गुरुवार, 22 जुलाई 2010

गार्डन की जमीन को हड़प लेना चाहता है मंत्री का भाई


कॉलोनीवासी भयभीत, कुछ कोर्ट गए
प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री का भाई की करतूत थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। हालत यह है कि उनकी इस करतूत की शिकायत मुख्यमंत्री से भी की गई। पहले ही विवादस्पद जमीन कौड़ी के मोल खरीदने के बाद भाई की पहुंच का फायदा उठाकर जमीन खाली कराने में माहिर इस मंत्री भाई की नजर इस बार गीताजंलि नगर के गार्डन के लिए छोड़ी जमीन पर है।
छत्तीसगढ़ में वैसे तो राम नाम की लूट नई नहीं है लेकिन मंत्रियों के रिश्तेदारों में जिस तरह से सत्ता का दुरुपयोग कर अनाप-शनाप काम किए जा रहे हैं किसी से छीपा नहीं है। बताया जाता है कि जब बृजमोहन अग्रवाल गृहमंत्री थे तब उनके परिवार वालों के कारनामों की वजह से ही उन्हें गृहविभाग छोड़ना पड़ा था। इसके बाद उनके रिश्तेदारों द्वारा चोरी का लोहा ट्रक के ट्रक गायब करके हजम करने को लेकर सरकार की मुसिबत बढ ग़ई थी। कैलाश अग्रवाल व उसके दामाद दिनेश अग्रवाल पर सरकार को मजबूरी में शिकंजा कसना पड़ा था।
इधर दमदार मंत्री के भाई की नाच नचैया के साथ-साथ जमीनी कारोबार में दिलचस्पी ने नया विवाद खड़ा किया है। इस मंत्री भाई पर दादागिरी और पहुंच के बल पर समता कॉलोनी में मोहबिया वकील की जमीन कब्जा करवाने के अलावा दिल्ली के किसी डॉ. मल्होत्रा की जमीन पर कब्जा करने का आरोप भी लग चुका है। ताजा मामला गीतांजलि नगर में गार्डन के लिए छोटी गई जमीन के कब्जे को लेकर है। कहा जाता है कि इस जमीन पर बकायदा गार्डन के लिए सुरक्षित बोर्ड लगाए गए थे और पिछले हफ्ते अचानक किसी ने यह बोर्ड हटाकर इस जमीन पर कब्जे की कोशिश की। बताया जाता है कि जब कॉलोनीवासियों ने इसका विरोध किया तो उन्हें इसी दमदार मंत्री के भाई के नाम पर डराया-धमकाया गया।
इस संबंध में जब हमने डॉ. कबीर से संपर्क करना चाहा तो वे उपलब्ध नहीं हुए लेकिन कॉलोनीवासियों ने इस दमदार मंत्री के भाई की करतूत पर तीव्र नाराजगी जाहिर की दूसरी तरफ जब इस मामले में गीताजंलि सोसायटी के प्रकाश दावड़ा से संपर्क किया तब पता चला कि कब्जे को रोकने न्यायालय से स्थगनादेश लाने की तैयारी की गई है। बहरहाल दमदार मंत्री के भाई की जमीनी मामले में गुण्डागर्दी थमने का नाम नहीं ले रहा है और ऐसा ही चलता रहा तो किसी दिन सरकार को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।

शाबास! मंत्री-विधायक

मोवा के लोग ही नहीं इस रोड से गुजरने वाले भी पिछले सालभर से त्रस्त हैं। रेलवे की अपनी जिद है और प्रदेश सरकार का पीडब्ल्यूडी विभाग अपनी जिम्मेदारी से मुकर रहा है। यहां के लोग सबका चक्कर लगा चुके है। छत्तीसगढ़ की मीडिया इस मार्ग से गुजरने वालों की परेशानियां लगातार छाप रही है और सरकार तथा उसके पीडब्ल्यडी मंत्री को इससे कोई सरोकार नहीं है।
मोवा के लोग आंदोलित हैं लेकिन वे कोई ऐसा आंदोलन नहीं चाहते जिससे आम लोगों की तकलीफ बढ ज़ाए। इसके बाद भी सरकार की खामोशी को कोई क्या कहेगा। मोवा में रेलवे ओवर ब्रिज का काम चल रहा है। सालभर से चल रहे इस काम की वजह से घंटो यातायात जाम रहता है और सड़कों पर उभर आए गङ्ढों से गंभीर दुर्घटनाएं तक हो चुकी है। लोगों ने जब चीख-पुकार मचाई तो छत्तीसगढ़ सरकार ने सर्विस रोड को दुरुस्त किया। लेकिन साल भी पूरा नहीं हुआ और सड़के उखड़ गई लोग फिर अनजानी दुर्घटना के शिकार होने लगे। सर्विस रोड कितने की बनी इसके एवज में किस-किस को कमीशन मिला यह अंदाजा सहज लगाया जा सकता है। तभी तो सड़के सालभर भी नहीं चली।
लेकिन वाह रे जनता। जय हो। उसने उखड़ती सड़कों को नजर अंदाज कर पीडब्ल्यूडी मंत्री को धन्यवाद ज्ञापित कर आए। मोवा आंदोलनकारी कहते हैं कि हम पॉजेटिव्ह सोचते हैं। इसलिए हम किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहते और इसलिए वे आंदोलन को गांधीवाद तरीके से ही चलाना चाहते हैं।
इन दिनों वे लोगों को सांसद-विधायकों के नाम पोस्ट कार्ड लिखवाते घूम रहे हैं। साथ ही मांग भी कर रहे हैं कि इस प्रदेश के विधायक व मंत्री यदि विधानसभा जाते हैं तो वे वीआईपी रोड से जाने की बजाय मोवा मार्ग से जाएं। वह भी बिना वीआईपी व्यवस्था के। पता नहीं मोवा वासियों की मांग सरकार में बैठे मंत्री व विधायक मानते हैं या नहीं लेकिन पीडब्ल्यूडी विभाग के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को इस मार्ग से जरूर गुजरना चाहिए। ताकि उन्हें पता चल सके इस मार्ग में पीडब्ल्यूडी ने कितना खर्च किया है। हम किसी दूसरे की तकलीफ को किसी अन्य को महसूस करने के लिए मजबूर नहीं कर सकते। लेकिन इस बहाने सड़क निर्माण में लगे एजेंसियों की करतूत को सामने लाने की कोशिश कर रहे हैं।
बृजमोहन अग्रवाल जिस दमदारी के लिए जाने जाते हैं। क्या पूरे प्रदेश में पीडब्ल्यूडी में चल रहे कमीशनखोरी को वे रोक पाए हैं। यदि ओवरब्रिज के निर्माण में देर है तो क्या प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वे सर्विस रोड को अच्छा बना दे ताकि जनता परेशान न हो। यदि सर्विस रोड से सालभर के भीतर उखड़ गई तो जिम्मेदारी क्या इसलिए तय नहीं की जा रही है क्योंकि कमीशन मंत्रियों तक पहुंचाई जाती है। मोवावासियों का वहां से गुजरने वालों की हाय क्या सरकार को नहीं लगेगी। सालभर से किसी मार्ग से गुजरने वालों की परेशानी नहीं सुनना क्या अंधेरगर्दी नहीं है। मैं तो मोवा के आंदोलनकारियों की हिम्मत की दाद देता हूं कि वे इस अंधेरगर्दी के आलम में भी मंत्री से लेकर सभी को धन्यवाद दे गए। लेकिन अब बारी सरकार और विधायकों की है कि वे धन्यवाद के बदले विधानसभा का पूरा सत्र इस रास्ते से होकर अटेंड करें।