बुधवार, 13 जून 2012

फाईलो में विकास...


छत्तीसगढ़ में इन दिनों विकास की ईबादत फाईलों में लिखी जा रही है। लगातार हर क्षेत्र में पुरस्कार पाते विभागों की असली कहानी मैदान में आते ही दम तोड़ जाती है। दशक भर पहले के हालात आज भी वैसे है यह कोई नहीं कह सकता लेकिन जिस मापदंडो को विकास का आधार बनाया गया है वह फाईलों तक सिमट कर रह गया है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी में ही दर्जनों झुग्गी बस्तियों में आज भी लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए न केवल जद्दो जहद करनी पड़ रही है। बल्कि पीने का पानी तक ठीक से उपलब्ध नहीं है। बजबजाती नालियों के उपर निस्तार कर रहे लोग नारकीय जीवन जीने मजबूर है। ग्रामीण क्षेत्रों का हाल तो और भी बुरा है पानी, शिक्षा व चिकित्सा सुविधा के अभाव में कितनी ही जिंदगी काल के गाल में समा रही है। सबसे दुखद स्थिति तो नक्सली प्र्रभावित क्षेत्रों का है जहां कुपोषण का कहर आज भी जारी है। कानून व्यवस्था की बिगड़ती हालत ने शहरी जीवन को ही नहीं ग्रामीण जीवन को भी अपनी चपेट में ले रखा है। लूट-डकैती चोरी, बलात्कार और यहां तक की हत्या के वारदातों पर भी ईजाफा हुआ है।
राज्य बनने के बाद जिस तरह से यहां माफिया राज हावी हुआ है उसके चलते विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है खासकर खनिज संपदा, को जिस तरह से लूटा जा रहा है और जंगलों की बैधड़क कटाई हो रही है वह आने वाले दिनों में गंभीर खते का संकेत है।
आज 21वीं सदी में भी हम गांवो में चिकित्सा सुविधा नहीं दे पा रहे है जिससे असमय काल के गाल में पहुंचने वालों की संख्या बढ़ी है। मोतियाबिंद के ईलाज के नाम पर जिस तरह की लापरवाही हुई और उसके बाद डॉक्टरों को बचाने का जो खेल हुआ वह किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मनाक है। शिक्षा की आड़ में निजी स्कूलों को बढ़ावा देकर जिस तरह से आम लोगों की जेब काटी जा रही है। वह भी दुर्भाग्य पूर्ण है। सरकार स्कूलों को जानबुझकर कमजोर करने की वजह से यह स्थिति बनी है और हम विकास की ईबादत लिख रहे हैं?
 

सोमवार, 11 जून 2012

भाजपा में दबाव की राजनीति...


एक पुरानी कहावत है कि यदि हाथी कुंए में गिर जाता है तो उसे मेढ़क भी लात मारते हैं। कमोवेश भाजपा में यही स्थिति बन गई है। कमजोर नेतृत्व ने महत्वकांक्षियों को सिर उठाने का जो मौका दिया है वह न तो थमने का नाम ले रहा है और न ही उसे कोई रोक ही पा रहा है। इस वजह से भाजपा की न केवल थू-थू होने लगी है कार्यकर्ताओं में भी निराशा घर करने लगी है।
केन्द्र की सरकार जिस तरह से भ्रष्टाचार और मंहगाई के मुद्दे पर घिरी है उसकेे बाद इसे भुनाने का भाजपा के पास अच्छा मौका था लेकिन वह अपने ही जाल में उलझ कर रह गई है। घीरे हुए अध्यक्ष के नकारापन ने जहां महत्वकांशी नेताओं को सिर उठाने का मौका दिया है वह सत्ता के दम पर पैसा कमाने वालों ने लोकतंत्र की खाल से जूते बनाने का खेल शुरू कर दिया है।
जिस असहाय स्थिति से आज भाजपा गुजर रही है वैसा तो दो सीट में सिमटने के दौरान भी नहीं हुआ। पैसों की ताकत से नेतृत्व को गरियाने का जो खेल भाजपा में शुरु हुआ है वह थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। यदिरप्पा, वसुंधरा के बाद नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह से नेतृत्व को अपने जूतों तले रौंदा है वह आने वाले दिनों में दूसरे नेताओं के लिए सबक बन जाये तो आश्चर्य नहीं है। मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ में डॉ.रमन सिंह भी अपनी चला रहा है। कार्यकर्ता नाराज है। भ्रष्टाचार के आंकठ में डूबी सरकार के खिलाफ बोलने वालों को आंख दिखाने का खेल बंद नहीं किया गया तो सत्ता और पैसे की ताकत पाटी पर भारी पड़ सकती है।
छत्तीसगढ़ में तो डॉ. रमन सिंह पर ही कोयले की कालिख लगी है और हाल ही में उसके करीबी प्रदीप गांधी, कमलेश्वर अग्रवाल से लेकर न जाने कितने लोगों के कारनामों की चर्चा आम लोगों की जुबान पर चढऩे लगा है ऐसे में नेतृत्व की एक अनदेखी पाटी पर भारी पड़ सकती है।

रविवार, 10 जून 2012

डिंपल की जीत...


उत्तर प्रदेश में कन्नौज की सीट पर डिम्पल यादव की निर्विरोध जीत को लोकतंत्र का काला दिन कहा जाये तो गलत नहीं होगा। डिम्पल यादव के निर्विरोध के पीछे का सच पूरा देश देखता रहा। तमाम राजनैतिक दलों को जिस तरह से सपा सरकार ने घुटने टेकने मजबूर किया यह डिंपल के लिए भले ही ऐतिहासिक क्षण हो पर इसे देश के लिए गंभीर खतरा माना जाना चाहिए। आज डिंपल के लिए राजनैतिक दलों ने घुटने टेके कल किसी और के दबंगई के आगे घुटने टेकने पड़ेंगे। वैसे भी लोकतंत्र के मंदिर में अपनी ताकत के बल पर पहुंचने वालों की कमी नहीं है लेकिन डिंपल का पहुंचना कुछ अलग ही मायने रखता है।
यूपी में सत्ता संभालने जिस तरह की खबरें आ रही है वह कतई ठीक नहीं है। सपा की दादागिरी चरम पर है और इस दादागिरी के बीच बाकी सबका मैदान छोडऩे का अर्थ क्या निकाला जाना चाहिए।
हम यहां निर्विरोध निर्वाचन के अलावा डिम्पल के लोकसभा तक पहुंचने के गलत तरीके के अलावा मुलायम सिंह के उस बयान पर भी चर्चा करना चाहेंगे कि लोकसभा में महिला बिल पेश करते समय मुलायम सिंह ने क्या कुछ नहीं कहा था। महिला बिल का पुरजारे विरोध करते समय मुलायम सिंह ने औरतो की नुमाईस और सीटी बजाने तक की बात कहीं थी लेकिन जब कन्नौज उपचुनाव में उन्होंने अपनी बहु डिम्पल यादव को टिकिट दी तब यह सवाल भी उठना लाजिमी है कि क्या महिला आरक्षण के मुद्दे को लेकर दो तरह की सोच रखने वाले मुलायम सिंह अब किस मुंह से कहेंगे कि लोकसभा में सिटिंया बजेंगी?
राजनीति के पल-पल बदलते तेवर के बीच जिस तरह स बसपा कांग्रेस और भाजपा ने कन्नौज में किया है उसका खामियाजा उसे भुगतना होगा?

शुक्रवार, 8 जून 2012

भू अधिग्रहण...


विकास की ओर अग्रसर छत्तीसगढ़ में इन दिनों खेती की जमीनों को लेकर लोगों का गुस्सा फूटने लगा है। नई राजधानी क्षेत्र के किसानों का गुस्सा चरम पर है और सरकार की ठोस नीति के अभाव में किसानों के सामने मरने-मारने की स्थिति निर्मित हो गई है। नई राजधानी के निर्माण को लेकर जिस तरह से भू अधिग्रहण करने में सरकार ने पक्षपातपूर्ण नीति अपनाई है उससे किसान नाराज है।
रमन राज में खेती की जमीन की बर्बादी पर अब लोग खुलकर बोलने लगे हैं कृषि मंत्री चंद्र्रशेखर साहू ने पांच-छाह माह पहले ही कह दिया था कि अब खेती की जमीनों का अधिग्रहण को लेकर कड़े कानून बनाये जायेंगे। वैसे तो पूरे देश में खेती की जमीनों की बरबादी को लेकर सवाल उठने लगे है। भू अधिग्रहण कानून बनाने की मांग हो रही है और इसे लेकर केन्द्र सरकार भी नये कानून ला रही है।
सवाल यह है कि आखिर विकास कैसे और कहां होना चाहिए? हमने छत्तीसगढ़ में निर्माणाधीन नई राजधानी को लेकर पहले ही कह दिया है कि इसकी जरूरत क्या है? राज्य निर्माण की मांग के दौरान पेड़ के नीचे विधानसभा लगाने की बात कहने वाले नेता अब नई राजधानी के नाम पर करोड़ों-अरबों फूंके जाने पर खामोश है। किसानों के सामने  घर-बार छोडऩे की पीड़ा को कोई समझने तैयार नहीं है।
छत्तीसगढ़ में आज भी गांवो में पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा ठीक से नहीं है। मूलभूत सुविधाओं के अभाव में लोग नारकीय जीवन जीने मजबूर है और दूसरी तरफ नई राजधानी के नाम पर अरबों रूपयें खर्च किये जा रहे है। नई राजधानी की भव्यता के किस्से गढ़े जा रहे है और लोगों के सामने जीवन जीने के लाले पड़े है।
विकास होनी चाहिए लेकिन क्या इसके लिए खेती की जमीने बरबाद करनी जरूरी है? क्या जनप्रतिनिधि व अफसरों के लिए एयर कंडीशन व भव्य बंगले पर ही करोड़ों खर्च होने चाहिए।
नई राजधानी के नाम पर चल रहे तमाशे से किसानों में रोष है और इसके लिए सरकार को पक्षपात पूर्ण रवैैया छोड़कर नये सिरे से नीति बनाना चाहिए अन्यथा यह आक्रोश सरकार के लिए मुसिबत बन सकता है।

गुरुवार, 7 जून 2012

क्यों मांगे माफी...


सत्यमेव जयते के एक एपिसोड में अमीर खान ने डॉक्टरों की जब पोल खोलना शुरू किया तो इंडियन मेडिकल एसोसियेशन को बहुत बुरा लगा और अब वे अमीर खान से माफी मांगने सड़क पर उतरने आमदा है।
ये सच है कि आज भी डॉक्टरों का एक बड़ा वर्ग न केवल इस पेशे को सेवा मानता है बल्कि जनता की नजर में भी डॉक्टरों की एक ईज्जत है। लेकिन पिछले कुछ सालों में डॉक्टरों ने जिस तरह से इस पेशे की आड़ में अस्पतालों को स्लाटर हाऊस और स्वयं को यमराज के एजेंट के रूप में स्थापित करना शुरू किया है उससे आम लोग त्रस्त है। छत्तीसगढ़ में ही डॉक्टरों की लूट किसी से छिपी नहीं है। हम इस पेशे में भूल वश पेट में कैची छूट जाने वाली घटनाओं की बात नहीं कर रहे है हम तो दवाई से लेकर ईलाज में मची लूट खसोट की बात कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में ही शासन से अनुदान लेने वाले अस्पतालों की कमी नहीं है राजधानी में ही आधा दर्र्जन से अधिक अस्पताल सरकार से अनुदान ले रही है लेकिन इन्हीं अस्पतालों में पैसों के लिए लाश रोक देने की घटना सामने आते रही है। क्या डॉक्टर दवा कंपनियों के आगे बिक नहीं गए है। जो दवा कंपनी ज्यादा कमीशन देता है उसकी दवाईयां क्या नहीं लिखी जा रही है भले ही उससे सस्ती दवाईयां बाजार में उपलब्ध हो। अब तो जांच में भी कमीशन तय है और मरीज व उनके परिजनों को जरूरत नहीं होने पर भी जांच के लिए न केवल दबाव डाला जाता है बल्कि इतना डराया जाता है कि वे मजबूर होकर जांच कराते हैं।
यह ठीक है कि राजधानी में चिकित्सा सुविधा  बढ़ी है लेकिन क्या यहां के डॉक्टर उतने ही निष्ठुर नहीं है? क्या पैसे के एवज में वे मानवता को किनारे नहीं रखते। गरीबों को अस्पताल में फटकने तक नहीं देने के किस्से आम है और दवा कंपनियों से पैकेज डील करने में वे इतने माहिर है कि बेशर्मी की सारी सीमाएं लांघ दी जाती है।
सत्यमेव जयते के जिस एपीसोड के लिए इंडियन मेडिकल एसोसियेशन आगबबुला हुआ है इस एपीसोड से आम आदमी खुश है एसोसियेशन को चाहिए कि वे ऐसे डॉक्टरों व दवा कंपनियों के खिलाफ कड़ा रूख अपनायें।

बुधवार, 6 जून 2012

अफसरों की मनमानी...



जिला पंचायत की सामान्य सभा की बैठक से दूसरी बार अफसर नदारत रहे और जनप्रतिनिधियों को धरने पर बैठना पड़ा। यह रमन राज में जारी अफसरशाही का एक ऐसा नमूना है जो कभी देखने को नहीं मिलेगा। जिला पंचायत में भाजपा का कब्जा है। अध्यक्ष भाजपा की है और प्रदेश में सरकार भी भाजपा की है इसके बावजूद भाजपा के जनप्र्रतिनिधियों को धरना में बैठना पड़े तो इससे दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक बात क्या हो सकती है।
ऐसा नहीं है कि जिला पंचायत के सीईओ श्रीमती शम्मी आबादी ने ऐसा पहली बार किया है पहले भी वह बैठक में नहीं पहुंची थी तब अन्य अधिकारियों के हस्तक्षेप के बाद मामला सुलझा लिया गया था लेकिन कल भी जब यही रवैया रहा तो अध्यक्ष लक्ष्मी वर्मा को धरने पर बैठना पड़ा। श्रीमती वर्मा ने अफसरशाही पर भी टिप्पणी की।
हम यहां पर पहले ही लिख चुके है कि डॉ रमन सिंह के राज में अफसर बेकाबू हो गए है और जनप्रतिनिधियों को अपमानित करने का कोई भी मौका नहीं छोड़ा जाता जिस प्रदेश में गृहमंत्री तक की बात नहीं सुनी जाती उस प्रदेश का क्या हाल होगा यह आसानी से समझा जा सकता है। कुछ एक मंत्री को छोड़ अफसरों के सामने बाकी मंत्री पानी भरते है। खुद रमन सिंह के विभाग में भ्रष्टाचारियों की संरक्षण दिया जा रहा है। मनोज डे से लेकर बाबूलाल अग्रवाल मामले में मुख्यमंत्री के कारनामें सबके सामने हैं ऐसे में जब अब पैसे लेकर पद दे रहे हो तो कोई अफसर कैसे किसी से डरेगा। घोटाले और भ्रष्टाचार में गले तक तर सरकार के मुखिया का चेहरा ही जब कोयले की कालिख से पूति हो तो कोई अफसर कैसे डरेगा? ईमानदार अफसरों को फटकार और बेईमानों को सेवानिवृत्ति के बाद भी नौकरी पर रखने की परंपरा ने इस सरकार को लेकर कई सवाल खड़े किए है। झूठ के महल में टिकी सरकारों का जब उद्देश्य सिर्फ पैसा हो तो अफसरशाही को हावी होने से कैसे रोका जा सकता है। हमने इसी जगह पर पहले ही कहा था कि यूपीए को गरियाने वाले पहले अपने गिरेबां में झांक तो लें। यदि आज भाजपा सत्ता में है तो इसकी वजह कांग्रेस की करतूत है और यदि यही हाल रमन राज का रहा तो फिर आखिर जनता किस पर भरोसा करेगी।

मंगलवार, 5 जून 2012

विकास और बेदखली...


मानव अधिकारियों को लेकर गठित एक समूह ने आजादी के बाद विकास के नाम पर बेदखली का जो आंकड़ा सामने लाया है वह न केवल चौंकाने वाला है बल्कि सरकार के लिए चेतावनी भी हैं। इस आंकड़े में कहा गया है कि बेदखली का सबसे ज्यादा शिकार आदिवासी व दलित हुए हैं।
दुनियाभर में अपने घरों से विस्थापित होने को मजबूर लोगों के ये आंकड़े सरकार के रवैये की करतूत खोलने के लिए काफी है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद जिस तरह से यहां की सरकार ने विकास के नाम पर बेदखली किया है उसके आंकड़े तो अलग से नहीं है लेकिन हमारा दावा है कि बेदखली लोगों में मूल छत्तीसगढिय़ों की संख्या अधिक है और इनमें आदिवासी दलित के आंकड़े भी चौंकाने वाले होंगे।
हम यहां सरकार की नासमझी से चलाए गए सलवा जुडूम की वजह से पांच सौ से अधिक गांवो के उजड़ जाने की बात नहीं कर रहें है हम यहां केवल विकास के नाम पर, नई राजधानी, उद्योग, सड़क और बांध की वजह से विस्थापित लोगों पर ही चर्चा कर रहे हैं। जिस पर सरकार का रवैया गैर जिम्मेदराना रहा है। बेदखल लोगों के पुर्नवास का ही पता नहीं और न ही मुआवजे ही ठीक ढंग से दिए गए। नई राजधानी से लेकर रायगढ़ के केलोडेम और बस्तर से लेकर अंबिकापुर के उद्योगों की वजह से दादागिरी के साथ लोगों को बेदखल किया गया और अब भी बेदखली का सिलसिला जारी है। इनकी मदद को आये लोगों को जेल में डालने के आंकड़े भी कम नहीं है।
विकास के नाम पर जिस तरह की ईबादत छत्तीसगढ़ सरकार ने लिखी है इसके आंकड़े आने वाले दिनों में जब सबके सामने आयेगा तो हमारा दावा है कि खुद सरकार में बैठे लोग अपनी छाती पिटते नजर आयेंगे।
छत्तीसगढ़ में नजूल व फालतू जमीनों की कमी नहीं है इसके बाद भी जिस तरह से अपने सुखसुविधा के लिए बेदखली का कुचक्र रचा गया वह आने वाले दिनों में इस शांत प्रदेश पर भी असर डालेगा और तब पर्यावरण को लेकर चिंतित लोग वृक्ष लगाते या हल्ला करते नजर आयेंगे।

रविवार, 3 जून 2012

ईनाम का फंडा...


ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा है जिसके लिए रमन राज को पुरस्कार नहीं मिला है। सत्ता में आते ही मिल रहे पुरस्कार की झड़ी थमने का नाम ही नहीं ले रहा है और लोग हैरान है कि ऐसा क्या हो रहा है।
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में असंतुलित विकास और भ्रष्टाचार ने आम आदमी का जीवन कठिन कर दिया है। राजधानी  में ही शराब की नदिया बह रही है। शिक्षा के बाजारूपन ने पालक को ग्राहक बना दिया है। खेती की जमीने बरबाद हो रही है। केन्द्र्रीय योजनाओं से मिल रहे रूपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है। उद्योगपति के आगे सरकार नतमस्तक है। अपराधिक गतिविधियों में सौ फीसदी से ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई है। नक्सली घटना ही नहीं नक्सली क्षेत्रों का लगातार विस्तार हो रहा है। कलेक्टर का अपहरण हो रहा है और पुलिस कप्तान की संदिग्ध हत्या हो रही है। पर्यावरण का कोई माई बाप नहीं है और कोयला माफिया, लोहा माफिया, खनन माफिया, भू माफिया, शराब माफियाओं के आगे प्रशासन की बोलती बंद है। प्रदेश के गृहमंत्री एसपी को निकम्मा कलेक्टर को दलाल और थाने को बिकाऊ कहते घूम रहे है। भाजपा के सांसद खुले आम सरकार के क्रियाकलापो पर उंगली उठा रहे है। प्रदेश के मुखिया पर कोयले की कालिख पूति हो और रातों रात करोड़पति बनते जनप्रतिनिधियों के बीच आम लोगों को मूलभूत सुविधा उपलब्ध नहीं है। स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह चरमरा चुकी है। निजी अस्पताल स्लाटर हाउस और डॉक्टर यमराज के एजेंट बनते जा रहे है और सरकार को फिर भी ईनाम मिल रहा है। क्या ईनाम के लिए भी सेटिंग होती है या आंकड़े बाजी के मक्कडज़ाल ही ईनाम का हकदार होता है। यह सवाल आज इस लिए उठ रहा है क्योंकि छत्तीसगढ़ के विकास ग्रोथ को लेकर मुखिया खुश है लेकिन आम आदमी...!
छत्तीसगढ़ में चल रहे इस खेल को न कोई समझ  पा रहा है और न ही किसी के पास समझाने के लिए ही कुछ बचा है। जिस विकास की बात पर नम्बर बढ़ाये जाते हैं वह विकास कहां है। गांव-गांव में शिक्षा स्वास्थ्य और पानी के अभाव में लोगों को नारकीय जीवन जीना पड़ रहा है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं और छत्तीसगढ़ में तो मानव तस्करी तक बड़े पैमाने पर हो रही है इसके बाद भी ईनाम की गारंटी है तो कहीं न कहीं  मामला गड़बड़ नजर आता है।

शनिवार, 2 जून 2012

ग्रामीणों का गुस्सा...


नई राजधानी और रायगढ़ में कल गांव वालों ने प्रशासन की जमकर बजा दी। दोनों ही जगहों पर ग्रामीणों ने गुस्से ने सरकार की जनहित की कलई खोल कर रख दी। किसानों को बरबाद होने के हद तक पहुंचाने में लगी रमन सरकार के प्रति गुस्सा चरम पर है। नई राजधानी में गांव वालों ने न केवल काम बंद करवाया बल्कि अफसरों को बंधक तक बना लिया यही हाल रायगढ़ के केलोडेम के प्रभावितों का है यहां मुख्यमंत्री 14 जून को केलोडेम का उद्घाटन करने जा रहे हैं और यहां के किसानों को अब तक मुआवजा ही नहीं दिया गया है।
पूरे प्रदेश में छत्तीसगढ़ के मूल निवासियों के साथ चल रहे इस दोयम दर्जे से हाहाकार की स्थिति है। जमीने कभी विकास के नाम पर तो कभी सड़क या उद्योगों के नाम पर छीनी जा रही है और मुआवजा या हक की लड़ाई लडऩे वालों को वर्दी वालों के सहारे पीटा जा रहा है। कांग्रेस इस मामले में केवल बयानबाजी तक सीमित है और लोग नेतृत्व के अभाव में अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं।
चौतरफा मची इस लूट को लेकर लोगों में बेहद गुस्सा है। और मुख्यमंत्री से लेकर अधिकारियों के भ्रष्टाचार के किस्से इस गुस्से में आग में घी डालने का काम कर रहा है। नई राजधानी और रायगढ़ में कल प्रशासन ने पुलिस के दम पर आंदोलनकारियों को मना तो लिया लेकिन यह कब तक चलेगा। आखिर मुआवजा और व्यवस्थापन को लेकर सरकार कोई ठोस नीति क्यों नहीं बनाती।
हम पहले भी कह चुके है कि छत्तीसगढ़ में अभी विकास की बहुत संभावनाएं है। सड़क से लेकर उद्योग व सरकारी भवनों की जरूरत है लेकिन हम किसी की लाश पर विकास कतई नहीं चाहते। नई राजधानी के औचित्य को लेकर हम सवाल उठाते रहे हैं कि आखिर जनप्रतिनिधियों को महलों या बंगलो में रहने की जरूरत क्यों हैं? विधायक बनते ही उनके रहन सहन में राजसू ठाट के लिए सरकारी व्यवस्था की क्या जरूरत है। केलो डेम में भी गांव के किसानों के साथ सरकार छल कर रही है लेकिन जनता के हितैषी कहलाने वालों का कहीं पता नहीं है। नई राजधानी में भी यह हाल है लोग अपनी लड़ाई स्वयं लड़ रहे हैं और सरकार इन लोगों को मुआवजा या व्यवस्थापन की बजाय कुचलने में लगी है।

शुक्रवार, 1 जून 2012

देख लो डाक्टर साहब...


क्या प्रदेश भर के निजी अस्पतालों को बिमारी फैलाने, दवाई के नाम पर लूट की छूट और ईलाज में लापरवाही पर इसलिए छूट मिली हुई है क्योंकि प्रदेश के मुखिया डॉक्टर है। नहीं, यह वजह कतई नहीं है। असली वजह है सरकार में बैठे लोगों की खाओ पियो नीति। जिसके चलते प्रदेश के गरीब व उनके परिजन चौतररफा लूट के शिकार हो रहे हैं।
हमारे मित्र  आज तक तस्वीर भेजकर यह सोचने को मजबूर कर दिया कि किस तरह से निजी असप्ताल संचालकों के द्वारा अस्पताल के अपशिष्टों को कहीं पर भी फेंककर आम आदमी को मौत के मुुंह में ढकेलने पर आमदा है। पिछलें दिनों आमिर खान के एक एपीसोड में दिखाया गया कि कैसे डॉक्टरों ने अपने पेशे को धंधा बना रखा है और लोगों को अनचाहे मौत की ओर ढकेला जा रहा है। पूरे छत्तीसगढ़ में निजी अस्पतालों का एक मात्र काम मरीज और उनके परिजनों की जेब खाली करना रह गया है। छत्तीसगढ़ की राजधानी हो या दूरस्थ अंबिकापुर या बस्तर सब जगह दवाई से लेकर ईलाज के नाम पर मची लूट-खसोट ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। दवा कंपनियों से मिलने वाले कमीशन ने उनके भीतर की मानवता को समाप्त कर दिया है और ईलाज में घोर लापरवाही से लेकर लाश उठाने तक के पैसे वसूले जा रहे हैं। रमन राज में चल रहे इस खेल में मुख्यमंत्री कितने दोषी है यह कहना मुश्किल है लेकिन पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा एक भी अनुदान प्राप्त निजी अस्पताल नहीं है जहां 25 फीसदी गरीबों का ईलाज मुफ्त में किया जाता हो। अनुदान प्राप्त अस्पताल एस्कार्ट से लेकर नारायण और रामकृष्ण से लेकर ढेरो नाम है लेकिन सब जगह लूट मची है और पूरी सरकार शिकायतों के बाद भी इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं तो इसकी एक ही वजह हो सकती है इन अस्पतालों से मिलने वाली रिश्वत की रकम। बीमारों की सीने पर चढ़कर पैसा कमाने की कोशिश में अधिकारी से लेकर मंत्री तक शामिल है वरना यहां भी महाराष्ट्र की तर्ज पर दर्जनों अस्पतालों की मान्यता ही नहीं छीनी जाती बल्कि डिग्री तक जब्त करने लायक स्थिति है। दवाई दूकान खोलकर सीधे दवा कंपनियों से रेट तय कर दवाई खरीदी जा रही है। सस्ती दवाईयों की बजाय महंगी दवाईयां मरीजों को परोसा जा रहा है। जेनेटिक की जगह बीमारी को न्यौता देने वाले ईलाज हो रहे है लेकिन यह सब को दिख रहा है नहीं दिख रहा है तो केवल डॉक्टर साहब को।