शुक्रवार, 1 जून 2012

देख लो डाक्टर साहब...


क्या प्रदेश भर के निजी अस्पतालों को बिमारी फैलाने, दवाई के नाम पर लूट की छूट और ईलाज में लापरवाही पर इसलिए छूट मिली हुई है क्योंकि प्रदेश के मुखिया डॉक्टर है। नहीं, यह वजह कतई नहीं है। असली वजह है सरकार में बैठे लोगों की खाओ पियो नीति। जिसके चलते प्रदेश के गरीब व उनके परिजन चौतररफा लूट के शिकार हो रहे हैं।
हमारे मित्र  आज तक तस्वीर भेजकर यह सोचने को मजबूर कर दिया कि किस तरह से निजी असप्ताल संचालकों के द्वारा अस्पताल के अपशिष्टों को कहीं पर भी फेंककर आम आदमी को मौत के मुुंह में ढकेलने पर आमदा है। पिछलें दिनों आमिर खान के एक एपीसोड में दिखाया गया कि कैसे डॉक्टरों ने अपने पेशे को धंधा बना रखा है और लोगों को अनचाहे मौत की ओर ढकेला जा रहा है। पूरे छत्तीसगढ़ में निजी अस्पतालों का एक मात्र काम मरीज और उनके परिजनों की जेब खाली करना रह गया है। छत्तीसगढ़ की राजधानी हो या दूरस्थ अंबिकापुर या बस्तर सब जगह दवाई से लेकर ईलाज के नाम पर मची लूट-खसोट ने आम आदमी का जीना दूभर कर दिया है। दवा कंपनियों से मिलने वाले कमीशन ने उनके भीतर की मानवता को समाप्त कर दिया है और ईलाज में घोर लापरवाही से लेकर लाश उठाने तक के पैसे वसूले जा रहे हैं। रमन राज में चल रहे इस खेल में मुख्यमंत्री कितने दोषी है यह कहना मुश्किल है लेकिन पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा एक भी अनुदान प्राप्त निजी अस्पताल नहीं है जहां 25 फीसदी गरीबों का ईलाज मुफ्त में किया जाता हो। अनुदान प्राप्त अस्पताल एस्कार्ट से लेकर नारायण और रामकृष्ण से लेकर ढेरो नाम है लेकिन सब जगह लूट मची है और पूरी सरकार शिकायतों के बाद भी इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं तो इसकी एक ही वजह हो सकती है इन अस्पतालों से मिलने वाली रिश्वत की रकम। बीमारों की सीने पर चढ़कर पैसा कमाने की कोशिश में अधिकारी से लेकर मंत्री तक शामिल है वरना यहां भी महाराष्ट्र की तर्ज पर दर्जनों अस्पतालों की मान्यता ही नहीं छीनी जाती बल्कि डिग्री तक जब्त करने लायक स्थिति है। दवाई दूकान खोलकर सीधे दवा कंपनियों से रेट तय कर दवाई खरीदी जा रही है। सस्ती दवाईयों की बजाय महंगी दवाईयां मरीजों को परोसा जा रहा है। जेनेटिक की जगह बीमारी को न्यौता देने वाले ईलाज हो रहे है लेकिन यह सब को दिख रहा है नहीं दिख रहा है तो केवल डॉक्टर साहब को।