शनिवार, 17 मार्च 2012


बजट और बहस...
सच कहूँ तो पिछले कई सालों से मेरी रूचि बजट पर कभी नहीं रही इसकी वजह मुझे भी नहीं मालूम? या यूं कहूँ कि मैं कभी समझ ही नहीं पाया कि सच कौन और झूठ कौन कह रहा है। सत्ता पक्ष बजट की तारीफ करते नहीं थकता और विपक्षी दल आलोचना चाहे सरकार किसी की भी रही हो।
इस साल भी केन्द्रीय और राज्य बजट को लेकर ऐसी ही प्रतिक्रिया है। हर साल महंगाई बढ़ रही है और आम आदमी का जीना दूभर होता जा रहा है। लेकिन आर्थिक सर्वेक्षणों में प्रति व्यक्ति आय लगातार बढ़ रही है। सर्वेक्षण का क्या तरीका है जो हर साल प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोत्तरी दिखाता है यह भी मेरे लिए यक्ष प्रश्न जैसा है।
सभी का कहना है कि यह दौर कठिन दौर है। लेकिन मैं जिस समाज में रहता हूँ वहां तो सालों से इसी दौर को देख रहा हूँ कुछ यह लोग गलत तरीके से पैसा कमा रहे हैं और जो लोग गलत रास्ता अख्तियार नहीं करते वे अपनी पूरी जिन्दगी संघर्ष करते गुजार रहे हैं।
बजट से आम आदमी को क्या फायदा और क्या नुकसान हो रहा है यह भी मैं नहीं समझ पाया? इस शहर ने तो देखा है कि कैसे अवैध कब्जों व अतिक्रमण ने शहर की व्यवस्था को चरमरा कर रख दिया है। सरकार किस तरह खेती की जमीन को लगातार उद्योगों या स्वयं के उपयोग के लिए नष्ट कर रही है। तालाब पाटकर कैसे काम्प्लेक्स खड़े किये जा रहे हैं और क्रांकिट के जंगल में तब्दिल होते लोगों के दिल भी क्रांकिट सा होता जा रहा है। क्या किसी सरकार के बजट में ऐसा प्रावधान हुआ है कि इससे मुक्ति मिलेगी?
इसका यह कतई मतलब नहीं है कि कानून में इसका प्रावधान नहीं है लेकिन जिस प्रदेश की आधी आबादी से ज्यादा लोग अपने व परिवार के दो वक्त की रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हो कहां प्रति व्यक्ति आय 42 हजार से उपर कैसे हो सकता है। लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण ने यह कहा है तो होगा।
आम लोगों को उनकी जरूरत के मुताबिक व्यवस्था देने में सरकार की भूमिका क्या है? बजट में सिर्फ आवक-जावक की चिंता की जाती रही है और इन आंकड़ों के जाल में कौन सच कह रहा है। कौन झूठ? यह तो राजनीति करने वाले ही बता सकते हैं लेकिन बजट की राजनीति से परे हटकर भी बजट पर बहस होनी चाहिए।
हर बजट के पहले जमाखोरी और मुुनाफाखोरी के किस्से आम है लेकिन किसी भी सरकार ने इस दौरान अभियान चलाकर मुनाफाखोरी-जमाखोरी को रोकने की कोशिश नहीं की। बजट में तो कभी कोई  चीज सस्ती होते दिखाई नहीं दी लेकिन बाजार में कभी कोई चीज का दाम कम नहीं हुआ। कभी लचीला तो कभी किसानों का तो कभी चुनावी बजट न जाने क्या-क्या नाम दिये गये। सरकार की बजट विपक्षियों के आलोचना की शिकार होते रही है। ऐसे में आम लोग किस पर यकीन करें यह यक्ष प्रश्न है?
-कौशल तिवारी

किरण बिल्डिंग का बंद लिफाफा खुला घपला ही घपला, पर कार्रवाई नहीं


किरण बिल्डिंग का बंद लिफाफा खुला घपला ही घपला, पर कार्रवाई नहीं
किरण बिल्डिंग कांड की जांच रिपोर्ट में न केवल नियमों की अनदेखी की गई  है बल्कि निर्माण में भी जरबदस्त अनियमितता उजागर हुई है जांच समिति ने कार्रवाई की सिफारिश करते हुए कोटक बुक स्टाल व मोहन चाय वाले को भी दुकान आबंटित करने की सिफारिश की है लेकिन जांच रिपोर्ट सौंपे जाने के पांच माह बाद भी निगम द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
उल्लेखनीय है कि सड़क चौड़ीकरण योजना में किरण बिल्डिंग को पीछे की जमीन लीज पर दी गई। पहले यह जमीन रेलवे के पास थी। इस मामले को लेकर नगर निगम की सामान्य सभा में जबरदस्त हंगामा हुआ और अंतत: इस पूरे मामले की जांच के लिए समिति बनाई गई। जांच समिति जग्गू ठाकुर की अध्यक्षता में बनाई गई जिसमें प्रमोद दुबे, सूर्यकांत राठौर, सुनील बांद्रे, दीनानाथ शर्मा और जसबीर सिंह ढिल्लन के अलावा संदीप बागड़े नगर निवेशक एस एल पटेल सहायक अभियंता और राजेश राठौर सहायक अभियंता को रखा गया है।
समिति को निगम द्वारा किरण बिल्डिंग से संबंधित सभी कागजात सौंपे गए। चूंकि किरण बिल्डिंग मामले में भारी अनियमितता की चर्चा पहले हो चुकी थी इसलिए इस मामले को ठंडे बस्ते में डालने का खेल भी हुआ।
बताया जाता है कि समिति को जांंच रिपोर्ट तैयार करने में ज्यादा समय नहीं लगा और जब जांच समिति ने निगम में अपनी रिपोर्ट 26-9-11 को रखी तो यह कहकर रिपोर्ट सार्वजनिक करने से मना कर दिया गया कि इसे आगामी बैठक में सार्वजनिक किया जायेगा तब तक इसे बंद लिफाफे में रखने का निर्णय लिया गया।
सूत्रों का कहना है कि किरण बिल्डिंग कांड के पीछे कई बड़े लोगों का हाथ है इसलिए भी जांच रिपोर्ट बड़े लिफाफे में रख दिया गया। कहा जाता है कि बंद लिफाफे में रिपोर्ट रखने के पीछे न केवल अपराधियों को बचाने की कोशिश की बल्कि मामले को ठंडा बस्ता में डालने का प्रयास भी था।
सूत्रों का कहना है कि नगर निगम के जिम्मेदार अधिकारी और बड़े लोग इस मामले को दबाने में कामयाब भी हो गए थे लेकिन तभी हमर संगवारी संस्था के इन्दरजीत छाबड़ा, राकेश चौबे व सर्वजीत सेन ने सूचना के अधिकार के तहत रिपोर्ट की कापी मांग ली। बताया जाता है कि बंद लिफाफा को निगम के अधिकारियों ने खोलकर देख लिया था और पूरे मामले को दबाने की जरबदस्त ढंग से कोशिश हो रही है। हमारे बेहद करीबी सूत्रों के मुुताबिक पुरे प्रकरण में जबरदस्त घपले बाजी हुई है और रिपोर्ट मिलने के 5 माह बाद भी कार्रवाई नहीं करने को लेकर लेनदेन की जबरदस्त चर्चा है। कहा जाता है कि इस मामले में नगर निवेशक संदीप बागड़े की भूमिका संदेहास्पद है। चूंकि नगर निवेशक के पद पर संदीप बागड़े है अत: कार्रवाई उन्हें ही करना है लेकिन उनकी चूप्पी को लेकर संदेह स्वाभाविक है।
बताया जाता है कि कन्हैया लाल से लेकर दिलीप नैनानी सहित यहां स्थित अन्य ने भी न केवल नक्शे के विपरित निर्माण कराया है बल्कि अतिरिक्त कब्जा भी किया है। संदीप बागड़े पर संदेह की उंगली उठने लगी है और चर्चा यह है कि निगम के अधिकारियों से लेकर जिम्मेदार जनप्रतिनिधियों को भी इस मामले में चुप्पी के लिए खूब नोट बांटे गए हैं।