में करोड़ों रुपए के कलर, डॉपलर, मल्टी पैरा मानिटर उपकरण एवं दवाई खरीद मामले में उस वक्त नया मोड़ आ गया जब स्वास्थ्य सचिव विकासशील ने इस पूरे मामले की जांच कराई तो पता चला कि तत्कालीन स्वास्थ्य सचिव बाबूलाल अग्रवाल ने जिस आनन-फानन में संचालक के प्रस्ताव पर कार्रवाई की और आवक-जावक रजिस्टर में भी अंकित नहीं किया गया वह न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि सीधे-सीधे बाबूलाल अग्रवाल पर जिम्मेदारी तय करने के लिए काफी है।
इस संबंध में स्वास्थ्य सचिव विकासशील ने अपनी जांच रिपोर्ट में कई तथ्यों का खुलासा करते हुए कहा है कि प्रस्ताव कुल 9 करोड़ 10 लाख के उपकरण खरीदी का था जिसमें 2 करोड़ 5 लाख का प्रावधान नवीन मद पर किया गया था। चूंकि यह खरीदी राय शासन से अनुमोदन के बाद ही कि जा सकती थी इसलिए प्रस्ताव शासन को भेजा गया जबकि वित्त विभाग से सहमति लेना भी जरूरी है। लेकिन वित्त विभाग से सहमति लेना जरूरी नहीं समझा गया और प्रस्ताव 22 जुलाई को सचिव बाबूलाल अग्रवाल के पास भेजा गया इसे सचिव ने 27 जुलाई को स्वास्थ्य संचालक को लौटा दी इसके बाद संचालक ने 29 जुलाई को सचिव के पास नस्ती प्रस्तुत की और 1 सितंबर को नस्ती में मतांतर दे दिया गया यानी 6 दिन के भीतर सब कुछ कर दिया गया। जबकि बात मंत्री तक जानी थी लेकिन नहीं भेजा गया। यहीं नहीं सचिव के कार्यालय से नस्ती भेजने का आवक-जावक भी अंकित नहीं किया गया।
बताया जाता है कि इस जांच रिपोर्ट के बाद अब स्वास्थ्य सचिव रहे बाबूलाल अग्रवाल पर पुन: उंगली उठने लगी है। इधर आयकर छापे के बाद राय सरकार ने जिस आनन-फानन में बाबूलाल अग्रवाल को राजस्व मंडल में बिठाया उसे लेकर पहले ही सरकार कटघरे में है ऐसे में इस रिपोर्ट के खुलासे से सरकार के लिए नई मुसीबत आ सकती है। जबकि बाबूलाल की बहाली को लेकर सीएम हाउस पर ही लेनदेन का आरोप लगता रहा है।

सोमवार, 27 सितंबर 2010

मोहन ने ताकत दिखाई पर्यटन में फिर बुराई

अजय श्रीवास्तव हफ्तेभर में ही बहाल
 आईएफएस तपेश झा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस पर्यटन विभाग को वे सुधारने की कोशिश में लगे हैं वहां मंत्री के प्रभाव से जमें लोगों को हटाना आसान नहीं है तभी तो निलंबन के हफ्ता भर के भीतर ही अजय श्रीवास्तव बहाल कर दिए गए और कई लोगों ने अपना तबादला रुकवा लिया।
छत्तीसगढ़ पर्यटन मंडल में जिस तरह से भ्रष्टाचार का खेल चल रहा है वह अंयंत्र देखने को नहीं मिलेगा। बदनाम व विवादास्पद अधिकारियों की करतूत और भाई-भतीजावाद ने पर्यटन मंडल को दिवालिये के कगार पर खड़ा कर दिया है। एक से बढक़र एक घोटाले ने पर्यटन विभाग के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को भी कटघरे पर खड़ा कर दिया है।
यही वजह है कि जब यहां वन सेवा के अधिकारी तपेश झा को जब पर्यटन मंडल में लाया गया तो उन्होंने आते ही सबसे पहले पीआरओ अजय श्रीवास्तव को निलंबित किया वहीं सालों से जमें एमजी श्रीवास्तव को भी मंत्रालय चलता किया इसके अलावा आधा दर्जन लोगों के तबादले किए गए। अभी यह आदेश जारी ही हुआ था कि पर्यटन मंडल में हड़कम्प मच गया चूंकि अजय श्रीवास्तव को मंत्री का खास माना जाता है और दुग्ध संघ के मामूली कर्मचारी से पहले पुलिस और फिर पर्यटन में पीआरओं के पद पर नियुक्ति मंत्री के प्रभाव से ही माना जाता है इसलिए इस निलंबन आदेश से हड़कम्प मचना स्वाभाविक था। जबकि कई तरह के आरोपों से घिरे एमजी श्रीवास्तव को भी पर्यटन में हो रहे गड़बड़ झाले के लिए जिम्मेदार माना जाता है इसलिए भी यह माना जाने लगा कि पर्यटन मंडल को सुदृढ़ करने की दिशा में तपेश झा ने महत्वपूर्ण निर्णय लिया है।
बताया जाता है कि यह आदेश को जारी हुए एक हफ्ते भी नहीं बिता कि अजय श्रीवास्तव बहाल कर दिए गए जबकि कई लोगों के तबादले रोक दिए गए। सूत्रों के मुताबिक इस कार्रवाई में मंत्री की रुचि बताई जा रही है। इधर इस संबंध में जब तपेश झा से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस मामले में कुछ भी बोलने से इंकार करते हुए कहा कि यह विभागीय मामला है। बहरहाल इस मामले से यह चर्चा है कि बृजमोहन अग्रवाल की रूचि के चलते पर्यटन मंडल में बदनाम व विवादास्पद लोगों का जमावड़ा है और जिस स्तर पर यहां घोटाले हो रहे हैं उससे पर्यटन मंडल दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया है।

रविवार, 26 सितंबर 2010

घटना हुई तो डांस बार याद आया वरना महिनों से सिर्फ पैसा खाया

थानेदार तो दूर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर भी पैसा खाने का आरोप
 छत्तीसगढ़ की राजधानी में महिनों से चल रहे डांस बार का खुलासा करने की बजाय महिना खाने वाले पुलिसिये तब भी कार्रवाई नहीं करते यदि मध्यप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष प्रभाष झा के बिगड़ैल लड़के व उसके साथियों के साथ मारपीट नहीं होती। सट्टा पकड़ाने पर थानेदारों को निलंबित करने वाले पुलिस अधिकारी से गृहमंत्री ननकीराम कंवर तक ने इस मामले में सिर्फ दोनों पक्षों के आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई कर चुप्पी ओढ़ ली जबकि महिनों से यहां न केवल डांस बार चल रहा था बल्कि चर्चा इस बात की भी है कि यह सब पुलिस के संरक्षण में हो रहा था और थानेदार से लेकर पुलिस के उच्चाधिकारियों तक महिना पहुंचाया जाता था।
वैसे तो इस सरकार के चलते जो कुछ हो जाए कम है। मंत्रियों से लेकर अधिकारियों तक सिर्फ अपनी जेब गरम करने में लगै हैं भले ही इसकी वजह से आम लोगों की जान पर बन आए। यही वजह है कि राजधानी पुलिस पर अपराधियों को संरक्षण देने का आरोप लगता रहा है।
ताजा मामला शिवसेना प्रमुख धनंजय सिंह परिहार द्वारा संचालित होटल का है। बताया जाता है कि इस होटल में महिनों से बार डांस चल रहा था और दिल्ली, मुंबई, कलकत्ता सहित देश के विभिन्न हिस्सों से यहां न केवल लड़कियां आती थी बल्कि इनके देह व्यापार करने के भी चर्चे शहर में आम रहे हैं। इतना ही नहीं यहां प्राय: रोज छोटी-मोटी लड़ाई-झगड़े भी आए दिन होते रहते थे लेकिन डीडी नगर थाने को हर माह मिलने वाली मोटी रकम और उच्चाधिकारियों को हर माह पहुंचाई जाने वाली रकम की वजह से पुलिस ने इस बार में चल रहे अनैतिक कार्यों की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया।
बताया जाता है कि यदि शनिवार की रात भी यदि मध्यप्रदेश सरकार के अध्यक्ष प्रभाष झा का बिगड़ैल औलाद यहां मार नहीं खाता तो पुलिस मामले को दबा देती। बताया जाता है कि भाजपाध्यक्ष का यह पुत्र पहली बार यहां नहीं आया था वह अपने साथियों के साथ मौज मस्ती के लिए अक्सर आता था और शहर के कई युवक-युवतियां यहां डांस करने भी पहुंचती थी। डीडी नगर थाने वाले तो इस कदर यहां पार्किंग या छोटे-मोटे झगड़े में धनंजय सिंह परिहार का साथ देते थे मानों वे सरकार की नहीं इस होटल के कर्मचारी हो।
बताया जाता है कि चूंकि पैसा पुलिस के उच्चाधिकारियों तक पहुंचता था और एक वरिष्ठ अधिकारी की यहां रूचि थी इसलिए घटना के बाद मारपीट में शामिल दोनों पक्षों के खिलाफ तो कार्रवाई हुई लेकिन थाने को बचा लिया गया। सट्टा या अन्य छोटे मामले में थानेदार को आंख तरेरने वाले गृहमंत्री ननकीराम कंवर भी इस मामले में आश्चर्यजनक रुप से चुप है जबकि इस घटना के लिए सबसे यादा दोषी कोई है तो वह डीडी नगर थाना है। डीडी नगर थाना वाले यह कहकर अपनी जिम्मेदार से मुंह नहीं मोड़ सकते कि उन्हें यहां चल रहे डांस की खबर नहीं थी जबकि कई बार यहां हुए झगड़ों के बाद मामला थाने पहुंचा है लेकिन रिपोर्ट कभी नहीं लिखी गई।

शनिवार, 25 सितंबर 2010

भटगांव में भाजपा फंसी

भाजपा के लिए मुसीबत बनी, चावल, दारु और भ्रष्टाचार
1 अक्टूबर को मतदान 4 को गणना
 भटगांव उपचुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच चल रही खंदक की लड़ाई अंतिम चरण पर पहुंच गई है। कांग्रेस ने जहां जबरदस्त एकता का परिचय दिया है तो भाजपा अभी तक आम लोगों को विकास के मायने समझाने में ही उलझी हुई है जबकि चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग और गांव-गांव में बिक रहे शराब के अलावा सड़क और स्कूलों की दुर्दशा के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी यहां प्रमुख मुद्दा बनकर उभरा है।
वैसे तो भटगांव उपचुनाव के परिणाम को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों ही संशय की स्थिति में है। वैशालीनगर विस चुनाव के साथ रायपुर बिलासपुर और राजनांदगांव नगर निगम चुनाव में बुरी तरह पीट चुकी भाजपा के लिए इस सीट को जीतना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके परिणाम डॉ. रमन सिंह के लिए मुसीबत खड़ी कर सकती है। आदिवासियों की बड़ी तादात के अलावा राज परिवार के प्रभाव ने सत्ता के प्रकरण को यहां जिस तरह से नेस्ताबूत किया है उससे भाजपाई खेमें में हड़कम्प मचा हुआ है। कहा जाता है कि बृजमोहन अग्रवाल का पिछले दिनों प्रचार कार्य छोड़कर बीच में रायपुर आना और मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से मुलाकात करने की वजह बताती है कि भटगांव में जो कुछ चल रहा है वह भाजपा के हित में नहीं है।
वैसे भी भाजपा ने शिवप्रताप सिंह की पार्टी में वापसी मजबूरी में कराया है लेकिन चुनाव लड़ने वाले उसके बेटे की स्थिति स्पष्ट नहीं है ऐसे में आदिवासी वोट को लेकर संशय कायम है। दूसरी तरफ सरकार के चावल योजना से मध्यम वर्ग पूरी तरह त्रस्त है क्याेंकि इस योजना से मजदूरों की किल्लत भुगतना पड़ रहा है ऐसे में मध्यव वर्ग का भाजपा को कितना साथ मिलेगा कहना मुश्किल है। जबकि रोजगार गारंटी योजना के मजदूरों को महिनों से भुगतान नहीं होने का मामला भी तूल पकड़ता जा रहा है। इधर गांव-गांव में बिक रहे अवैध शराब से महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश देखा जा रहा है जबकि बदतर सड़कों के अलावा बदहाल स्कूलों पर पीडब्ल्यूडी व शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को जवाब देते नहीं बन रहा है। दूसरी तरफ कांग्रेस में जबरदस्त एकता दिखाई देने लगा है हालांकि कांग्रेसियों ने सत्ता का दुरुपयोग का आरोप लगाकर भाजपा को बांधने की कोशिश भी की है ऐसे में यदि सत्ता विरोधी मत का प्रयोग अधिकाधिक हुआ तो कांग्रेसी एक बार फिर खुश हो सकते हैं।

ये है राजधानी

मेट्स और लॉ कॉलेज स्टूडेण्ट होटल बेबीलॉन में जिस  तरह से पेश आये उससे लगा की मेरा शहर भी अब मुंबई से कम नहीं है .







वाईस ऑफ छत्तीसगढ़ में इस्माईल दरबार आएंगे

 शुभम संस्थान द्वारा आयोजित वाइस ऑफ छत्तीसगढ़ का फाईनल 24 अक्टूबर को होगा। इसमें फाईनल पहुंचे 15 गायक अपने प्रतिभा का जलवा दिखाएंगे। कार्यक्रम में मशहूर संगीतकार इस्माईल दरबार ने आने की स्वीकृति दे दी है। यह जानकारी संस्था प्रमुख महुआ मजूमदार ने दी।

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

फिर वेतन बढ़ने का मौसम आया...

वैसे तो सरकारी विज्ञापन से ही नहीं सेटिंग करके जमीन से लेकर खदान लेने वाले अखबार मालिक अपने पत्रकारों व दूसरे मीडिया कर्मियों को फूटी कौड़ी देना पसंद नहीं करते लेकिन जब भी नए ग्रुप की आमद होती है वे भीतर तक डर जाते हैं। इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजधानी में यही सब कुछ हो रहा है। पत्रिका, राज एक्सप्रेस सहित कई नए अखबार के आमद ने प्रतिष्ठित अखबारों को भीतर तक हिला दिया है। तोड़फोड़ से भयभीत अखबार मालिक अब पत्रकारों की खुशामद में लग गए हैं। दैनिक भास्कर को पत्रिका से सर्वाधिक खतरा महसूस होने लगा है इसलिए उसने अपने यहां के पत्रकारों ही नहीं अन्य कर्मचारियों का वेतन बढ़ा दिया है। बावजूद टूटन जारी है।
भास्कर के मार्केटिंग वाले पत्रिका पहुंचे...
दैनिक भास्कर ने अपने कर्मचारियों का वेतन तो बढ़ा दिया है लेकिन लगता है पत्रिका को चैन नहीं है वह भास्कर से दुश्मनी भुनाने में लगा है। सर्कुलेशन, संपादकीय व विज्ञापन विभाग में तोड़फोड़ के बाद उसे मार्केटिंग में भी तोड़फोड़ में सफलता मिल गई है। भास्कर के मार्केटिंग के सौरभ श्रीवास्तव, आदर्श पाठक, देवेश नगड़िया और आदित्य पत्रिका पहुंच गए हैं।
मनोज हरिभूमि छोड़ नई दुनिया में...
हरिभूमि का फोटो ग्राफर मनोज साहू को नई दुनिया रास आने लगा है। नई दुनिया यादा वेतन देकर मनोज को अपने यहां बुला लिया। कहा जा रहा है कि हरिभूमि में वैसे भी मनोज परेशान था।
भाई खुश हुआ...
वैसे तो इन भाई फोटो ग्राफरों का सभी मजाक उड़ाते है। अच्छी तस्वीरें खींचने के बावजूद उन्हें अब तक तवाों नहीं मिल रही थी। वेतन की कमी अलग रही ऐसे में पत्रिका में जोर लगाना ही था और वे सफल भी हो गए। अब इन्हें झमरु-डमरु कहो या त्रिलोचन-हीरा मानिकपुरी कह लो। दिन तो बहुर ही गए।
वाह पाण्डे जी
हरिभूमि में क्राईम-क्राईम खेलने वाले सतीश पाण्डे ने ऊंची-छलांग लगा ली है। पहले हल्ला मचाया कि पत्रिका में जा रहा हूं पहले ही दहशत में रहे हिमांशु ने उसकी तनख्वाह तीन हजार बढ़ा दी। अभियान सफल रहा।
इलेक्ट्रानिक में दारू वालों की आमद...
लंबी खामोशी के बाद एक फिर इलेक्ट्रानिक मीडिया में हलचल होने लगी है। जी-24 के गिरते ग्राफ ने इसके मालिक को एम चैनल में पार्टनरशिप लेने मजबूर किया तो मंजित अमोलक जैसे दारु वाले इस व्यवसाय में कदम रखने लगे हैं। भास्कर का क्या वह तो 51 प्रतिशत में स्वयं है बाकी 49 में कोई भी खेल।
और अंत में...
जब से जनसंपर्क का कार्यभार अमन सिंह ने संभाला है तभी से संवाद व जनसंपर्क के भ्रष्ट अधिकारी सक्रिय हो गए हैं। वे आपस में यही चर्चा कर रहे हैं कि कैसे साहब को अपनी करनी छुपायें और खुश करने कौन सा गिफ्ट दें।

स्थापना पर मुक्तिमोर्चा का कार्यकर्ता सम्मेलन 1 को

 छत्तीसगढ राय स्थापना के उपलक्ष्य में मूल निवासी मुक्ति मोर्चा के द्वारा त्रिवेणी भवन बिलासपुर में प्रांतीय कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया गया है। यह जानकारी मोर्चा के अध्यक्ष गोपाल ऋषिकर भारती एवं सचिव महिला प्रभाग श्रीमती उषा आफले ने दी।

बेहतर स्वास्थ्य, रोजगार एवं बुनियादी सुविधओं की गारंटी पर आधारित छत्तीसगढ़ को प्रबुध्द आदर्श राय बनाने की दिशा में चलाए जा रहे अभियान के अंतर्गत कार्यकर्ताओं को जानकारी दी जाएगी। छत्तीसगढ़ राय निर्माण आंदोलन के प्रणेता एवं प्रथम जेल यात्री गुरुघासीदास जयंती के जन्मदाता स्वर्गीय नुकूल ढीढी (मंत्री जी) को मरणोपरान्त छत्तीसगढ़ शासन द्वारा सम्मानित करने की मांग की जाती है। छत्तीसगढ़ में डा. बाबा साहब अम्बेडकर की विचार धारा आंदोलन तथा उनके संगठनों को स्थापित करने वाले नेतृत्वकर्ता नुकूल ढीढी जी थे। उन्हाेंने 1951 से ही छत्तीसगढ़ राय के प्रयत्न करना प्रारंभ किया सन् 1961 में आल इंडिया रिपब्लिकन पार्टी छत्तीसगढ़ राय शाखा का गठन किया था। दिनांक 13 दिसंबर 1970 को रिपब्लिकन पार्टी आफ इंडिया के बैंगलोर राष्ट्रीय अधिवेशन में पृथक छत्तीसगढ़ राय निर्माण का प्रस्ताव पारित करवाएं। दिनांक 27 अक्टूबर 1972 को रायपुर जिला कचहरी के समक्ष आंदोलन करते हुए 19 साथियों के साथ जेल भेजे गए। 31 अक्टूबर को रिहा किए गए। उनके 45 साथियों को महासमुंद में सुखरु प्रसाद बंजारे एवं भागवत कोसरिया के साथ गिरफ्तार किया गया। दिनांक 18 दिसंबर 1938 को छत्तीसगढ़ के ग्राम भोरिंग में गुरु घासीदास की जयंती का प्रथम आयोजन किया वे छत्तीसगढ़ में इस जयंती के जन्मदाता थे। प्रदेश के मुख्यमंत्री सहित अनेकों पार्टियों के प्रमुख नेताओं को आमंत्रित किया जा रहा है, जिनमें मुंबई के पूर्व सांसद एवं रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामदास आठवले छत्तीसगढ़ विकास पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व सांसद पी.आर. खुंटे सहित सामाजिक सांस्कृतिक नेताओं द्वारा स्वीकृति प्रदान की गई।

गुरुवार, 23 सितंबर 2010

यह तो भाजपाई राजनीति की दोगलाई है...

क्वींस बेटन के स्वागत को लेकर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बहिष्कार कर दिया तो छत्तीसगढ क़े मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह स्वागत पर कूद गए थे। एक ही पार्टी के दो मुख्यमंत्रियों का यह खेल किस श्रेणी में जाता है यह तो वही जाने लेकिन आम लोगों में इस खेल को दोगलाई बताया जा रहा है।
वैसे तो धर्म की राजनीति कर सत्ता तक पहुंची भारतीय जनता पार्टी के सिध्दांत क्या हैं यह कोई नहीं जानता। कुर्सी के लिए राम तक को त्यागने के आरोप से ग्रसित भाजपा के नेता धारा 370 से लेकर एक विधान तक को भूल चुके हैं। ऐसे में समय-समय पर बदलते सिध्दांत ने भाजपा को एक बार फिर कटघरे में खड़ा कर दिया है। मामला दिल्ली में होने वाले कामनवेल्थ गेम का है। अपने-अपने हितों के हिसाब से भाजपाई इस मामले में राग अलाप रहे हैं। इस मामले में भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व भी क्या सोचता है किसी को पता नहीं है।
भाजपा की हालत यह है कि कोई नेता नहीं है या फिर सत्ता और पदों में बैठे सभी नेता है जो अपने हितों के लिए नए-नए सिध्दांत गढ़ रहे हैं। क्वीस बेंटन के मामले में तो भाजपा की जितनी छिछालेदर हो रही है उतनी कभी नहीं हुई। छत्तीसगढ क़े मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने जहां क्वीस बेटन के स्वागत में कोई कसर बाकी नहीं रखा था तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह यह कहकर क्वींस बेटन के कार्यक्रम का बहिष्कार कर गए कि उन्हें इसमें गुलामी दिखाई देती है जबकि उसके मंत्रिमंडल के सदस्य स्वागत कर रहे हैं।
भाजपा नेता यह कहकर पल्ला झाड़ सकते हैं कि सबकी अपनी सोच है लेकिन आम लोगों में जबरदस्त प्रतिक्रिया है। यही वजह है कि राम मंदिर मामले में भी सत्ता पाते ही यही रणनीति अख्तियार की गई थी। अब तो उसके देश प्रेम के मुद्दे पर ही सवाल उठने लगे हैं। ऐसे में कांग्रेसी यह कहें कि आजादी की लड़ाई में भाजपाई दूर क्यों थे तो किसी को बुरा नहीं लगना चाहिए?
रीमेक नहीं मौलिक बने छत्तीसगढ फ़िल्में
तपेश जैन
रायपुर। ''सास गारी देबे, ननद चुटकी लेबे, ससुरार गेंदा फूल'' हिन्दी फिल्म दिल्ली-6 में शामिल किए गए इस गाने ने छत्तीसगढ़ी भाषा और संस्कृति की पहचान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कायन करने के साथ ही छत्तीसगढ़ी फिल्मों का भी नया जीवनदान दिया है। गाना सुपरहिट हुआ तो देश का ध्यान छत्तीसगढ़ी पर आकर्षित हुआ और सन् 2003 के बाद मरणासन् छत्तीसगढ़ी फिल्म उद्योग को जैसे जीवनदान मिल गया। सन् 2009 में लंबे समय के बाद रिलीज हुई तीजा के लुगरा की आंशिक सफलता ने सतीश जैन को पुन: फिल्म बनाने प्रेरित किया और उन्होंने मया का निर्माण कर यह साबित किया कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों के दर्शक है और अच्छी फिल्में लाभ प्रदान कर सकती है। इस मामले में डीजीटल टेक्नोलॉजी ने भी बड़ी भूमिका अदा की है। गौरतलब है कि पूर्व में बनी छत्तीसगढी फ़िल्मों की पिक्चर और वॉयल क्वालिटी ठीक नहीं होने से भी कारी जैसी अच्छी फिल्म नहीं चल पाई थी। सस्ती डिजीटल टेक्नोलॉजी ने न केवल पिक्चर की गुणवत्ता में सार्थक परिवर्तन आया बल्कि आवाज भी स्पष्ट हो गई। लेकिन मया की सफलता के बाद जो छत्तीसगढ़ फिल्म निर्माण की भेड़चाल शुरु हुई और बालीवुड फिल्मों के रीमेक के साथ नकल की परंपरा ने तीस से भी यादा असफल फिल्मों ने एक बार फिर इस बात पर चिंतन के लिए प्रेरित किया है कि दर्शक बालीवुड की नकल नहीं बल्कि मौलिक कहानियों पर आधारित फिल्में पसंद करते है और उन्हें अपनी भाषा में स्थानीय मनोरंजन के तत्व चाहिए। घिसे पिटे फार्मूले की हिन्दी फिल्मों की रीमेक छत्तीसगढ़ी फिल्मों में फ्रेम दर फ्रेम नकल यह दर्शाती है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों में मौलिक कहानियों का अभाव है और जो फिल्में बना रहे है उनका उद्देश्य कुछ और है। इस वजह से सन् 2000 के बाद बनी 30 से 40 फ्लाप फिल्मों ने मार्केट खराब कर दिया था। अब पुन: ऐसी स्थिति बन रही है कि कोई भी बिना तकनीक और फिल्म की भाषा शैली समझे मैदान में उतर गया है।
मया के बाद कुछेक फिल्मों ने एक-दो दिन बाद ही दम तोड़ दिया। प्रदर्शन के कुछ शो बाद ही दर्शकों को यह पता चल गया कि मस्ती के लिए फिल्म बनाई गई है। देखा जाए तो अभी तक एक भी ऐसी छत्तीसगढ़ी फिल्म नहीं बनी है जो अपनी कथा वस्तु की वजह से लोकप्रिय हुई हो। इन फिल्मों में फूहड़ हास्य और अश्लीलता का प्रयोग भी किया गया लेकिन सफल नहीं हो सका है। भोजपुरी फिल्मों की तरह छत्तीसगढ़ में द्विअर्थी संवाद और गाने पसंद नहीं किए जाते है इसलिए अच्छा तो यही होगा कि फिल्म का शिल्प समझकर छत्तीसगढ़ की ही मौलिक कहानियों पर फिल्में बने, नहीं तो पुन: इसका भविष्य अंधकार में होगा।

मोहन से भरोसा टूटा अन्य मंत्री भी लगे प्रचार में

भटगांव उपचुनाव

भाजपा की मुसिबत बढ़ी, चावल-दारू भारी पड़ा
 भटगांव उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की मुसीबत बढ़ते ही जा रही है। चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग और गांव-गांव में बिकते अवैध शराब से महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है। वहीं प्रभारी बनाए गए पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की छवि ने भी भाजपा को सकते में ला दिया है। एन वक्त पर प्रभारी हटाने से विरित असर पडने की संभावना के चलते अब भाजपा ने दूसरे मंत्रियों को भी यहां जिम्मेदारी दे दी है।
छत्तीससगढ़ के भटगांव विधानसभा के लिए हो रहे उपचुनाव को लेकर जबरदस्त होड़ है। भाजपा ने जहां सरकार की पूरी ताकत को झोंक दिया है वहीं कांग्रेस भी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती। भाजपा के लिए यह उपचुनाव तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। वर्तमान में भाजपा के सिर्फ 47 विधायक है जो बहुमत से एक-दो सीट ही अधिक है ऐसे में यह चुनाव हारने पर डॉ. रमन सिंह की मुसीबत बढ सकती है। वैसे रमन सिंह ने यह चुनाव जीतने के लिए यहां से श्रीमती रजनी त्रिपाठी को उतारकर सहानुभूति वोट ही नहीं बल्कि पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को प्रभारी बनाकर तिकड़म से वोट बटोरने का संकेत दिया है।
बताया जाता है कि भाजपा ने यह नहीं सोचा था कि हाय हलो की छवि वाले बृजमोहन अग्रवाल पर लगे आरोप भी यहां मुद्दे बन जाएंगे। बताया जाता है कि घटिया सड़क निर्माण से लेकर पर्यटन विभाग में हुए घोटाले ने तो बृजमोहन अग्रवाल को परेशान किया ही है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी भी यहां मुद्दा बनता जा रहा है। चूंकि बृजमोहन अग्रवाल के पास शिक्षा विभाग भी है ऐसे में स्कूलों में शिक्षकों की कमी यहां प्रमुख मुद्दा बन सकता है।
बताया जाता है कि बृजमोहन अग्रवाल को लेकर चल रही चर्चा ने क्षेत्र के भाजपाईयों के होश उड़ा दिए हैं और इसकी खबर जब संगठन व सरकार को हुई तो आनन-फानन में अन्य मंत्रियों को भी जिम्मेदारी दे दी गई है ताकि इसका प्रभाव कम किया जा सके। बताया जाता है कि पूर्व अध्यक्ष शिवप्रताप की खामोशी ने तो भाजपा को बेचैन किया ही है चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग को प्रभावित करने नई रणनीति बनाई जा रही है। बताया जाता है कि दो रुपया किलो चावल योजना ने मध्यम वर्ग को सर्वाधिक हलाकान किया है। न घर के लिए और न ही खेती के लिए ही मजदूर मिल रहे हैं कई लोग तो महंगाई को ही इसकी वजह बता रहे हैं।
वहीं गांव-गांव में बिकते अवैध शराब से भी महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है जबकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी के दौरे में आदिवासियों की उपेक्षा भी आदिवासी क्षेत्रों में मुद्दा बनता जा रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी यू.एस. सिंहदेव को मिल रहे व्यापक समर्थन और कांग्रेसियों की एकता ने भी भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनाने मजबूर कर दिया है। बहरहाल यह कहा जा रहा है कि यदि कांग्रेसियों ने यह सीट जीत ली तो डॉ. रमन सिंह की मुसीबत बढ सकती है।

बुधवार, 22 सितंबर 2010

दल बदल कानून से पाटिर्यों में तानाशाही...

अटल सरकार ने जब दल बदल कानून लाया होगा तब उन्हें भी शायद इस बात की कल्पना नहीं रही होगी कि यह लोकतंत्र का हत्यारा साबित होगा? यदि दलबदल कानून का फायदा राजनैतिक दलों को मिला है तो इस कानून से जनता को सर्वाधिक नुकसान उठाना पड़ा है।
अटल सरकार ने यह कानून यह सोचकर लाया था कि इससे पार्टियाें में टूट नहीं होगी और पैसा खाकर निष्ठा बदलने की परम्परा भी खत्म हो जाएगी। दरअसल तोड़फोड़ की राजनीति का शिकार भी भाजपा सर्वाधिक हुई है और अन्य दल भी अपने विधायक-सांसदों से आशंकित रहते थे कि कब वे बिक न जाए। इस डर की वजह से लाया गया कानून आम लोगों के लिए कितना विभत्स हो गया है यह अब देखने को मिल रहा है।
रायों में तो मुख्यमंत्री खुलेआम दादागिरी कर रहे हैं उन्हें सिर्फ प्रदेश प्रभारी और हाईकमान को पटा कर रखना है बाकी जैसी मर्जी वैसा करो? इस कानून के चलते विधायकों-सांसदों की जमकर अनदेखी की जा रही है। विधायक जानते हैं कि मुख्यमंत्री की शिकायत करना ठीक नहीं है इसलिए वे खामोश रह जाते हैं और यादा शिकायत की तो पार्टी से हकाले भी जा सकते हैं। इतना ही नहीं अनाप-शनाप नियम बनाने में पार्टी व्हीप के नाम पर जिस तरह से जबरिया वोटिंग कराने का प्रावधान है वह आत्मा को मारने वाली है। गलत बातों का भी समर्थन करने की मजबूरी ने विधायक-सांसदों को इस कदर पार्टी का गुलाम बना दिया है कि पार्टी हित के आगे देश या प्रदेश का हित किनारे किया जाने लगा है।
यही नहीं मुख्यमंत्री चेहरा देखकर काम करने लगे हैं छत्तीसगढ़ में ही कई भाजपा विधायक है जो सरकार की करतूतों से नाराज हैं और वे इसलिए नहीं बोलते हैं कि उनके खिलाफ पार्टी कार्रवाई कर देगी? एक विधायक ने तो नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि किस तरह से अधिकारियों की मनमानी के चलते उनके क्षेत्र का विकास कार्य ठप्प पड़ गया है और उन्हें खामोश रहने धमकी दी जाती है। इस विधायक ने तो इस कानून के बनने के बाद पार्टी विधायकों व सांसदों की हालत दयनीय होने का दावा किया। यह स्थिति अमूमन सभी दलों में है। पार्टी के बाहर जाकर जनहित के मुद्दे उठाने पर विधायकी जाने वाले इस कानून को बदलने की मांग भी दबे जुबान में होने लगी है।
एक विधायक ने कहा कि इस कानून के कारण ही भ्रष्टाचार बढ़ी है। वेतन और जीवनभर मिलने वाले पेंशन के कारण पार्टियों से जुड़े रहने की मजबूरी ने आम लोगों के हितों पर कुठाराघात किया है। एक विधायक ने कहा कि ठीक है पार्टी का प्रभाव जीत का मार्ग प्रशस्त करती है लेकिन अब वह जमाना नहीं है कि पार्टी टिकिट दे और जीत जाए। स्वयं की छवि भी महत्वपूर्ण होती है ऐसे में पार्टी की दादागिरी तानाशाही तक जा पहुंची है। वास्तव में इस कानून ने जिस तरह से विधायकों और सांसदों को पार्टी का गुलाम बना दिया है उससे आने वाले दिनों में जनहित की बजाए राजनैतिक फायदे की बात ही अधिक होगी जो देश और समाज दोनों के लिए खतरा है।

एचआर प्रकरण की फाईल चोरी की एफआई आर कराने से कतरा रही है शिक्षा विभाग

एचआर प्रकरण की फाईल चोरी की एफआई आर कराने से कतरा रही है शिक्षा विभाग
 दंतेवाड़ा में शिक्षा अधिकारी के पद पर पदस्थ डॉ. एच.आर. शर्मा की फाईल चोरी का रहस्य गहराते जा रहा है। फाईल गुमने की जांच तो शुरु कर दी गई है लेकिन उच्च स्तरीय दबाव के चलते मामला पुलिस को सौंपने से शिक्षा विभाग कतरा रही है।
उल्लेखनीय है कि  डॉ. एच.आर. शर्मा के संविलियन को हाईकोर्ट द्वारा रद्द करने व निगम से सचिव एम.के. राउत द्वारा सेवा लौटाने की खबर छापी थी इससे उच्च स्तरीय दबाव पर कार्रवाई तो नहीं हुई उल्टे डा. एच.आर. शर्मा की फाईल शिक्षा विभाग से गायब हो गई। बताया जाता है कि फाईल गायब होने की खबर प्रसारित होने से शिक्षा विभाग में हड़कम्प मच गया है और उच्च स्तरीय दबाव के बाद भी फाईल गायब होने की जांच तो शुरु कर दी गई है लेकिन फाईल चोरी होने की एफआईआर नहीं कराई जा रही है।
ज्ञात हो कि भाजपा की पूर्व महिला सांसद के दबाव में संविलियन की कोशिश विफल होने के बाद भी डॉ. शर्मा की नियुक्ति शिक्षा विभाग में की गई है। यहीं नहीं शिक्षा विभाग में मूल रुप से नहीं होने के बाद भी डा. शर्मा को न केवल दंतेवाड़ा जिला शिक्षा अधिकारी बनाया गया है बल्कि परियोजना समन्वयक का भी चार्ज सौंपा गया है। इस विभाग के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल हैं जबकि तत्कालीन शिक्षा मंत्री हेमचंद यादव के भी पूर्व महिला सांसद के दबाव में विशेष रूचि लेने की चर्चा है। बताया जाता है कि वर्तमान शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी शिकायत के बाद भी कोई रूचि नहीं दिखा रहे हैं। जबकि तत्कालीन शिक्षा सचिव नंदकुमार परतो लेन-देन के आरोप लगे हैं। इधर यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है इससे शिक्षा विभाग पर भी दाग लगने लगा है।

मंगलवार, 21 सितंबर 2010

मोहन से भरोसा टूटा अन्य मंत्री भी लगे प्रचार में

भटगांव उपचुनाव
भाजपा की मुसिबत बढ़ी, चावल-दारू भारी पड़ा
 भटगांव उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी की मुसीबत बढ़ते ही जा रही है। चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग और गांव-गांव में बिकते अवैध शराब से महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है। वहीं प्रभारी बनाए गए पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की छवि ने भी भाजपा को सकते में ला दिया है। एन वक्त पर प्रभारी हटाने से विरित असर पडने की संभावना के चलते अब भाजपा ने दूसरे मंत्रियों को भी यहां जिम्मेदारी दे दी है।
छत्तीससगढ़ के भटगांव विधानसभा के लिए हो रहे उपचुनाव को लेकर जबरदस्त होड़ है। भाजपा ने जहां सरकार की पूरी ताकत को झोंक दिया है वहीं कांग्रेस भी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती। भाजपा के लिए यह उपचुनाव तो मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। वर्तमान में भाजपा के सिर्फ 47 विधायक है जो बहुमत से एक-दो सीट ही अधिक है ऐसे में यह चुनाव हारने पर डॉ. रमन सिंह की मुसीबत बढ सकती है। वैसे रमन सिंह ने यह चुनाव जीतने के लिए यहां से श्रीमती रजनी त्रिपाठी को उतारकर सहानुभूति वोट ही नहीं बल्कि पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को प्रभारी बनाकर तिकड़म से वोट बटोरने का संकेत दिया है।
बताया जाता है कि भाजपा ने यह नहीं सोचा था कि हाय हलो की छवि वाले बृजमोहन अग्रवाल पर लगे आरोप भी यहां मुद्दे बन जाएंगे। बताया जाता है कि घटिया सड़क निर्माण से लेकर पर्यटन विभाग में हुए घोटाले ने तो बृजमोहन अग्रवाल को परेशान किया ही है। स्कूलों में शिक्षकों की कमी भी यहां मुद्दा बनता जा रहा है। चूंकि बृजमोहन अग्रवाल के पास शिक्षा विभाग भी है ऐसे में स्कूलों में शिक्षकों की कमी यहां प्रमुख मुद्दा बन सकता है।
बताया जाता है कि बृजमोहन अग्रवाल को लेकर चल रही चर्चा ने क्षेत्र के भाजपाईयों के होश उड़ा दिए हैं और इसकी खबर जब संगठन व सरकार को हुई तो आनन-फानन में अन्य मंत्रियों को भी जिम्मेदारी दे दी गई है ताकि इसका प्रभाव कम किया जा सके। बताया जाता है कि पूर्व अध्यक्ष शिवप्रताप की खामोशी ने तो भाजपा को बेचैन किया ही है चावल योजना से त्रस्त मध्यम वर्ग को प्रभावित करने नई रणनीति बनाई जा रही है। बताया जाता है कि दो रुपया किलो चावल योजना ने मध्यम वर्ग को सर्वाधिक हलाकान किया है। न घर के लिए और न ही खेती के लिए ही मजदूर मिल रहे हैं कई लोग तो महंगाई को ही इसकी वजह बता रहे हैं।
वहीं गांव-गांव में बिकते अवैध शराब से भी महिलाओं में जबरदस्त आक्रोश है जबकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी के दौरे में आदिवासियों की उपेक्षा भी आदिवासी क्षेत्रों में मुद्दा बनता जा रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस प्रत्याशी यू.एस. सिंहदेव को मिल रहे व्यापक समर्थन और कांग्रेसियों की एकता ने भी भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनाने मजबूर कर दिया है। बहरहाल यह कहा जा रहा है कि यदि कांग्रेसियों ने यह सीट जीत ली तो डॉ. रमन सिंह की मुसीबत बढ सकती है।

निधि तिवारी हत्याकांड - मामला तूल पकड़ने लगा ...

सामाजिक संगठन भी आगे आये...
 जल विहार कालोनी में निधि तिवारी को उसके पति व ससुराल वालों द्वारा कथित मार डालने का मामला अब तूल पकडने लगा है। निधि के मायके वालों के साथ सामाजिक संगठनों के सामने आने से मामला गंभीर हो गया है। महिला आयोग ने भी इस मामले में रुचि दिखाने लगा है। प्रेस क्लब रायपुर में निधि के माता पिता परिजनों और जागरूक सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों द्वारा आयोजित पत्रकार वार्ता में इस विभत्स हत्याकांड का पर्दाफाश करते हुये बताया कि निधि तिवारी की जलविहार कालोनी रायपुर में गत दिनों संदेहास्पद स्थिति में हत्या कर दी गई थी। इस प्रकरण में निधिकी हत्या अत्यंत अमानवीय, विभत्स एवं दर्दनाक तरीके से की गई। पहले उसे जहर देकर मारने का प्रयास किया गया, ना मरने पर डंडा, राड से मारनें फिर भी ना मरने पर कई लोगों द्वारा उसे पकड़कर गला घोट कर मारा गया उसके बाद निधि पर मिट्टी तेल डालकर जला दिया गया। पोस्टमार्टम में निधि के पेट में जहर अथवा नशीला पदार्थ मिला, उसके शरीर पर अनेक चोटों के निशान थे तथा गले पर लिगेचर मार्क पाया गया, गले को बेदर्दी से घोंटकर अथवा दबा कर मारा गया। फिर उसके बाद उपरोक्त तरीके से की गई हत्या के साक्ष्य को मिटाने के लिये मृत निधि के शरीर को कुछ घंटे बाद मिट्टी तेल डालकर जला दिया गया ताकि उसकी मृत्यु का कारण ऐसा प्रतीत हो मानो निधि ने मिट्टी तेल डालकर आत्महत्या कर ली हो। ये तथ्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मौकाए वारदात, घटनास्थल के लिए गए फोटोग्राफ, पोस्टमार्टम स्थल में मृत निधि के लिए गए फोटो तथा विडियो रिकार्डिंग मृतका के द्वारा अपने माता पिता को लिखे गये पत्र जिसमें निधि ने अपने पति व ससुरालियों पर जान से मारने की साजिश की जानकारी एवं आशंका, जिसका मूल कारण पति राजेश तिवारी का अपनी विधवा भाभाी रेखा तिवारी से अवैध संबंध तथा बार-बार निधि पर मायके से रूपये मंगाये जाने का दबाव व शारीरिक तथा मानसिक प्रताड़ना ही है। पूर्व में प्रताड़ना के कारण निधि अपने मायके में 2 वर्षों तक थी। परिजनों ने बताया कि प्रारंभ से ही निधि के पति राजेश तिवारी, जेठ सुधीर तिवारी, जेठानी सन्नी तिवारी, विधवा जेठानी रेखा तिवारी, पंकज शुक्ला करीबी रिश्तेदार, मीनू अवस्थी ननंद, मकान मालकिन दर्शन कौर अहलूवालिया, उसकी बेटी नीरू एवं सिम्मी अहलूवालिया बेटा सोनू अहूवालिया तथा पड़ोस का कार चालक प्रदीप नायक, तत्कालीन थाना प्रभारी राजेश चौधरी एवं सहायक उपनिरीक्षक आर.एस. गिरी तेलीबांधा थाना और मेकाहारा के पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर चुरेन्द्र एवं डाक्टर मांझी की भूमिका अत्यंत संदिग्ध व आपत्तिजनक रही है। इन सबकी मिलीभगत से ही इस जघन्य हत्याकांड पर परदा डालते हुए उसे आत्महत्या निरूपित किया जा रहा है। उपरोक्त संदर्भ में मृतका निधि के पिता नेहरू नगर भिलाई निवासी सूर्यकांत शुक्ला, माता श्रीमती बेलारानी शुक्ला एवं मायके पक्ष के अन्य पीड़ित व दु:खित परिजनों ने पुलिस अधीक्षक रायपुर दीपांशु काबरा से मिलकर न्याय की गुहार की। महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, गृहमंत्री, प्रदेश एवं केन्द्र शासन, मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ एवं राष्ट्रपति महोदय के पास भी तत्संबंधी शिकायतें प्रेषित कर, उक्त प्रकरण की निष्पक्ष सीबीआई जांच कराने तथा उपरोक्त अपराधियों को गिरफ्तार कर पुलिस रिमांड में लेकर पूछताछ करने एवं कठोर सजा दिलाये जाने की मांग की है। भा.द.वि. की धारा 302 लगाकर हत्या का मुकदमा कायम करने तथा इस प्रकरण का रि-इन्वेस्टिीगेशन कराने की मांग की गई।
शिकायत की जांच में छत्तीसगढ़ प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती विभा राव ने दोनों पक्षों के लोगों को जांच हेतु 8 सितंबर को दुर्ग स्थित विश्राम भवन में उपस्थित होने को कहा था किंतु निधि तिवारी के ससुराल पक्ष से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ, अपितु निधि के मायके पक्ष के लगभग 25 सदस्यों ने महिला आयोग के समक्ष उपस्थित होकर अपना पक्ष रखा और न्याय का गुहार लगाते हुए हत्या के समस्त साक्ष्यों को प्रस्तुत करके कहा कि वर्तमान में पति राजेश तिवारी के अलावा उपरोक्त हत्या एवं साक्ष्य मिटाने के अन्य आरोपी सहअभियुक्तों के विरूध्द पलिस द्वारा कोई प्रकरण दर्ज नहीं किया गया और न तो कोई कठोर कार्यवाही की गई, ना ही निधि के ससुराल वालों के किसी भी सदस्यों के कोई भी बयान लिये गये। ना ही निधि की ग्यारह वर्षीय अबोध बालिका रितिका तिवारी को उसके नाना नानी अथवा मामा-मामी से ही मिलने दिया जा रहा है। हत्या के बाद निधि के शव को गठरीनुमा हालत में (छुपाकर) ले जाते हुए महिला आयोग की अध्यक्ष श्रीमती विभा राव ने स्वयं देखने की पुस्टि की हैं।
उन्होंने बताया कि तेलीबांधा पुलिस द्वारा जिला एवं सत्र न्यायालय के समक्ष जो चालान पेश किया गया उसमें मृतका निधि तिवारी की मौत से संबंधित घटनास्थल व पोस्टमार्टम स्थल में पुलिस द्वारा ली गई 43 फोटोग्राफ एवं विडियो रिकार्डिंग की सीडी प्रस्तुत नहीं की गई। यह प्रकरण सुनियोजित रूप से सोचविचार कर अनेक लोगों द्वारा इतनी जघन्य हत्या करके साक्ष्य मिटाने के लिये उसके शरीर को जलाकर नष्ट करने का है तथा कार्यवाही धारा 302 के तहत होनी चाहिये थी लेकिन पुलिस द्वारा धारा 306 लगाने के बाद धाराओं में फेरबदल कते हुए 498-ए तथा धारा 323 जैसी मामूली धाराएं लगाकर पुन: आरोपी राजेश तिवारी की जमानत हेतु आवेदन दिलाया गया जिसे माननीय जिला एवं सत्र न्यायालय रायपुर द्वारा पीड़ित पक्ष के विद्वान अधिवक्ता श्री विभाष तिवारी एवं शासकीय अभिभाषक श्री संतोष पाण्डेय के द्वारा कठोर आपत्ति जताते हुए साक्ष्य प्रस्तुत किये गए जिस पर विचार करने के पश्चात दोनों पक्षों के दलीलों को सुनकर माननीय न्यायाधीश श्री संदीप बक्शी ने आरोपी राजेश तिवारी की जमानत इस आधार पर खारिज करते हुए आदेश पारित कर कहा कि अभिलेख का अवलोकन करने से मृतका के परिजनों के बयान से य प्रतीत हो रहा है कि अभियुक्त का अपनी विवधा भाभी से गलत संबंध होने के कारण मृतका से तनावपूर्ण संबंध थे और अभियुक्त लगातार मृतका को मायके के रूपये पैसे लाने के लिए दबाव डालता रहा। इस संबंध में मृतका द्वारा अपने परिजनों को लिखा गया पत्र भी बरामद किया गया है। मृतका के पोस्टमार्टम रिपोर्ट में डाक्टर ने मृतका के शरीर में चोटें पाई है अभियुक्त के विद्वान अधिवक्ता श्री फरहान द्वारा प्रस्तुत जमानत हेतु उक्त न्याय दृष्टांत अभी इस मामले में अभियुक्त को लाभ नहीं दे सकता क्योंकि माननीय उच्च न्यायालय ने साक्ष्य के उपरांत गुण दोष के आधार पर अपनी राय व्यक्त की है अत: अभियुक्त का जमानत आवेदन पूर्व में 6 अगस्त 2010 को गुण दोष के आधार पर निरस्त किया जा चुका है। माननीय सत्र न्यायाधीश ने कहा- यह मामला गंभीर प्रकृति का है अत: अभिलेख पर उपलब्ध साक्ष्य के प्रभाव एवं प्रकरण की परिस्थितियों को देखते हुए इस मामले में अभियुक्त को जमानत का लाभ दिया जाना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है फलस्वरूप जमानत के आवेदकअभियुक्त की ओर से प्रस्तुत आवेदन को आज दुबारा निरस्त किया जाता है।
पीड़ित पक्ष मृतका निधि तिवारी के पिता एस.के. शुक्ला, मां बेलारानी शुक्ला ने अत्यंत ही मार्मिक स्वर में कहा कि हमारी बेटी निधि को साजिश करके मारा गया और उसकी मृत्यु की सूचना हमें अथवा पुलिस को दिये बिना ही मृत्यु के साक्ष्य रफा दफा करते हुए उसके मृत शरीर को मेकाहारा के मरच्यूरी में ले जाकर जेठ सुधीर तिवारी, पंकजा शुक्ला, सन्नी तिवारी एवं रेखा तिवारी द्वारा रखवा दिया गया। इसी कारण मौकाये वारदात पर मृतका के शरीर का पुलिस द्वारा पंचनामा नहीं बनाया गया और अपराधियों द्वारा हत्या से संबंधित साक्ष्यों को आसानी से मिटाने का प्रयास किया गया। इस संबंध में मायके पक्ष ने गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि निधि की हत्या दूसरी जगह करके शव को कमरे में रखकर हत्या संबंधी साक्ष्यों को मिटाने के लिये जला दिया गया है, लेकिन पुलिस उनके इस दृष्टिकोण की ओर नहीं देख रही है जबकि पंचनामा के समय मृतका का बेडरूम पूरी तरह से अस्त व्यस्थ था।

सोमवार, 20 सितंबर 2010

मंत्री का धौस दिखाया तो भाई की तबियत से पिटाई हुई...

प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के भाई योगेश अग्रवाल और उसके साथी सुनील तिवारी को यहां कवर्धा में स्थानीय लोगों ने जमकर पिटाई की। लात-घूसों के अलावा डंडा व बेल्ट का भी उपयोग हुआ। बाल खींचकर दोनों को पटक-पटक कर बेदर्दी से मारा गया। घटना होटल मोहिनी पैलेस की है। मारपीट में शामिल होने के आरोप में गुड्डा खान और उसके साथियों के खिलाफ जुर्म दर्ज कर लिया गया है।
घटना के संबंध में प्राप्त जानकारी के अनुसार फिल्म व्यवसाय से जुड़े योगेश अग्रवाल और सुनील तिवारी अपनी टीम के साथ कवर्धा आए हुए थे। बताया जाता है कि 13 सितम्बर की शाम उनकी गुड्डा खान व उनके साथियों के साथ विवाद हो गया। सूत्रों का दावा है कि चूंकि योगेश अग्रवाल के भाई बृजमोहन अग्रवाल प्रदेश सरकार के दमदार मंत्री माने जाते हैं इसलिए उनकी टीम के लोगों में जबरदस्त जोश होता है और इसी जोश के चलते यह घटना हुई।
सूत्रों के मुताबिक वाहन पार्किंग को लेकर हुए विवाद में किसी ने योगेश को भी बुलवा लिया और कहा जाता है कि बातचीत के दौरान किसी ने कह दिया कि अबे उलझना नहीं यह बृजमोहन अग्रवाल का भाई है और धक्का भी दे दिया धक्का खाते ही स्थानीय युवक आग बबूला हो उठे और देखते ही देखते होटल मोहिनी पैलेस दंगल में बदल गया।
बताया जाता है कि युवकों ने योगेश अग्रवाल और सुनील तिवारी की पिटाई शुरु कर दी और होटल में तोड़फोड़ मचा दी टीम के अन्य सदस्य सकते में आ गए बताया जाता है कि इस बीच योगेश और सुनील भागने की कोशिश करने लगे तो युवकों ने उनको बाल पकड़कर खींचा और जिसके हाथ में जो आया उससे पिटाई शुरु कर दी। इस बीच कुछ लोगों ने बीच बचाव किया लेकिन तब तक योगेश और सुनील की तबियत से पिटाई हो चुकी थी। चूंकि मंत्री का भाई पिटा गया था इसलिए पुलिस तत्काल मौके पर पहुंच गई और अपराध दर्ज कर कार्रवाई की।
सूत्रों की माने तो मंत्री भाई योगेश और उसकी टीम को तीसरी बार मार खाना पड़ा अन्यथा इस तरह का विवाद आए दिन होते रहता है। शूटिंग के दौरान बिलासपुर, भोरमदेव, खल्लारी व डोंगरगढ़ में भी योगेश के टीम के युवाओं का विवाद चर्चा में रहा है। सत्ता का धौंस वैसे तो नया नहीं है। विवादास्पद जमीन से लेकर चेम्बर में कब्जे को लेकर पूर्व अध्यक्ष के साथ भी दादागिरी की चर्चा आए चर्चा में रही है। इससे पहले स्टेशन चौक रायपुर में भी उसकी पिटाई हो चुकी है। बहरहाल योगेश अग्रवाल व सुनील तिवारी को पिटने वाले के खिलाफ कार्रवाई तो की जा रही है लेकिन आम लोगों में इसकी कई तरह की प्रतिक्रिया है और कहा जा रहा है कि मामला कभी भी गंभीर मोड़ ले सकता है।

रविवार, 19 सितंबर 2010

सस्ती है जान...

पिछले दिनों बिलासपुर में 6 पुलिस वालों ने टाकिज के सुरक्षा कर्मी को इतनी बेदर्दी से पीटा कि मौके पर ही उसकी मौत हो गई। किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए यह खबर भीतर तक झिझोंर देने वाली खबर है। क्या किसी भी सभ्य समाज में इस तरह की सरेआम गुण्डागर्दी की अनुमति है? शायद सभी का जवाब कुछ नहीं है? यह इसलिए क्योंकि यह नक्सल प्रभावित राय है। नक्सली भी यही सब कर रहे हैं? और अब सरकार भी?
पूरा वाक्या बिलासपुर के पुलिस कप्तान जयंत थोरात को कटघरे में खड़ा करने के लिए काफी है क्योंकि शुरुआत पुलिस कप्तान और सुरक्षा गार्ड महेन्द्र के बीच नोंक-झोंक से हुई। यदि सूत्रों पर भरोसा करे तो सुरक्षा गार्ड भीड़ को कंट्रोल करने के दौरान पुलिस कप्तान से उलझ गया, शायद उसने बदतमीजी भी की होगी? कप्तान ने उन्हें झिड़कते हुए मातहतों को इशारा किया और वहां से चले गए? अब क्या था। पुलिस कप्तान से बदतमीजी का दंड महेन्द्र को भुगतना ही था? लेकिन सिर्फ बदतमीजी की इतनी बड़ी सजा?
यदि इस तरह की घटना कोई और करता तो घर-परिवार सहित सभी थाने में बिठा दिए जाते लेकिन मामला पुलिस कप्तान और आधा दर्जन पुलिस कर्मियों का था इसलिए मौत पर जुर्म दर्ज करना जरूरी था इसलिए सिर्फ दो पुलिस वालों पर ही जुर्म दर्ज कर मामला ठंडा करने की साजिश रची गई। लेकिन जब आम लोग सड़क पर उतर आए तो गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने घटना की दंडाधिकारी जांच की घोषणा कर दी। सबसे दुखद पहलू तो इस मामले में मुख्यमंत्री की भूमिका की रही। आए दिन सड़क दुर्घटना या अन्य घटना में मृतकों के प्रति संवेदना व्यक्त करने वाले डा. रमन सिंह इस मामले में खामोश है?
वैसे भी इस मामले में बिलासपुर के लोगों की तारीफ करनी होगी कि उनसे महेन्द्र की मौत पर चुप नहीं रहा गया। वरना बस्तर से सरगुजा और राजधानी में मिल रहे लाशों ने आम लोगों को इतना संवेदनशील कर दिया है कि किसी को इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ता? छत्तीसगढ़ में सस्ती होती जान पर अब न कोई बोलता है न सरकार से सवाल ही करता है? सरकार तो बस भ्रष्ट अधिकारियों का पालनहार हो गया है। मानों सरकारी कर्मचारी अधिकारी नहीं हुए वे दामाद हो गए हैं? कुछ भी करो सेवा बरकरार रहेगी और सम्मान में कोई कमी नहीं होने दी जाएगी। तभी तो आईएएस नारायण सिंह सजा के बाद भी पदोन्नत किए जाते हैं? आईएएस बाबूलाल अग्रवाल को तत्काल बहाल कर दिया जाता है?
राय बनने के बाद जिस तरह से सरकार ने आम लेगों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया है कभी सरकारी विकास तो कभी औद्योगिक विकास के नाम पर खेती की जमीनों का बंदरबाट किया है वह आने वाले पीढ़ियों के लिए कतई शुभ संकेत नहीं हो सकते? राजनीति ने गलत-सही के फैसले पर ताला जड़ दिया है? अजीत जोगी पर पैर तुड़वाने के आरोप लगाने वाले आदिवासी नेता नंदकुमार साय को भी महेन्द्र की मौत पर कुछ नहीं कहना है और न ही हंगामा खड़ा करने वाले भाजपाई भी कुछ कहने से रहे। क्योंकि मंडल, कल्लुरी, मुकेश गुप्ता सहित दर्जनभर आईएएस, आईपीएस को पानी पी-पी कर कोसने वाले भाजपाईयों के राज में इन्हीं की चलती है जो अधिकारी कांग्रेसी राज में दुखी थे वे अब भी दुखी है? मलाई तो छत्तीसगढ़ में उन्हें ही मिलेगा जो चोर होगा, तिकड़मी होगा?

एचआर प्रकरण की फाईल गायब होने से शिक्षा विभाग में हड़कम्प

दंतेवाड़ा शिक्षा अधिकारी डा. एच.आर. शर्मा की नियुक्ति संबंधी फाइल गायब होने से शिक्षा विभाग में हड़कम्प मच गया है। बताया जाता है कि इस मामले में एचआर शर्मा को बचाने उच्च स्तर पर तिकड़म हुआ है।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट द्वारा संविलियन रद्द करने के बाद भी डा. एच.आर. शर्मा दंतेवाड़ा में जिला शिक्षा अधिकारी के पद पर बैठे हैं। बताया जाता है कि किसी भी सरकारी विभाग में नौकरी नहीं होने के बावजूद जिला शिक्षा अधिकारी बनाए गए डा. शर्मा पर कई तरह के आरोप लगाए गए है। लेकिन उच्च स्तरीय लेन देन के चलते कार्रवाई नहीं हो रही है। तत्कालीन सचिव नंदकुमार और सी.के. खेतान की भूमिका को भी संदिग्ध बताया जा रहा है और एचआर शर्मा के संविलियन व पदस्थापना से संबंधित फाइल के गायब होने पर उच्च स्तरीय घालमेल का संदेह व्यक्त किया जा रहा है।
इधर बुलंद छत्तीसगढ़ के द्वारा एच.आर. प्रकरण की फाइल गायब होने संबंधी खुलासे से शिक्षा विभाग में हड़कम्प मच गया है। इस संबंध में शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर भी एचआर शर्मा को बचाने का आरोप लगाया जा रहा है। शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से इस संबंध में जानकारी लेने की कोशिश की गई लेकिन भटगांव चुनाव में व्यवस्तता के चलते उनसे संपर्क नहीं हो पाया।

गडकरी की चेतावनी से रमन-मोहन सकते में...

भले ही ऊपरी तौर पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी का दौरा ठीक-ठाक निपट गया हो लेकिन पार्टी के भीतर राष्ट्रीय अध्यक्ष की चेतावनी से प्रदेश के मुखिया डा. रमन सिंह व पीडब्ल्यूडी मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की हालत खराब है। बताया जाता है कि जाते-जाते राष्ट्रीय अध्यक्ष ने दोनों ही नेताओं को सुधर जाने की चेतावनी दी है।
वैसे तो कार्यकर्ता सम्मेलन व सांसदों से मुलाकात के दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतिन गडकरी के संबोधन को लेकर अलग-अलग अर्थ लगाए गए हैं। भाजपा सूत्रों के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरकार के तमाम प्रयास के बाद भी यह समझ गए हैं कि छत्तीसगढ भाजपा में कहीं कुछ ठीक नहीं चल रहा है। रहा सहा कसर बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत के कार्यकर्ताओं के बीच चली खूनी संघर्ष ने पूरी कर दी है।
बताया जाता है कि कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान ही नीतिन गडकरी ने डा. रमन सिंह को चेतावनी दी है कि एक ही चेहरे को बार-बार दिखाने से वोट नहीं मिलते और न ही दो रुपए किलो चावल से ही वोट मिलते हैं। उन्होंने अपरोक्ष रुप से भ्रष्टाचार में लिप्त नेताओं पर भी कटाक्ष किया। सत्ता और संगठन की खामियां भी सामने आई है और उन्होंने सरकार द्वारा संगठन चलाने को लेकर भी नाराजगी व्यक्त की है। जबकि सांसदों की नाराजगी को लेकर भी वे गंभीर दिखे। भाजपा सूत्रों का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष ने जाते-जाते डॉ. रमन सिंह और बृजमोहन अग्रवाल को चेतावनी दी है कि वे पार्टी हित में सुधर जाएं। हालांकि यह सब पार्टी के एक सांसद ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा है लेकिन कहा जाता है कि मारपीट को लेकर भी गडकरी काफी नाराज थे।

शुक्रवार, 17 सितंबर 2010

मत्स्य पालन के ठेकेदारी में अनुदान राशि हड़पने गणितबाजी

नए ठेकेदारों को हटाने शर्ते, सालों से घटिया सामग्री सप्लाई
सचिव से लेकर मंत्री तक कमीशनखोरी की चर्चा
 वैसे तो छत्तीसगढ सरकार के मंत्रियों व सचिवों पर भ्रष्टाचार के आरोप नए नहीं है लेकिन मत्स्यपालन विभाग में गरीबों को नाव व जाल देने के नाम पर जिस तरह से विभाग के अधिकारियों की मदद से ठेकेदार रिंग बनाकर घटिया सामग्री सप्लाई कर रहे हैं वह अंयंत्र देखने को नहीं मिलेगा। ताजा मामला मुरैना से आए ठेकेदार को हटाने के कुचक्र का है और कहा जाता है कि करोड़ों रुपए के इस टेंडर को हासिल करने मंत्री से लेकर सचिव तक कमीशनखोरी हुई है।
जानकारी के अनुसार सरकार ने गरीब मछुआरों को जाल व नाव देने बड़ी राशि अनुदान में देती है और जब से यह योजना शुरु हुई है तब से तीन ठेकेदारों ने रिंग बनाकर काम लेना शुरु किया है। सूत्रों का दावा है कि इस काम में करोड़ों रुपए की हेराफेरी की जाती है और यह सब संचालक के मिलीभगत से होता है। बताया जाता है कि इस बार भी गरीबों को जाल बांटने के लिए शासन ने लंबी चौड़ी अनुदान राशि स्वीकृत की है। इसी के तहत सभी जिलों में मछुआरों को जाल वितरित करना है और इसके लिए मत्स्य पालन विभाग ने पिछले दिनों निविदा का प्रकाशन किया।
बताया जाता है कि सालों से अपना मोनोपल्ली चलाने वाले भी निविदा के लिए पहुंचे लेकिन अचानक मुरैना की एक पार्टी के आगमन ने उनके होश तो उड़ाये ही वे निविदा प्रक्रिया में भाग नहीं लिए। हालांकि चर्चा इस बात की भी है कि निविदा प्रक्रिया से हटने मुरैना की पार्टी 5 लाख का ऑफर भी दिया गया। इसके बाद भी जब मुरैना वाले ने निविदा भरा तो ये लोग बगैर निविदा डाले लौट आए। दरअसल मनमाने कमीशनखोरी के चक्कर में बाजार दर से कई गुना यादा में जाल या नाव सप्लाई की जाती है ऐसे में किसी अनजान पार्टी की मौजूदगी से काम नहीं मिलने का स्पष्ट संकेत था।
बताया जाता है कि नियमानुसार निविदा प्रक्रिया में एक से यादा फर्म होनी चाहिए इसलिए मुरैना के फर्म के अलावा किसी ने जब हिस्सा नहीं लिया तो निविदा निरस्त हो गई। सूत्रों के मुताबिक पुन: निविदा निकाली गई लेकिन षड़यंत्रपूर्वक इसमें दो साल शासकीय सप्लाई सहित कुछ ऐसी शर्ते जोड़ दी गई जिससे मुरैना का फर्म हिस्सा न ले सके। इसकी जानकारी होने पर मुरैना के फर्म ने सचिव डी.एस. मिश्रा से शिकायत की तब दो साल की जगह एक साल शासकीय सप्लाई जोड़ दिया गया।
बताया जाता है कि पिछले सालों में नाव व जाल की सप्लाई में घटिया सामग्री का उपयोग होने से हितग्राही परेशान है और शिकायत करने वालों से कह दिया गया है कि मुफ्त में मिल रही सामग्री की शिकायत की गई तो अगली दफे यह भी नहीं मिलेगा इसलिए शिकायत करने से लोग डरते हैं। वैसे अब तक सलूजा मार्केटिंग रायपुर, फिशरमेन इटारसी और कुमार बनारस की फर्मे ही हिस्सा लेती रही है। इधर यह भी चर्चा है कि मार्केट दर से अधिक कीमत पर माल सप्लाई के एवज में सचिव से लेकर मंडी स्तर तक कमीशन पहुंचाई जाती है। इस मामले में विभागीय मंत्री चंद्रशेखर साहू से संपर्क की कोशिश की गई लेकिन उपलब्ध नहीं थे।

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