गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

कुकुर ह गंगा जाही त पतरी ल कोन चाटही...


छत्तीसगढ़ म एक ठिन कहावत हे के कुकुर ह गंगा जाही त पतरी ल कोन चाटही। ए कहावत ल कोन केहे रीहिस, काखर बर केहे रीहिस। कोनो नई जानय फेर आजकल  ए कहावत के अड़बड़ जोर हे। आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल अऊ समाज सेवक अन्ना हजारे के आन्दोलन ह कई झन के नींद ल उड़ा दे हे।
राजनीति में आय बदमाश चोर लुटेरा मन के नींद उड़ गे हे। अऊ अब कई झन अइसे गोठियावत हें जानो मानों ओखर मन ले बड़े हरीशचंद कोनो नहीं हे।
आम आदमी पार्टी ह राजनीति के नवा परिभाषा गढ़त हावय। ए राजधानी वाला मन ह आज ले सुरता करथे के एक झन बदमाश बालकृष्ण अग्रवाल ह कइसे बड़े-बड़े विज्ञापन छपवा के कहे रीहिस के वो ह अब सुधर गे हे फेर न तो ओखर करम ह सुधरीस न तो ओखर गुण ह बने होईस। बालकृष्ण अग्रवाल ह अपन ल बने बताय बर का का काम नहीं करीस। बड़े बड़े नेता मन संग उठईया बईठया बालकृष्ण अग्रवाल ल कोनो भुलाही।
वइसने दिल्ली म जब भाजपा ह देखीस के आम आदमी पार्टी के चारो मुड़ा जोर हे त कहे लागीस के हमन ह खरीद फरोख्त के राजनीति नहीं करन त कांग्रेस के राहुल गांधी ह काहत घुमत हे के आम आदमी पार्टी ले सीखबों।
आज के राजनीति के खेल म सबला मतवईया कांग्रेस के नेता ह जब सुधरे के बात करथे त कतकोन झन ल हंसी आ जथे। उही हाल भाजपा के होगे हावय तभे त आम आदमी पार्टी ह जोर मारत हे।
अवईया लोकसभा चुनाव बर जम्मो पार्टी ह तैयारी करत हावय अऊ जनता जनहित के तीर जाय बर अपन आप ल दुध के धुले बतावत हे। दुसर के पाप ल अइसे गिनावत हे जानो मानो ए मन ह कुछुच नहीं करे हे। तभे त वो दिन गांव के बइठका म जब चोरी के मामला आइस त जीवराखन ह कही दिस देख गा चोरी चोरी हे एक रूपया के हांवय चाहे सौ रूपया के सजा बरोबर होना चाही। अऊ पंच मन ल जीवराखन के बात ल मानेच ल पड़ीस।
अइसने कोनो पार्टी ह लाख काहय के अब तक जेन होगे तउन होगे आगु अइसने नहीं होही, कोनों नहीं पतीयाने वाला हे। सब के रंग ढंग ल देख डारे हावय। कहावत घलो हे चोर चोरी ले जाए हेराफेरी ले नहीं जावय।

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

सोचना पड़ेगा....


 दिल्ली में आई राजनैतिक विपदा से राजनैतिक दलों की चिंता बड़ा दी है। आम आदमी पार्टी को मिले 28 सीट ने पूरे देश में नई बहस छेड़ दी है कि क्या उन पार्टियों को सरकार बनाने ऐसे पार्टियों से समर्थन लेना चाहिए जो चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ खड़े थे।  यह बहस का मौका इसलिए भी आया क्योंकि सामने लोकसभा चुनाव है और इस वजह से हर दल तेरी कमीज से मेरी कमीज ज्यादा सफेद के दिखावे पर काम कर रही है वरना पिछले दो दशक के राजनैतिक हालत ऐसे कभी नहीं रहे। जिसे जहां जैसे मौका मिला राज्यों से लेकर केन्द्र तक सरकारें बनाई बिगाड़ी गई और आज जब लोकसभा चुनाव सिर पर है तो केन्द्र की सत्ता का मोह उन्हें खरीद फरोख की राजनीति से अचानक दूर कर दिया है। राजनैतिक दलों की चिंता यही है कि लोकसभा चुनाव में भी यही स्थिति रही तो क्या होगा ? क्योंकि जिस राह पर आम आदमी पार्टी ने कदम बढ़ाया है और इसका परिणाम दिल्ली विधानसभा के चुनाव में आया है वहीं समर्थन लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को मिलने की संभावना से इंकार करना मुश्किल हो गया है। सड़ चुकी राजनैतिक व्यवस्था में आम आदमी पार्टी की सोच ने आम आदमी को यह सोचने मजबूर कर ही दिया है कि आखिर कांग्रेस और भाजपा में कितना अंतर रह गया है। राज्यों से लेकर केन्द्र तक के कांग्रेस और भाजपा नेताओं की न तो गलबहियां छुपी है और न ही वोट बैंक की राजनैति ही छिप सका है। एक दूसरे के खिलाफ भ्रष्ट्राचार को लेकर आवाज उठाने वाले सत्ता पाते ही कार्रवाई से कैसे दूर भागते है और जनता इस खेल में स्वयं को ठगा सा महसूस करने लगी है। यही वजह है कि जब आम आदमी पार्टी का गठन हुआ तो उसे नजर अंदाज वाले भी दिल्ली के चुनाव परिणाम से न केवल भौचक है बल्कि लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की संभावना से चिंतित है। पिछले दो दशकों की राजनीति में हम किसी से कम नहीं की तर्ज पर काम करने वाली कांग्रेस और भाजपा में आए इस तत्कालीन परिवर्तन का दूरगामी परिणाम अभी आना शेष्ज्ञ है लेकिन यह तो तय है  िकआम आदमी पार्टी ने अच्छे-अच्छे को आईना दिखा दिया है। लालवत्ती के धौस और सरकारी बंगलों के रूतबे से दूर रहने के फैसले से राज्यों में बैठी सरकारों के मंत्री चितिंत हो गए है यदि ऐसे में विधायक व सांसद निधि को लेकर आम आदमी की सोच को अमली जामा पहनाया गया तो राजनैतिक दादागिरी तो खत्म होगी ही भ्रष्टाचार और स्वेच्छाचारिता पर भी विराम लगेगा। जब-जब मंत्रियों के बंगलों पर होने वाले खर्चों की खबरें आएंगी आम आदमी पार्टी और भी मजबूत होगा। गाली देने वालों के साथ सत्ता सुख या सत्ता सुख के लिए मुद्दों की अनदेखी भी आम आदमी को हताश नहीं करेगा। आम आदमी पार्टी क्या भाजपा-कांग्रेस का विकल्प हो सकती है। लोगों को सोचना पड़ेगा।

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

आप ने कर दी सपने खाक...


आम आदमी पार्टी बनाते ही दिल्ली की सत्ता तक पहुंचे केजरीवाल को ल
ेकर जितनी चिंता समर्थन कर रही कांग्रेस को है उससे कही ज्यादा चिंता भाजपा को है।
आम आदमी पार्टी ने लोकसभा चुनाव लडऩे का एलान कर दिया है और वह इस देश में कांग्रेस-भाजपा के बाद तीसरी पार्टी बनकर चुनाव लड़ेगी। इससे पहले तीसरा मोर्चा बनाकर चुनाव लडऩे की कवायद होते रही है लेकिन इस बार हो रहे लोकसभा चुनाव का नजारा ही अलग होगा।
कांग्रेस और भाजपा जहां अपने अपने साथियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ेगी तो आम आदमी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी।
दिल्ली के चुनाव परिणाम यदि लोकसभा चुनाव में भी दोहराया गया तब कांग्रेस और भाजपा का क्या होगा? आज तक कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों क्षेत्रिय दलों को नहीं रोक पायी है ऐसे में आप का इनसे सीधे लड़ाई का परिणाम क्या होगा? क्या आप को वजह से कांग्रेस और भाजपा ही नहीं दूसरी पार्टियों को भी नुकसान होगा। ये तमाम सवाल अभी भले ही मायने नहीं रखते हो पर सच तो यह है कि सडऩे की कगार तक पहुंच चुकी राजनैतिक व्यवस्था में आप ने ताजा हवा का झोंका की तरह अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। दिल्ली विधानसभा के परिणाम से कांग्रेस के चेहरे पर भले ही भाजपा के सत्ता नहीं पाने का संतोष हो या भाजपा के चेहरे पर आप को लेकर मलाल हो पर सच तो यही है कि आप ने राजनीति में चली आ रही परम्परा को बदलने की कोशिश की है।
चुनाव जीतने के बाद अपनी मर्जी से विकास गढऩे की तुगलकी परम्परा को दिल्ली के लोगों ने तोडऩे में जो तेजी दिखाई है वहीं तेजी लोकसभा चुनाव में दिखाने की पहल के लिए आप तैयारी कर रही है। पूरे देश में यूपीए सरकार के खिलाफ भाजपा ने जो माहौल खड़ा किया है उस माहौल को जीत में हासिल करने में आप का रोढ़ा साफ दिखने लगा है और यदि दिल्ली में बैठी आप के फैसले अच्छे रहे तो फिर भाजपा को नुकसान उठाना पड़ेगा।
ऐसे में भाजपा भले ही कांग्रेस पर वार करते दिख रही है लेकिन भीतर खाने में आप की चिंता भी कम नहीं है।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

जयचंद-मीरजाफर के जय होवय...


चुनाव होगे, सरकारो बनगे फेर हरईया मन के दुख ल कोनों नहीं समझत हे। बपरी रेणुका सिंह ह रो रो के कतका कलपे रीहिस के वोला भाजपाच के मन ह हरवाईन हे। मुख्यमंत्री घलो ह वोखर पीरा ले पिघल गे     रीहिस अऊ अइसन मन के खिलाफ कार्रवाई करे के बात करे रीहिस फेर आज तक रेणुका ह रोवत हे अऊ जयचंद अऊ मीरजाफर मन ह सरकार बने के खुशी मनावत हे।
इही हाल राजनांदगांव जिला ले लेके बस्तर अऊ सरगुजा म हे। हरईया ह हार गे अऊ पार्टी के घलो सरकार बन गे अब का करे बर हे। भीतरघात करईया मन के सूची अतेक लम्बा हे के  ओमन ल पार्टी ले निकाल दीही त लोकसभा चुनाव के का होही।
अइसने होथे जीतने वाला दल ह अपन भीतरघाती मन ल भुला जाथे अऊ सरकार बने के खुशी म मगन हो जथे। अऊ हरईया मन ह दु चार दिन जोर लगाथे अऊ तहां ले ए सोच के कलेचुप बइठ जथे के अगला चुनाव आही त महु ह मजा चखाहुं।
सत्ताबाजी दल के जब ए हाल हे त जेखर सत्ता नहीं आय हे तेखर त गोठेच बाल झन कर उहां त नीतईया घलो ह खुश नहीं हे। सत्ता आही त का का करबो कहीके सोचे रीहिन फेर सत्ता नहीं मिलीस त मुंह मसोस के रही गे।
इहों भीतरघाती मन ह सीना तान के चलत हे अऊ गोठियावत हे के कइसे कइसे करम करे बर पड़ीस हे। कांग्रेस म त अइसनेच होथे। प्रदेश अध्यक्ष चरणदास महंत ल हटाय ल पड़ गे नवा प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल ल बना दिन।
भूपेश बघेल के प्रदेश अध्यक्ष बने ले अजीत जोगी ह उपरे ऊपर भले बने काहत हे फेर भीतरे भीतर जी ह कतका जरत हे तेन ल ो जानत हे अऊ ओखर जी ह जातर हे। तभे त कही दिस मे हा लोकसभा चुनाव नहीं लड़व।
अजीत जोगी ह लोकसभा नहीं लड़ही त कांग्रेस के का बिगड़ही तउन ल कोनो नहीं जानय फेर एक बात त तय हे के जोगी लडय़ चाहे झन लडय़ कांग्रेस ल छत्तीसगढ़ म खोयबर कुछु नहीं हे। पा जही त वाहवाही जरूर मिलही। अऊ कांग्रेस तीर नेता मन के घलो कमी नहीं हे एक एक सीट ले दस-दस झन दावेदार बाइठे हे जोगी नहीं लड़ही त कोनो अऊ लड़ही।
आज कल त खुला बात अऊ भीतरघात के जमाना हे तभे त भीतरघाती जयचंद मीर जाफर मन के जगह जगह पूछ होवत हे।

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

कब चेतहु...


अभी जादा दिन नहीं बीते हे आंख फोड़वा कांड ल। फेर लागथे न तो सरकार चेते हे अऊ न डाक्टर मन चेतने वाला हे तभे त शिविर लगा लगा के मनमाने आपरेशन करत हे अऊ आम लोगन ल झंझट म डारत हे।
सिमगा म नसबंदी शिविर म फेर अइसने लपर-झपर के मामला सामने आय हे। तीस बिस्तर वाला अस्पताल म शिविर लगा के 52 झन माई लोगन के आपरेशन कर दिन। अऊ ए दरी घलों के बेवास्था नहीं करीन, आधा झन ल भुईयां म सोय ल पड़ीस, जाड़ के दिन म मे सब ह अतीयाचार वो हम त अऊ काय हे।
वो त पार्षद ल पता चलीस अऊ हल्ला गुल्ला मचीस त आनन भानन म दरी वरी मंगवाय गीस। सीएमओ ह त ए लंदर फंदर काम बर स्वास्थ्य केन्द्र ल दोसी बताये पल्ला झाड़ लीस। फेर अइसने कब तक चलही तेखर जवाब कखरो तीर नहीं हे।
सरकार ह हर स्वास्थ्य केन्द्र ल शिविर लगा के नसबंदी अऊ आंख के आपरेशन करे ल केहे हे फेर डॉक्टर मन ह हड़बड़ी म एकेच दिन म मनमाने आपरेशन कर देथे। यहु नहीं देखय के हड़बड़ी म गड़बड़ी होवत हे अऊ ओखर मन के करनी ल आम आदमी ल मरे ल पड़त हे।
पउर बालोद म अइसने आंखी के आपरेशन बर शिविर लगाय रीहिस, कतेक झन के आंखी फुट गे। हल्ला मचीस त दु चार डॉक्टर मन ल सस्पेंड कर दिन अउ डॉक्टर मन हल्ला गुल्ला मचाईन त मामला के लीपा-पोती कर दिन।
छत्तीसगढ़ म स्वास्थ्य सेवा के बुरा हाल हे। सरकारी अस्पताल के त भगवानेच ह मालिक हे डॉक्टर हे त दवई नहीं हे अऊ ले दे के शिविर करवात हे तउनों ह गड़बड़ सड़बड़ चलत हे। उपर ले नवा नवा नियम अलग चलत हे। डॉक्टर मन ह अपन घर ले दुकान चलावत हे अऊ दवई कंपनी ले पइसा खाके मांहगी दवई लिखत हे।
अतका लुट मचे हे के झन पूछ कहात हे। उपर ले मजबूरी ए हे के गांव गांव म झोला छाप डॉक्टर मन छछल गे हे। का दवई देवत हे का ईलाज करत हे तेखर ठिकाना नहीं हे। अइसने में छत्तीसगढ़ के का कइसन विकास होही कोनों नई जानय।
सरकार ह जब ले 35 हजार रूपया के ईलाज के बात करे हे तब ले डॉक्टर मन के लुट ह अऊ बाढ़ गे हे। कहु कछु बीमारी बता के सीधा बच्चादानी ल निकाल लेवत हे। अइसन डॉक्टर मन के चिंहारी घलो होगे फेर एखर मन के कुछु नहीं बिगड़ीस। सरकार ह काखर अइसन मन उपर कड़ा कार्रवाई नहीं करय कोनों नहीं जानय।
जतका मुंह ततका बात। फेर एक बात महुं ल कहना है के जब तक लापरवाही बरतने वाला मन उपर कड़ा कार्रवाई नहीं होही। ए लंदर-फंदर चलत रही अऊ आम लोगन मन मरत रही।

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

तहीं इज्जत नहीं करबे त दूसर ल का परे हे...


छत्तीसगढ़ राज बनगे अब छत्तीसगढ़ी भासा बर आंदोलन होवत हावय, विधानसभा ले लेके सड़क तक लड़ई चलत हे। स्कूल-कालेज म पढ़ाय के उदीम घलो होवत हावय फेर मामला ह हर घांव अटक जाथे।
कोनो भी राज के विकास बर उहां के भाखा-बोली के खास महत्व हे ए बात ल छत्तीसगढिय़ा मन ह कब समझही। जब तक अपन भाखा के इज्जत नहीं होही देश दुनिया म राज के इज्जत कइसे होही। गांव-गांव म रहवईया मन म हीन भावना आ जथे के वोला हिन्दी अऊ अंग्रेजी बने ढंग के नई अवय। अऊ जब कखरों म हीन भावना आ जथे त न वो ह बने ढंग के गोठियाय सकय न अपन परेशानी ल बताय सकय। तभे त अफसर मन तीर बोले म हिचकथे।
एखर सेती हमर मानना हे के जब तक छत्तीसगढ़ी ह सरकारी काम काज के भासा नहीं बनहीं छत्तीसगढिय़ा मन के विकास होना मुश्किल हे।
अतका छोटे से बात ल इहंा के नेता मन काबर नहीं समझय। वो मन काबर छत्तीसगढ़ी ले भागत हे। तउन समझ म नहीं आवय। वोट पाय बर छत्तीसगढ़ी बोलही अऊ जीत जही तहां ले मनमाने हिन्दी अंग्रेजी झाड़थे।
मोला हेमलाल के पीरा ह आज ले सुरता हे। बपरा ह नवा नवा सरपंच बने रीहिस। गांव के विकास के ओला अड़बड़ चिंता रीहिस। गांव के समस्या ल ले के मंत्री तीर गीस। मंत्री ह छत्तीसगढिय़ा हे फेर हेमलाल तीर अइसे हिन्दी झाड़त रीहिस के ओखर जी खिसियागे। सीधा सीधा कही दिस देख गा वोट मांगे बर आथस त छत्तीसगढ़ी म गोठियास आरस मंत्री बन गेस त तोर पॉवर हे अतेक बाढ़ गे। मोरेच तीर हिन्दी झाड़त हस अइसने तोर हाल रही त तोर नेतागिरी ह कब सिराही तहीं गम नहीं पावे।
उहां ले आके हेमलाल ह गांव वाला मन तीर अपन पीरा ल कतका नहीं गोठियाय रीहिस। अऊ आज हेमलाल के बात ह सिरतोकेच होगे। मंत्री ह चुनाव हार गे। ओखर अता पता नहीं हे।
रमन सरकार के हैर्टिक के शपथ ग्रहण म हिन्दी म हावथ लेवत देख आज मोला हेमलाल के गोठ-बात ह सुरता आगे। एक झन बृजमोहन अग्रवाल ल छोड़ कोनो छत्तीसगढ़ी म शपथ नहीं लीन। जेन बृजमोहन अग्रवाल ल सब झन परदेशिया कथे तेन ह छत्तीसगढ़ी म शपथ लीन अऊ जेन मन ह छत्तीसगढ़ी के नाम देश दुनिया म करना चाही तउन मन ह हिन्दी झाड़त रीहिन।
मैं ह हिन्दी भासा के विरोधी तो हंव न मोला हिन्दी बोलईया मन ले कोनो दिक्कत हे। हमर देश के भासा हे फेर मे हा अतका जानथौ के जेन ह अपन भासा के इज्जत नहीं करय वो भासा ह त समाप्त होही जथे ओखर संस्कृति ह घलो नस्ट हो जथे। अऊ वो ह इतिहास म पेढ़ के लइक रही जथे। जेन ह अपन भासा के इज्जत नहीं करय ओखर ईज्जत चलो कोनो नहीं करय।
अऊ इही हाल छत्तीसगढिय़ा नेता मन के रही त छत्तीसगढ़ के विकास कइसे होही। हमर जीयो अऊ जीयन दो के संस्कृति के का होही तेखर सेती समय रहत चेतावत हौ बाद म पछताय के सिवाय कुछु नहीं बाचहीं।

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

महु ह पीएम बनहुं...


वो दिन निहाली ह बिहिनिया बिहिनिया घाम तापत बइठे रीहिस, ततके म ओखर नाती ह आगे, अऊ डोकरा उपर झपाके कहात हावय, ए बबा महु ह पीएम बनहु, महु ल पीएम बना दे, का का करे ल पड़ही बता देतेस त वइसने वइसने कर दुहुं।
 ओखर गोठ-बात ल सुन के वो तीर जतका झन रीहिस ततका जम्मो झन हांस डारिन, फेर सरजू ह कीहिस अबे ते हा बने बढ़ लिख ले बड़े बन जा तब पीएम बनबे, अभी त तोर उमर ह नहीं होय हावय, पीएम बने बर पढ़ई लिखई के संग चुनाव घलो जीते ल पड़थे।
  फेर निहाली के नाती कहां मानने वाला हे वो ह कहे लागीस। हमर देस के पीएम मनमोहन सिंह ह त कभु चुनाव नहीं लड़े हे फेर कइसे बनगे। वोला कोन समझातीस।
 बात ल टारे बर जीवराखन ह कही दिस, जा भाग एमेर ले बड़े-बड़े तीर नहीं लागय।  फेर वोहा कहां मानने वाला हे जतका रेडिया  टीवी म सुने हे ततके ल बपरा ह जानथे। कहे लागीस वाह महु ल पीएम बनना हे। भाजपा वाला मन ह नरेन्द्र मोदी ल पीएम बना दे हावय अऊ कांग्रेस  ह घलो राहुल गांधी ल पीएम बनाबो काहत हे। ए बबा मोला ते हा पीएम बना दे न गा। तोर का बिगड़ही तेहा हौ कहा तहा ले सब  ल मै ह मना लुहु। मोरो टीवी म  फोटो आही। मे ह टीवी म देख देख के जान डारे हौ पीएम कइसे बनथे। फेर वोला कोनो समझा नहीं सकीस, साफ कही दिस वोखर संग पढ़ईया जम्मो लइका मन ह तैयार हे। वो ह किलास म का स्कूल म अउवल आथे अब त गांव वाला मन ह घलो कथे के निहाली के नाती अड़बड़ होशियार हे। निहाली के नाती के जिद ह बाढ़तेच जात रीहिस पढ़ई लिखई ल छोड़ ओखर पूरा ध्यान ह पीएम म लग गे।
खवई पीडई, खेलई, कुदई सब ल भुला दे हावय एकेच ढन रट लगाय हावय सब झन ह टीवी वाला ल कहाव के निहाली के नाती समारू ह पीएम हे। ओखरे फोटो छपही। गांव वाला मन असकटा गे त भुलवारे बर वोला कही दिस ले आज ले तै पीएम होगेस। अतका ल सुन के समारू ह खुश होगे हावय अऊ स्कूल मर म तावत रथे मैं पीएम बनगेव मैं पीएम बनगेव। अब वोलो कोन  समझावय के पीएम का होथे। भाजपा ह एखर पहिली लालकृष्ण आडवानी ल पीएम इन वेटिंग घोषित करें रीहिस, आज तक बपरा ह वेटिंग म लगे हे।

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

आप की चुनौति...


रायपुर। कांग्रेस और भाजपा की अडिय़ल रूख से पैदा हुई आम आदमी पार्टी ने जो अप्रत्याशित सफलता पाई है उससे एक बात तो तय है कि भारतीय जन मानस का दोनों ही बड़ी पार्टी से विश्वास टूटा है वहा आज भी राजनीति में उच्च आदर्श के सिद्धांत की न केवल  उम्मीद करती है बल्कि अपनी उम्मीद को साकर करने के किसी भी मौके को छोडऩा नहीं चाहती।
जन लोकपाल बिल को लेकर दिल्ली से शुरू हुई लड़ाई को जब गां-कस्बों में समर्थन मिले लगा तब भी इसे नौटंकी बताने वालों की कमी नहीं रही। कांग्रेस ने तो अन्ना के जनलोकपाल को सिरे से नकारा ही भाजपा की भूमिका भी संदिग्ध हो गई। संसद में पहुंचकर जन लोकपाल बनाने की चुनौती को स्वीकार करने वाले केजरीवाल को कम आंकना दोनों ही दलों के लिए परेशानी बढ़ाने वाला साबित हुआ और दिल्ली की जनता ने बता दिया कि वह सरकार से क्या उम्मीद रखती है।
आम आदमी पार्टी ने ििजस बेबाकी से सरकार बनाने के प्रस्ताव को नकारा है सही मायने में यह उच्च राजनैतिक सिद्धांत है जिसे इस देश की लगभग तमाम पार्टियों ने सत्ता की चाह में भुजला दिया है।
भाजपा और कांग्रेस ने गठबंधन की राजनीति में जो खेल खेला है उसे लोग नहीं भूल पाये है। राम मंदिर बनने से लेकर घारा  370 हटाने को लेकर वोट बटोरने के बाद सत्ता के लिए इन मुद्दों को त्यागना भाजपा के लिए आज भी  दाग बना हुुआ है।
 सत्ता के लिए सिद्धांतों से समझौते की परम्परा के बीच आम आदमी पाटीर्र के रूख को भले ही एक वर्ग अडिय़ल रवैया कह रहा हो पर सच तो यह है कि सिर्फ  सत्ता सुख के लिए  सिद्धांतों से समझौता न केवल अनुचित है बल्कि उन लोगों के साथ धोखा और बेईमानी है जिन लोगों ने मुद्दों की वजह से अनपा वोट और समर्थन दिया है।
इतिहास में ऐसे कितने ही उदाहरण है जब लोगों ने सिद्धांतों के आगे अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया पर वे किसी दबाव या प्रलोवन में टूटे नहीं है और वे इतिहास पुरूष बन गए है। इस  देश को आज गांधी के बाद ऐसे ही उच्च आदर्शवाले नेताओं की जरूरत है।
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में चल रहे सत्ता के खेल में स्वयं को दूर रख  एक नया आदर्श सावित किया है और हम उनसे ही ताय आदर्शो की उम्मीद करते है ताकि अब तक हो रही जनता से धोखाधड़ी बंद हो।
केजरीवाल और  उसकी पूरी पार्टी देश भर में लोकसभा का चुनाव लड़ रही है और यह कांग्रेस और भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबिह होगी। भले ही आज आम आदमी पार्टी पूरे देश बजूद को इंकार किया  जा रहा है और हमसे भी कई लोग इत्तेफाक नहीं रखते हो पर हम बता देना चाहते हैं कि आज भी इस देश में ऐसे लोगों की संख्या बहुत है जो अपने नेता में आदर्श ढूढंता है और इनकी संख्या किसी भी सरकार बनाने-बिगडऩे के लिए काफी है।

बुधवार, 27 नवंबर 2013

मोदी का नकली लाल किला भी काम नहीं आया


आदिवासियों पर लाठी चार्ज, भाजपा पर भारी!
बस्तर बराबरी पर तो सरगुजा में कांग्रेस आगे
रायपुर। आदिवासी सीटों के सहारे सत्ता तक दो बार पहुंची भाजपा के लिए इस बर सत्ता में वापसी में आदिवासी ही बाधा बन गये हैं। कहा जाता है कि आदिवासियों पर हुए लाठी चार्ज और नक्सली वारदातों का दर्द इस बार भाजपा पर भारी पडऩे लगा है ऐसे में मैदानी इलाके में वह क्या कर पाएगी कहना कठिन है।
छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी अब तक बस्तर के पास रही है लेकिन बस्तर से जिस तरह की खबरें आ रही है उसके बाद इस बार सत्ता की चाबी सरगुजा के पास होने की प्रबल संभावना है।
अब तक रूझान से स्पष्ट हो गया है कि बस्तर में कांग्रेस और भाजपा के बीच मुकाबला बराबरी का है और इस बार भाजपा को यहां 5 से 6 सीटों का नुकसान हो सकता है। पिछले दो चुनावों में बस्तर की 12 में से 11 सीट जीतकर सत्ता में आने वाली भाजपा के कई मंत्री भी यहां कांटे की टक्कर में फंस कर रह गये हैं। सूत्रों की माने तो इस बार यहा कम्यूनिष्ट पार्टी भी एक सीट जीत सकती है ऐसे में इस बराबरी की वजह से सत्ता की चाबी इस बार दूसरे क्षेत्र में चली गई है।
इधर राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि बस्तर में बराबरी की टक्कर की वजह से इस बार सत्ता की चाबी सरगुजा के पास आ गई है जहां 14 में से 10 सीटों पर कांग्रेस की जीत निश्चित माना जा रहा है। जबकि दो सीटों पर कड़े संघर्ष की स्थिति हैं। मोदी के लिए नकली लाल किला बनाकर सत्ता हासिल करने में लगी भाजपा को सरगुजा में जबरदस्त झटका लगा है वह यहां 2003 के चुनाव में 9 व 2008 के चुनाव में 10 सीटे हासिल कर सत्ता में आई थी इस बार यहां कब्जा बनाए रखने भाजपा ने पुरजोर लगाया था। यहां तक की प्रधानमंत्री इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी के लिए नकली लाल किला भी बनाकर चर्चा में आये थे लेकिन जिस तरह के रूझान सामने आ रहे हैं उसके बाद तो यही कहा जा सकता है कि यहां नरेन्द्र मोदी का सहारा भी काम नहीं आया।
यहां मिले रूझान के मुताबिक भाजपा भटगांव सीट सीधे सीत रही है जबकि मनेन्द्रगढ़ और प्रतापपुर में वह कांटे के संघर्ष में फंसी है। जिन सीटों पर कांग्रेस की जीत तय मानी जा रही है उनमें बैंकुंठपुर वेदांती तिवारी, प्रेमनगर खेलसाय सिंह, रामानुजगंज बृहस्पति सिंह, सामरी डॉ. प्रीतम राम, लुंड्रा चिंतामणी महराज, अंबिकापुर टीएस सिंहदेव और सीतापुर अमरजीत भगत शामिल है। बताया जाता है कि भाजपा के बस्तर और सरगुजा संभाग में इस स्थिति के लिए कई कारण गिनाये जा रहे हैं जिनमें से प्रमुख कारण आदिवासियों पर लाठी चार्ज के अलावा कानून व्यवस्था और भ्रष्टाचार के अलावा भाजपा के मौजूदा विधायकों की करतुत को बताया जा रहा है।
बहरहाल सरकार किसकी बनेगी यह तो बाद में ही पता चलेगा लेकिन यह तो तय है कि इस बार सत्ता की चाबी बस्तर ही होगी।

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

रमन का अगला शिकार बैस


मुख्यमंत्री के दावेदार निपट रहे हैं पर एक-एक करके

विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। छत्तीसगढ़ भाजपा में जो कुछ हो रहा है वैसा पहले कभी राजनीति में नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह पर मुख्यमंत्री के दावेदारों क एक एक कर निपटाने का जो खेल चल रहा है वह हैरान कर देने वाला है। जिसने भी मुख्यमंत्री की दावेदारी की उसे हाशिये में डालने की कोशिश आश्चर्यजनक है। ताराचंद, करूणा शुक्ला के बाद अब अगला शिकार रमेश बैस हो तो अचरज नहीं होगा।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बारे में राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि वे जीतने सरल सौम्य व सीधे दिखते है वैसा वे है ही नहीं। राजनीति में माहिर रमन सिंह ने जब से मुख्यमंत्री पर संभाला है उनकी अपने प्रतिनिधियों पर नजर रहती है।
पहले कार्यकाल में डॉ. रमन सि ंह के कारनामों का विरोध करने वाले आदिवासी एक्सप्रेस की उन्होंने जिस बखुबी से हवा निकाली वह भले ही राजनैतिक सुझ बुझ कहा जाए लेकिन इसके बाद उन्होंने अपने विरोधियों के पर कतरने शिवराज सिंह, नंदकुमार साय और ताराचंद साहू को हाशिये पर लाने की कोशिश की शिवराज और नंदकुमार साय को इस कदर हाशिये पर डाला गया कि वे इससे उबर ही नहीं पा रहे है। जबकि स्व. दिलीप सिंह जुदेव ने सार्वजनिक रूप से रमन राज को प्रशासनिक आतंक की संज्ञा दी। स्व. ताराचंद साहू को तो पार्टी छोडऩे पर मजबूर कर दिया और  इसके बाद महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष करूणा शुक्ला इसलिए निशाने पर आये क्योंकि वे भी मुख्यमंत्री की प्रबल दावेदार होने लगी थी।
सूत्रों की माने तो करूणा शुक्ला को एक खेमे ने सांसद बनने से रोकते हुए जमकर भीतर घात किया और नितिन गडकरी के करीबी संचेती बंधुओं के कोल ब्लाक घोटाले में जब वे मुखर हुई उसी दिन से उन्हें हाशिये में डालने की जो कोशिश हुई उससे त्रस्त करूणा शुक्ला को मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा।
बताया जाता है कि कुर्र्सी के लिए जो जो नेता खतरा बनकर उभरे उन्हें बाटने की झाजिश को लेकर भाजपा में कई तरह के सवाल उठने लगे है और लोग भाजपा में चल रहे इस खेल को जोगी राज से भी खतरनाक मानने लगे हैं। भाजपा में अब इस बात की चर्चा है कि डॉ. रमन सिंह का अगला शिकार रायपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद रमेश बैस होंगे? कहा जाता है कि रमन सिंह के खिलाफ जरा भी माहौल बिगड़ा तो रमेश बैस ही मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार है और वे दिल्ली में भी अच्छी पकड़ रखते हैं।
हालांकि कुछ लोग अगला शिकार के रूप में तेजी से उभर रही दुर्ग की सांसद सरोज पाण्डेय को भी बता रहे है और इन दिनों सरोज पाण्डेय को भी हाशिये में डालने की जबदस्त कोशिश हो रही है।
भाजपा में बड़े नेताओं को जिस तरह से हाशिये में डालने की कोशिश हो रही है वह आश्यर्च जनक है और यह खेल नहीं रूका तो आने वाले दिनों में भाजपा को मुसिबत बढ़ सकती है।
बहरहाल डॉ. रमन सिंह के सरल चेहरे के पीछे के सच को लेकर चल रही चर्चा थमने का नाम नहीं ले रहा है।
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शनिवार, 9 नवंबर 2013

इहु बने काहत हे उहु बने गोठियात हे...



कांग्रेस ह देश ल बरबाद कर डारीस अऊ भाजपा ह प्रदेश ल बरबाद कर डारीस। याने सब सही होड़ा बाद होगे।
वो दिन बुढ़ा गार्डन म चरचा के इही सार रीहिस। भाजपाई मन ह कहात राहय नई देखत हस गा कांग्रेस ह कइसे देश ल बरबाद करत हावय। सरदार पटेल ह नई रहीतीस त ए देश ह एक होय पातीस। नेहरु अऊ गांधी के बस चलतीस त का का नई कर डारतीन। देख लेवव दिल्ली म बइठे सरकार ह कतका भ्रष्टाचार करत हावय। कोयला घोटाला, टू जी घोटाला अऊ वोट बैंक के राजनीति करत करत आतंकवादी मन ल पंदोली अलग देवत हावय। ए मन ल कुर्सी म बइठाहु त देश ल बेच खाहीं।
भाजपाई मन के गोठ बात ल सुन के रामलाल ह गुसिया गे अऊ केहे लागीस। जादा मत बात कर तुहु मन ल मौका दे रीहिन। का करवे पाकिस्तान ह कारगील ल छोड़ संसद भवन तक घुसर गे रीहिस अऊ आतंकवादी मन ल कंधार तक लेग के छोडिऩ हावय कोयला, पानी, बिजली, खेत, बांध, नदिया-नरवा कुछु बेचे ल बाचे हावय। नक्सली मन ले सेटिंग करथव। कांग्रेसी मन ल मरवा देथव। कलेक्टर ल छोड़वा देथव। तुंहर नेता मन ह भ्रष्टाचार म अतका रमावत हे जानो मानो मरही तभो संग म अपन संपत्ति ल लेके जाही।
तभे रामसिंह ह देखीस के मामला ह बाढ़त हे बीच बचाव करे लागीस - छोड़ न ग तुमन काबर लड़थव। कोनो दुध के धुले नहीं हे। दुनो पार्टी के नेता मन के इही हाल हे। तभे तो वो दिन नरेन्द्र मोदी ह कीहिस के कांग्रेस ह देश ल बरबाद करत हे त राहुल गांधी ह पचास ठन उदाहरण देके बतादीस के भाजपा ह कइसे प्रदेश ल बरबाद करत हावय।
समारु ह वो दिन त कहतेच रीहिस। कोनो ल देश के प्रदेश के चिंता नई हे सब ल सत्ता म कइसे बइठन तेखरे चिंता हे। वो ह हर चुनाव म अइसे कही के फारम ल भरथे फेर के झन वोला वोट देथे। कांग्रेस होय चाहे भाजपा दुनो पार्टी के नेता मन के जमीन जयजाद ल देख लेवव। मनमाने बाढ़त हे। एक दुसर ल गारी देके जनता ल बेंझारत हावयं। इखर मन बर नियम कानून कुछु नई हे। तै मैं गलती से कुछु करबो त फंस जाबो एमन ह कुछु कर डारय इंखर कुछुच नई बिगडय़।
दुनो पार्टी के नेता मन ह अअइसे गोठियाथे जानो मानो इंखर ले ईमानदार कोनो नई हे। तभे त वो दिन ईतवारी ह नई काहत रीहिस जतका चुनाव म मिलथे ले लेवव बाद म कुछु नई मिलय। अपन टुरा ल कमाय बर पढ़ा लिखा के बंबई भेज दे हावय अऊ इहां गरीबी रेखा के कार्ड बना के किंदर-किंदर के मेछरावत रथे। पहिली वो ह कतका हमर राज हमर राज काहत रहाय आजकल जेती पइसा देखथे तेती नाचत रथे। कुछु कबे तहां ले मुच ले हांस देथे अऊ अतके कथे छोड़ न गा जमाना के साथ चलना चाही। न कांग्रेस ह गलत कहीथे न भाजपा ह गलत कथे। जम्मोझन त वइसनेच हे। अपन खुन ल काबर सुखाववं।

बुधवार, 6 नवंबर 2013

गडकरी की सभा को लेकर कई भाजपाई नाराज


कोल ब्लाक का मामला गरमाने का खतरा....
विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। प्रदेश भाजपा में अपने पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी की सभा को लेकर विवाद होने की खबर है। इस चुनावी समय में गडकरी जैसे विवादास्पद नेता की सभा को लेकर न केवल भाजपाईयों में नाराजगी है बल्कि इसे विनाश काले विपरीत बुद्धि की संज्ञा भी देने लगे हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा ने विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार-प्रसार के लिए जिन राष्ट्रीय नेताओं को छत्तीसगढ़ बुलाया है उनमें पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी भी शामिल है और इस नाम को लेकर कई नेताओं ने न केवल आश्चर्य जताया है बल्कि नाराजगी भी व्यक्त किये जाने की चर्चा है।
ज्ञात हो कि नितिन गडकरी को संघ का पसंदीदा नेता माना जाता है और उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाये रखने संघ के दबाव के चलते भाजपा के संविधान तक में संशोधन किये जाने की चर्चा रही है।
सूत्रों की माने तो नितिन गडकरी को लेकर  डॉ. रमन सिंह की नजदीकियों को लेकर भी कई तरह की चचा्र है। कैग ने भटगांव कोल ब्लॉक आबंटन को लेकर रमन सरकार पर उंगली उठाई हे। इस कोल ब्लॉक का ठेका लेने वाले संचेती ब्रदर्स का नितिन गडकरी से संबंध रहा है। कांग्रेस ने तो इस मामले में डॉ. रमन सिंह पर गंभीर आरोप लगाये हैं और कहा जाता है कि डॉ. रमन सिंह ने अपने तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष को खुश करने संचेती ब्रदर्स को भटगांव कोल ब्लॉक उपहार में दिया था। इतना ही नहीं इस आबंटन से छत्तीसगढ़ को एक हजार 52 करोड़ का घाटा कैग ने बताया है। जबकि 49 प्रतिशत शेयर होने के बाद भी कंपनी को एमडी का पद दे दिया गया था।
ज्ञात हो कि इस मामले के बाद नितिन गडकरी की कंपनी की कई घोटाले उजागर हुए थे। आप पार्टी के नेता अरविन्द केजरीवाल के खुलासे के बाद नितिन गडकरी को पार्टी अध्यक्ष का पद तक खोना पड़ा था।
घपले-घोटाले को लेकर चर्चित नितिन गडकरी को चुनाव के दौरान सभा के लिए बुलाने को लेकर भाजपा में विवाद तो बनी है लेकिन इसे हवा नहीं दी जा रही है। बल्कि विरोध के स्वर को अनुशासन के डंडे से हकाला जा रहा है।
इधर कांग्रेस ने भी नितिन गड़करी को बुलाये जाने को लेकर डॉ. रमन सिंह पर तीखा हमला करते हुए यहां तक कह दिया है कि इससे भाजपा का छत्तीसगढ़ के प्रति रवैया क्या है रमन सिंह किस तरह का छत्तीसगढ़ चाहते हैं यह स्पष्ट होने लगा है।
बहरहाल नितिन गडकरी की सभा को लेकर भाजपा फंसते नजर आ रही है अब देखना है कि नितिन की सभा के बाद क्या कुछ होता है।

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

सात पीढ़ी तो मुगल नहीं चल पाये...


सत्ता पाते ही सात पुश्तों की व्यवस्था करने का जो खेल राजनीति में चलने लगा है वह नि:संदेह शर्मनाक है। एक तरफ जब आम आदमी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है तब हमारे जनप्रतिनिधियों की अय्याशी हमें लोकतंत्र में किस रास्ते पर ले जा रहे हैं? यह सवाल एक आम आदमी के सामने यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा है।
धरा बेच देंगे गगन बेच देंगे
कलम के सिपाही अगर सो गये
तो वतन के पुजारी वतन बेच देंगे।।

राजनेताओं की करतूतों पर यह सटीक बैठने लगी है आम जन मानस आज इस बात से हैरान और परेशान है कि जिसे सत्ता सौंपे वही लूटने और अपनी सात पुश्तों की व्यवस्था में लग जाता है लेकिन मीडिया की दखलंदाजी और लोकलाज का डर न होता तो ये लोग सब बेच खाते। नये नवेले छत्तीसगढ़ में कानून व्यवस्था की बात ही बेमानी है। बढ़ते नक्सली आतंक ने तो आम लोगों का जीना दूभर कर दिया है। रमन राज में बस्तर के पांच सौ से अधिक गांव खाली हुए और लोग शरणार्थी शिविरों में रह रहे है।
भ्रष्टाचार और नौकरशाहों की मनमानी का तो यह आलम रहा है कि जूदेव, बैस, ननकीराम कंवर तक प्रशासनिक आतंक, दलाल और निकम्मा जैसे शब्दों का प्रयोग करते नजर आये। दस साल में प्रदेश में मची लूट खसोट का यह आलम रहा कि चाहे उद्योग खोलने की बात हो या कमल विहार और नई राजधानी निर्माण की बात हो सब जगह नियम कानून को ताक पर रखकर किसानों की जमीनों का अधिग्रहण किया गया। नई राजधानी में तो खड़ी फसल तक में बुलडोजर चलाया गया। जबकि जनसुनवाई के नाम की नौटंकी कर किसानों की जमीन छिन ली गई। उद्योगों को फायदा पहुंचाने पानी, बिजली, बांध, खदान, सड़क तक बेच दी गई। ओपन एक्सेस घोटाले की बात हो या कोल ब्लाक घोटाले की बात हो डॉ. रमन सिंह पर सीधे आरोप मढ़े गए लेकिन कभी कुछ नहीं हुआ। रोगदा बांध बेचे जाने को लेकर जांच भी हुई तो वह बहुमत की ताकत से उचित बता दिया गया। लोग चीखते रहे कि बांध तक बेच दी गई लेकिन किसी भी नेता को कोई फर्क नहीं पड़ा। संस्कृति की दुहाई देने वालों ने प्रदेश में सलमान खान जैसे अपराधिक छवि को तो बुलाय ही कई जगह पर अश्लील डांस के कार्यक्रम आयोजित कर शिरकत भी की। लूटने के इस खेल में सरकार ही नहीं विपक्ष की भूमिका भी रही। नेता प्रतिपक्ष को लोग मजाक में ही सही 13वें मंत्री का दर्जा देने लगे हो तो यह शर्मनाक स्थिति नहीं तो और क्या है।  भाषणों में एक दूसरों के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करने वाले निगम से लेकर विधानसभा तक एक दूसरे के हाथों लड्डू खाते नजर आये। ऐसे में आप अपनी हताशा और निराशा के गर्त में न जाए तो क्या हो। लोगों में बेहद गुस्सा है पर वे इसलिए अपने गुस्से का इजहार नहीं कर रहे है क्योंकि उन्हें लोकतंत्र पर भरोसा है उन्हें लगता है कि कभी तो उनके जनप्रतिनिधियों में लज्जा आयेगी।

बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

आदिवासी हो या अग्रवाल सब हुए है माला-माल


सालों से सत्ता संभालने वाले पीछे छुटे


विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व लाख दावा करे कि छत्तीसगढ़ की सरकार भ्रष्टाचार से दूर रही है और उनके नेता राजनैतिक सुचिता का पालन करते हुए सादगी के साथ जनसेवा में लगे हैं। लेकिन पिछले पांच सालों में मुख्यमंत्री ीााजपाई मंत्रियों और विधायकों की संपत्तियों में कई गुणा वृद्धि साफ चुगली कर रही है कि हकीकत क्या है? और जनता भी समझ चुकी है।
छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर नामांकन फार्म भरने का दौर अंतिम चरण में है और चुनाव आयोग के कड़े निर्देश के बादी प्रत्येक प्रत्याशियों को अपनी संपत्ति की घोषणा करनी पड़ रही है। संपत्ति की घोषणा से जो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं व न केवल आश्चर्यजनक हे बल्कि आम आदमी को हैसान कर देने वाला है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके परिवार की संपत्ति 6 गुना तक बढ़ गई है। वो इसी तरह की बढ़ोतरी लता उसेण्डी, केदार कश्यप से लेकर प्रेमप्रकाश पाण्डे जैसे नेताओं की भी कई-कई गुणा बढ़ी है। रमन राज के प्राय: सभी मंत्रियों और दिग्गज भाजपाईयों की संपत्ति में हुई कई-कई गुणा वृद्धि किसी जादुई नुस्खे से कम नहीं है।
प्रत्याशियों की संपत्ति के मामले में कांग्रेस नेताओं की संपत्ति इस पैमाने पर नहीं बढ़ी। आखिर लंबे समय तक सत्ता सुख भोगने वाले कांग्रेसियों के मुकाबले भाजपाईयों की संपत्ति इस पैमाने पर क्यों और कैसे बढ़ गये यह जन चर्चा का विषय है। जबकि भाजपा नेता स्वयं को सादगी के साथ जन सेवा और भ्रष्टाचार विरोधी बताते नहीं थकते।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की संपत्ति बढऩे को लेकर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तक ने सवाल उठाये थे लेकिन डॉक्टर साह बने यह कहकर सवाल को टाल दिया कि दिग्विजय सिंह तो बोलते ही रहते हैं लेकिन अब यह सवाल जनमानस में तैरने लगा है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय को संपत्ति में हुए अप्रत्याशित इजाफे पर तो स्वाभिमान मंच ने भी बवाल खड़ा कर दिया है। प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, गौरीशंकर अग्रवाल, बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत सहित कई गैर छत्तीसगढिय़ा नेताओं की संपत्ति में अप्रत्याशित बढ़त को लेकर स्वाभिमान मंच ने हमले भी तेज कर दिये हैं। हालांकि कई-कई गुणा संपत्ति बढ़ाने के मामले में भाजपा के आदिवासी मंत्री भी पीछे नहीं है। केदार कश्यप, विक्रम उसेण्डी, सुश्री लता उसेण्डी जैसे आदिवासी मंत्रियों की संपत्ति में ईजाफा भी जादुइ्र ढंग से हुई है।
कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते नहीं थकने वाली भाजपा के नेताओं के सत्ता में आते ही संपत्ति अर्जन की गति पर अब तो दूसरों के पाप गिनाने से स्वयं के पाप नहीं धुलने की कहावत की चर्चा है।
सूत्रों की माने तो भाजपा सरकार यानी रमन सरकार के मंत्रियों व विधायकों की बढ़ती संपत्ति का मामला भी चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है और विरोधी दल इसे सीधे भ्रष्टाचार से जोडऩे लगा है जो आने वाले दिनों में भाजपा के विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व लाख दावा करे कि छत्तीसगढ़ की सरकार भ्रष्टाचार से दूर रही है और उनके नेता राजनैतिक सुचिता का पालन करते हुए सादगी के साथ जनसेवा में लगे हैं। लेकिन पिछले पांच सालों में मुख्यमंत्री ीााजपाई मंत्रियों और विधायकों की संपत्तियों में कई गुणा वृद्धि साफ चुगली कर रही है कि हकीकत क्या है? और जनता भी समझ चुकी है।
छत्तीसगढ़ में हो रहे विधानसभा चुनाव को लेकर नामांकन फार्म भरने का दौर अंतिम चरण में है और चुनाव आयोग के कड़े निर्देश के बादी प्रत्येक प्रत्याशियों को अपनी संपत्ति की घोषणा करनी पड़ रही है। संपत्ति की घोषणा से जो चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं व न केवल आश्चर्यजनक हे बल्कि आम आदमी को हैसान कर देने वाला है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और उनके परिवार की संपत्ति 6 गुना तक बढ़ गई है। वो इसी तरह की बढ़ोतरी लता उसेण्डी, केदार कश्यप से लेकर प्रेमप्रकाश पाण्डे जैसे नेताओं की भी कई-कई गुणा बढ़ी है। रमन राज के प्राय: सभी मंत्रियों और दिग्गज भाजपाईयों की संपत्ति में हुई कई-कई गुणा वृद्धि किसी जादुई नुस्खे से कम नहीं है।
प्रत्याशियों की संपत्ति के मामले में कांग्रेस नेताओं की संपत्ति इस पैमाने पर नहीं बढ़ी। आखिर लंबे समय तक सत्ता सुख भोगने वाले कांग्रेसियों के मुकाबले भाजपाईयों की संपत्ति इस पैमाने पर क्यों और कैसे बढ़ गये यह जन चर्चा का विषय है। जबकि भाजपा नेता स्वयं को सादगी के साथ जन सेवा और भ्रष्टाचार विरोधी बताते नहीं थकते।
मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की संपत्ति बढऩे को लेकर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह तक ने सवाल उठाये थे लेकिन डॉक्टर साह बने यह कहकर सवाल को टाल दिया कि दिग्विजय सिंह तो बोलते ही रहते हैं लेकिन अब यह सवाल जनमानस में तैरने लगा है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय को संपत्ति में हुए अप्रत्याशित इजाफे पर तो स्वाभिमान मंच ने भी बवाल खड़ा कर दिया है। प्रेमप्रकाश पाण्डेय, अमर अग्रवाल, गौरीशंकर अग्रवाल, सहित कई गैर छत्तीसगढिय़ा नेताओं की संपत्ति में अप्रत्याशित बढ़त को लेकर स्वाभिमान मंच ने हमले भी तेज कर दिये हैं। हालांकि कई-कई गुणा संपत्ति बढ़ाने के मामले में भाजपा के आदिवासी मंत्री भी पीछे नहीं है। केदार कश्यप, विक्रम उसेण्डी, सुश्री लता उसेण्डी जैसे आदिवासी मंत्रियों की संपत्ति में ईजाफा भी जादुइ्र ढंग से हुई है।
कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते नहीं थकने वाली भाजपा के नेताओं के सत्ता में आते ही संपत्ति अर्जन की गति पर अब तो दूसरों के पाप गिनाने से स्वयं के पाप नहीं धुलने की कहावत की चर्चा है।
सूत्रों की माने तो भाजपा सरकार यानी रमन सरकार के मंत्रियों व विधायकों की बढ़ती संपत्ति का मामला भी चुनावी मुद्दा बनता जा रहा है और विरोधी दल इसे सीधे भ्रष्टाचार से जोडऩे लगा है जो आने वाले दिनों में भाजपा के लिए खतरनाक है।
बहरहाल मुख्यमंत्री सहित भाजपाई मंत्रियों की बढ़ती संपत्ति पर जनचर्चा तेज होने लगी है अब देखना है कि इसका जवाब भाजपा कैसे देती है या जनता जवाब तैयार करेगी।लिए खतरनाक है।
बहरहाल मुख्यमंत्री सहित भाजपाई मंत्रियों की बढ़ती संपत्ति पर जनचर्चा तेज होने लगी है अब देखना है कि इसका जवाब भाजपा कैसे देती है या जनता जवाब तैयार करेगी।

सोमवार, 28 अक्तूबर 2013

संगठन पर सत्ता कट न जाए पत्ता


मेरी मर्जी के आगे सब बेबस!
विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। पार्टी विद डिफरेंट का नारा लगाने वाली भाजपा के छत्तीसगढ़ इकाई में वहीं सब कुछ हो रहा है जिसके लिए वे नेहरू गांधी परिवार और कांग्रेस को कोसते रहे हैं। भ्रष्ट्राचार से लेकर टिकिट वितरण में मनमानी का यह आलम है कि पारी के कई नेता किनारे कर दिए गए हैं। तो कार्यकर्ता घर बैठने लगे हैं। कोयले की कालिख पूते चेहरे से लेकर नार्को सीडी का दाग और शराब ठेकेदार के द्वारा चुनाव प्रचार सब कुछ साफ दिख रहा है लेकिन जब मेरी मर्जी चले तो किसी की नहीं चलती।
छत्तीसगढ़ में हैट्रिक की तैयारी में जुटी भाजपा में जिस पैमाने पर बगावत के झंडे बुलंद हुए है वैसा कमी नहीं हुआ है। करूणा शुक्ला को मनाने की बजाय मैं नहीं मनाउंगा जैसे शब्द भी किसी ने नहीं सुना होगा और न ही भाजपा के बड़े नेता इस पैमाने पर कभी एक साथ नाराज ही हुए हैं।
छत्तीसगढ़ भाजपा में मचे इस महाभारत में धृतराष्ट्र कौन है, भीष्म कौन है और दुर्योधन कौन है! यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि राष्ट्रीय नेतृत्व ने यह मौका कैसे आने दिया और यह सब के पीछे वजह की तलाश क्यों नहीं की गई।
बताया जाता है कि छत्तीसगढ़ भाजपा में कुर्सी की लड़ाई तो पहले ही कार्यकाल से ही शुरु हो गई थी। ननकीराम कवंर, रमेश बैस, रामविचार नेताम और बृजमोहन अग्रेवाल की निगाह मुख्यमंत्री की कुर्सी में रही है लेकिन कहा जाता है कि रमन सिंह के ताकतवर होने की वजह से असंतुष्टों को तवज्जों नहीं मिली।
दूसरी पारी में रमन ङ्क्षसह इतने ताकतवर हो गए और यही से भाजपा की अंदरूनी राजनीति में उबाल आना शुरू हो गया है। असंतुष्टों की फेहरिश्त में नंदकुमार साय, शिवप्रताप ङ्क्षसह से लेकर कई नाम जुडऩे लगे। लेकिन रमन ङ्क्षसह के ताकत की वजह से गलत कामों का भी विरोध होना बंद हो गया है।
बताया जाता है कि भटगांव कोल ब्लाक आबंटन की कालिख से रमेश बैस, करूणा शुक्ला ने जरूर अवाज उठाई लेकिन उन्हें भी खामोश कर दिया गया।
इसके बाद शराब ठेकेदार बल्देव सिंह भाटिया और पार्टी को बदनाम करने वाले प्रदीप गांधी को लेकर भी सवाल उठाये जाने गले। यहां तक कि असंतुष्टों ने एक दो नहीं बल्कि 5-6 पर्चे के माध्यम से डॉ रमन सिंह और उनके ...को लेकर हमला बोला लेकिन इन लोगों से चर्चा की जरुरत ही नहीं सझा गया।
ऐसे में झीरम घाटी कांड और नार्को सीडी के मामले को लेकर भी असंतुष्टों की आवाज दबा दी गई।
बताया जाता है कि टिकट वितरण को लेकर तो डा.रमन सिंह ने साफ कर दिया था कि हैट्रिक उन्हें लगानी है इसलिए केवल उन्हें ही टिकिट दी जायेगी जिन्हें वे जीतने योग्य प्रत्याशी समझते है। राजनाथ सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष होने और ठाकुर लांबी के प्रभाव के आगे यहां चल रहे गड़बड़साले को  कई लोगों ने नजर अंदाज दिया और इसका परिणाम यह है कि छत्तीसगढ़ भाजपा में बगावत शुरू हो चुका है। हालांकि करूणा शुल्का, गणेशराम भगत को छोड़ कोई बड़ा नाम सामने नहीं आया है लेकिन जिस तरह से बस्तर से लेकर अंबिकापुर और खुद मुख्यमंत्री के जिले राजनांदगांव में बगावत हुए है उसकी वजह मेरी मर्जी को ही बताया जा रहा है।
बहरहाल भाजपा में लड़ाई तेज हो गई है ऐसे में चुनाव परिणाम जो भी है हमारा असर तो साफ दिखेगा।
पूनम-अवधेश को फिर टिकिट...
पिछले चुनाव में पूनम चंद्राकर और अवधेश चंदेल की टिकट काट दी गई थी। कहा जाता है कि रमन को सत्ता से बेदखल करने के अभियान में शामिल पूनम की टिकिट रमन सिंह ने ही कटवाई थी लेकिन इस बार हैट्रिक का सपना पूरा करने पूनम चंद्रकार को फिर टिकट दी गई।
पप्पू भाटिया और प्रदीप गांधी परिवार...
डॉ. रमन सिंह की प्रदेश के सबसे बड़े शराब ठेकेदार पप्पू उर्फ बलदेव सिंह भाटिया और संसद में घूस कांड की वजह से सदस्यता खोने वाले प्रदीप गांधी के नजदीकी को लेकर भाजपा नेताओं में जबरदस्त आक्रोश है। भाजपाई दबे जुबान में कहने लगे हैं कि इन दोनों की वजह  से भाजपा की छवि पर असर पड़ रहा है। राजनांदगांव जिले में तो इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
हारने वालों को टिकिट
पिछला चुनाव हारने वाले कई नेताओं को सिर्फ इसलिए टिकिट दी गई क्योंकि वे मुखिया के करीब है, जबकि अजय चंद्राकर से लेकर कई ऐसा नेता है जिसकी बदनामी की वजह से कार्यकर्ताओं मेें आक्रोश है।

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

लालच बुरी बला है...


हर व्यक्ति बचपन से सुन रहा है कि लालच बुरी बला है! सत्य पर आधारित कितनी ही कहानियां सुनी-सुनाई जाती है, पर आम लोगों में न तो लालच कम हो रहा है और न ही वे लालच के फेर में अपराध करने से ही हिचक रहे हैं।
खासकर इन दिनों राजनेताओं में बढ़ते लालच से आम आदमी क्षुब्द है। उनका गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। अरबो-खरबों के घोआले के बाद भी उनका लोकतंत्र पर भरोसा है तो इसके पीछे यह उम्मीद है कि देर सबेर ऐसे लोगों को उनके कर्मों की सजा जरुर मिलेगी...
देश भर में नेताओं के बढ़ते लालच ने नेताओं का जो विभत्स रूप जनता के जजेहन में स्थापित किया है हम यहां उसकी चर्चा फिर कभी करेंगे, लेकिन छत्तीसगढ़ निमा्रण के बाद यहां के नेताओं ने जो अकृत संपत्ति अर्जित की है वह शर्मसार कर देने वाला जरुर है।
हम यहां किसी लालची नेता की कथा सुनाने इच्छुक है और न ही सत्ता मद में डुबे नेताओं की करतुतों पर ही अभी कुछ कहने वाले हैं। क्योंकि हर कोई जानता है कि विधायक या मंत्री बनने के पहले इनकी हैसियत क्या थी और आज क्या हो गई है।
हम यहां कोयले की कमाई में मुख्यमंत्री के शामिल होने या भाई भतीजावाद पर ही कुछ लिखना चाहते हैं और न ही गर्भाशय कांड या आँख फोडऩे वाले डॉक्टरों की घटना को ही याद दिलाना चाहते हैं क्योंकि इइन सब घोटालों पर काफी कुछ लिखा जा युका है और शायद जनता ने भी तय कर लिया होगा कि वे इस बार किसे जिताना चाहते हैं।
पिछले चुनाव में भी जनता ने जिन्हें वह पसंद नहीं करती है लेकिन संविधानिक व्यवस्था के चलते वे लोग भी विधायक बन गए या उन लोगों की सरकार बन गई जो आधे से कम वोट पाये।
यह स्थिति पूरे देश भर के राज्यों की है। 50 फीसदी जनता के विरोध में मत डालने के बाद भी वे इसलिए विधायक बन जाते हैं क्योंकि वोटों के बंटवारे की वजह से उनका वोट सबसे अधिक होता है।
छत्तीसगढ़ में गिनती के विधायक हैं जिन्हें पचास फीसदी से अधिक लोग पसंद करते हैं और डॉ. रमन सिंह की दूसरी पारी तो सिर्फ 42 फीसदी वोटों के भरोसे बनी यानी 58 फीसदी लागों ने नकार दिया था।
हम तो यहां सिर्फ उन नेताओं को याद दिलाना चाहते हैं जो लालच में अंधे होकर सिर्फ पैसा कमाने में लगे हैं और जनता के हितों की ही अनदेखी कर रहे हैं बल्कि सरकारी धनों में सेंध लगाकर अपनी तिजौरी भर रहे हैं। हम ऐसे कृत्यों को देशद्रोह मानते हैं और हमें विश्वास है कि भले ही आज के कानून के दायरे से बाहर है लेकिन देर सबेर न केवल उनको इसकी सजा मिलेगी बल्कि उन पर आंसू बहाने वाला भी नहीं होगा।
हम यह बात उन नेताओं से फिर से कहना चाहेंगे उनकी लालच की वजह से ही छत्तीसगढ़ में विकास अभी  भी कोसो दूर हो गया है। उनकी लालच की वजह से ही महंगाई बढ़ रही है, आम आदमी को सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी जरुरतों से मरहूम होना पड़ रहा है।
नेताओं को लोकतंत्र में नौकरशाह को सही रास्ते पर काम कराने के लिए चुना जाता है लेकिन नेताओं और नौकरशाह ने अपराधियों से गठजोड़ बनाकर आम लोगों के हितों पर डाका डालने का काम शुरु कर दिया है। नेताओं ने अकूृत संपत्ति अर्जित कर ली है लेकिन वे भूल जाते हैं कि देर सबेर जनता उन्हें उनके इस बढ़ते वैभव की सजा जरुर देगी और उन्हें जेल तक जाना पड़ेगा।  क्योंकि लालच बुरी बला है और जनता यह बात अच्छी तरह जानती है, और वह भूलती भी नहीं है...
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रविवार, 6 अक्तूबर 2013

पांच साल ले मारीन लात अब खिलावत हे कुकरा भात


कस रे बइठभाल ते हा आजकल अड़बड़ मुसकावत हस। का होगे रे। बिसौहा के गोठ ल सुन के बइठमाल ह अपन हांसी ल नई रोक पाइस। अऊ कीहिस। का कहीबे कका आज कल रोज कुकरा भात खाय बर मीतल हे। भगवा अऊ खादी वाला मन रोज सम्मेलन बुलावत हे। अऊ महु ह ए सम्मेलन म पहुंच जाथौ। मोला का करेबर हे के कोन समाज के सम्मेलन हे। मै हा त भइगे अतके जानथौं के कुरसी के सेती ये नेता मन ह कुकरा भात खवावत हे।
अब वो दिन मुसलमान मन ल भगवा वालामन ह बिरियानी खवाईन। अब वोट के सेती जम्मों झन ल जोरियाय रीहिन महु हा खुसर गेंव। भइगे झन पूछ कका गोसेच-गोस ल खांयव। बिसौहा कही पारिस कस रे टुरा जानस नहीं ए सरकार ह हमर समाज बर कतेक अतीयाचार को हावंय। अतका ल सुनीस तहां ले बइठमाल घलों बिफर गे। जानथव गा। अऊ मजा ल वोट दे के बेर निकालहूं। कुछुच ल नई भुलाय हो। फेर खाय बर घलो नई छोड़व ।
ये दुनों झन के गोठ ल अड़बड़ झन सुनीन। जम्मो झन जानथे के जीतीन वहां ले पांच साल ले सरकार म बइठईया मन ह आम आदमी ल कईसे भुलाथे अऊ अपन सगा-संगी मन क तिजोरी ल कइसे भरथे। तभे त बइठमाल ह काहत रीहिस कुछुच ल नई भुलाय हो।
आजकल हमर राज म इही चलत हे। जेन ल देखबे तउने ह वोट खातिर कुकुर असन पुछी ल डोलावत हे अऊ कुछु बोल देबे तभो दांत ल दिखावत हे। नई बोले रहीबे तउनों बात म रोस देखाने वाला मन आज कल दांत निपोरत घुमत हे।
तभे त वो दिन बिरयानी खवईया मन उपन हगरू ह भड़क रहाय। में अजकल के बुजा मन तीर मान अपमान नई बाचे हे। साले मन ह खाय बर मरत हावय।
अब हगरू के गोठ ल का कबे तिहारू ह नई बतावत रीहिस के अतेक नाक लगा गे करोड़ पति राधेश्याम के टुरा ह कइसे एक ठन लेपटाप बर बिन खाय पिये लाईन म जिछुट्टा बरोबर लगे रीहिस। कुछुच के कभी नई हे। चारो डहार ले पइसा आवत हे। अतको नई सोचीन के लेपटाप ल काय करहूँ। घर म पहिलिच ले चार-चार ठन लेपटॉप हे।
राधेश्याम के टुरा ल का कईबे रामजी लाल ल देख घर म दु-दु ठन डाक्टर हे तभो ले 35 हजार वाला स्मार्ट कार्ड बनवा डारिन।
अइसने मन के सेती त सरकारी खजाना हा बोहावत हे अऊ आम आदमी ह कुछ नई पावत हे।

सोमवार, 30 सितंबर 2013

पूरी भाजपा को भारीपड़ सकता है जैन मूर्ति चोरी कांड


0 प्रदेशभर के जैन समाज जल्द दिखाएंगे ताकत
(विशेष प्रतिनिधि)
रायपुर। कर्नाटक के जैन तीर्थ से हुई मूर्ति चोरी का मामला गरमाने लगा है। मूर्ति बरामदगी मामले मंत्री के कथित दबाव में छत्तीसगढ़ पुलिस के असहयोग से जैन समाज का गुस्सा चरम पर है और यही हाल रहा तो जैन समाज पूरे प्रदेश में भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल सकती है।
ज्ञात हो कि अपने भगवान की मूर्ति चोरी को लेकर जैन समाज बेवहद आक्रोशित है। यहां तक जैन मुनियों ने उपवास तक का निर्णय ले लिया था। कर्नाटक के जैन मंदिर से हुई मूर्ति चोरी में छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित माने जाने वाले ज्वेलर्स अनोपचंद त्रिलोकचंद ज्वेलर्स के संचालकों की संलिप्पता की खबर ने यहां हलचल मचा दी है।
सूत्रों की माने तो एटी ज्वेलर्स के संचालकों को प्रदेश के एक दमदार मंत्री का वरदहस्त प्राप्त है और यही वजह है कि छत्तीसगढ़ पुलिस के असहोयग को इसी दमदार से जोड़ा जा रहा है।
हालांकि इस मामले में एटी ज्वेलर्स के संचालक स्वयं को पाक साफ बता रहे हैं, लेकिन एटी ज्वेलर्स को लेकर पहले भी तरह-तरह की चर्चा होते रही है। सोने की बिक्री में कलाकारी के अलावा भ्रष्टाचार के पैसों का निवेश को लेकर एटी ज्वेलर्स पहले भी चर्चा में रहा है।
ताजा मामला जैन समाज का होने के कारण पूरा खेल बिगड़ गया है। हालांकि चर्चा यह भी है कि पैसे के प्रभाव के चलते श्वेताम्बर जैन समुदाय के प्रमुख लोगों को मना लिया गया है, लेकिन दिगम्बर जैन समुदाय अभी भी कार्रवाई के लिए अड़ा हुआ है।
सूत्रों की माने तो मुख्यमंत्री के 30 सितंबर तक का समय देने की वजह से  मामला रुका हुआ है, लेकिन भीतर ही भीतर जैन समाज आरोपियों पर कड़ी कार्रवाई नहीं तो भाजपा के खिलाफ चुनाव में बिगुल फुंकने की बात पर जोर दे रहे हैं।
बहरहाल एटी के संचालकों को लेकर मामला मंत्री और फिर भाजपा के खिलाफ होता जा रहा है। देखना है 30 सितंबर के बाद यह मामला कहां तक तूल पकड़ता है।

रविवार, 29 सितंबर 2013

राजधानी फतह के लिए पार्षदों पर दांव आजमा सकती है कांग्रेस...


रायपुर। पिछले विधानसभा में कांग्रेस को मिली एक मात्र सीट पार्षद कोटे की रही और इसे देखते हुए कांग्रेस इस बार अन्य तीन सीटों पर फतह के लिए पार्षदों पर दांव खेल सकती है। दावेदारों में सतनाम सिंह पनाग और प्रमोद दुबे पर कांग्रेस दांव लगा सकती है।
कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती राजधानी की चारों सीट पर फतह हासिल करने की है। ग्रामीण से सत्यनारायण शर्मा और उन्तर से कुलदीप जुनेजा का नाम तय माना जा रहा है जबकि दमदार माने जाने वाले मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के दक्षिण से दर्जन भर दावेदार है जिनमें से संतोष दुबे का दावा सबसे मजबूज माना जा रहा है जबकि बृजमोहन के गढ़ माने जाने वाले टिकरापारा से पार्षद चुनाव जीत कर चर्चा में आये सतनाम सिंह पनाग ने प्रदेशाध्यक्ष चरणदास मंहत के सामने अपना मजबूत पक्ष रखा है।
ज्ञात हो कि पिछली बार पार्षद रहे कुलदीप जुनेजा की जीत से पार्षदों में उत्साह है और सतनाम सिंह पनाग का दावा है कि वह अपनी युवा टीम के सहारे जिस तरह से वार्ड चुनाव में बुजुर्गो से आर्शीर्वाद लेकर चुनाव जीतने में सफल रहे वैसे ही वे दक्षिण विधानसभा में भी फतह हासिल कर सकेते है।
सूत्रों की माने तो सतनाम सिंह पनाग अपनी छवि के कारण वार्ड ही नहीं दक्षिण के दूसरे वार्डों में भी लोक प्रिय है। निगम के तमाम पार्षदों में कम उम्र के इस पार्षद ने अपनी वार्ड सहित दूसरी समस्याओं को बखुबी उठाया है और कई मामले में तो उन्होंने बृजमोहन अग्रवाल को भी कटघरे में खड़ा किया है।
जातिगत समीकरण में भी वह भाजपा के वोट बैंक पर संध लगाने दावा भी वह कर चुका है। सभी को साथ लेकर चलने की वजह से कांग्रेस के सभी नेताओं के वे पसंदीदा है।
दूसरी तरफ पश्चिम से पार्षद प्रमोद दुबे की दावेदारी भी दमदार मानी जा रही है। मिलन सार छवि और अच्छे वक्ता होने की वजह से कांग्रेस पार्षद दल में भी प्रमोद लोकप्रिय है
प्रमोद दुबे ने महापौर किरणमयी नायक की अनुपस्थिति में कार्यवाहक महापौर की भूमिका भी निभा चुका है।
प्रमोद दुबे के बारे में कहा जाता है कि विपरित परिस्थितियों को भी अपने अनुकूल करने का माद्दा रखते हैं यही वजह है कि छात्र राजनीति से कांग्रेस की राजनीति में आने के बाद वे लगातार लोगों के हित में लड़ते रहे हैं। नगर निगम में दो बार पार्षद बनने वाले प्रमोद के दावे से एक बार नई रणनीति बनी है। पश्चिम से राजेश मूणत के खिलाफ जोर आजमाईश कर रहे प्रमोद दुबे का भी यही कहना है कि चुंकि पार्षद रहते शहर की समस्याओं को दूर करने व आम लोगों के हित के लिए कार्य करने की वजह से उनका लोगों से नजदीकी जुड़ाव हो जाता है इसलिए कांग्रेस को इस बार राजधानी फतह करने पार्षदों पर दांव लगाना चाहिए।
दोनों ही पार्षदों का मानना है कि युवाओं को आकर्षित करने और राजधानी फतह करने का यह अच्छा मौका है। पिछले चुनाव में विधायक कुलदीप जुनेजा ने पार्षद रहते जीत दर्ज कर यह साबित कर दिया है कि यदि पार्षद सजग रहे तो विधानसभा का रास्ता कठिन नहीं है।
ज्ञात हो कि रायपुर के सांसद रमेश बैस ने भी अपनी राजनैतिक सफर ब्राम्हणपारा वार्ड के सफर पार्षद बनकर ही शुरू किया था। ऐसे में बृजमोहन अग्रवाल के गढ़ माने जाने वाले टिकरापारा से पार्षद बने सतनाम सिंह जनाग को दक्षिण और रामकुंड क्षेत्र से पार्षद प्रमोद दुबे को पश्चिम से टिकिट मिलने पर भाजपा के दोनेां ही मंत्रियों की परेशानी बढ़ सकती है।
बहरहाल बैस से लेकर कुलदीप जुनेजा की पार्षद से सहन तक के सफर पर कांग्रेस की नजर है और यदि पार्षदों पर दाव लगाया गया तो राजधानी फतह आसान हो सकती है।

शनिवार, 28 सितंबर 2013

उत्तर सीट में फोर-एस में उलझ गई भाजपा!


सुनील, श्रीचंद, संजय और सचिदानंद
के अपने दखे, दूसरी सीट भी प्रभावित होगी
रायपुर। पिछले विधानसभा चुनाव मे ंराजधानी के उत्तर विधानसभा सीट में करारी शिकस्त झेलने वाली भाजपा इस बार भी इस सीट में उलझ कर रह गई है। फोर-एस यानी सुनील सोनी, श्रीचंद सुंदरानी, सचिदानंद उपासने और संजय श्रीवास्तव में से किसी एक को भी टिकिट देने का मतलब दूसरों के द्वारा भीतरघात की आशंका ने भाजपा की बेचैनी बढ़ा दी है।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में राजधानी को भाजपा का गढ़ माना जाता है। लेकन पिछले चुनाव में कांग्रेस ने यहां से पार्षद रहे कुलदीप जुनेजा को टिकिट दी थी। जिसका फायदा उन्हें मिला और इस भाजपाई गढ़ में कुलदीप जुनेजा ने संगठन के सचिदानंद उपासने को करारी शिकस्त दी ािी। तभी से भाजपाई गढ़ ढहने की चर्चा शुरू हुई और महापौर चुनाव में भी राजधानी में भाजपा बुरी तरह पराजित हुई ।
राजधानी के चार सीट में से भाजपा के लिए सर्वाधिक दिक्कत उत्तर विधानसभा की सीट को लेकर है। इसकी वजह यहां से दावेदारों की फेहरिश्त है। और मजेदार बात यह है कि चारों प्रमुख दावेदारों का नाम अंग्रेजी के एस से शुरू होता है। पिछले चुनाव में हार का घुंट पीने वाले सचिदानंद उपासने अभी भी दावेदारों में सबसे आगे है। हार के बाद ीाी उनकी उम्मीद कायम है जबकि राजधानी के महापौर जैसे पद पर रहे वर्तमान राविप्रा अध्यक्ष सुनील सोनी भी मतबूत दावेदार है। बृजमोहन खेमे के सुनील सोनी का दावा इस लिहाज से भी मजबूत है कि वे पार्षद से लेकर महापौर तक का चुनाव जीत चुके है जबकि सचिदानंद को जनता अस्वीकार चुकी है।
तीसरे दावेदार में श्रीचंद सुंदरानी का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। चेम्बर में बृजमोहन अग्रवाल खेमें को तगड़ा पटखनी देने वाले श्रीचंद सुंदरानी का न केवल सिंधी समाज में बल्कि दूसरे समाज में तगड़ी पैठ है। सिंधी मतदाता वाले इस क्षेत्र में तो चर्चा इस बात की भी है कि यदि श्रीचंद सुंदरानी को टिकिट नहीं दी गई तो भाजपा के वोट बैंक माने जाने वाले इस समुदाय के द्वारा राजधानी ही नहीं प्रदेश में भी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। नगर निगम में पार्षद रहे श्रीचंद सुंदरानी के व्यवहार को लेकर भी सकारात्मक बाते हैं।
वहीं एक अन्य दावेदार संजय श्रीवास्तव वर्तमान में नगर निगम रायपुर में सभापति है और भाज्युमों की राजनीति के चलते उनकी चुवाओं में जबरदस्त पैठ भ्ी है। कहा जाता है कि अपनी कार्यशैली की वजह से भी उन्होंने पार्टी का ध्यान अपनी ओर खींचा है लेकिन राजेश मूणत की तरह काफी हद तक अक्खड़पन से भी कई लोग उन्हें टिकिट का दावेदार मान रहे हैं।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक इस सीट के लिए पार्टी ने सर्वे भी करा लिया है और सर्वे का परिणाम पार्टी के लिए बेचैन करने वाला है। बताया जाता है कि चारों दावेदारों में बेहद खींचतान है और इनमें से किसी को भी टिकिट मिलने पर दूसरे के द्वारा भीतर घात भी किया जा सकताह ै। इसके अलावा इन दावेदारों ने राजधानी के दूसरे विधानसभा में मौजूद अपने समर्थकों के बल पर जिस तरह से पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाया हे वह भी हैरान करने वाला है।
बहरहाल भाजपा के लिए यह सीट हासिल करना मुश्किल होता जा रहा है।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

राजधानी की चारों सीट में उथल-पुथल मचाएगा स्वाभिमान मंच


(विशेष प्रतिनधि)
रायपुर। भाजपा की सत्ता सफर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजधानी के चारों विधानसभा में इस बार भाजपा की राह आसान नहीं है, तो कांग्रेस के लिए भी जीत की राह कठिन होने लगी है। स्वाभिमान मंच के द्वारा चारों सीट पर दमदार प्रत्याशी उतारे जाने की चर्चा ने कांग्रेस ही नहीं भाजपा को भी भीतर तक हिला दिया है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर को वैसे तो भाजपा का गढ़ माना जाता है। वर्तमान में यहां भाजपा के पास तीन विधायक और कांग्रेस के पास एक विधायक है। भाजपा के तीन में से दो विधायक प्रदेश सरकार में मंत्री भी है, लेकिन दोनों में चल रही खींच-तान का असर संगठन में साफ देखा जा सकता है।
राजधानी के दमदार माने जाने वाले विधायक बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत ने पिछला चुनाव लगभग 20 हजार से अधिक वोटों से जीता था। जबकि भाजपा के ही नंदकुमार साहू और कांग्रेस के कुलदीप जुनेजा ने दो-ढाई हजार से जीत हासिल की थी।
राजनैतिक सूत्रों की माने तो प्रदेश सरकार के ये दोनों मंत्री अग्रवाल और मूणत के बीच जबरदस्त होड़ मची है और दोनों के बीच लड़ाई भी खुलकर सामने आ चुकी है। ऐसे में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर एक-दूसरे के खिलाफ अंदरुनी रणनीति के चलते दोनों की जीत को लेकर कई तरह के सवाल अभी से उठने लगे हैं। जबकि इंदिरा बैंक घोटाले के नार्को सीडी में दोनों मंत्रियों द्वारा एक-एक करोड़ रुपये की रिश्वत लेने का मामला भी चर्चा में है।
इधर कांग्रेस इस बार राजधानी के चारों सीटों पर कब्जा जमाने कोई कसर नहीं छोडऩा चाहती है। इसलिए वह न केवल दोनों मंत्रियों को नार्को टेस्ट की सीडी बांट रहा है, बल्कि सरकार के भ्रष्टाचार और नाकामी को उजागर करने में लगा है।
सूत्रों की माने तो टिकट को लेकर उठा-पटक के बीच जहां कुलदीप जुनेja और ग्रामीण से सत्यनारायण शर्मा की टिकट फाइनल हो चुकी है, जबकि दक्षिण से संतोष दुबे और किरणमयी नायक तथा पश्चिम से मोतीलाल साहू, प्रमोद दुबे और सुभाष धुप्पड़ में तय होना है।
प्रदेश सरकार में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजा वाद के चलते महापौर चुनाव में बाजी मारने में सफल कांग्रेस एक बार फिर अपनी जीत को लेकर उत्साहित है, तो वहीं पहली बार चुनाव मैदान में उतर रही स्वाभिमान मंच को दमदार प्रत्याशी की तलाश है।
सूत्रों की माने तो स्वाभिमान मंच ने प्रत्याशियों की तलाश कर ली है और कांग्रेस-भाजपा के दमदार बागियों को वह अपना प्रत्याशी बनाएगी। स्वाभिमान मंच के प्रवक्ता महेश देवांगन के मुताबिक उनका मंच इस बार राजधानी में खाता अवश्य खोलेगा और उनकी कई कांग्रेसी और भाजपाई  असंतुष्टों से चर्चा भी हो चुकी है।
राजनैतिक सूत्रों का कहना है कि स्वाभिमान मंच के इस निर्णय से भाजपा ही नहीं कांग्रेस में भी जबर्दस्त बेचैनी है और मंच की दमदारी ने दोनों ही प्रमुख दलों में उथल-पुथल मचा दी है।
बहरहाल विधानसभा चुनाव का परिणाम क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन दोनों ही दलों के बागियों के तेवर से उथल-पुथल मचना स्वाभाविक है।

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

भाजपा के दर्जन भर विधायक जोगी एक्सप्रेस में बैठने आतुर...


कांग्रेसी हलाकान
भाजपाई परेशान

विशेष प्रतिनिधि
रायपुर। छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों की तैयारी के बीच जोगी एक्सप्रेस की बढ़ती रफ्तार ने यहां की राजनीति को गरमा दिया है। जोगी एक्सप्रेस की बढ़ती रफ्तार से जहां कांग्रेस हलाकान है तो भाजपा की परेशानी भी बढऩे लगी है। भाजपा अब खराब प्रदर्शन करने वाले विधायकों की टिकिट को लेकर दुविधा में है कि कहीं में लोग जोगी एक्सप्रेस में न बैठ जाए क्योंकि चर्चा है कि भाजपा के दर्जन भर से अधिक विधायक न केवल जोगी के संपर्क में हैं बल्कि उनके एक्सप्रेस में भी बैठने को आतुर है।
छत्तीसगढ़ में पिछले चुनावों के मुकाबले इस बार राजनैतिक फिजा अलग ही दिखाई देने लगाह है। दस साल से सत्ता सीन भाजपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत मुखिया डॉ. रमन सिं की छवि को लेकर है। भ्रष्टाचार और प्रशासनिक आतंक के चलते कालिख पूते चेहरे का असर साफ दिखने लगा है। भले ही भाजपा हैट्रिक का दखा कर रही हो लेकिन इंदिरा बैंक घोटाले के नार्को टेस्ट की सीडी से लेकर दरभा घाटी में हुए कांग्रेसी नेताओं की हत्या को होने वाले दुस्प्रभाव को रोक पाना आसान नहीं है। उपर से भाजपा विधायकों की छवि और कुनबे करतूतों को लेकर पार्टी में जबरदस्त उहापोह की स्थिति बनी हुई है।
कहा जाता है कि भाजपा द्वारा कराये सर्वे में दो दर्जन से अधिक विधायकों की रिपोर्ट कार्ड बेहद खराब हे ऐसे में भाजपा के लिए हैट्रिक की राह आसान नहीं है। डॉ. रमन सिंह खुद कोयले की कालिख, इंदिरा बैक घोटाले से लेकर प्रशासनिक अक्षमत के आरोपों से उबर नहीं पाये हें तो उनके मंत्रीमंडल के कइई सदस्य भी गंभीर आरोपों से घिरे हुए है। यहां तक कि विधानसभा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक तक आरोपों से बच नहीं पाये है।
भाजपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत अजा-जजा वर्ग के वोटों के अलावा पिछड़े वर्ग के वोटों को साधने की है। सतनामी समाज जहां आंख तरेर कर खड़ा है तो आदिवासी समाज भी कम आक्रोशित नहीं है। ऐसे में भाजपा की छोटी सी भूल बड़ी लापरवाही साबित हो सकती है।
दूसरी तरफ कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौति गुटबाजी है। नये प्रदेशाध्यक्ष चरणदास महंत के नेतृत्वक्षमता को लेकर सपाल उठाये जा रहे हैं और कहा जा रहा है कि वे अब भी रंगा-बिल्ला से नहीं उबर जाये है। कांग्रेस का एक बड़ा  जहां महंत से नाराज है तो वही पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने महंत के खिलाफ अघोषित युद्ध छेड़ रखा है।
राजनैतिक विश£ेषकों का मानना है कि अजीत जोगी छत्तीसगढ़ के जनाधार वाले सबसे बड़े नेता है ऐसे में उनको नजर अंदाज करना न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा को भी भारी पड़ सकता है।
इन दिनों स्व. मिनी माता के आदर्शो को लेकर जोगी एक्सप्रेस चला रहे इस कांग्रेसी नेता की सभा में जुटने वाली भीड़ से भले ही भाजपाई खुश दिख रहे हो पर सच तो यह है कि कहीं चुनाव में भी यह एक्सप्रेस चल निकला तो भाजपा को ही सर्वाधिक नुकसान होने वाला है।
सूत्रों की माने तो जोगी की ताकत को देखकर भाजपा के दर्जनभर से अधिक विधायक उनके संपर्क में है जबकि टिकिट करने की सूरत में कई भाजपा विधायक जोगी एक्सप्रेस में बैठ सकते हैं। बताया जाता है कि भाजपाई भले ही उपर से खुश दिखाई दे रहे हैं लेकिन जोगी एक्सप्रेस के संभावित रफ्तार से पार्टी के कई लोगों के माथे पर बल पडऩे लगे है।
बहर हाल जोगी एक्सप्रेस की बढ़ती रफ्तार ने छत्तीसगढ़ की राजनीति को चुनाव के 4 माह पहले ही गरमा दिया है और देखना है कि इस एक्सप्रेस में कौन-कौन सवार होता है।

सोमवार, 26 अगस्त 2013

नार्को सीडी की असलियत पर सरकार चुप क्यों?


* भूपेश की चुनौती से भाजपा में घबराहट!
* कांग्रेसी घोटालों को पैसा खाकर दबाया!
* संचेती बंधु और अदानी गु्रप पर मेहरबानी!
* जल जंगल जमीन सभी की चौतरफा लूट!
* सब कुछ मुफ्त बांटने से मध्यम वर्ग नाराज!
रायपुर। इंदिरा बैंक घोटाले के मामले में नार्को सीडी के खुलासे से जहां भाजपा की मुसिबत थमने का नाम नहीं ले रहा है वहीं मुख्यमंत्री और चारों मंत्रियों से हाईकमान की नाराजगी ने नया मोड़ ले लिया है। नार्को सीडी को फर्जी बताने वाली सरकार ने अब तक न तो असली सीडी ही जारी की है ओर न ही भूपेश बघेल की चुनौती को दी स्वीकार किया है इसे लेकर भाजपा को जवाब देना मुश्कि हो रहा है।
अपनी कथित साफ छवि और विकास को मुद्दा बनाने का दंभ भरने वाले प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की कोल ब्लॉक आबंटन में संचती बंधुओं पर की गई मेहरबानी से ही किरकिरी शुरू हो गई थी। इस मेहरबानी के चलते न केवल छत्तीसगढ़ को हजार करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ बल्कि भाजपा के तत्कालीन अध्यक्ष नीतिन गडकरी भी कटघरे में खड़े हुए। इसके बाद कैग ने अदानी ग्रुप पर मेहरबानी का खुलासा कर रमन सरकार के कार्यप्रणाली पर सवाल खड़ा कर दिया। अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि नक्सलियों के दरभा कांड में हुए कांग्रेसी दिग्ंगजों की हत्या
ने सरकार की नियत पर सवाल खड़ा कर दिया। इस मामले में कांग्रेस नेता भूपेश बघेल के द्वारा रमन सिंह के द्वारा ब्रम्हास्त्र चलाने की बात कहकर सनसनी फैला दी थी।
ताजा मामला इंदिरा बैक घोटाले में उमेश सिंह की नार्को सीडी का है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सहित उनके मंत्रियों पर घोटाले दबाने करोड़ों रूपये खाने का जो आरोप कांग्रेस ने लगाया हे उससे भाजपा में बेचैनी बड़ गई है। हालांकि उपरी तौर पर भाजपा इस सीडी से नुकसान नहीं होने का दावा कर रही है पर सच तो यह है कि कल तक कांग्रेस को गरियाने वाली भाजपा के पास नार्को सीडी मामले में कोई जवाब नहीं हे। अब तो आम आदमी भी कहने लगा है कि यदि सीडी नकली है तो सरकार असली सीडी सामने क्यों नहीं ला रही है।
इधर भाजपा ने भ्रष्टाचार, दरभा कांड और नार्को सीडी से हो रहे नुकसान से निपटने कई विधायकों की टिकिट काटने और गरीबों व युवाओं को सब कुछ मुक्त बांटने का निर्णय ले लिया है।
सूत्रों का कहना है कि हाल के वर्षो में विकास के नाम पर संसाधनों की चौतरफा लूट जिस पैमाने पर हुआ है वह अंयंत्र कहीं देखने को नहीं मिलेगा। स्तर हीन सड़क से लेकर भवन निर्माण और भ्रष्ट अधिकारियों के संरक्षण को लेकर आम लोगों में सरकार की छवि पर प्रभाव पड़ा है।
इधर सरकार की मुफ्त बांटने की वोट बैक की राजनीति से मध्यम वर्ग में बेहद नाराजगी है। सूत्र बताते है कि सरकार की इस मुक्त बांटो योजना से नाराज मध्यम वर्ग ने यदि अपनी नाराजगी वोट के रूप में तब्दिल कर दी तो भाजपा को लेने के देने पड़ जायेंगे।
दूसरी तरफ चर्चा इस बात की भी है कि चुनावी साल में रमन सरकार के करतूतों के इस खुलासे से हाईकमान भी नाराज हे और भले ही बाहर से सब ठीक दिख रहा हो लेकिन भीतर से कुछ भी ठीक नहीं है।
बहरहाल नार्को सीडी का असर क्या होगा यह बाद में ही पता चलेगा।

सोमवार, 3 जून 2013

आतंक...आतंक... और आतंक...!

 छत्तीसगढ़ में इन दिनों चौतरफा आतंक मचा हुआ है। प्रशासनिक राजनैतिक आतंक के गठजोड़ के चलते जहां माफिया गिरी बढ़ी है वहीं औद्योगिक और नक्सली आतंक के चलते आम आदमी का जीना दूभर हो गया है। भले ही रमन सिंह के नेतृत्व में भाजपा ने चावल, लैपटाप, साइकिल बांटकर अपनी राजनीति को मजबूत किया है लेकिन सच तो यह है कि माफिया गिरी के चलते जिस ढंग से छत्तीसगढ़ की खनिज संपदाओं, और जमीनों पर डकैती डाली गई है। उससे नहीं लगता कि सरकार नाम की भी चीज यहां है। अपराधों के आंकड़े बताते हैं कि रमन राज में अपराध कई गुणा बढ़े हैं और पुलिस की गुण्डागर्दी चरम पर है। राजधानी पर करोड़ों रूपया तो फूंका गया लेकिन स्कूल और अस्पतालों की अनदेखी की गई। विकास के नाम पर करोड़ों रूपये फूंकने के दावे तो किये गए लेकिन गांवों तक विकास पहुंचा ही नहीं। कैग की रिपोर्ट बताती है कि रमन सरकार ने आर्थिक अनियमिताओं के सारे रिकार्ड तोड़ डाले और संचेती से लेकर अदानी गु्रप को फायदा पहुंचाने छत्तीसगढ़ को करोड़ों अरखों का नुकसान पहुंचाने से पीछे नहीं हटी। बस्तर में सरकार नहीं होने और लाल आतंक का साया है तो भाजपाई आतंक का अदाहरण भी कम नहीं है। जिस प्रदेश का मुखिया देखलुंगा जैसे शब्दों का इस्तेमाल करता हो सवाल करने वाले या पार्टी में विरोध करने वालों पर पुलिसिया रौब दिखलाता हो वहां सरकार क्या और कैसी होगी सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।
बस्तर में कांग्रेस नेताओं पर हुए नक्सली हमले ने सरकार को घेरे में आज लिया हो। लेकिन सच तो यही है कि छत्तीसगढ़ में सरकार नहीं होने की बात लोग पहले से ही कर रहे है।

शनिवार, 23 मार्च 2013

विकास और सुराज पर कर्मों की रपट भारी


सात मंत्रियों सहित तीन दर्जन विधायक निशाने पर
    अपनों का विकास, परिजनों व समर्थकों को नियम विरूद्ध उपकृत!
    अधिकारियों का सुराज- पर्सनल स्टाफॅ  से लेकर भ्रष्ट अधिकारियों को संरक्षण
    कई लोगों के आचरण खराब कोयले की कालिख, रोगदा बंाध का बिकना, सरकारी जमीनों पर अवैध         कब्जे और बंदर बांट
    भ्रष्ट और निकम्मों की संविदा नियुक्ति
    परिजनों, समर्थकों व पर्सनल स्टाफ की बढ़ती बदसलूकी
    आरक्षण कटोति- अनुसूचित जाति, आदिवासी व पिछड़े भी नाराज केन्द्रीय नेतृत्व सातों मंत्रियों को हटाने     का निर्देश भी दिया पर जनाधार के नाम पर प्रदेश नेतृत्व से जीवन दान ।
हैट्रिक की तैयारी में जुटी रमन सरकार भले ही अपने शासन काल में विकास और सुराज लाने का कितना भी आंकड़ा पेश कर ले सच तो यह है कि कर्मों की रिपोर्ट देखकर उनकी जमीन खिसक गई है। गुप्तचर एजेसियों से तैयार रिपोर्ट कार्ड का निष्कर्ष साफ है कि प्रदेश के सात मंत्रियों सहित करीब तीन दर्जन विधायकों को दो बारा टिकिट दी गई तो पार्टी का बेड़ा गर्क हो सकता है। रिपोर्ट कार्ड के बाद केन्द्रीय नेतृत्व जहां बेहद नाराज है वहीं प्रदेश के आला नेता भी सकते में हैं।
 सूत्रों की माने तो केन्द्रीय नेतृत्व ने इन सातों मंत्रियों को मंत्रिमंडल से हटाने का सुझाव तक दे दिया है लेकिन प्रदेश नेतृत्व इस पर सहमत इसलिए नहीं हुए क्योंकि कोयले की कालिख कहीं बगावत का बिगुल न बजा दे इसलिए इन्हें जनाधार वाले नेता बताते हुए ब्रम्हास्त्र का हवाला दिया गया है।
हमारे बेहद भरोसे बंद सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में 8 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी बेचैन है। और इसकी वजह यहां से पहुंचने वाले सांसदों की संख्या है। यही वजह है कि गुप्तचर एजेंसियों के माध्यम से रिपार्ट कराई गई है। रिपोर्ट में मंत्रियों के परफार्मेश पर फोकस करने का निर्देश था।
सूत्रों की माने तो रिपोर्ट कार्ड देखकर केन्द्रीय नेतृत्व भी हैरान है और यही वजह है कि सात मंत्रियों को हटाने की सलाह दी गइ्र । रिपोर्ट कार्ड में सात मंत्रियों की कार गुजारियों का विस्तार से लेखा जोखा दिया गया है। इन मंत्रियों के परिजनों व पसर्नल स्टाफ के बारे में गंभीर टिप्पणी की गई है जबकि एक मंत्री के महिला मित्र की वसूली का भी जिक्र है।
एक मंत्री के तो पर्सनल स्टाफ और परिजनों पर आरोप लगाये गये है कि इनका विभागों में भारी दबदबा हे ढेका और तबादलों में मनमानी चरम पर है। मंत्रियों के परिजनों का सरकारी जमीनों पर कब्जा और मनमाने ढंग से आबंटन पर भी तीखी टिप्पणी की गई है।
बस्तर के एक मंत्री के आचरण को लेकर जहां गंभीर सवाल उठाये गये है वहीं रायपुर के एक मंत्री व लालबत्ती वाले विधायक के व्यवहार और पर्सनल स्टाफ के दुव्र्यवहार पर भी टिप्पणी की गई है।
सूत्रों की माने तो कई अफसरों के करतूतों पर सरकार की खामोशी और संरक्षण पर भी गंभीर सवाल खड़े किये है।
बताया जाता है कि केन्द्रीय नेतृत्व ने ऐसे अफसरों को दूर रखने की हिदायत दी है जबकि खराब रिपोर्ट वाले विधायकों की टिकिट हर हाल में काटने की सलाह दी है।
सूत्रों के मुताबिक संगठन को ऐसे विधायकों व मंत्रियों के स्थान पर नये विकल्प तैयार रखने कहा है। खासकर बस्तर, सरगुजा और बिलासपुर संभाग में बड़े पैमाने पर बड़े पैमाने पर परिवर्तन के संकेत मिलने भी लगे है। इधर रायपुर-बिलासपुर के मंत्रियों को जनाधार वाला मान कर समझाईश देने की चर्चा है जबकि सूत्रों का दावा है कि केन्द्रीय नेतृत्व इनके बगावती रूख का भी पता लगाने में लगी है ताकि टिकिट करने की स्थिति पर विषय परिस्थिति पैदा न सके।
सूत्र बताते है कि विधानसभा के ठीक पहले राजनैतिक अस्थिरता से बचने मंत्रियों को हटाया नहीं जा रहा है लेकिनह केन्द्रीय नेतृत्व के द्वारा इन मंत्रियों को फटकार लगाते हुए चेतावनी जरूर दे दी गइ्र है कि यदि आचरण नहीं सुधारा गया तो टिकिट भी काटी जा सकती है। खासकर भ्रष्टाचार के मामले में मंत्रियों को सतर्क रहने की नसीहत दी गई है।

मंगलवार, 12 मार्च 2013

गुस्से की आग पर आश्वासन की बौछार...


आरक्षण कटौति पर आक्रोशित पिछड़े वर्ग ने कांकेर से राजधानी तक का सफर जब पैदल पूरा कर लिया तब सरकार केवल आश्वासन ही दे पाई। आरक्षण को लेकर सतनामी समाज भी नाराज है और सतनामी समाज की नाराजगी के चलते कुतुब मीनार से ऊंचा बने जैतखम्भ का पिछले दो साल से उद्घाटन नहीं हो पा रहा है।
इन दोनों वर्गो की नाराजगी जायज है या नहीं यह सवाल कतई नहीं है। सवाल है कि आखिर लोगों में इतना गुस्सा क्यों है कि वे अपने द्वारा चुने सरकार के आश्वासन पर भी भरोसा नहीं कर रहे हैं। सवाल यह भी नहीं है कि क्या रमन सरकार ने अपनी विश्वसनियता खो दी है। सवाल आश्वासन पर टूटते भरोसे का है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के पहले भी छला जाता रहा है और आज भी छला जा रहा है। सरकार में बैठे लोगों की संम्पति कई गुना बढ़ रही है तो दूसरी तरफ गरीबों की संख्या बढ़ रही है। 9 साल में रमन सिंह की सरकार भले ही विकास का कितना भी ढिढ़ोरा पिट ले लेकिन सच तो यह है कि वह अपने संकल्प तक को पूरा नहीं कर पाई है। हिन्दूत्व की दुहाई देने वाली भाजपा को संकल्प का मतलब समझाना पड़े तो लोगों को गुस्सा आना स्वाभाविक है।
आरक्षण की जटिलता को नजर अंदाज कर भी दे तो सरकार ने 9 सालों में क्या किया? उसने लोगों से किये वादे-संकल्प को पूरा क्यों नहीं किया। शिक्षा कर्मियों के संविलियन से लेकर दाल भात सेंटर चलाने के मामले में रमन सरकार फेल हो चुकी है।
राज्योत्सव और राजिम कुंभ पर अरबों रूपये खर्च करने का मतलब भी जनता जान चुकी है ग्राम सुराज हो या जनदर्शन सब नौटंकी साबित होने लगा है । विकास के नाम पर कोयले की कालिख और उद्योगों के लिए खेती की जमीनों की बरबादी के लिए छत्तीसगढ़ पूरे देश में कलंकित हुआ है तब भला लोग आश्वासन पर क्यों भरोसा करें।
हमारा भी मानना है कि चुनावी साल होने मांग रखने वालों का दबाव है लेकिन इन नौ सालों में सरकार के कामों की समीक्षा होनी चाहिए कि उसने जनता से वे वादे क्यों किये जो पूरे ही नहीं किये जा सकते थे।
राज्योत्सव, राजिम कुंभ, बायो डीजल से लेकर नई राजधानी के नाम पर फिजूल खर्ची सरकार की पहचान बन चुकी है। एक तरफ सरकार शिक्षा-स्वास्थ्य, सिचाई सुविधा को बढ़ाने जैसे खुद के कार्य से मुंह मोड़ रही है तो दूसरी तरफ निजी शिक्षण संस्थानों की लूट पर चुप्पी साध ली है। शाराब बंदी की बात तो वह करती है लेकिन जन विरोध को डंडे के जोर पर दबाने का प्रयास ही नहीं करती बल्कि शराब ठेकेदारों को गोद में बिठाती है।
मूलभूत सुविधाओं की अनदेखी के इतने उदाहरण है कि उसे गिना पाना संभव नहीं है। हर आवेदन हर शिकायत पर आश्वासन से लोग हैरान है। स्कूल नहीं है खोल दो पर शिक्षक की व्यवस्था नहीं होगी तो ऐसे स्कूल खोलने का क्या मतलब है?
सरकार की बदलती प्राथमिकता की वजह से ही आज लोग गुस्से में है  और चुनावी साल में यह गुस्सा फुटने लगा है।  कहने को तो सरकारों का काम आम लोगों के हितों की ध्यान रखना है और आम लोगों के हित में रोड़ा बनते कानून को बदल देना है लेकिन यहां तो अफसरशाही हावी है, वही योजना बनाई जा रही है जिसमें स्व हित सधे। ऐसे में आखिर कब तक आश्वासन पर लोग भरोसा करें।

गुरुवार, 7 मार्च 2013

अपनी ढपली, अपना राग...


जैसे जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आने लगा है अखबार मालिकों ने अपना खेल शुरू कर दिया है। प्रसार बढ़ाने कुर्सी बांटने वाले भास्कर अब भी अपने को नंबर वन बता रहा है तो नवभारत, हरिभूमि और पत्रिका भी अपने को नम्बर वन बताते नहीं थकते ऐसे में पाठक किसे नम्बर वन माने? अब तो प्रसार बढ़ाने की होड़ में हर अखबार इनामी योजना से लेकर कुर्मी टेबल, हाट-पॉट टिफीन बांट रहे है। इस दौड़ में नई दुनिया भी शामिल है। हालांकि नई दुनिया का मालिक से लेकर संपादक तक बदल चुका है। दूसरी तरफ पत्रकारों की स्थिति भी यही है। अब उनकी पहचान कलम की बजाय बैनर से होती है। और अधिकारी से लेकर नेता भी बड़े बैनर माने जाने वाले अखबार के पत्रकारों को ही ज्यादा पूछ परख करते हैं।
ऐसे में जब चुनाव नजदीक हो तो विज्ञापन और पेड न्यूज की मारा मारी के चलते बड़े बैनरों के इन पत्रकारों पर दबाव भी बहुत है। और अब तो पत्रकारों की किमत भी बढऩे लगी है। बैनर बदलने के एवज में वेतन भी बढ़ रहा है।  मुसिबत छोटे बैनर की बढ़ गई है क्योंकि छोटे बैनर के अच्छे पत्रकारों को बड़े बैनर वाले ज्यादा तनख्वाह देकर अपने यहां ले जाने लगे हैं।
इन सबके बीच छोटे बैनरों खासकर साप्ताहिक और मासिक पत्रिका निकाल रहे पत्रकारों की दिक्कतें भी इस चुनावी साल में बढऩे लगी है। क्योंकि बड़े बैनरों की अपनी सीमा हे और उन पर सरकार व जनसंपर्क विभाग का दबाव भी है जबकि इसके उलट छोटे बैनर वालों की पूछ तभी बढ़ती है जब वे दमदार खबर परोसते हैं।
हालांकि पत्रिका के आने के बाद बड़े अखबारों का तेवर भी बदला है लेकिन चुनाव तक यह तेवर बरकरार रहेगा इसे लेकर संशय जरूर कायम है। नंबर वन की दौड़ में शामिल पत्रिका को विधानसभा का पास नहीं दिये जाने को लेकर चर्चा भी खूब हो रही है और इसे सरकार के बदले की कार्रवाई का भौंडा प्रदर्शन माना जा रहा है।  अब तक पत्रकारों को धमकाने का आरोप पुलिस और माफिया पर ही लगता रहा है लेकिन नंबर वन की दौड़
में शामिल पत्रिका को विधानसभा का पास नहीं दिये जाने को लेकर चर्चा भी खूब हो रही है और इसे सरकार के बदले की कार्रवाई  माना जा रहा है।
अब तक पत्रकारों को धमकाने का आरोप पुलिस और माफिया पर ही लगता रहा है लेकिन इस बार एक मासिक पत्रिका से जुड़े अनिल श्रीवास्तव नायक पत्रकार ने जनसंपर्क के अधिकारी के खिलाफ सिटी कोतवाली में शिकायत की है। शिकायत किये एक माह हो गये लेकिन अभी तक जुर्म दर्ज भी नहीं हुआ है। यानी सरकारी दबाव जारी है।
और अंत में ...
मंत्रालय दूर होने से अफसरों को राहत तो मिली है लेकिन पत्रकारों की दिक्कत बड़ गई है। मंत्रालय के नाम पर समय व रूतबा झाडऩे वालों को अब अन्य सीटों पर मेहनत करनी पड़ रही है।

सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

बढ़ता असंतोष खिसकता जनाधार



रायपुर को अपना गढ़ मानने वाली भाजपा का जनाधार जिस तेजी से घटने लगा हे उसे नजर अंदाज किया गया तो आने वाले दिनों में राजधानी में परचम लहराना सपना बन कर रह जायेगा । दो-दो मंत्रियों के रहते भी राजधानी में भाजपा को लगातार क्यों मान मिल रही है ? ेयह हैट्रिक में जुटी भाजपा के लिए कितना विचारणीय है यह तो वही जाने लेकिन निष्ठावान भाजपाई बेचैन हैं ।
इन दिनों रमन सरकार हैट्रिक की तैयारी में लगी है । ऐसे में उसके सामने सबसे बड़ी समस्ेया अपने गढ़ की रक्षा करना है । भाजपा का सर्वाधिक गढ़ रायपुर को मान जाता है । और यहां से दो-मंत्री भी बनाये गए है और दोनों ही मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और राजेश मूणत को दमदार माना जाता है ।
भाजपा के इस अभेद माने जाने वाले गढ़ में सेंध तो पिछले चुनाव में ही लग गया था जब यहां की चार में से एक सीट पर कांग्रेस विधायक कुलदीप जुनेजा ने अपनी जीत का परचम लहराया था । लेकिन भाजपा ने इसे गंभीरमा से नहीं लिया और मामूली अंतर की जीत की भरपाई को लेकर मुगालते में रही ।
हालांकि दमदार मंत्री और मजबूत संगठन के बल पर भाजपा अब भी राजधानी में कांग्रेस के मुकाबलेे मजबूत दिख रही है लेकिन महापौर चुनाव में मिली करारी हार के बाद भी यदि भाजपाई या रमन सरकार मुगालते में है तो फिर इसका खामियाजा भी उसे भुगतना पड़ सकता है ।
राजधानी के चारों सीट के महापौर चुनाव में न केवल किरणमयी नायक की जीत हुई बल्कि भाजपा पार्षद तीस की संख्या पर सिमट गई है । इसके बाद भी मंत्रियों की मनमानी, संगठन की निरकुंशता और भाई भतीजा वाद के चलते भाजपा में जबरदस्त असंतोष दिखने लगा है । असंतोष लोगों के परचा कांड को नजर अंदाज करना सभापति चुनाव में भी भारी पड़ा है । और राज्य की सत्ता में होने के बाद भी भाजपाई पार्षदरों ने बगावत का जो खले खेला वह अनुशासन का दंभ भरने वाली पार्टी के लिए नजरअंदाज करना आसान नहीं होगा ।
भले ही संगठन खेमा का सरकार में बैठे मंत्री अविश्वास प्रस्ताव के क्रॉस वोटिंग को सभापति के खिलाफ मान ले लेकिन सच तो यह है कि कोयले की कालिख और चेहरा देखकर लालबत्ती बांटने की सरकारी कारगुजारियों से निष्टावान भाजपाई न केवल नाराज हैं बल्कि मौका मिलने पर वे पार्टी के खिलाफ भी जा सकते हैं ।
बताया जाता है कि दमदार मंत्रियों की आपसी लड़ाई का असर भी संगठन में पड़ा है और यही वजह है कि संगठन में बिखराव स्पष्ट दिखने लगा है ।
बहरहाल भाजपा के इस गढ़ में बढ़ते असंतोष को नहीं रोका गया और अपने को पार्टी का सर्वेसर्वा मानने वालों पर लगाम नहीं कसा गया तो आने वाले दिनों में भाजपा को इसका जबरदस्त खामियाजा भुगतना पड़ा सकता है ।

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

लाफार्ज ने मचाई लूट रमन ने दी पूरी छूट



 भाजपा ने 2003 के चुनाव में जोगी शासन काल के 35 घोटाले को लेकर  खूब हल्ला मचाया था, भाजपा ने जोगी शासनकाल के जिन 35 घोटालो का सत्ता में आते ही नेस्तनाबूत करने की बात कही थी लाफार्ज के घोटाले को आठवां स्थान दिया था। 7-8 साल के शासन काल में रमन सिंह ने इन्हें क्यों उजागर नहीं किया इसके पीछे सीधा सा गणित मिल बांट कर लूटो के अलावा कुछ नहीं है। हालत यह है कि 2003 के किए वादे से सरकार पीछे हट रही है और अपने आप को ईमानदार बता रही है। लाफार्ज के घोटाले को उजागर करने की बात तो दूर वह उसे संरक्षण दे रही है। ऐसे में देशी का ढोंग भी इसलिए उजागर होता है क्योंकि लाफार्ज विदेशी कंपनी है जिसका मुख्यालय फ्रांस के पेरिस में है।
भारतीय जनता पार्टी की सरकार और उसके मुखिया डॉ रमन सिंह ने जनता से किए वादे को पूरा नहीं कर सीधे-सीधे आम लोगों से धोखाधड़ी की है। लाफार्ज एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है जिसका छत्तीसगढ़ में सोनाडीह और आरसमेटा में सीमेंट संयंत्र है उसने यह संयंत्र टाटा और रेमंट सीमेंट से खरीदा है। इस खरीदी के रजिस्ट्री में ही उसने लगभग 160 करोड़ का घपला किया और इस मामले को लेकर जब भाजपा विपक्ष में थी तो खूब हंगामा मचाया लाफार्ज के इस घोटाले को लेकर जोगी सरकार पर संगीन आरोप भी लगाए गए यहां तक कि भाजपा ने विधानसभा ठप्प करने तक का निर्णय लिया लेकिन सत्ता में आते ही क्या वजह थी कि उसने लाफार्ज के खिलाफ कार्रवाई नहीं की और तो और उसके द्वारा सीमेंट के मूल्य वृद्धि पर भी कोई कार्रवाई नहीं की यहां तक कि लाफार्ज के अवैध उत्खनन और रायल्टी चोरी को भी रमन सरकार ने संरक्षण दिया।
देशी की राजनीति में माहिर भाजपा से यह उम्मीद थी कि वह छत्तीसगढ़ में लूट मचाने वाली इस लाफार्ज के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करेगी लेकिन वह तो लूूट खसोट में दो कदम आगे हो गई और कार्रवाई के नाम पर केवल खानापूर्ति में ही संलग्न रही।
लाफार्ज के द्वारा छत्तीसगढ़ को सर्वाधिक नुकसान इसी रमन सरकार के कार्र्यकाल में लगाया गया। कहां तो 2003 के घोषणा पत्र में लाफार्ज के घोटाले को उजागर कर दोषियों को सजा दिलाने का वादा था लेकिन यहां तो उल्टा ही हुआ लाफार्ज ने सेलटेक्स में चोरी के लिए नया रास्ता खोजकर छत्तीसगढ़ से करोड़ो रूपए का चूना लगाया।
बताया जाता है कि लाफार्र्ज द्वारा अरबों का क्लिंकर हर माह दूसरे राज्य में भेजकर अरबों रूपए का नुकसान पहुंचया जा रहा है लेकिन लाफार्ज घोटाले पर कार्रवाई करने का दावा करने वाली रमन सरकार सत्ता में आते ही उल्टे छत्तीसगढ़ को नुकसान के एवज में लाफार्ज के घोटाले पर चुप्पी साध ली।
यदि भाजपा सरकार को लाफार्ज के घोटाले पर कार्रवाई नहीं करनी थी तब उसने विपक्ष में रहते हुए विधानसभा का समय क्यों खराब किया। घोषणा पत्र में लाफार्ज के घोटाले को उजाकर कर दोषियों पर कार्रवाई की बात क्यों की और क्या कार्रवाई के लिए 7-8 साल का समय कम है। ये ऐसे सवाल जिसका जवाब डॉ.रमन सिंह को देना ही होगा।

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

बेईमानों को गले लगाओं ईमानदारों को दूर भगाओं

शशिमोहन के बाद सौमित्र प्रताडि़त
घपलेबाजों के दबाव में हुुआ चौबे का तबादला
छत्तीसगढ़ में रमन सरकार के सुराज की कलई खुलने लगी है । चौतरफा भ्रष्टाचार और प्रशासनिक आतंक का यह आलम है कि ईमानदार माने जाने वाले अधिकारियें को प्रताडि़त किया जा रहा है तो बेईमान व भ्रष्ट अधिकारियों को रिटार्यटमेंट के बाद भी संविदा देकर गले लगाया जा रहा है । हालत यह है कि आर्थिक अपराध ब्यूरों की कार्रवाई के बाद भी अफसर अपने पदों पर बैठे हुए है और ईमानदार माने जाने वाले लोग उपेक्षा का शिकार हो रहे है ।
एक तरफ तो रमन सरकार हैट्रिक की तैयारी में लगी है और वह कोयले की कालिख पूते चेहरों के साथ हैट्रिक का सफर कैसे तय करेगी । यह भी अब सामने आने लगा है । एक तरफ तो तहसीलदार पुलक भट्टाचार्य जैसे अधिकारी को तबादले के चार माह के भीतर ही वापस राजधानी ले आती है तो दूसरी तरफ सौमित्र चौबे जैसे अधिकारी का तबादला सिर्फ इसलिए किया जाता है क्योंकि वह बड़े-बड़े घपलेबाजों के खिलाफ कार्रवाई करते हैं ।
ज्ञात हो कि सौमित्र चौबे ने हाल ही में राजधानी में मंत्रियों के नजदीक माने जाने वाले कई बड़े घपलेबाजों के खिलाफ कार्रवाई की थी । इसमें से फर्जी गैस सिलेन्डर मामले में हुई कार्रवाई से एक मंत्री की खूब किरकिरी हो रही है । बताया जाता है फरार तापडिय़ा का एक मंत्री और एक निगम के अध्यक्ष से नजदीकी संबंध रहे हैं और इस तापडिय़ा द्वारा इनके चुनाव से लेकर दूसरे कार्यक्रमों के लिए चंदे के रूप में मोटी रकम भी दिया जाता था । बताया जाता है कि तभी से सौमित्र चौबे को हटाने की कोशिश हुई थी लेकिन हल्ला मचने के डर से कार्रवाई नहीं हुई ।
इसके बाद सौमित्र चौबे ने निको द्वारा पेट्रोल पम्प से घपले बाजी कर डीजल भरवाने के मामले का खुलासा किया तो औघोगिक क्षेत्र में हड़कम्प मच गया ।
बताया जाता है कि कई उद्योग डीजल के खेल में लिप्त हैं और दूसरी सूचना चौबे तक पहुंचने लगी थी । चौबे के इस कार्रवाई से उद्योगों में हड़कम्प मच गया और चौबे को हटाने दबाव बढऩे लगा था लेकिन सरकार भी कोई हंगामा नहीं चाहती थी इसलिए चौबे का तबादला जानबुझकर तबादला सूची में शामिलल कर किया गया ताकि हंगामा न मचे ।
ऐसा नहीं है कि घपले बाजों के दबाव में सरकार या उसके मंत्रियों की यह पहली करतूत है इससे पहले भी दर्जन भर ऐसे मामले सामने आये है जब रमन सरकार ने सुराज के नाम पर घपलेबाजों के दबाव में ईमानदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की है । जिसमें आई एएस पी सुन्दरराज के अलावा रायपुर सीएसपी शशिमोहन सिंह शामिल हैं ।
शशिमोहन सिंह का मामला तो राजधानी में आज तक चर्चा में है । शशिमोहन सिंह को सिर्फ इसलिए प्रताडि़त खोर बद्री के खिलाफ कार्रवाई की थी । ये बद्री भाजपा में न केवल दमदार माना जाता है बल्कि इसके इशारे पर मंत्री भी नाचते हैं ।
बताया जाता है कि सरकार के सूराज के इस नये परिभाषा की राजधानी दी नहीं पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय है । और कोई आश्चर्य नहीं कि इस बार के चुनाव में भ्रष्टाचार कोयले की कालिख, मंत्रियों की करतूतों के अलावा ईमानदार अफसरों की प्रताडऩा भी मुद्दा बने । बाहरहाल शशिमोहन सिंह के बाद सौमित्र चौबे को प्रताडि़त करने का मामला राजधानी में चर्चा का विषय है जिसका खामियाजा सरकार को भुगतना पड़ सकता है । 

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

पुलक से पल्लवित होगा मूणत का खेल



सीतापुर तबादले में जाने के चार माह में ही वापसी
 एक तरफ जब पुरी भाजपा केन्द्र की कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार पर हल्ला मचा रही है तो वहीं दूसरी तरफ प्रदेश की भाजपा सरकार के मंत्री भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं । वैसे तो मुख्यमंत्री सहित सारे मंत्रियों पर भ्रष्ट अफसरों को बचाने का आरोप है लेकिन प्रदेश सरकार के मंत्री राजेश मूणत ने जिस तरह से चार महिने में ही पुलक भट्टाचार्य को वापस अपने विभाग में बुला लिया उससे सरकार की किरकिरी ही हो रही है ।
बेलगाम अफसर या प्रशासनिक आतंक की कहानी थमने का नाम ही नहीं ले रहा हैं । यही वजह है कि मंत्रियों की करतूत से जहां आम आदमी का बुरा हाल है वही भ्रष्ट अफसरों के मजे हैं । खासकर राजधानी में जमीन से जुड़े मामलों में मंत्रियों की रूचि देखते ही बन रही है । चौतरफा अंधेरगर्दी का आलाम यह है कि चहेते अफसरों के लिए नियम कानून तक ताक पर रखे जा रहे हे । यही वजह है कि चार महिने पहले नगर निगम रायपुर से सीतापुर भेजे गए तहसीलदार पुलक भट्टाचार्य की न केवल वापसी कर ली गई बल्कि कमल विहार जेसे महत्वपूर्ण योजना में बिठा दिया गया । कहां जाता है कि यह सारा खेल प्रदेश सरकार के मंत्री राजेश मूणत का है और उन्ही की रूचि के चलते पुल्लक भट्टाचार्य जैसे अफसर की चार महिने में ही वापसी हो गई ।
सूत्रों का कहना है कि पुलक भट्टाचार्य की वापसी के पीछे सिर्फ कमल विहार प्रोजेक्ट ही नहीं है बल्कि जमीन के दूसरे मामले भी है । दरअसल पुलक भट्टाचार्य पर यह भी आरोप है कि उनके कार्यकाल के दौरान राजधानी व इसके आस पास की जमीनों का जबर दस्त खेल हुआ है । सरकारी जमीनों की बंदर बांट से लेकर कब्जे की कहानी में पुलक भट्टाचार्य का नाम है और पुलक की वापसी की वजह भी जमीन ही है । सूत्रों की माने तो पुलक के पास नामी-बेनामी जमीनों की भरपूर जानकारी है और मंत्रियों को खुश रखने में माहिर मूणत को चार माह पहले दबाव में जब सीतापुर तबादला किया गया था तभी से उनकी वापसी की चर्चा रही है । कहा जाता हे कि तबादले के बाद भी राजेश मूणत से उनकी नजदीकी की चर्चा होते रही है ।
बंगाली मूल के इस अफसर की करतूतों की वैसे तो कई तरह की चर्चा है और कहां जाता है कि मंत्रियों के शह पर उन पर बेहिसाब संपत्ति अर्जित करने का भी आरोप है । कहा जाता है कि पुलक भट्टाचार्य की करतूतों से पार्टी के कई कार्यकर्ता नाराज है और यही वजह है कि संगठन खेमें ने भी उनकी वापसी का विरोध किया था लेकिन राजेश मूणत के जिद के आगे किसी की नहीं चली । इधर पुलक भट्टाचार्य की वापसी को लेकर कई ऐसे बिल्डर भी खुश है जो अवैध कब्जे में माहिर है जबकि रायपुर विकास प्राधिकरण में इसका भारी विरोध है ।
बहरहाल पुलक की वापसी से राजेश मूणत का कितना भला होगा यह तो वही जाने लेकिन सरकार के इस रूख से भाजपा को जरूर नुकसान हो सकता है ।

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

सत्ता से समृद्धि...


कभी राजनीति समाज सेवा का सबसे सशक्त माध्यम हुआ करता था । सादा जीवन उच्च विचार के मूलमंत्र से अभिभूत राजनीति में आने वाले की सेवा भाव देखते ही बनती थी । कांग्रेस हो या भाजपा, समाजवादी हो या कम्यूनिष्ट सबके लिए समाज सेवा प्रथम लक्ष्य रहा । ऐसे कितने ही उदाहरण रहे जब इस देश में नेताओं ने राजनैतिक सुचिता के लिए सत्ता की कुरसी को लात मारने से भी परहेज नहीं किया । खुद छत्तीसगढ़ में बैठी रमन सरकार की पार्टी में ही अटल-आडवानी से लेकर कई नाम लोगों को जुबानी याद हैं जिन्होंने राजनैतिक सुचिता के लिए अपना सब कुछ होम कर दिया । लेकिन क्या अब इसी पार्टी में ऐसा हो रहा है । भाजपा ही क्यों किसी भी पार्टी में ऐसा नहीं हो रहा है । अपराधियों को संरक्षण से लेकर खुद भ्रष्टाचार में डुबे लोग सत्ता का केन्द्र बने हुए है और ऐसे लोग बड़ी बेशर्मी से राजनैतिक सुचिता, ईमानदारी की बात करते नहीं थकते । http://naiaaaadee.blogspot.in/

शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

हैट्रिक में जुटी रमन सरकार की बढ़ी मुश्किल


पिछली बार 18 कटी थी, इस बार 36 के हालात
सत्ता की हैट्रिक बनाने में जुटी रमन सरकर के सामने सबसे बड़ी दिक्कत उनके अपने विधायक ही बन रहे है॥ कहा जा रहा है कि रमन सरकार के अधिकांश मंत्रियों और विधायकों के प्रति लोगों में बेहद गुस्सा है। पिछले चुनाव में ऐसे ही हालात के चलते 18 विधायकों की टिकिट काटनी पड़ी थी जबकि इस बार कोयले की कालिख ने हालात और खराब कर दिए है और करीब 36 ऐसे विधायकों की सूची तैयार हो चुकी है जिनके टिकिट काटे जा सकते हैं।
इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सरकार ने जोर शोर से तैयारी शुरु कर दी है और विपक्षी कांग्रेस का माकूल जवाब देने साम दाम दंड भेद की नीति अपनाई जा रही है। मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह इस बार विपक्ष के सीधे निशाने पर हैं तो इसकी वजह कोयले की कालिख के अलावा रोगदा बांध के3 अलावा शिक्षा कर्मियों , किसान और बेरोजगारी भत्ता को लेकर किया गया वादा खिलाफ़ी है।
हांलाकि डॉ रमन सिंअह ने विपक्षी हमले का जवाब ब्रह्मास्त्र से देने की बात कही है और यह ब्रह्मास्त्र क्या होगा इसका खुलासा नहीं हुआ है। डॉ रमन सिंह के इस हैट्रिक अभियान को चाक चौबंद करने भाजपा संगठन के अलावा आर एस एस और उसके अनुसागिंक संगठनों ने भी तैयारी शुरु कर दी है जबकि मुख्यमंत्री के खास अधिकारी भी इस अभियान में शामिल होने लगे हैं।
हालांकि कोयले की कालिख के अलावा भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर हमले कर रही कांग्रेसी नीति का क्या असर होगा यह तो बाद में ही पता चलेगा। लेकिन कांग्रेस की आक्रामक शैली से रमन सरकार के माथे पर बल पडऩे लगा है।
कांग्रेसियों द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे से रमन सरकार कटघरे में नजर आ रही है और यही वजह है कि मुख्यमत्री डॉ रमन सिंह न केवल संघ के लोगों से लगातार बैठकें कर रहे हैं बल्कि ब्रह्मास्त्र होने की बात कर रहे हैं।
हालांकि विपक्षी कांग्रेस रमन सिंह के ब्रह्मास्त्र की बात को नजर अंदाज करने की कोशिश में है। लेकिन कांग्रेस यह जानती है कि सत्ता का ब्रह्मास्त्र क्या हो सकता है। भले ही वह मुख्यमंत्री रमन सिंह के ब्रह्मास्त्र को भगवान लक्ष्मण द्वारा छोड़े गए मेघनाथ के ब्रह्मास्त्र से तुलना कर रहे हैं लेकिन गुटबाजी में बटी कांग्रेस के पास लक्ष्मण के लिए संजीवनी लाने वाले हनुमान कौन होगें। इसका जवाब किसी के पास नहीं है। इसकी तरफ़ मुख्यमंत्री के ब्रह्मास्त्र बादक़ भी भाजपा की चिंता अपने ही विधायकों के प्रति जनता में उत्पन्न आक्रोश को लेकर भी है। कहा जाता है कि सरकार के कामकाज को लेकर करीब आधा दर्जन सर्वेक्षण हुए हैं और सभी सर्वेक्षणों में मंत्रियों व विधायकों के प्रति आक्रोश की बात अधिक है। इस सर्वे में टिकिट काटे जाने वाले विधायकों की संख्या अलग-अलग है लेकिन सूत्रों क अभी दावा है कि किसी भी सर्वे रिपोर्ट में यह संख्या दो दर्जन से कम नहीं है। बताया जाता है कि 50 विधायकों वाली सरकार में यदि दो-तीन दर्जन विधायकों की टिकिट काटने की नौबत आई तो बगावत से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में भाजपा के लिए यह मुश्किल भरा काम हो सकता है। हालांकि संगठन सूत्रों का कहना है कि पिछली बार भी 18 विधायकों टिकिटें काटी गई थी तब कुछ नहीं हुआ था लेकिन इस बार मुख्यमंत्री की पहले जैसे छवि पर भी संगठन खेमा खामोश है। बहरहाल भाजपा की हैट्रिक में सबसे बड़े रोड़ा बन रहे उनके अपने विधायकों पर ब्रह्मास्त्र का क्या असर होगा यह चर्चा में है।

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

छत्तीसगढ़ के डेढ़ दर्जन आईएएस निकम्में व भ्रष्ट...


छत्तीसगढ़ के डेढ़ दर्जन आईएएस अफ़सर या तो निकम्मे हैं या भ्रष्ट हैं और इन्हें रमन सरकार ने केवल संरक्षण दे रखा है बल्कि महत्वपूर्ण जिम्मेदारी भी दे रखी है। कहा जाता है कि इन भ्रष्ट व निकम्मे अफ़सरों के खिलाफ़ कार्यवाई की बजाए रमन सरकार पूरी भाजपा का ही भ_ा बिठाने में लगी है। इन अफ़सरों की करतूत से न केवल छत्तीसगढ़ के विकास पर असर पड़ा है। बल्कि सरकारी खजाने का एक बड़ा हिस्सा भी इनकी जेब में चला गया है। यही नहीं अफ़सरों की करतूत की वजह से सरकार की साख पर भी धब्बा लग रहा है।
छत्तीसगढ़ की रमन सरकार के संरक्षण में निकम्मे एवं भ्रष्ट अफ़सरों के फ़लने फ़ूलने का सच किसी और ने नहीं वरन मुख्य सचिव सुनील कुमार की अध्यक्षता में गठित रिव्यू कमेटी ने उजागर किया है।
रिव्यू कमेटी ने 31 जनवरी को अपनी बैठक के बाद 25 साल की सेवा कर चुके आईएएस अफ़सरों के कार्यों की जांच कर रिपोर्ट तैयार की है। हालांकि केन्द्रीय कार्मिक विभाग के अफ़सरों के नहीं आने की वजह से सूची पर मुहर नहीं लग पाई। लेकिन सूत्रों का कहना है कि सुनील कुमार की अध्यक्षता वाली कमेटी ने 19 नाम तय किए हैं जो नौकरी में रखने लायक नहीं है।
सूत्रों का कहना है कि रिव्यू कमेंटी की रिपोर्ट के बाद न केवल आइएएस अफ़सरों बल्कि सरकार में भी हड़कम्प मचा हुआ है। एक तरफ़ सरकार के कई मंत्री ऐसे अफ़सरों को हटाकर सरकार की छवि सुधारने की बातें कर रहे हैं तो वहीं यह भी कहा जा रहा है कि सीएम इन्हे हटा कर कोई बखेड़ा खड़ा करना नहीं चाहते। हालांकि चर्चा इस बात की भी है कि भ्रष्ट अफ़सरों ने मुख्यमंत्री पर कार्यवाई नहीं करने का दबाव बना दिया है। ऐसे में रिव्यू कमेटी की रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में डाला जा सकता है।
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों ने बताया है कि आइएएस अफ़सरों की कमी झेल रही सरकार के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि कई अफ़सरों का सीधे सरकार में बैठे लोगों से संबंध है और ऐसे में कार्यवाई के खिलाफ़ अफ़सरों ने मुंह खोल दिया तो सरकार को इस चुनावी साल में लेने के देने पड़ सकते हैं।
बहरहाल निकम्मे एवं भ्रष्ट अफ़सरों के खिलाफ़ कार्यवाई कर चुनावी साल में छवि सुधारने की कवायद में लगी रमन सरकार का रुख क्या होगा यह बाद में पता चलेगा।
19 अफ़सरों की सूची तैयार
हमारे बेहद भरोसेमंद सूत्रों ने राज्य के भ्रष्ट व निकम्मे 19 आईएएस अफ़सरों के नाम बताते हुए कहा कि सूची को लेकर विवाद इसलिए भी है क्योंकि सुनील कुमार की अध्यक्षता वाली इस टीम में मालिक मकबूजा कांड के आरोपी नारायण सिंह की सवालों के घेरे में है। जबकि सूची में दो सीनियर अफ़सरों के अलावा, प्रिंसिपल सेक्रेटरी के नाम भी शामिल है। इनमें से एक के खिलाफ़ डीई तक चल रही है। जबकि मालिक मकबूजा से लेकर बारदाना और चिकित्सा उपरकरण की खरीदी के अलावा कई घोटालेबाज चर्चित अफ़सरों के नाम सूची में शामिल हैं। रिव्यू कमेटी के सदस्य के मुताबिक इन अफ़सरों की करतूतों की वजह से बाकी अफ़सर बदनामी झेल रहे हैं। इसलिए कार्यवाई जल्द होनी चाहिए।

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

सरकार का सच ! सुराज का झूठ...


गाँव से लेकर शहर तक सुराज और विकास का ढिंढोरा पिटने में लगी रमन सरकार भले ही सत्ता की चकाचौंध में आम आदमी की पीड़ा नहीं देख पा रही हो, अपनी चमचमाती गाडिय़ों के फर्ऱाटे से उड़ रही धूल की दिक्कतों से वे अनजान हों या लालबत्ती की धौंस से यातायात में फ़ंसने वाली भीड़ की परेशानी गाडिय़ों के काले शीशे से वे पार न देख रहे हों पर हकीकत में सिफऱ् दो रुपए किलो चावल दे देने से जीवन नहीं चलता।
जीवन चलता है रोटी कपड़ा मकान के अलावा बेहतर शिक्षा, बेहतर चिकित्सा सुविधा और भयमुक्त वातावरण से। लेकिन 9 साल में रमन सरकार ने विकास की जो लकीर खींचने की कोशिश की है। उसका आम आदमी की तकलीफ़ों से कोई लेना-देना नहीं है। बल्कि खेती की बरबादी और नदियों के पानी को प्रदूषित करते उद्योग से आने वाली पीढियों के लिए खतरा साफ़ नजर आ रहा है।

सुराज का सपना तो रमन सरकार ने अपने पहले ही संकल्प से मुकर कर तोडऩा शुरु कर दिया था और दूसरी पारी के लिए संकल्प से दूर भागने की कोशिश ने रही सही कसर पूरी कर दी। नौ साल में सरकार ने कितना विकास किया है और कैसा सुराज है यह उनके जनदर्शन ही नहीं जिला कलेक्टरों को मिल रहे आवेदनों की संख्या से साफ़ दिखने लगा है। आवेदनों की बढती संख्या से साफ़ है कि लोग भ्रष्ट तंत्र, निरंकुश नौकरशाह और मूलभूत सुविधाओं के अभाव से त्रस्त हैं और इसकी अनदेखी का परिणाम भयावह हो सकता है। राÓय बनने के बाद किसी ने नहीं सोचा था कि सरकार की प्राथमिकता इस कदर बदल जाएगी कि लोग बेहतर चिकित्सा सुविधा, बेहतर शिक्षा से वंचित हो जाएगें। निजी स्कूलों और निजी स्कूलों और निजी चिकित्सालयों को लूट की खुली छूट होगी और निजी संस्थानों को बढाने सरकारी संस्थानों को बरबाद कर दिया जाएगा। राÓय निर्माण के दौरान कर मुक्त राÓय और सरप्लस बिजली के चलते हर खेत में पानी की बात बेमानी हो जाएगी और सफ़सरों व नेताओं का राजधानी प्रेम के चलते ग्रामीण अंचल उपेक्षित हो जाएगा। यह सच है कि सरकार के पास जादू की छड़ी नहीं होती कि रातों रात समस्याएं दूर हो जाए लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर ब्लाक में सर्वसुविधा युक्त अस्पताल और बेहतर कालेज न खोला जा सके। ताकि लोगों को इसके लिए भी राजधानी का मोहताज रहना पड़े।  सरकार भले ही निजी क्षेत्रों को बढावा देने कौडिय़ों के मोल जमीन दे रही है। लेकिन यह भी सरकार की सोच की वजह से राजधानी तक ही सिमट कर रह गया है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित लोगों का आक्रोश चरम पर है और रमन सरकर सुराज के झूठ पर खड़ी नजर आ रही है। तभी तो भ्रष्टाचार और अव्यवस्था ने लोगों की सहनशीलता को तार-तार करना शुरु कर दिया है। अपनी मांगों के लिए लोग कानून हाथ में लेने लगे हैं। हालांकि हम किसी भी मांग के लिए कानून हाथ में लेने की किसी भी मांग का समर्थन नहीं करते लेकिन अपने हक के लिए लोगों को न केवल बाहर आना चाहिए बल्कि अव्यवस्था के खिलाफ़ आवाज बुलंद करना चाहिए। राजधानी के पेंशनबाड़ा स्थित प्री मैट्रिक छात्रावास के ब'चों ने जिस तरह बेबाकी और हिम्मत से काम किया है वह बाकी लोगों के लिए सीख बन सकती है। छात्रावास में रहने वाले इन ब'चों ने अव्यवस्था के लिए सबसे शिकायत की थी और जब उनकी नहीं सुनी गई तो इन ब'चों ने छात्रावास में ताला जड़ सहायक आयुक्त को अव्यवस्था देखने के लिए मजबूर कर दिया। यहाँ तक कि सहायक आयुक्त आर के सिदार को कलेक्टोरेट से छात्रावास तक कार छोड़कर पैदल जाना पड़ा। छात्रावास के ब'चों के इस कदम से प्रशासनिक तंत्र में हड़कम्प है और सरकार के माथे पर बल पडऩा भी स्वाभाविक है लेकिन इस एक घटना से सरकार का सच तो सामने आया ही है सूराज के झूठ से भी परदा उठा है। राजधानी में यह हाल है कि तो प्रदेश के दूसरे हिस्सों का क्या हाल होगा। यह सुराज एवं विकास के दावे करने वालों को सोचना होगा।?सुराज का सपना तो रमन सरकार ने अपने पहले ही संकल्प से मुकर कर तोडऩा शुरु कर दिया था और दूसरी पारी के लिए संकल्प से दूर भागने की कोशिश ने रही सही कसर पूरी कर दी। नौ साल में सरकार ने कितना विकास किया है और कैसा सुराज है यह उनके जनदर्शन ही नहीं जिला कलेक्टरों को मिल रहे आवेदनों की संख्या से साफ़ दिखने लगा है। आवेदनों की बढती संख्या से साफ़ है कि लोग भ्रष्ट तंत्र, निरंकुश नौकरशाह और मूलभूत सुविधाओं के अभाव से त्रस्त हैं और इसकी अनदेखी का परिणाम भयावह हो सकता है। राÓय बनने के बाद किसी ने नहीं सोचा था कि सरकार की प्राथमिकता इस कदर बदल जाएगी कि लोग बेहतर चिकित्सा सुविधा, बेहतर शिक्षा से वंचित हो जाएगें। निजी स्कूलों और निजी स्कूलों और निजी चिकित्सालयों को लूट की खुली छूट होगी और निजी संस्थानों को बढाने सरकारी संस्थानों को बरबाद कर दिया जाएगा। राÓय निर्माण के दौरान कर मुक्त राÓय और सरप्लस बिजली के चलते हर खेत में पानी की बात बेमानी हो जाएगी और सफ़सरों व नेताओं का राजधानी प्रेम के चलते ग्रामीण अंचल उपेक्षित हो जाएगा।
यह सच है कि सरकार के पास जादू की छड़ी नहीं होती कि रातों रात समस्याएं दूर हो जाए लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हर ब्लाक में सर्वसुविधा युक्त अस्पताल और बेहतर कालेज न खोला जा सके। ताकि लोगों को इसके लिए भी राजधानी का मोहताज रहना पड़े।
सरकार भले ही निजी क्षेत्रों को बढावा देने कौडिय़ों के मोल जमीन दे रही है। लेकिन यह भी सरकार की सोच की वजह से राजधानी तक ही सिमट कर रह गया है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित लोगों का आक्रोश चरम पर है और रमन सरकर सुराज के झूठ पर खड़ी नजर आ रही है।
तभी तो भ्रष्टाचार और अव्यवस्था ने लोगों की सहनशीलता को तार-तार करना शुरु कर दिया है। अपनी मांगों के लिए लोग कानून हाथ में लेने लगे हैं। हालांकि हम किसी भी मांग के लिए कानून हाथ में लेने की किसी भी मांग का समर्थन नहीं करते लेकिन अपने हक के लिए लोगों को न केवल बाहर आना चाहिए बल्कि अव्यवस्था के खिलाफ़ आवाज बुलंद करना चाहिए।
राजधानी के पेंशनबाड़ा स्थित प्री मैट्रिक छात्रावास के ब'चों ने जिस तरह बेबाकी और हिम्मत से काम किया है वह बाकी लोगों के लिए सीख बन सकती है। छात्रावास में रहने वाले इन ब'चों ने अव्यवस्था के लिए सबसे शिकायत की थी और जब उनकी नहीं सुनी गई तो इन ब'चों ने छात्रावास में ताला जड़ सहायक आयुक्त को अव्यवस्था देखने के लिए मजबूर कर दिया। यहाँ तक कि सहायक आयुक्त आर के सिदार को कलेक्टोरेट से छात्रावास तक कार छोड़कर पैदल जाना पड़ा।
छात्रावास के ब'चों के इस कदम से प्रशासनिक तंत्र में हड़कम्प है और सरकार के माथे पर बल पडऩा भी स्वाभाविक है लेकिन इस एक घटना से सरकार का सच तो सामने आया ही है सूराज के झूठ से भी परदा उठा है।
राजधानी में यह हाल है कि तो प्रदेश के दूसरे हिस्सों का क्या हाल होगा। यह सुराज एवं विकास के दावे करने वालों को सोचना होगा।?

मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

पुलिस भी करती है गांजा तस्करी....


छत्तीसगढ़ की पुलिस क्या नहीं करती, इस सवाल का जवाब देने में भले ही पुलिस के उ'चाधिकारियों को समय लग सकता है लेकिन किसी भी आम आदमी के लिए इसका जवाब देना आसान है। अवैध दारु-गांजा बेचने वालों या सटोरियों से वसूली तो कई राÓयों में होती होगी। लेकिन छत्तीसगढ़ पुलिस में पदस्थ सिपाही से लेकर ए एस आई भी गांजा तस्करी करते हैं। यह बात कोई विश्वास भले ही न करे लेकिन यह सच है। इस खेल में लगे पुलिस कर्मियों के खिलाफ़ भले ही छत्तीसगढ़ पुलिस कार्यवाई करने से हिचक रही हो लेकिन मध्यप्रदेश की पुलिस ने छत्तीसगढ़ पुलिस के एक ए एस आई अखिल पाण्डेय को गिरफ़्तार किया है। गौरेला के एस डी ओपी कार्यलय में संलग्न अखिल पाण्डेय के खिलाफ़ कार्यवाई मध्यप्रदेश की शहडोल जिले की पुलिस ने की है। गिरफ़्तारी के दौरान अखिल पाण्डेय ने भागने की कोशिश भी की थी।
ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ पुलिस में पदस्थ कर्मियों की यह पहली करतूत है। इससे पहले भी कई तरह की करतूतों की वजह से छग पुलिस शर्मशार हुई है और छग पुलिस की करतूतों की वजह से गृहमंत्री ननकी राम कंवर को विधान सभा में यह कहना पड़ा था कि थानेदार आम आदमियों से Óयादा शराब ठेकेदारों की सुनते हैं और दस-दस हजार रुपए में थाने बिके हुए हैं। अपराधियों से सांठ-गांठ के लिए चर्चित कई पुलिस वाले तो सेवानिवृत्ति के बाद भी संविदा में नियुक्ति पाने में सफ़ल हो गए हैं। इसमें एक दलाल किस्म के अधिकारी की संविदा पर तो सरकार तक कटघरे में है।
पेशी के दौरान अपराधियों के साथ मौज मस्ती करना तो आम बात हो गई है जबकि अपराधियों को भागने तक का मौका देने में छत्तीसगढ़ पुलिस कम बदनाम नहीं है। मन्नु नत्थानी हो या राजेश शर्मा, तापडिय़ा हो या कोई और अपराधी पुलिस वालों के इशारे पर ही फऱार है। बिलासपुर एस पी राहुल शर्मा कि मौत के मामले को सीबीआई को सौंपना पड़ा है। कहा जाता है कि लोहा और कोयला चोरों के खिलाफ़ कड़ी कार्यवाई करने वजह से उन पर बेहद दबाव बना था जबकि राजधानी में बद्री जैसे मिलावट खोरों पर हाथ डालने की वजह से शशिमोहन जैसे सीएसपी की हालत क्या हुई यह किसी से छिपा नहीं है।
अपराधियों को संरक्षण के अलावा अपराध कि विवेचना और गलत-सलत रपट लिखने के मामले में भी छत्तीसगढ़ पुलिस का जवाब नहीं है। तभी तो डीजीपी को हाईकोर्ट जाकर लिखित में आश्वासन देना पड़ा।
आखिर छत्तीसगढ़ की पुलिस की बढ़ती लापरवाही और अपराधियों से सांठ-गांठ का असर क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन शहडोल पुलिस की कार्यवाई से यह स्पष्ट हो गया कि पुलिस सिफऱ् गांजा तस्करों से वसूली का ही काम नहीं करती बल्कि तस्करी में भी शामिल है। आखिर उड़ीसा से बड़े पैमाने पर खपाए जा रहे गांजे की खपत किसी से छिपी नहीं है।
चलते-चलते
छत्तीसगढ़ पुलिस के उ'चाधिकारियों की अनदेखी की वजह से करीब डेढ़ सौ थानेदार यानी वरिष्ठ इंस्पेक्टर बगैर पदोन्नति के रिटायर्ड हो जाएगें। इस पर पहली प्रतिक्रिया अ'छा हुआ कहें तो सजा के हकदार थे और दूसरी प्रतिक्रिया "बाम्बरा जैसे लोग रहेगें तो ऐसा ही होगा।