शनिवार, 29 मई 2010

सजा के जिश्म न बेचे तो और क्या बेंचे,गरीब लोग हैं घर में दूकान रखते हैं

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के मायने बदलते जा रहे हैं। रोज प्रकाशित हो रहे नए-नए अखबारों की अपनी कहानी है और इन कहानियों का आखरी अध्याय सरकारी विज्ञापनों की लूट खसोट में ही समाप्त हो जाता है। इस बात को जनसंपर्क विभाग भी भली भांति जानता है इसलिए वह भी वही सब कुछ करता है जो अखबारों पर लगाम कस सके। जनसंपर्क विभाग को खुश करने में ही अखबारों का समय निकल जाता है और पत्रकारिता का मतलब अब सिर्फ सूचना तंत्र ही रह गया है। खोजी पत्रकारिता को तो जैसे सांप सूंघ गया है और सिर्फ सजावट पर ध्यान अधिक दिया जाने लगा है।
पिछले दिनों शिवनाथ बचाने की घोषणा करते हुए जब प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने फावड़ा चलाया तो अखबार वालों ने इसे इतनी प्राथमिकता दी जैसे सरकार अब पानी बचाने की कोई ठोस कार्ययोजना बना चुकी है लेकिन दुख की बात यह है कि जब डॉ. रमन पानी बचाने शिवनाथ पर फावड़ा चला रहे थे तब उसी दौरान गौरवपथ के नाम पर तेलीबांधा तालाब के पाटे जाने या मंत्री की कीमती जमीन के लिए आमापारा स्थित कारी तालाब को पाटे जाने की खबर गायब थी। जब राय नहीं बना था तब ऐसी खबरें जरूर लगती लेकिन सरकारी विज्ञापन के मोह में अखबारों को ऐसा सजाने की होड़ मची है कि मंत्री अफसर नाराज न हो। यही वजह है कि अब शहर के कई अखबारों में पत्रकारों की स्थिति विज्ञापन या प्रसार विभाग के सबसे छोटे कर्मचारियों से भी दयनीय है।
और अंत में....
एक मंत्री के विभाग में हो रहे गड़बड़ी की खबर छापने के बाद जब एक अखबार नवीस विज्ञापन लेने जनसंपर्क विभाग पहुंचा तो उसे वहां के अधिकारियों ने समझाईश देते हुए कहा कि पहले इस खबर का खंडन करों तभी विज्ञापन मिलेंगे।

क्रेशरों को छूट, खदानों में लूट , स्क्वाड को भी जाता है महिना

रायपुर जिले में खनिज से लाखों रुपए के राजस्व का चूना लगा रहे खनिज अधिकारियों ने मंजीत, शर्मा, कुलदीप जैसे लोगों के चल रहे अवैध क्रेशरों के खिलाफ कार्रवाई की बजाय उनसे अवैध वसूली कर अपनी जेबें गरम कर रहे हैं जबकि अवैध कार्यों में लिप्त लोग यह दावा करते नहीं थकते कि उनके द्वारा स्क्वाड तक को पैसा दिया जाता है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के विभाग की यह कहानी नई नहीं है। कहानी का नयापन यह है कि इसकी शिकायत मुख्यमंत्री से किए जाने के बाद भी आज तक कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। खनिज विभाग में चल रहे लूट-खसोट को लेकर रोज नई कहानी सामने आने लगी है। सालों से राजधानी में पदस्थ अफसरों के वरदहस्त ने अवैध उत्खनन और अवैध परिवहन करने वालों को इतना ताकतवार बना दिया है कि कई कर्मचारी तो कार्रवाई करने तक से डरते हैं।
हमारे भरोसेमंद सूत्रों ने बताया कि जिले में दर्जनभर से अधिक क्रेशर अवैध ढंग से संचालित है और इन अवैध क्रेशरों के एवज में अधिकारियों को बड़ी रकम भी मिलती है। हालत यह है कि अवैध क्रेशर के संचालन से हर साल सरकार को लाखों-करोड़ों रुपए के राजस्व की हानि हो रही है इसके बाद भी इन अवैध क्रेशरों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होना आश्चर्यजनक है।
बताया जाता है कि खनिज विभाग में बैठे कई अधिकारियों के संरक्षण में हो रहे अवैध उत्खनन और अवैध परिवहन से होने वाली अवैध कमाई इतनी यादा है कि ऊपर तक एक बड़ी रकम पहुंचाई जाती है इसलिए कार्रवाई नहीं हो रही है। बहरहाल खनिज विभाग के लूट खसोट की शिकायत मुख्यमंत्री से किए जाने के बाद कार्रवाई नहीं होते देख कई लोग आश्चर्यचकित हैं।