बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

विकास का मतलब सिर्फ अमीरों व शहरों को सुविधा...

छत्तीसगढ़ में बैठी सरकार के लिए विकास के मायने सिर्फ और सिर्फ शहरों व अमीरों को सुविधा देना रह गया है। डॉ. रमन सिंह और उसकी पूरी सरकार भले ही विकास के दावे करते रहे लेकिन गांव वालों के लिए आज भी विकास दुरह सपना बस है।
क्या सरकार बता पाएगी कि इन 7 वर्षों में सड़क पर जितने खर्च किए है उसके मुकाबले किसानों के खेतों में पानी पहुंचाने की कितनी व्यवस्था हुई है। किसान इन दिनों सरकार की करतूतों को लेकर आंदोलित है। कृषि मंत्री चंद्रशेखर साहू छत्तीसगढ़ियां व किसान होते हुए भी कुछ नहीं कर रहे हैं वे कुछ करना भी चाहे तो कुर्सी का मोह उन्हें कुछ करने नहीं दे रहा है। छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए मौत का वारंट जारी करने का दावा करने वाले किसान नेता भी अपनी ढुलमुल नीति और स्वार्थ में लगे हैं। वे सरकार को किसान विरोधी तो बताते हैं लेकिन अपने को राजनैतिक उद्देश्य से दूर रखने भाजपा के खिलाफ कुछ भी करने से अपने को अलग करते हैं। सर्वत्र स्वार्थ ने इस नए नवेले छत्तीसगढ़ को विकास से दूर कर दिया है। पेड़ के नीचे विधानसभा लगाने का दावा करने वाले नेता अब नई राजधानी के निर्माण में अरबों रुपया खर्च कर रहे हैं। अधिकाधिक सुविधा जुटाने की कोशिश में लगे नौकरशाहों के साथ मिलकर शहरी विकास की ओर अधिक ध्यान दिया जा रहा है।
लगातार जोत की जमीन कम होते जा रही है। कभी राजधानी के नाम पर तो कभी शहर और कस्बों के नाम पर या तो उद्योगों के विस्तार के लिए खेती की जमीनें किसानों से छिनी जा रही है। कौड़ियों के मोल किसानों की जमीनों को उद्योगों को दिया जा रहा है और इसे ही विकास बताये जा रहे हैं। दरअसल सीधे-साधे छत्तीसगढ़ियों के साथ जिस तरह से सरकार खेल रही है वह अत्यंत दुर्भाग्यशाली है और नए नवेले राय के विकास को सालों पीछे ढकेलने वाली है।
हमने लगातार यह जानने की कोशिश की कि आखिर ग्रामीण विकास के लिए सरकार की नीति क्या है लेकिन जितने खर्च शहरों के विस्तार और सड़कों के विस्तार पर सरकार का ध्यान है उसके मुकाबले 2 फीसदी भी सरकार की रूचि नहीं हैं। छत्तीसगढ ग़ांवों का प्रदेश है यहां की एक बड़ी आबादी गांवों पर निर्भर है ऐसे में गांवों में सुविधा नहीं देने का क्या मतलब लगाना चाहिए। यदि सरकार का दावा विकास है तो क्या उनके पास इस सवाल का जवाब है कि सिर्फ सड़कें बना देने से गांवों का विकास हो जाता है बल्कि गांवों तक सड़क बनाने का मतलब शोषण के नए रास्ते खोलना है। पानी के अभाव में किसानी से त्रस्त किसानों को रुपयों का लालच देकर जमीन खरीदने की एक बड़ी साजिश तो नहीं है? ताकि अपने घर से बेघर हो सके।
किसानों से चुनाव पूर्व किए गए 270 रुपए बोनस का वादा निभाने की बात तो दूर नलकूप खनन पर प्रतिबंध लगा दिया गया ताकि बिजली न देना पडे। चांपा-जांजगीर जैसे सिंचित क्षेत्रों की जमीनें उद्योगों को बिजली बनाने कौड़ियों के मोल दी जा रही है। ऐसे में किसानों का आंदोलन कर रहे लोगों को जिला बदर की तैयारी करते प्रशासनिक अमले क्या प्रदेश को नई दिशा देना चाहते हैं यह तो सरकार को ही बताना होगा।

फिर लुटोत्सव मनाने में लगी सरकार

मोहन की लीला निराली
छत्तीसगढ़ियों की है लाचारी
संस्कृति विभाग फिर दलाली खाने सक्रिय
 भटगांव उपचुनाव निपटते ही प्रदेश सरकार ने एक बार फिर लुटोत्सव बनाम रायोत्सव की तैयारी में करोड़ों रुपए फूंकने की योजना बना ली है। इसके लिए बाहर के कलाकारों को करोड़ों रुपए देने की योजना भी बना ली है और इस काम में प्रदेश के दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के संस्कृति विभाग ने छत्तीसगढियां विरोधी रुख को एक बार फिर कायम रखते हुए जो तैयारी की है वह घोर आपत्तिजनक मानी जा रही है।
वैसे तो रायोत्सव के नाम पर लुटोत्सव मनाने की संस्कृति विभाग की परम्परा नई नहीं है। बाहर के बड़े कलाकारों को बुलाकर दलाली खाने में एक मंत्री की भाई की सक्रियता सदैव चर्चा में रही है। इस बार भी इस मंत्री भाई ने अभी से लाखों कमाने की रणनीति बना ली है और इसी के तहत इस लुटोत्सव को भव्य बनाने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। बताया जाता है कि पिछली बार तो एक बड़े कलाकार से दलाली को लेकर मंत्री भाई की न केवल इस कलाकार से बल्कि संस्कृति आयुक्त से भी ठन चुकी है और इस भाई को बर्दाश्त नहीं कर पाने वाले ने इस बार फिर एक होकर लुटोत्सव मनाने का निर्णय लिया है।
रायोत्सव में स्थानीय कलाकारों को जिस तरह से उपेक्षित किया जाता है उसे लेकर खूब हो-हल्ला मच चुका है और कई कलाकारों ने तो संस्कृति मंत्री पर छत्तीसगढ़ियां विरोधी होने का आरोप तक लगा चुके हैं। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ में प्रतिभाओं की कमी नहीं है लेकिन इन प्रतिभाओं को जानबूझकर कम पारिश्रमिक दिया जाता है। जिन कवियों को प्रदेश के बाहर कार्यक्रम देने पर हजारों रुपए दिए जाते हैं उन्हें भी यहां पांच सौ हजार में निपटाने की कोशिश होती है जिसकी वजह से स्वाभिमानी कलाकार इस आयोजन से दूर रहते हैं। इस बार भी संस्कृति विभाग ने के.आर. रहमान से थीम सांग बनाने का निर्णय लिया है जबकि अमीर खान और अन्य बड़े स्टार कलाकारों को बुलाने की कोशिश हो रही है। इसके एवज में जमकर दलाली की कोशिश भी च रही है और इस बार यह तैयारी भी है कि झगड़े की बजाय दलाली बांट ली जाए क्योंकि पिछली बार झगड़े के चक्कर में मंत्रीजी की छिछालेदर हो चुकी है।
इधर छत्तीसगढ़ के कलाकारों ने छत्तीसगढियों की उपेक्षा का आरोप अभी से मढ़ना शुरु कर दिया है। इन कलाकारों का कहना है कि एक तरफ यहां की प्रतिभाओं का राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर पूछ-परख बढ़ी है तथा रायोत्सव जैसे कार्यक्रम में बाहरी प्रदेश के कलाकारों को बुलाने का औचित्य नहीं है। इन कलाकारों ने कहा कि यदि रायोत्सव के लिए थीम सांग बनवाना ही था तो राय सरकार स्थानीय कलाकारों से कह सकती थी जिससे इस मिट्टी की खुशबू को दूर-दूर तक ले जायी जा सकती है। उन्होंने संस्कृति विभाग के इस रुख की आलोचना करते हुए कहा कि यह सब मंत्री के इशारे पर हो रहा है ताकि छत्तीसगढ़ियों की उपेक्षा कर उन्हें हतोत्साहित किया जा सके।
कलाकारों ही नहीं कई लोगों ने चर्चा में कहा कि रायोत्सव के कार्यक्रम में केवल स्थानीय कलाकारों के कार्यक्रमों का प्रदर्शन होना चाहिए ताकि हम अपनी कला का प्रदर्शन से देश-दुनिया का ध्यान आकृष्ठ कर सके। यदि रायोत्सव जैसे कार्यक्रम में दूसरे प्रदेश के कार्यक्रम किए जाएंगे तो हमारे कलाकारों को और कब मौका मिलेगा। बहरहाल संस्कृति विभाग और संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल पर रायोत्सव बनाम लुटोत्सव को लेकर जिस तरह से छत्तीसगढियों की उपेक्षा का आरोप लग रहा है उससे आने वाले दिनों में गंभीर परिणाम आ सकते हैं।