शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

नव-वर्ष की शुभकामनाए

  आज संकल्प लेना ही होगा की हम चुप नहीं रहेंगे चाहे इसके लिए हमें कोई सी भी क़ुरबानी देनी पड़े क्योकि हमारी ख़ामोशी से गलत प्रोत्साहित होता है और सही हतोत्साहित होता है . हमारी चुप्पी तोड़ने का मतलब हमारी और हमरी आने वाली पीडी को सुख दिलाना है जरा सोचिये यदि हमारे सेनानी चुप होते तो?

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

बैकुंठ पुर के सी एम् ओ के ७ ठिकानो पर छापा

इ ओ डब्ल्यू ने आज बैकुंठपुर के सी ऍम ओ डॉ गंभीर सिंह ठाकुर के सात ठिकानो पर छापे की कारवाई में ४ करोड़ से अधिक की अनुपातहीन संम्पत्ति का खुलासा हुआ है.

मंगलवार, 28 दिसंबर 2010

स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान

स्थापना दिवस पर कांग्रसियों ने स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान किया






स्वदेशी मेला

रायपुर के शंकर नगर स्थित बी टी आई मैदान में स्वदेशी मेला चल रहा है यह ३१ दिसम्बर तक चलेगा  

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

आजीवन कारावास

रायपुर   कोर्ट   नेनारायण  सान्याल  , विनायक  सेन  व्  पियूष  गुहा  को  नक्सालियों   के  साथ  सम्दंध  रखने  के  आरोप   में  देशद्रोह  करार  देते  हुए  आजीवन  कारावास  की  सजा  सुनाई  है   






बुधवार, 22 दिसंबर 2010

बाजारवाद से मंडी बनता मीडिया

क  2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जिस तरह से मीडिया जगत पर कालिख पुती है वह मालिकों के लिए नया सबक हो लेकिन पत्रकारों के लिए किसी शर्मिन्दगी से कम नहीं है। विज्ञापन के नाम पर खबरें बेचे जाने की सोच ने इस चौथे स्तंभ पर बाजारवाद के बढ़ते प्रभाव को खतरनाक स्थिति पर लाने लगा है। खासकर अब तक अछूते रहे प्रिंट मीडिया पर जिस तरह से बाजारवाद हावी होने लगा है वह पत्रकारिता गरिमा को खंडित करने वाला है। कभी अखबार निकालना एक मिशन हुआ करता था लेकिन मालिकों के पैसे की भूख ने मीडिया को मंडी और रंडी तक कहने मजबूर कर दिया है। क्या मीडिया सिर्फ अपने ग्राहकों के लिए है जो मोटी रकम दी जाती है।
इस सवाल को यदि नहीं रोका गया तो आने वाले दिनों में उनकी गिनती भी नेता और अधिकारियों के साथ होने लगेगी। यह सच है कि इस अर्थ युग में हर संस्थानों का क्षरण हुआ है लेकिन आज भी लोगों का विश्वास अखबार जगत के प्रति बना हुआ है। आज भी लोग व्यवस्था बनाए रखने में अखबार की भूमिका पर विश्वास करते हैं लोग नेता अधिकारियों के निरंकुशता के खिलाफ अखबार को ही प्रमुख हथियार मान कर अपनी बात कहने में संकोच नहीं करते हैं। लेकिन जिस तरह से 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में भास्कर ग्रुप का नाम सामने आया है वह दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं शर्मनाक भी है। इसे यहीं रोक देना चाहिए अन्यथा पत्रकारों के पास कुछ भी नहीं बचेगा। सिर्फ नौकरी और जीवन चलाने की मंशा रखने वालों के लिए किसी को कुछ नहीं कहना है लेकिन जो लोग सामाजिक जिम्मेदारी के तहत इस मिशन से जुड़े हैं वे जरुर सोचे कि वे किस तरह से किनके लिए काम कर रहे हैं।
भटनागर की माया
वैसे तो छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद आए दिन नए-नए अखबारों का प्रकाशन होने लगा है कभी अजीत जोगी के खास रहे अशोक भटनागर ने भी लोकमाया के नाम से दैनिक अखबार शुरु कर दिया है। कभी मीडियेटर के रुप में ख्याति प्राप्त अशोक भटनागर को पत्रकार नहीं मिल रहा है तो इसकी वजह उनकी अपनी ईमेज ही है।
रोजी रोटी जरूरी है...
इन दिनों राजधानी के ख्यातिनाम पत्रकार से लेकर फोटोग्राफर एक मंत्री की सेवा बजा रहे हैं। इस दौड़ में सबसे अच्छी बात यह है कि खबरों को लेकर मन मारना नहीं पड़ेगा और वेतन तो अच्छा खासा है ही साथ ही मंत्री जी के साथ रहने से खाने पीने की भी दिक्कत नहीं होगी।
रे की छुट्टी
अंग्रेजी पत्रिका सम-अप से पत्रकारिता करने की सोचने वाले आईएएस अधिकारी बी.के.एस. रे की छुट्टी हो गई है। कहा जाता है कि मंत्रालय में बैठे अफसरों के पंगे से त्रस्त कटारिया को यह फैसला करना पड़ा।
और अंत में...
आज की जनधारा के बिकने की खबर इतनी बार उड़ चुकी है कि अब इस खबर पर कोई ध्यान नहीं देता।

मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

जिनसे उम्मीद खी बनाए मजार मेरा,वही मेरे कब्र के पत्थर चुराकर ले गए!

पता नहीं शायर ने यह किस परिपेक्ष्य में कही थी लेकिन छत्तीसगढ़ का वन अमला इन दिनों इसी तरह के दौर से गुजर रहा है। दर्जनों अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के मामले लंबित पड़े हैं और सरकार भी इन्हें प्रमुख पदों पर बिठा रखी है यह अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या है। सरकार किसी की भी रहे इन अफसरों ने अपनी निजी संपत्तियों में ईजाफा कर भ्रष्टाचार का रिकार्ड बनाया है।
प्रदेश के जिन दर्जनों वन अफसरों पर लोग आयोग की जांच चल रही है उनमें से बालमुकुंद मायरिया, पीएम तिवारी, एससी रहतगांवकर, जेएससीएस राव, एनएस डुंगरियाल, जे.के. उपाध्याय, हेमंत कुमार पाण्डेय, एमडी बडग़ैय्या, अमरनाथ प्रसाद, श्रीनिवास राव, सुधीर अग्रवाल, वी.रामाराव, एस.पी. रजक, सीएस अग्रवाल, तपेश कुमार झा और गोविन्द राव ऐसे अफसर है जो लोक आयोग की जांच के घेरे में होने के बावजूद ऐसे पदों पर बैठे हैं जो प्रमुख पद माने जाते हैं। सरकार कह तो रही है कि वे ईमानदारी से काम कर रही है लेकिन भ्रष्ट अफसरों के भरोसे किस तरह से काम हो रहा होगा आसानी से समझा जा सकता है।
प्रदेश में अफसरशाही किस कदर हावी है यह वन अमलों के कारनामों से समझा जा सकता है। निरकुंश और भ्रष्टाचार में डुबे अफसरों के चलते वन विभाग में माफिया राज चल रहा है। इनकी पहुंच का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन अफसरों ने मुख्यमंत्री और वन मंत्री के क्षेत्र में भी घपलेबाजी की है वे तक न केवल नौकरी में बने हुए हैं बल्कि प्रमुख पदों पर आसीन है। क्या हम यह मान लें कि इस मामले में मुख्यमंत्री की नहीं चलती और इससे भी कोई ऊपर है जो ऐसे भ्रष्ट अफसरों को बिठाकर रखे हैं इससे सरकार की छवि बने या बिगड़े इन्हें कोई मतलब नहीं है या फिर मुख्यमंत्री व वन सचिव की इस भ्रष्टाचार में सहमति है।
छत्तीसगढ़ राज्य को बने 10 साल हो चुके हैं और इन दस सालों में अफसरशाही इस कदर हावी है कि इन लोगों ने सरकार को अपनी मुट्ठी में कर रखा है क्या यह लोकतंत्र की अंधेरगर्दी नहीं है। वन विभाग छत्तीसगढ़ राज्य की रीड़ है आधा क्षेत्र इसी विभाग के पास है जहां वन माफिया सालों से वनों की बर्बादी में लगे हैं यहां रहने वाले लोगों का जीवन स्तर सुधारने अनेक सरकारी योजनाएं भी बनी लेकिन प्राय: सभी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई। करोड़ों अरबों रुपए खर्च किए गए लेकिन इनमें से अधिकांश रुपए अफसरों के जेबों में चला गया। आम लोगों ने इस बीच कई सरकार बदली और विधायक भी बदले गए लेकिन जिसने भी कुर्सी पाई उन्हीं लोगों ने चंद सिक्कों के लालच में ऐसे भ्रष्ट अफसरों को पनाह देने का काम किया क्या यब सब किसी अंधेरगर्दी से कम है।

सोमवार, 20 दिसंबर 2010

दस साल बाद भी भयावह स्थिति...

छत्तीसगढ़ राज्य को बने दस साल हो गए इनमें से अधिकांश समय भाजपा की सरकार रही है। दस साल में विकास के ढिंढोरे पीटे जा रहे हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या वास्तव में छत्तीसगढ़ का समुचित विकास हुआ है। या फिर सिर्फ शहरी क्षेत्र में ही विकास को विकास मान ले। क्या रमन सरकार के पास इस बात का जवाब है कि उसने अपने सात साल के शासन में कितने गांवों को साफ पीने का पानी मुहैया कराया है या फिर ऐसे कितने गांव है जहां के हर खेत को सिंचाई का पानी मिल रहा है। कितने गांव है जहां स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराई गई है। या फिर सर्वसुविधायुक्त बसाहट की गई है। छत्तीसगढ़ के गांवों की हालत बदतर है। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत बदतर है लोग मलेरिया से मर रहे है। मृतकों की संख्या सैकड़ों-हजारों पहुंच रही है लेकिन सरकार का इस ओर जरा भी ध्यान नहीं है। शहर में रहने वालों को हर तरह की सुविधाएं मुहैया है लेकिन गांव के लोगों को पीने का साफ पानी तक सरकार मुहैया नहीं करा पा रही है। मुख्यमंत्री के जिले के गांवों तक की हालत बदतर है। छोटी-छोटी बीमारी के ईलाज के लिए लोगों को कई किलोमीटर चल कर आना पड़ता है। अभियान या शिविर के नाम पर सिर्फ भ्रष्टाचार और खानापूर्ति की जा रही है।
खेती जमीन का रकबा लगातार घट रहा है। ग्रामीण आबादी सुविधा के अभाव में शहर की ओर कूच कर रहे हैं जिनकी वजह से शहर भी अव्यवस्थित होने लगा है लेकिन सरकार के पास गांवों के सुनियोजित विकास की न तो कोई सोच है और न ही कोई फार्मूला ही है। ऐसे में कोई सरकार विकास का दंभ कैसे भर सकती है। राजधानी से लगे गांवों तक की हालत खराब है उल्टे सडक़ों से गांवों को जोडक़र शोषण के रास्ते खोले जा रहे हैं यही नहीं आम लोगों को सुविधा उपलब्ध कराने की बजाय मुफ्त के बंदरबांट कर ग्रामीणोंं का आक्रोश शांत करने की सरकारी योजनाएं अंग्रेजों के फूट डालो राज करों की नीति से भी भयावह है? क्या क्षेत्रीय विधायकों को यह नहीं लगता कि उनके गांव वाले भी नलो से साफ पानी पिए, घरों में लेट्रिंग-बाथरुम हो और हर खेत में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। यदि गांव वाले इस मांग पर अड़ जाए तो क्या होगा। आजादी के 6 दशक बीत चुके है लेकिन गांव वालों को सुविधा के नाम पर जिस तरह से लालीपॉप पकड़ाया जा रहा है। क्या अब ग्रामीण विकास के लिए नई आजादी की लड़ाई की जरूरत नहीं है। आश्चर्य का विषय तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों से चुनकर आने वाले सांसद व विधायक भी गांवों के समुचित विकास की चिंता नहीं कर रहे हैं और दलगत राजनीति में उलझकर अपनी चिंता में ज्यादा लगे है। पैसा व पद आने के बाद शहरों में बस जाने की महत्वकांक्षा ने इन्हें निष्ठुर बना दिया है। बल्कि संवेदना शून्य कर दिया है ऐसे में गांवों को सुविधा उपलब्ध कराने क्या आंदोलन ही रास्ता बचा है।

रविवार, 19 दिसंबर 2010

लोकायुक्त के चालान के बाद भी सुब्रतो राय की चांदी

मंडी बोर्ड का भगवान ही मालिक...
जिस व्यक्ति के खिलाफ लोकायुक्त ने न्यायालय में चालान पेश कर दिया है वह कार्यपालन अभियंता सुब्रतो राय न केवल मंडी बोर्ड में प्रभारी संयुक्त संचालक के पद पर बने हुए है बल्कि उन्हें निर्माण से संबंधित आहरण का अधिकार तक दे दिया गया। यह सब छत्तीसगढ़ को लुटने की साजिश का हिस्सा नहीं तो और क्या है? कहा जाता है कि प्रभारी बनते शअरी राय ने अपने उच्चाधिकारियों को न केवल जमकर पैसे बांटे है बल्कि मंत्री तक को अंधेरे में रखा गया।
करोड़ों रुपए के बजट वाले मंडी बोर्ड में जिस तरह से भ्रष्टाचार में यहां के अधिकारी लिप्त हैं उसकी आंच अब सचिव तक भी आने लगी है। कहा जाता है कि मिल बांटकर पैसे खाने की इस रणनीति में उच्चाधिकारी तक शामिल है और पूरा मामला सुनियोजित षडय़ंत्र का हिस्सा है और इसमें प्रबंध संचालक की विशेष रुचि चर्चा का विषय है। मंडी बोर्ड में पदस्थ कार्यपालन अभियंता सुब्रतो राय के कारनामों की चर्चा तो अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से ही रही है। उनके कारनामें की चर्चा जब काफी होने लगी तो उनके खिलाफ मध्यप्रदेश में लोकायुक्त ने न केवल छापे की कार्रवाई की बल्कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगाए गए।
सूत्रों का कहना है कि लोकायुक्त की कार्रवाई के चलते ही सुब्रतो राय ने राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ का रुख कर लिया और वे यहा अपने कारनामें दिखाना भी शुरु कर दिया चूंकि सुब्रतो राय के खिलाफ लोकायुक्त ने गंभीर आरोप लगाए हैं इसलिए प्रारंभ में तो उनसे दूरी बनी रही लेकिन अपने कार्यशैली से शीघ्र ही वे अधिकारियों के चहेते बन प्रमुख पदों पर जा बैठें। इधर मध्यप्रदेश लोकायुक्त ने सुब्रतो राय के खिलाफ जुलाई 2009 में न्यायालय में चालान प्रस्तुत किया तो वे फिर चर्चा में आ गए। चूंकि मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ सिविल सेवा वर्गीकरण तथा नियंत्रण अपील नियम 1966 के नियम 9 (1) बी के प्रथम परंतुक के अनुसार शासकीय सेवक के विरुद्ध दंडित अपराध में चालान प्रस्तुत किए जाने पर संबंधित कर्मचारी को निलंबित किया जाना अनिवार्य है इसलिए सुब्रतो राय को निलंबित किया गया। बताया जाता है कि इधर निलंबित सुब्रतो राय पद पाने छटपटाने लगे और उन्होंने अपने निलंबन की कार्रवाई पर पुर्नविचार करने अधिकारियों को पत्र लिखकर कहा कि चूंकि वे छत्तीसगढ़ में नौकरी कर रहे हैं चूंकि उनका प्रकरण छत्तीसगढ़ राज्य से संबंधित नहीं है।
इधर सुब्रतो राय के पत्र पाते ही जिस तेजी से उन्हें बहाल किया गया उससे अनेक संदेहों को जन्म देता है। बताया जाता है कि 6-7 माह के भीतर ही सुब्रतो राय को न केवल बहाल कर दिया गया बल्कि उन्हें प्रभआरी संयुक्त संचालक भी बना दिया गया। बताया जाता है कि प्रभारी संयुक्त संचालक बनाने के बाद प्रबध संचालक मंडी बोर्ड ने उन्हें निर्माण संबंधित आहरण वितरण तक का काम सौंप दिया गया जबकि सुब्रतो राय पर पहले ही आर्थिक अनियमितता का आरोप लग चुका है। हमारे भरोसेमंद सूत्रों के मुताबिक मंडी बोर्ड के अधिकारियों व सचिव स्तर पर यह सारी कार्रवाई बड़े ही गोपनीय तरीके से की गई ताकि मंत्री को इसकी हवा न लगे।
छत्तीसगढ़ में किस कदर अफसरशाही हावी है और भ्रष्ट लोगों को किस तरह से जिम्मेदारी भरे पदों पर बिठाया जा रहा है यह आश्चर्यजनक ही नहीं दुर्भाग्यपूर्ण है। सूत्रों के मुताबिक सुब्रतो राय के व्यवहार को लेकर भी कर्मचारियों व अधिकारियों में जबरदस्त रोष है और इसकी शिकायत भी उच्च स्तर पर की जा चुकी है। छत्तीसगढिय़ा कर्मचारी व अधिकारियों में भी सुब्रतो राय को लेकर बेहद रोष है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक कर्मचारी ने बताया कि सुब्रतो राय की सचिव स्तर तक जबरदस्त सेटिंग है इसलिए इतनी बड़ी कार्रवाई के बाद भी उन्हें मलाईदार काम दिया गया है। बहरहाल आर्थिक अनियमितता के आरोपी सुब्रतो राय को आहरण कार्य सौंपे जाने को लेकर विभाग में ही नहीं मंत्रालय में भी जबरदस्त चर्चा है और लोग तो राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट की चर्चा करने लगे हैं।

नीना सिंह की दबंगई या भाजपाई दादागिरी

 मामूली अपराध पर मान मालिकों को अपराधी बना देने वाली छत्तीसगढ़ पुलिस ने किस कदर भाजपा नेत्री नीना सिंह की कंपनी के द्वारा की गई डकैती के बाद अपनी दुम दबा ली यह इन दिनों चर्चा में है। बारुद जैसे संवेदनशील मामले में पुलिस ने जिस तरह से कार्यवाही की उससे भाजपा नेत्री नीना सिंह की दबंगई साफ झलक रही है यही नहीं इस मामले में शिकायतकर्ताओं के आगे जिस तरह से राजधानी की पुलिस गिड़गिड़ाते नजर आई वह भाजपाई सत्ता के लिए भी शर्मसार कर देने वाली है।
वैसे तो सत्ता के दबाव में पुलिस अनदेखी की कहानी नई नहीं है लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से यह मामला अति संवेदनशील होने के बाद भी जिस तरह से पुलिस ने कार्रवाई की वह आम लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने जैसा है। बारुद पैकेनिंग फैक्ट्री में डकैती करने वाले रंगे हाथ पकड़े जाते है लेकिन डकैती के सूत्रधारों के खिलाफ शिकायत के बाद भी जुर्म दर्ज नहीं किया जाता।
दरअसल घटना उरला स्थित एक बारुद पैकेजिंग बाक्स निर्माता फैक्ट्री में लूट व डकैती की है। एक्सप्लो पैक नामक इस कंपनी में 11 अक्टूबर को नवभारत एक्सप्लोजिव्ह फैक्ट्री के कर्मचारी पहुंचकर ताला तोड़ते
है और पैकेजिंग बाक्स लूट लेते हैं मौके पर इसका खुलासा होते ही पुलिस पहुंचती है और मौके पर ही पुलिस ने वाहन सहित लगभग आधा दर्जन लोगों को गिरफ्तार कर वाहन में लोड किए गए लगभग 3250 नग पैकेजिंग बाक्स जब्त करती है।
पुलिस ने इस मामले में इतनी तत्परता दिखाई कि सात दिन में ही जांच कर कोर्ट में चालान पेश कर दिया और बगैर पीसीआर के आरोपी कोर्ट से जमानत पर छूट गए। इतना ही नहीं पुलिस ने मौके से जब्त किए मेटाडोर क्रमांक सीजी 04 जे 9805 को भी सुपुर्दनामे में दे दिया और इतने महत्वपूर्ण पैकेनिंग बाक्स को खुले में उतार दिया। जबकि सामान्यत: जब तब सामान की सुपुर्दनामा नहीं होता वाहन नहीं छोड़े जाते। पुलिस की हड़बड़ी की एक मात्र वजह राजिम क्षेत्र से भाजपा की टिकिट पर चुनाव लड़ चुकी नीना सिंह को बताया जा रहा है क्योंकि नवभारत एक्सप्लोजिव का नीना सिंह पूर्णकालीक संचालक है।
इस संबंध में पैकेनिंग बाक्स फैक्ट्री मालिक सुनील सरावगी ने कहा कि छत्तीसगढ़ पुलिस के हरेक अधिकारियों से वे मिल चुके हैं लेकिन राजनैतिक दबाव के चलते कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने इस मामले में नवभारत एक्सप्लोजिव के संचालक विजय कुमार सिंह, विशाल सिंह, डॉ. नीना सिंह, गीता सिंह पर भी डकैती की साजिश रचने का आरोप लगाते हुए जुर्म पंजीबद्ध करने की मांग की। सुनील सरावगी ने कहा कि भारी राजनैतिक दबाव में छत्तीसगढ़ पुलिस ने जिस तरह से इस संवेदनशील मामले की अनदेखी की है वह न केवल आश्चर्यजनक है बल्कि पुलिस ने जानबूझकर आरोपियों को बचाने का कार्य किया। यही नहीं डकैती के इस मामले में पुलिस ने चोरी का अपराध पंजीबद्ध किया यह भी आश्चर्यजनक है।
नागपुर के इस शिकायकर्ता ने साफ कहा कि छत्तीसगढ़ राज्य पहले से ही नक्सली समस्या से ग्रस्त है इसके बाद भी पुलिस ने विस्फोटक पैकेनिंग बाक्स में लूटमार की घटना को गंभीरता से नहीं लिया जबकि बारुद बगैर पैकेजिंग के नहीं भेजा जा सकता और एनएफसीएल और एनईसीएल क्यों यह सामान लूटना चाहता था और उनकी मंशा क्या थी। उन्होंने यह भी कहा की पुलिस को जांच करनी चाहिए कि लूटमार की इस घटना को राष्ट्रविरोध या अनैतिक कर्म के लिए प्रयोग तो नहीं किया जा रहा था। बहरहाल सुनील सरावगी ने फैक्ट्री में हुई लूटमार को लेकर पुलिस के रवैये से हैरान होकर कोर्ट में जाने की बात कही। वहीं हमने भी नवभारत एक्सप्लोनिव के संचालकों से संपर्क की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं हुए।

शनिवार, 18 दिसंबर 2010

बाबूलाल की बहादुरी पर बेबस सरकार...

इसे सरकार की बेबसी कहें या बेईमानों की ताकत। आम लोगों ने आईएएस बाबूलाल अग्रवाल के कारनामों को अखबारों में खूब पढ़ा सुना है। वैसे भी सरकार पर आईएएस व आईपीएस भारी होते हैं।
राजस्व मंडल के सदस्य आईएएस बाबूलाल अग्रवाल तो सुर्खियों में तभी से थे जब वे स्वास्थ्य सचिव थे। स्वास्थ्य विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार को लेकर वे कटघरे में रहे हैं लेकिन उनके खिलाफ बोलने की हिम्मत न तो प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने दिखाई और न ही स्वास्थ्य विभाग के कारनामों पर टिप्पणी करने वाले लोग ही सामने आए। आईएएस बाबूलाल अग्रवाल तब छपने लगे जब आयकर विभाग ने छापे की कार्रवाई की छापे में अनुपातहीन संपत्ति का खुलासा हुआ और कांग्रेस सहित आम लोगों ने जब हल्ला मचाना शुरु किया तब कहीं सरकार जागी और उन्हें निलंबित किया गया। छापे में क्या कुछ मिला कहने की जरूरत नहीं है। गांव के गांव का पेन कार्ड से लेकर बैंक खाता जैसे गंभीर मामले सामने आए। लोग चिखते रहे लेकिन इतने बड़े चार सौ बीसी कांड में सरकार ने अपनी तरफ से रिपोर्ट लिखाने की जरुरत नहीं समझी। पैसा और पहुंच किस तरह सर चढक़र बोलता है यह आईएएस बाबूलाल अग्रवाल प्रकरण से आसानी से समझा जा सकता है।
बात सिर्फ निलंबित कर देने की नहीं है सरकार ने चालान पुटप यानी 90 दिन का किस बेसब्री से इंतजार किया यह भी देखने में आया। 90 दिन होते ही सरकार की बेसब्री सामने आ गई और बिना एक पल गंवाये आईएएस बाबूलाल अग्रवाल को राजस्व मंडल का सदस्य बना दिया गया। राजस्व मंडल को एक तरह से न्यायालय ही माना जाता है और न्यायालय का मतलब न्याय मंदिर होता है और ऐसी जगह में आईएएस बाबूलाल अग्रवाल का बैठना कितना उचित है यह आम लोग भी समझते हैं। सरकार किसी की भी हो पैसा और पहुंच वालों के अपने मजे हैं। यह कुछ सजा बन सके इसी उम्मीद में...।
-----

गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

स्वामी भक्ति के मायने

कहते है स्वामी भक्ति में कुत्ते से कोई मुकाबला नहीं है, वैसे कई लोग घोड़े को भी उदाहरण के रुप में प्रस्तुत करते हैं लेकिन वर्तमान में राजनैतिक दलों के नेताओं में स्वामीभक्ति की होड़ मची है। स्वामी भक्ति में लोग इतने अंधे हो गए हैं कि उनके सामने देश-धर्म और समाज तक बौना हो गया है।
हाल ही में कांग्रेस के हाईकमान के जन्मदिवस पर छत्तीसगढ़ के कांग्रेसियों ने स्वामीभक्ति की होड़ में तिरंगे के अपमान से भी परहेज नहीं किया। कांग्रेस भवन में बाकायदा ऐसा केक बनवाकर चाकू चलाया गया जो तिरंगे का प्रतिरुप था। कभी देश प्रेम में कांग्रेस का कहीं कोई मुकाबला नहीं था। कांग्रेस का निर्माण ही भारत को अंग्रेजी दास्तां से मुक्ति दिलाने की गई थी लेकिन धीरे-धीरे कांग्रेस में व्यक्तिवाद इतना हावी हो गया कि देश समाज धर्म सभी गौण हो गए। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में देश प्रेमी मौजूद नहीं है। आज भी देश के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले लोग हैं लेकिन पैसा इस कदर हावी है कि सारी बातें गौण हो जाती है।
ऐसा भी नहीं है कि कांग्रेसियों ने तिरंगे का अपमान पहली बार किया हो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मेहतर लाल साहू ने निधन पर भी इसी तरह का कृत्य किया गया था। तब पुलिस ने तत्परता दिखलाकर जुर्म दर्ज भी किया था। लेकिन इस बार प्रशासन ने कोई रूचि नहीं दिखाई उल्टे जब शहर के पुलिस कप्तान ही यह कहने लगे हो कि शिकायत मिलेगी तभी जुर्म दर्ज होगा। शर्मनाक और हास्यास्पद नहीं तो और क्या है? पुलिस की दोगलाई पहली बार उजागर नहीं हुई है। इससे पहले शहर के नामी हीरा ग्रुप के दीपावली में बांटे कार्पोरेट गिफ्ट में तो देश का नक्शा ही त्रुटिपूर्ण था तब भी शासन की ओर से कोई पहल नहीं हुई। धन बल और कुर्सी बल के आगे किस तरह से छत्तीसगढ़ का शासन बेबस है यह इस दो उदाहरण से आसानी से समझा जा सकता है। ताजा मामला तो स्वामी भक्ति की पराकाष्ठा है। ऐसा नहीं है कि स्वामी भक्ति का उदाहरण सिर्फ कांग्रेस में ही है। भाजपा में भी स्वामी भक्ति दिखाने वालों की कमी नहीं है। राजनीतिक सुचिता, सादगी की वकालत करने वाले भाजपाध्यक्ष नीतिन गडकरी के पुत्र की शादी का आयोजन लोकतंत्र में किस तरह से स्वीकार योग्य है यह तो भाजपा ही जाने लेकिन छत्तीसगढ़ की सरकार में बड़े-बड़े ओहदे में बैठे लोगों ने इस विवाह समारोह में जो स्वामी भक्ति दिखाई वह आम लोगों में शर्मनाक ढंग से चर्चा में है।
दरअसल सत्ता और धन ने राजनैति· दलों से जुड़े लोगों को इस हद तक पागल कर दिया है कि उनके लिए नैतिकता छूत हो गई है। विवादों में रहना उनके लिए शगल है और हर हाल में मीडिया में बने रहने की भूख ने अच्छे-बुरे का लिहाज ही छोड़ दिया है। प्रशासन भी इस हद तक अपनी जमीर बेचने में लगा है जैसे उसके लिए नौकरी ही सब कुछ है लेकिन जो लोग इसकी परवाह नहीं करते वे समझ लें कि इस देश के लोगों ने देर से ही सही लालू-पासवान या मुलायम-वीसी शुक्ल या अजीत जोगी तक को असहाय कर दिया है। नैतिकता अब भी है और इसकी परवाह नहीं करने वालों को धूल में मिलना ही होता है।

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

मिला मौका, मारा चौका

 छत्तीसगढ़ के अखबारों में इन दिनों जबरदस्त प्रतिस्पर्धा चल रही है। एक दूसरे से आगे नि·लने की होड़ के बीच दैनिक भास्कर और पत्रिका में जंग छिड़ चुका है। कौन आगे है यह आम जनता समझ भी रही है लेकिन एक दूसरे के खिलाफ कोई मौका नहीं छोडऩे की हठ ने पाठकों को नई खुशी दी है। दैनिक भास्कर का नाम 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में आते ही पत्रिका की बांहे खिल गई उसने भी मसालेदार खबर तैयार की और दैनिक भास्कर ग्रुप और रमेश अग्रवाल के इस तरह से कपड़े उतारे मानों वे दूध के धूले हो। पत्रिका किस तरह से दूध का धूला है यह तो वही जाने लेकिन भास्कर फिलहाल चुप है। तूफान के पूर्व की शांति।
विज्ञापन और आत्मा
पिछले दिनों कलकत्ता से आए कुछ लोगों ने प्रेस क्लब में संगोष्ठि रखी कि मीडिया ने विज्ञापन के लिए अपनी आत्मा बेच दी है। आयोजकों को उम्मीद थी कि इस बहस का असर होगा लेकिन यहां के संपादक कम खाटी नहीं है वे यह साबित करने में लगे रहे कि विज्ञापन का दबाव होता जरूर है पर इतना नहीं कि आत्मा बिक जाए।
रंगा-बिल्ला की करतूत
कहते हैं शहर का सर्वाधिक प्रसारित इस अखबर में जब से बिहारी बाबूओं ने डेरा जमाया है तब से ठेके में चले जाने की चर्चा आम हो गई है अब तो इस अखबार के रिपोर्टर तक हैरान है कि सरकार तो छोडि़ए पैसे वाले कांग्रेसियों के खिलाफ भी खबर नहीं छापी जा रही है सीधे सौदा किए जा रहे हैं।
असहायों से भी कमाई
कभी आयुर्वेद का प्रचार करते करते अखबार लाईन में आए इस मैनेजमेंट वाले का कोई जवाब नहीं है। सारा संसार अखबार में आते ही बड़े बड़ों से सेटिंग की और जब लगा कि मालिक निकालने वाले है तो अपनी दुनिया बसा ली। यहां भी वे अपनी हर·त से बाज नहीं आ रहे हैं कहते हैं अखबार का प्रभाव दिखा·र वह असहायों से कमाई की आकांक्षा पाले हुए है और इसके लिए अपनी पत्नी को हथियार बना रहे हैं।
पुसदकर का स्वदेश प्रेम
प्रेस क्लब के अध्यक्ष अनिल पुसदvर ने स्वदेश ज्वाईन कर लिया है। संपादक बन गए है और समय भी देने की कोशिश में है पर कितना दिन। आखिर वहां भी तो एत से एत बरकर है।
और अंत में...
लोग जबरदस्ती जोसेफ जी का उदाहरण देते है अब पाण्डे जी भी आ गए हैं संदर्भ ग्रंथ लेकर।

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं...

इन दिनों पूरे देश में 2जी स्पेक्ट्रम कांड को लेकर चर्चा है। साथ ही भ्रष्टाचार को लेकर हर कोई चिंतित है कि आखिर इस देश के ईमानदार लोग कहां चले गए। क्या हमारी शिक्षा प्रणाली ने आम आदमी को निहायत स्वार्थी और डरपोक बना दिया है। जहां विरोध करने का माद्दा ही खत्म हो गया है।
पिछले दिनों काफी हाउस में चर्चा के दौरान मेरे मित्र उचित शर्मा ने कहा कि आम आदमी के पास टाईम नहीं है इसलिए तो वह जनप्रतिनिधि चुनता है ताकि आप लोग सुकून से जिन्दगी जी सके। लोकतंत्र की यह सबसे अच्छी बात भी यही है लेकिन जब पूरी सरकार और जनप्रतिनिधि ही भ्रष्ट होने लगे और उसे चलन या परम्परा का नाम दे दे तो फिर आम आदमी के पास रास्ता क्या रह जाता है। लेकिन रास्ता है और इसके लिए हमें अपनी मुंह देखी चरित्र को बदलना होगा। हमारी लड़ाई इसी की है कि आखिर सरकार शराब क्यों बेचे। और धर्म गुरु आम लोगों को समझाईश देने की बजाय उस सरकार का बहिष्कार करे तो ऐसे कृत्य कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में शराब की गंगा बह रही है यह बात सरकार में बैठे पक्ष-विपक्ष सभी लोग जानते हैं। आंकड़े बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में दुर्घटना से मरने वालों की संख्या या अपाहिज होने वाले प्रकरणों पर गौर करें तो 80 से 90 फीसदी मामलों में शराब सामने आ रही है इसी तरह घरेलू हिंसा से लेकर लूटपाट और हत्या जैसे मामले भी शराब की वजह से ही बढ़े हैं इसके बाद भी सरकार राजस्व की दुहाई देकर जगह-जगह शराब बेच रही है। सरकार का सबसे हास्यास्पद पक्ष यह है कि वह गुजरात के शराब बंदी को असफल कहती है और तस्करी की बात कहकर पूर्णत: शराबबंदी के खिलाफ खड़ा होती है लेकिन क्या यह पूरा सच है। नहीं। गुजरात में शराब तस्करी होती जरूर है लेकिन इस तरह की शराब 10 फीसदी से ज्यादा लोग नहीं पीते और वहां के आंकड़े बताते हैं कि शराब बंदी के बाद दुर्घटना से लेकर अपराध के आंकड़ों में जबरदस्त कमी आई है।
इसी तरह भ्रष्टाचार और घोटाले में भी सरकार की भूमिका से आम लोग खुश नहीं है। गलत लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने की इस परम्परा को बंद करनी चाहिए। आरोपितों को दंडित करने की बजाय पुरस्कृत करने की वजह से ही बाबूलाल अग्रवाल जैसे लोगों के हौसले बुलंद है। इसकी भारी कीमत सरकार को चुकानी पड़ेगी। विवादास्पद अधिकारियों को महत्वपूर्ण विभाग देने की बजाय उन्हें आफिस के काम में लगा देना चाहिए या ऐसे काम जहां न वित्तीय अधिकार हो और न ही वे आदेश देने के लायक रहे।
सुप्रीमकोर्ट की भूमिका को ले·र इन दिनों राजनेताओं से लेकर अधिकारियों में हड़·म्प मचा है लेकिन छत्तीसगढ़ में दूसरी ही परम्परा चल रही है। आईपीएस और आईएएस के मक्·डज़ाल में सरकार ऐसे उलझ गई है कि लोकतंत्र की बजाय राजशाही ज्यादा नजर आने लगा है। भ्रष्टाचार में लिप्त आईएएस लोगों को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाया जा रहा है और ईमानदार अधिकारियों को प्रताडि़त किया जा रहा है। यदि इस परम्परा को बंद नहीं किया गया तो फिर ए· गांधी या चंद्रशेखर आजाद या भगत सिंह को पैदा होने से कौन रोक सकेगा। तब...

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

दोषी कौन ? मोहन या मूणत!

भ्रष्ट अधिकारियों का रौब, लोगों में आक्रोश
आयकर विभाग से लेकर आर्थिक अपराध ब्यूरों हो या अन्य जांच एजेंसियों ने जिस तरह से भ्रष्ट अधिकारियों का खुलासा किया है इसके बाद भी ये लोग पदों पर जमें है तो इसके लिए दोषी कौन है। राजधानी के दो-दो मंत्रियों के रहते भ्रष्ट अफसरों पर कार्रवाई नहीं होना, क्या साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि कहीं न कहीं इसके लिए दमदार मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और नगरीय निकाय मंत्री राजेश मूणत का संरक्षण है। निगम इंजीनियर राठौर का मामला हो या निगम के दूसरे अफसरों का। आरोपों के बाद भी ये लोग अपने पदों पर जमें हुए हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जिस तेजी से विकास होने का दावा किया जा रहा है उससे कहीं अधिक तेजी से अफसरों का व्यक्तिगत विकास अधिक हुआ है। ताजा मामला नगर निगम के इंजीनियर एम.सी. राठौर के यहां पड़े छापे से पता चलता है। आर्थिक अपराध ब्यूरों ने इस इंजीनियर के घर व ठीकानों से ढाई करोड़ से ऊपर की अनुपातहीन संपत्ति जब्त की और आश्चर्य का विषय तो यह है कि अभी तक इस इंजीनियर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि यहां दो-दो मंत्री है और वे निगम क्षेत्र से ही विधायक बनते हैं। आम लोगों में हो रही तीखी प्रतिक्रिया के बीच यह चर्चा जोरों पर है कि राठौर को कौन बचा रहा है। बृजमोहन अग्रवाल या राजेश मूणत? तेज तर्रार माने जाने वाले कमिश्नर ओपी चौधरी की इस मामले में चुप्पी रहस्यमय है। आर्थिक अपराध ब्यूरों की कार्रवाई के बाद सस्पेंड की उम्मीद तो की ही जा रही थी लेकिन सस्पेंड नहीं किए जाने पर आम प्रतिक्रिया है कि फिर इस तरह की एजेंसी का औचित्य ही क्या है।
इस बीच निगम के अन्य भ्रष्ट अधिकारियों को भी संरक्षण देने का आरोप मंत्रीद्वय पर लगाया जा रहा है। बताया जाता है कि बेक होल लोडर सप्लाई मामले में भी निगम के एक अफसर की भूमिका संदिग्ध रही है और यही वजह है कि इस अफसर को बचाने मामले की लीपीपोती की जा रही है। बताया जाता है कि अवैध काम्प्लेक्सों से लेकर अवैध निर्माण में निगम के कई अफसरों की सीधे जिम्मेदारी की शिकायत पर भी कार्रवाई नहीं होगा। क्या संरक्षण के दावों को झुठलाया जा सकता है। बहरहाल भ्रष्ट अफसरों को संरक्षण देने को लेकर जिस तरह से बृजमोहन और मूणत पर छींटे लग रहे है वे आने वाले दिनों में भाजपा के लिए नई मुसीबत ला सकता है।