गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

महंगाई पर नौटंकी


छत्तीसगढ में महंगाई को लेकर राजनेताओं की नौटंकी से आम आदमी को जितनी तकलीफ उठानी पड़ रही है उसका इन नौटंकीबाजों को अंदाजा नहीं है। धरना प्रदर्शन और बंद से भी इन नौटंकीबाजों को जब फर्क नहीं पड़ा तो वे नए-नए करतब दिखाने लगे है और सरकार तो अपनी तरफ से कोई उपाय करने की बजाय इन्हीं लोगों के साथ खड़ी हो गई है।
छत्तीसगढ़ में महंगाई को लेकर नेताओं द्वारा की जा रही कसरत उस मदारी की तरह है जो सांप और नेवले की लड़ाई दिखाने भीड़ जुटाता है और इस भीड़ में अपना मतलब साथ लेता है और बगैर लड़ाई दिखाये पैसा बटोर निकल जाता है। वास्तव में महंगाई से आम लोगों को हो रही पीड़ा से इन नेताओं का कोई सरोकार नहीं है तभी तो कांग्रेस और भाजपा एक दूसरे पर महंगाई के लिए आरोप लगा रहे हैं और आम जनता इन मदारियों का तमाशा देखने मजबूर है।
छत्तीसगढ़ में तो महंगाई के खिलाफ आंदोलन की अति हो गई है सरकार के मंत्रियों व विधायकों ने महंगाई के विरोध में विधानसभा में पहले दिन सायकल से गए और गांधी जी की प्रतिमा के सामने उपवास किया । सरकार में बैठे लोगों की इस घोषणा से महंगाई तो कम नहीं हो रही है बल्कि इस नाटकबाजी से खर्चे अलग बढ ग़ए हैं। नई सायकल के साथ-साथ यहां पहुंचने वालों की वाहनों के ईधन और पानी की बोतलों से फिजूलखर्ची हुई यह सरकार उठाये या नेता कोई फर्क नहीं पड़ता है। वास्तव में सरकार व उससे जुड़े नेताओं को महंगाई से इतनी पीड़ा है और आम लोगों की तकलीफ का इतना ही अंदाजा है तो वे बंगलों से लेकर सरकारी वाहनों में हो रही फिजूलखर्ची को रोके हम यह नहीं कहते कि वे रोज विधानसभा सायकल से ही जाएं लेकिन काफिले में जाने की बजाय सिर्फ एक सरकारी गाड़ी में ही जाए तब भी सरकारी धन की फिजूलखर्ची रुक सकेगी। भाजपा सरकार को महंगाई की इतनी चिंता है तो वह कालाबाजारी और जमाखोरी के खिलाफ बड़ी कार्रवाई भी कर सकती है। इतना ही नहीं वह अपने राय को लोगों को जिस तरफ रुपया किलों चावल दे रही है उसी तरह समस्त राशन कार्डों में प्रति यूनिट आवश्यक वस्तु उपलब्ध कराने की व्यवस्था करें और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों की संपत्ति राजसात करने जैसे कड़े कानून बनाए। इसी तरह कांग्रेस भी महंगाई को लेकर नौटंकी की बजाय कहां कहां जमाखोरी हो रही तथा भ्रष्ट अधिकारियों की करतूतों को उजागर कर सरकार की मदद करें तो यह प्रदेश के हित में होगा। बहरहाल कांग्रेस और भाजपा की नौटंकी से आम लोग दुखी हैं और नौटंकी बंद कर उनकी तकलीफ न बढ़ाएं तो बेहतर होगा।

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दलालों के जाल में बड़े अखबार

अब जमाना बदल गया है इसके साथ अखबारों की सोच में भी बदलाव हुआ है। कभी मिशन के रुप में चलने वाले इस धंधे पर अब पूरी तरह व्यवसायिकता हावी है और इस व्यवसाय को सत्ता के दलालों ने अपने कब्जे में कर लिया है।
प्रतिष्ठित अखबारों के रुप में अपनी पहचान बना चुके अखबारों में सत्ता के दलाल किस कदर हावी है इसकी कल्पना आम आदमी शायद ही कर पाए। ऐसा ही मध्यप्रदेश से प्रकाशित होने वाला एक अखबार जो छत्तीसगढ़ में स्वयं को स्थापित करने में लगा है। इस अखबार ने स्वयं को स्थापित करने पाठकों की बजाय सत्ता के एक ऐसे दलाल को अपने पाले में कर रखा है जो भाजपा के एक प्रदेश पदाधिकारी का न केवल रिश्तेदार है बल्कि भाजपाई उसे आम बोल चाल में सीएम का दत्तक पुत्र भी कहते हैं।
यह अलग बात है कि उसने इस अखबार को जमीन दिलाते-दिलाते स्वयं के लिए कौड़ी मोल में सरकारी जमीन हथिया ली। पेशे से डाक्टर इस दलाल के बारे में यह भी चर्चा है कि वह इस अखबार के परिशिष्ठ के लिए सरकार से लाखों रुपए का विज्ञापन तक दिलवाता है।
यह सिर्फ एक अखबार की कहानी है। ऐसे ही कई सत्ता के या मंत्री के दलाल रोज शाम संपादकों के कमरे में कॉफी की चुस्कियां लेते दिखाई पड़ जाएंगे।
आश्चर्य का विषय तो यह है कि स्वयं के अखबार में खबर नहीं छाप पाने वाले ये संपादक दूसरे पत्रकारों तक को दलाली करने की प्रेरणा देते नहीं शर्माते। सत्ता के दलालों के चंगुल में फंसते अखबार खबरों को किस तरह से पेश करते होंगे। समझा जा सकता है।
और अंत में...
किसानों के आंदोलन को असफल बनाने जब पूरा सरकारी तंत्र लगा हुआ था तब जनसंपर्क विभाग का एक अधिकारी सरकार के निर्देशों के विरुध्द पत्रकारों को फोन कर इसकी सफलता की कहानी सुनाने में व्यस्त था। सालों से जमें इस अधिकारी के रवैये से पत्रकार भी हैरान थे कि आखिर कुर्सी पाते ही ये सरकार के विरोधी कैसे हो गए।

छत्तीसगढ़ में अफसर राज

छत्तीसगढ़ में इन दिनों अफसर राज हावी है। सरकार में केवल अधिकारियों की चल रही है और इन्हीं अधिकारियों के सहारे कई विधायक और मंत्री भी लाखों कमा रहे हैं इसलिए जनप्रतिनिधि इन अफसरों के खिलाफ कुछ नहीं कहते। शायद यही वजह है कि आयकर विभाग के छापे के बाद कृषि सचिव बाबूलाल अग्रवाल ने सीना ठोक कर कहा कि वे ईमानदार हैं और मुख्यमंत्री भी यही कहते रहें कि आयकर के रिपोर्ट को देखने के बाद ही कार्रवाई होगी जबकि इसी दौरान मध्यप्रदेश में भी छापे की कार्रवाई हुई और वहां के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने अपने यहां के भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करने में जरा भी देर नहीं की।
छत्तीसगढ़ में अफसरों के अंधेरगर्दी का यह आलम है कि वे अपनी मनमानी पर उतर आए है। एक सचिव तो अपनी दूकान सजाने दूसरे की दुकान खाली कराने निगम पर दबाव डाल रहे हैं तो दूसरा सचिव इस्तीफा देकर सीएसईबी का चेयरमैन बनने आमदा है। कोई सचिव मौली विहार में मजे लूट रहा है तो कोई भ्रष्टाचार में गले तक उतर आया है। जिस प्रदेश के गृहमंत्री को मुख्यमंत्री के जिले के कलेक्टर और पुलिस कप्तान को दलाल व निकम्मा कहना पड़ रहा हो वहां की सरकार की व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है।
छत्तीसगढ़ में तो दर्जनभर सचिवों को पांच-पांच सौ करोड़ का आसामी माना जाने लगा है। ऐसे में बाबूलाल अग्रवाल जैसे आईएएस के यहां छापे की कार्रवाई "टिप आफ आइस बर्ग" है। मुख्यमंत्री से लेकर आधा दर्जन मंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं।राज बनने के बाद नेताओं ने जिस बेहिसाब ढंग से जमीनें खरीदी है वह अपने आप में आश्चर्यजनक है। इन जमीनों में नामी-बेनामी करने में करोड़ों रुपए की हेराफेरी हुई है।
छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार चरम पर है ऐसे में बाबूलाल अग्रवाल और उनके सीए सुनील अग्रवाल का कहना है कि उन्हें फंसाया गया है कम आश्चर्यजनक नहीं है। छापे के दौरान जब्त 220 बैंक खाते और लाकरों की चाबियां जो कहानी बयान कर रही है उसके बाद भी सरकार के मुखिया नहीं जागे तो इसे अंधेरगर्दी नहीं तो और क्या कहेंगे।
छत्तीसगढ़ का ऐसा कौन सा सरकारी विभाग नहीं हैं जहां भ्रष्टाचार की खबरें राह चलते सुनाई नहीं पड़ रही है। पर्यटन में बगैर नाम पते के किसी व्यक्ति को लाखों रुपया देना भ्रष्टाचार की हदें पार करना नहीं तो और क्या है। पर्यटन में नियुक्ति के नाम पर अधिकारियों के रिश्तेदारों की नियुक्ति के बाद भी मंत्री यह कहें कि सब कुछ ठीक है तो यह अंधेरगर्दी के सिवाय कुछ नहीं है।
यदि मुख्यमंत्री ईमानदार हैं तो उन्हें विभागों में हो रहे भ्रष्टाचार पर सीधे सचिवों व मंत्रियों पर जिम्मेदारी तय करनी चाहिए। लेकिन यहां तो भ्रष्ट लोगों को संरक्षण दिया जा रहा है। कमलू, विक्रमा जैसे दलालों द्वारा काम कराने के दावे किए जा रहे हैं। और सबसे बड़ी अंधेरगर्दी तो करोड़पतियों को कौड़ी के मोल सरकारी जमीनों को बांटना है। डॉ. कमलेश्वर अग्रवाल और डॉ. सुनील खेमका को मंडी में करोड़ों की जमीनें कौड़ी के मोल सिर्फ इसलिए दे दी जाती है क्योंकि वे भाजपा के प्रमुख पदाधिकारियों के रिश्तेदार हैं। ऐसे में अधिकारी जनप्रतिनिधियों से दबने की बजाय मनमानी करें तो क्या कहा जा सकता है।