शुक्रवार, 28 मई 2010

सरकार कहां है...

छत्तीसगढ़ के लोग इन दिनों चौतरफा मार झेल रहे है। एक समूचा इलाका आतंकवादियों से त्रस्त है तो पुलिस विभाग इस इलाके में नौकरी करना पसंद नहीं करता। राजधानी सहित छत्तीसगढ़ का शहरी क्षेत्र पानी के लिए तरस रहा है और किसानों की हालत बद से बदतर होते जा रही है।
राय बनने के बाद जिस तेजी से विकास के सपने देखे गए थे वह सपने छिन्न-भिन्न होने लगे है। सरकार के पास कोई योजना नहीं है सिवाय सरकारी खजाने को लूटने की। मंत्री से लेकर अफसरों में इस बात की होड़ मची है कि वे किस तरह से अपनी जेबें गरम करें और इससे यादा दुखद खबर और क्या हो सकती है कि प्रतिपक्ष भी पैसा कमाने में लग गया है और उनके नेता इतना पैसा कमा रहे हैं जितना वे अपने शासनकाल में नहीं कमा रहे थे।
चौतरफा बदहवास छत्तीसगढ़ में जिस तरह से सरकार के काम काज दिखलाई पड़ रहे हैं उससे आने वाले दिनों में आम लोगों को जीवन चलाना दूभर होता चला जाएगा। छत्तीसगढ़ में इन दिनों नक्सली आतंकवाद चरम पर है। बस्तर सहित नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में कत्ले आम मचा हुआ है। सैकड़ों गांव उजड़ रहे हैं और हजारों लोग शिविरों में जीने मजबूर है। इसके बाद भी राय सरकार हर घटना के बाद सिर्फ बयानबाजी करते नहीं थकती। बकौल दिग्विजय सिंह इस मामले में डा. रमन सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है। डा. रमन सिंह ने केन्द्र से जो मांगा पैसा फोर्स सब कुछ दिया गया लेकिन घटनाएँ बढ़ती जा रही है।
भले ही दिग्विजय सिंह के बयान को राजनैतिक करार दिया जाए लेकिन क्या यह सच नहीं है कि डा. रमन सिंह के सत्ता में काबिज होने के बाद से आतंकवादी घटनाओं में वृध्दि हुई है। क्या सरकार की रणनीति फेल हुई है। जिसका खामियाजा सैकड़ों गांवों के हजारों लोगों को भुगतना पड़ रहा है। अब भी समय है इस मामले में राय सरकार ठोस योजना बनाएं या फिर इसे अशांत क्षेत्र घोषित कर पुलिस व अन्य फोर्सों को अधिकार दें। मानवाधिकार की चिंता वे करते हैं जो कमजोर होते हैं। अमरीका ने अफगानिस्तान में हमले के दौरान क्या कुछ नहीं किया। सिर्फ दोषारोपण की राजनीति से काम नहीं चलेगा। यदि भाजपाई यही कहते रहें कि यह कांग्रेस के सरकारों की देन है तो इससे समस्या हल नहीं होने वाली है। यदि यह उनकी देन है तो उजड़ते गांव और बसते शिविर किसी देन है।
नक्सली अब आंदोलन नहीं आतंकवाद का रुप ले चुकी है और सरकार व उनकी पार्टी कम से कम इन्हें आतंकवाद कहना शुरु कर दें। वोटर लिस्ट के आधार पर पहचान देखी जाए और बारुदी सुरंग हटाने के उपाय ढूंढे जाने चाहिए। सिर्फ केन्द्र सरकार पर मोहताज रहना भी उचित नहीं है और यदि केन्द्र को लेकर राजनीति करनी हो तो 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करवाकर सेना का प्रस्ताव भेजें और आतंकवादियों के नेस्तानाबूत होने के बाद सत्ता में बैठ जाए। लेकिन राजनीति करने वालों को इसकी परवाह कहां है कि वे आम लोगों के हित में गद्दी छोड़ने की हिम्मद करें यही वजह है कि इस नए नवेले राय के विकास में बाधा बढ़ते ही जा रही है।

सरकार कहां है...

छत्तीसगढ़ के लोग इन दिनों चौतरफा मार झेल रहे है। एक समूचा इलाका आतंकवादियों से त्रस्त है तो पुलिस विभाग इस इलाके में नौकरी करना पसंद नहीं करता। राजधानी सहित छत्तीसगढ़ का शहरी क्षेत्र पानी के लिए तरस रहा है और किसानों की हालत बद से बदतर होते जा रही है।
राय बनने के बाद जिस तेजी से विकास के सपने देखे गए थे वह सपने छिन्न-भिन्न होने लगे है। सरकार के पास कोई योजना नहीं है सिवाय सरकारी खजाने को लूटने की। मंत्री से लेकर अफसरों में इस बात की होड़ मची है कि वे किस तरह से अपनी जेबें गरम करें और इससे यादा दुखद खबर और क्या हो सकती है कि प्रतिपक्ष भी पैसा कमाने में लग गया है और उनके नेता इतना पैसा कमा रहे हैं जितना वे अपने शासनकाल में नहीं कमा रहे थे।
चौतरफा बदहवास छत्तीसगढ़ में जिस तरह से सरकार के काम काज दिखलाई पड़ रहे हैं उससे आने वाले दिनों में आम लोगों को जीवन चलाना दूभर होता चला जाएगा। छत्तीसगढ़ में इन दिनों नक्सली आतंकवाद चरम पर है। बस्तर सहित नक्सली प्रभावित क्षेत्रों में कत्ले आम मचा हुआ है। सैकड़ों गांव उजड़ रहे हैं और हजारों लोग शिविरों में जीने मजबूर है। इसके बाद भी राय सरकार हर घटना के बाद सिर्फ बयानबाजी करते नहीं थकती। बकौल दिग्विजय सिंह इस मामले में डा. रमन सरकार पूरी तरह फेल हो चुकी है। डा. रमन सिंह ने केन्द्र से जो मांगा पैसा फोर्स सब कुछ दिया गया लेकिन घटनाएँ बढ़ती जा रही है।
भले ही दिग्विजय सिंह के बयान को राजनैतिक करार दिया जाए लेकिन क्या यह सच नहीं है कि डा. रमन सिंह के सत्ता में काबिज होने के बाद से आतंकवादी घटनाओं में वृध्दि हुई है। क्या सरकार की रणनीति फेल हुई है। जिसका खामियाजा सैकड़ों गांवों के हजारों लोगों को भुगतना पड़ रहा है। अब भी समय है इस मामले में राय सरकार ठोस योजना बनाएं या फिर इसे अशांत क्षेत्र घोषित कर पुलिस व अन्य फोर्सों को अधिकार दें। मानवाधिकार की चिंता वे करते हैं जो कमजोर होते हैं। अमरीका ने अफगानिस्तान में हमले के दौरान क्या कुछ नहीं किया। सिर्फ दोषारोपण की राजनीति से काम नहीं चलेगा। यदि भाजपाई यही कहते रहें कि यह कांग्रेस के सरकारों की देन है तो इससे समस्या हल नहीं होने वाली है। यदि यह उनकी देन है तो उजड़ते गांव और बसते शिविर किसी देन है।
नक्सली अब आंदोलन नहीं आतंकवाद का रुप ले चुकी है और सरकार व उनकी पार्टी कम से कम इन्हें आतंकवाद कहना शुरु कर दें। वोटर लिस्ट के आधार पर पहचान देखी जाए और बारुदी सुरंग हटाने के उपाय ढूंढे जाने चाहिए। सिर्फ केन्द्र सरकार पर मोहताज रहना भी उचित नहीं है और यदि केन्द्र को लेकर राजनीति करनी हो तो 6 माह के लिए राष्ट्रपति शासन लागू करवाकर सेना का प्रस्ताव भेजें और आतंकवादियों के नेस्तानाबूत होने के बाद सत्ता में बैठ जाए। लेकिन राजनीति करने वालों को इसकी परवाह कहां है कि वे आम लोगों के हित में गद्दी छोड़ने की हिम्मद करें यही वजह है कि इस नए नवेले राय के विकास में बाधा बढ़ते ही जा रही है।